प्रियंका गांधी कैंप: दर-बदर लोग रैन बसेरों का रुख़ क्यों नहीं कर रहे? पार्ट-1
बेतहाशा इधर-उधर दौड़ रही और दीवार पर चढ़े अपने भाई को झुग्गी में दबे सामान को तलाश करने को कहती रेशमा की आंखें साफ बता रही थी कि वे रात को ठीक से सोई नहीं थी। एक लड़की अपने भाई-बहनों के साथ मलबे में दबे कुछ सामान को तलाश करने की कोशिश करने में जुटी थी लेकिन दूसरी तरफ NDRF( National Disaster Response Force) के लोग उन्हें लगातार डांटते हुए मलबे से दूर जाने को कह रहे थे। इन सबके बीच कुछ लोग इन बेघर लोगों का सड़क किनारे रखे सामान को नज़र बचाकर उठाकर ले जाते भी दिखाई दिए।
''रैन बसेरा सेफ नहीं है''
हमने रेशमा से बात की तो पता चला वे 17 जून की रात अपने परिवार के साथ टूटी झुग्गियों के बगल से जा रही सड़क पर ही सोई थी। हमने रेशमा से पूछा कि ''वे किसी रैन बसेरा में क्यों नहीं गई'' तो वे कहती है, ''रैन बसेरा सेफ नहीं है, रैन बसेरा में काफी नशेड़ी, शराबी आते हैं, हम वहां नहीं जाएंगे।'' रेशमा के माता-पिता सुबह काम पर जा चुके थे। शायद ऐसे हालात में भी उनके पास छुट्टी मांगने की सुविधा नहीं थी। रेशमा ने बताया कि उनके साथ चार-पांच परिवार इसी तरह 17 जून की रात सड़क पर ही सोए थे, रात को हुई बारिश और मच्छरों की वजह से सभी की रात जागते-सोते-रोते हुए गुज़री।
रेशमा की ही तरह एक और लड़की नूरजहां मिली। नूरजहां कांपती हुई आवाज़ में हमसे बात कर रही थी। उन्होंने 17 जून की रात के बारे में बताया, ''हम रात को सो रहे थे तो कोठी से एक मैम आईं। उन्होंने कहा कि आपने कुछ खाया नहीं है। वे रोटी और थोड़ी दाल लेकर आई थीं लेकिन वो खाना हमने छोटे बच्चों को खिला दिया। हम रात भर यहीं सोए, बारिश हो रही थी। रात भर मच्छरों ने बहुत परेशान किया।'' हमने नूरजहां से पूछा कि उनका परिवार रैन बसेरा क्यों नहीं गया? इसके जवाब में नूरजहां ने कहा कि ''हम रैन बसेरा में नहीं रह सकते, वहां शराब पीकर लोग आते हैं। आपको लगता है कि लड़कियों का रहना वहां सुरक्षित होगा? वैसे यहां के कुछ लोगों ने पता किया था तो पता चला कि रैन बसेरे भरे पड़े हैं''।
नूरजहां की आवाज़ अब तक तो रुंधी थी लेकिन जैसे ही उन्हें ख़्याल आया कि आगे की पढ़ाई का अब क्या होगा तो बिलख-बिलख कर रोने लगी और कहने लगी कि ''अभी ग्यारहवीं की पढ़ाई शुरू ही की थी। एडमिशन लिया ही था और ये सब हो गया। किताब सब दब गईं। पहले मैं आईपीएस बनने का सपना देखती थी लेकिन अब मैं जान बचाने वाले डॉक्टर बनना चाहती हूं। लेकिन पता नहीं मैं कैसे बन पाऊंगी। मैं बहुत मेहनत से पढ़ रही थी लेकिन अब बुक्स दब गईं कैसे पढ़ाई होगी, मम्मी-पापा इतना कमाते नहीं हैं कि दोबारा बुक्स ला सकें, तीन सौ रुपये मम्मी कमाती है, ज्यादा से ज़्यादा पांच सौ रुपए पापा कमाते हैं। किराए पर कमरा भी नहीं ले पा रहे हैं, अब पता नहीं क्या करेंगे''?
बेघर नूरजहां जिनका कहना है कि रैन बसेरा उन्हें सुरक्षित नहीं लगता।
रोती हुई नूरजहां पढ़ना चाहती है, आगे बढ़ना चाहती है। बिल्कुल उसी तरह जैसा सरकारी नारा है ''बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ''। पर ये होगा कैसे? ये कैसे कोई नूरजहां और रेशमा को बताए, इन लड़कियों से बात करते हुए समझना मुश्किल हो रहा था कि इनका कौन सा ग़म ज़्यादा बड़ा है, घर टूटने का या पढ़ाई छूटने का?
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16 जून को दिल्ली के वसंत विहार इलाके के प्रियंका गांधी कैंप पर अतिक्रमण हटाने के लिए बुलडोज़र चला, और 97 घरों (झुग्गियों) को जमींदोज कर दिया गया। दरअसल ये ज़मीन NDRF (National Disaster Response Force ) को दे दी गई है। ज़मीन NDRF को देने, जगह से 'अतिक्रमण' हटाने और बेघर हुए लोगों के पुनर्वास को लेकर यहां कार्रवाई से पहले एक नोटिस चिपका दिया गया था। जिसके मुख्य पांच बिंदुओं में से सबसे आख़िरी और पांचवें बिंदु में लिखा था कि, ''आपको यह भी सूचित किया जाता है कि आप उक्त भूमि पर अवैध कब्जा खाली करने के बाद DUSIB का रैन बसेरा, सेक्टर-3, फेस -3 द्वारका, दिल्ली या फिर किसी दूसरे रैन बसेरा में आवश्यकतानुसार निशुल्क आवास की सुविधा ले सकते हैं''।
कार्रवाई से पहले लगाए गए नोटिस के साथ ही दिल्ली के तमाम रैन बसेरों की एक लिस्ट भी लगाई गई थी।
रैन बसेरों की लिस्ट और नोटिस
ये मामला दिल्ली हाईकोर्ट पहुंचा था तो कोर्ट ने भी लोगों के पुनर्वास की बात कही थी। इस मामले में अभी अगली सुनवाई 3 जुलाई को होनी है। अब यहां एक बात कन्फ्यूज करती है कि अगर किसी का पुनर्वास नहीं हुआ तो पहले घर तोड़ने का आदेश कैसे दे दिया गया? ये बात समझने के लिए हमने इस केस के वकील विनोद कुमार सिंह से बात की। उन्होंने कहा कि ''कोर्ट ने पुनर्वास 'टाइम बाउंड मैनर' में होने की बात कही थी, लेकिन हां ये बात थोड़ा कन्फ्यूज़ इसलिए करती है क्योंकि अगर पॉलिसी कहती है कि किसी भी आइडेंटिफाई क्लस्टर (झुग्गी झोपड़ी) को तोड़ते हैं तो उससे पहले उसका सर्वे होना चाहिए। वे रिलोकेट होने चाहिए। उसके बाद उसे एविक्ट किया जाएगा। लेकिन ये नेशनल सिक्योरिटी की बात थी और डिफेंस इस मैटर से जुड़ा हुआ था तो इसलिए इस पर हमें स्टे नहीं मिला।'' वे आगे बताते हैं कि ''जज साहब (पुनर्वास को लेकर) हमारी हर बात से सहमत थे लेकिन स्टे के लिए राज़ी नहीं हुए क्योंकि ये नेशनल सिक्योरिटी की बात थी''।
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आदेश के मुताबिक कार्रवाई कर दी गई। 16 जून को हुई कार्रवाई के बाद, बहुत से परिवारों ने अपने जान-पहचान के लोगों के यहां पनाह ली, लेकिन कुछ परिवारों ने 17 जून की रात खुले आसमान के नीचे बारिश में और मच्छरों के बीच गुज़ारी। हमने वहां मौजूद उन परिवार से पूछा कि उन लोगों ने रैन बसेरों का रुख करने की बजाए खुले आसमान के नीचे रहना क्यों चुना? हमें रौशनी ने बताया कि '' 17 जून की रात को हम लोग यहीं सोए थे, अभी मैंने किसी तरह एक जगह तलाश की है लेकिन वे लोग कह रहे थे कि तुम इतने ग़रीब हो। किराया देना तुम्हारे बस की बात नहीं। मैंने उनसे हाथ-पैर जोड़कर जगह मांगी है। अभी सिर्फ सामान रखने की जगह दी है, उसी सामान के पास मैं अपने बच्चों को छोड़कर आई हूं।'' हमने रौशनी से पूछा कि वे रैन बसेरे में क्यों नहीं गई तो उन्होंने जवाब दिया, ''आस-पास के सारे रैन बसेरे भरे हुए हैं, हम 20-25 साल से यहां रह रहे थे, हमारे पास जो सामान था वे रैन बसेरे में कैसे शिफ्ट करेंगे? मैं अपनी जवान लड़की को लेकर वहां कैसे जाऊं, उसी बेटी को लेकर किसी तरह हमने रात खुले में गुज़ारी, हम सरकार से बहुत नाराज़ हैं, उन्होंने हमारी एक नहीं सुनी, हमने हर जगह गुहार लगाई लेकिन कहीं से हमें मदद नहीं मिली, सरकार से हमें उम्मीद थी कि वे हमें चार खाट की जगह थी तो कम से कम एक खाट की जगह कहीं दे देगी, लेकिन सरकार ने ये हमारे साथ क्या किया?''
यहां कभी प्रियंका गांधी कैंप था लेकिन अब इसे NDRF को दे दिया गया है
''पुनर्वास का हक होने का बावजूद दर-बदर हुए लोग''
प्रियंका गांधी कैंप के लोगों के साथ लंबे समय से काम कर रहीं AICCTU ( All India Central Council of Trade Unions ) की नेहा से हमने बात की। वे कहती हैं कि ''रैन बसेरा कोर्ट ने एक अस्थाई उपाय बताया है, लेकिन इनका रहने का इंतज़ाम तो करना होगा न। दिल्ली में झुग्गियों की नोटिफाइड और डिनोटिफाइड लिस्ट है। इसमें एक मेन लिस्ट है जिसमें 657 झुग्गियों का नाम है, जिसको अगर हटाया जाता है तो उनका पुनर्वास होगा। इसके अलावा एक एडिशनल लिस्ट है जिसमें 82 झुग्गी का नाम है जिसमें प्रियंका गांधी कैप भी है, लेकिन DUSIB (Delhi Urban Shelter Improvement Board) कह रहा है कि हमने 82 वाली लिस्ट हटा दी है।'' वे आगे कहती हैं कि ''हमने कोर्ट से वक़्त मांगा था लेकिन NDRF ने कहा कि ये नेशनल सिक्योरिटी का मामला है और आज की तारीख़ में अगर किसी बात के आगे नेशनल लफ़्ज़ जुड़ गया तो उसके बाद कोई दलील काम नहीं आती।'' वे कहती हैं कि NDRF के हेड ऑफिस की अभी यहां बिल्डिंग बनेगी उसके लिए उन्हें मजदूर चाहिए होंगे और यहां जो लोग रह रहे थे उनमें से बहुत से लोग निर्माण मजदूर ही हैं। इनके अलावा घरेलू कामगार यहां पर रह रहे थे। सौ के क़रीब परिवारों को जिनके पास पुनर्वास का हक था ऐसे मौसम में बेघर कर दिया गया।''
नेहा बताती हैं कि ''जब रैन बसेरा की बात आई तो हमने ख़ुद आस-पास के 10 किलोमीटर के दायरे में जाकर देखा। इससे आगे हम नहीं गए क्योंकि इन लोगों का काम यहां है, बच्चों का स्कूल यहां है, जबकि उनकी तरफ से द्वारका और गीता कॉलोनी जाने के लिए बोल रहे हैं। हम DUSIB (Delhi Urban Shelter Improvement Board) की लिस्ट के मुताबिक रैन बसेरा गए और वहां की तस्वीरें लीं। वहां देखा कि कितनी जगह है, वहां कितने लोगों को रखा जा सकता है, शौचालय किस हालत में हैं। ये हमने अपने स्तर पर किया, हमने ये चीज़ें कोर्ट में जमा भी की और बताया कि वो रहने वाली हालत में नहीं है, लेकिन फिर भी रैन बसेरा जाने के लिए बोल दिया गया।''
''परिवारों का रैन बसेरा जाना मुश्किल है''
आख़िर क्यों लोग बेघर होने पर रैन बसेरों का रुख़ नहीं कर पा रहे। इसपर हमने यहां (प्रियंका गांधी कैंप) के लोगों के लिए काम कर रहीं 'घरेलू कामकाजी महिला यूनियन' की जनरल सेक्रेटरी रेखा सिंह से बात की। वे कहती हैं कि ''हमने कोर्ट में कहा था कि पहले इनके रहने की व्यवस्था कर दी जाए। हमने कहा था कि ऐसा नहीं है कि हम आपकी ज़मीन खाली नहीं करेंगे। हम खाली कर देंगे लेकिन उससे पहले इनके रहने की व्यवस्था की जाए और अगर उसमें देर लग रही है तो अस्थाई व्यवस्था कर दी जाए, लेकिन रैन बसेरा में परिवार के साथ रहना मुमकीन नहीं है। हमने ख़ुद रैन बसेरों की तस्वीरें, वीडियो कोर्ट में जमा भी किए थे। हमारे वकील ने बताने की कोशिश की थी कि परिवार के साथ वहां रहना मुश्किल है। लेकिन कोर्ट ने DUSIB, DDA, NDRF से कहा कि आप व्यवस्था करो।'' वे आगे बताती हैं कि NDRF तो कहता है कि हमने तो डेढ़ सौ रैन बसेरों की लिस्ट दे दी है, लेकिन इन रैन बसेरों में कई बंद हैं और फिर आप चाहो कि जो बच्चा वसंत विहार के सर्वोदय विद्यालय में पढ़ रहा है, जो महिला वंसत विहार में काम कर रही है वो यहां से इतने किलोमीटर दूर रैन बसेरा में रहने कैसे जाएगी। इतनी दूर आना-जाना उसके लिए कैसे संभव है? जज ने कहा कि इनको घर मिलना चाहिए, लेकिन उस प्रक्रिया में कितना वक़्त लगेगा? घर मिलेगा, नहीं मिलेगा ये किसी को नहीं पता''।
''धर्म परिवर्तन'' का डर?
प्रियंका गांधी कैंप से बेघर हुए लोगों में से किसी के भी रैन बसेरा न जाने पर वे कहती हैं कि ''कोई भी परिवार रैन बसेरा नहीं गया है क्योंकि वे रहने लायक नहीं हैं, वहां एक नई बात पता चल रही है कि वहां 'धर्म परिवर्तन' किया जाता है। लोगों को धर्म बदलने के लिए मजबूर किया जाता है। इस वजह से लोग और भी डरे हुए हैं। यहां कितने लोग रात को सड़क पर ही सो गए लेकिन रैन बसेरा नहीं गए। जिन लोगों का परिवार है उन्हें किराए पर घर भी नहीं मिल पा रहे हैं।''
''बेघर बुज़ुर्ग कैसे रहेगी रैन बसेरा में ?''
रेखा एक बुज़ुर्ग महिला के बारे में बताती हैं। वह कहती हैं, ''एक सीता आंटी हैं, वे 75 साल की हैं। उनके साथ उनका पोता रहता है, उनको ढाई हज़ार पेंशन मिलती है, अब ये बताइए उस ढाई हज़ार में वे कहां कमरा लेंगी? क्या ये संभव है? वे रैन बसेरा नहीं जा सकती हैं क्योंकि वे बहुत बुज़ुर्ग हैं वहां वे नहीं रह पाएंगी, किराए पर मकान ले नहीं सकती तो जाएं कहां? फिलहाल किसी के घर पर गई हैं, लेकिन कोई दूसरा उन्हें कब तक रख पाएगा, उनका ख़र्च कैसे चलेगा ?
रैन बसेरा न जाने की जो अहम वजह
लोगों के मुताबिक ज़्यादातर रैन बसेरा भरे हुए हैं, परिवार रैन बसेरा को सुरक्षित नहीं मानते, व्यावहारिक तौर पर पांच-पांच या फिर छह-छह लोगों के परिवार के लिए रैन बसेरा जाना मुश्किल हो रहा है, बेघर लोगों को द्वारका के रैन बसेरा या फिर लिस्ट के मुताबिक़ कहीं भी जाने के लिए कहा गया लेकिन अगर बच्चों के स्कूल वसंत विहार में है, महिलाओं के काम यहां पर हैं तो वे कैसे वसंत विहार से आ जा पाएंगे?
इन सब के बीच DUSIB ( Delhi Urban Shelter Improvement Board ) क्या रोल अदा कर रहा है समझ के परे है। रेखा सिंह कहती हैं कि ''DUSIB का काम था पुनर्वास करवाने का। जिस दिन बुलडोज़र चला मैं यहां सुबह चार बजे आ गई थी। DUSIB का एक भी कर्मचारी मुझे नहीं दिखा। न ही दिल्ली सरकार की तरफ से कोई दिखा। रात को लोग सड़क पर सोए लेकिन जिसे व्यवस्था करनी चाहिए थी वे नहीं दिखे।''
जिन 97 झुग्गियों को यहां से हटाया गया वे कहां गए? आख़िर किन हालात में वे रह रहे हैं ये कौन सुनिश्चित करेगा?
बेघर लोग रैन बसेरों के बारे में जो बता रहे थे क्या ये सिर्फ उनकी राय या फिर डर था? क्या है हकीकत? ये जानने के लिए हमने वसंत विहार इलाके के आस-पास कुछ रैन बसेरों में जाकर पता लगाने की कोशिश की जो अगली रिपोर्ट में....
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