'सुरक्षा चूक' की आड़ में राजनीतिक स्टंट?
बुधवार 5 जनवरी को पंजाब में प्रधानमंत्री के क़ाफ़िले के रूट को बाधित करना यकीनन ठीक नहीं था। इसे सिक्योरिटी चूक कहा जा सकता है। क़ाफ़िला बठिंडा से हुसैनीवाला जा रहा था। पहले से निर्धारित रूट के अनुसार उन्हें बठिंडा से हुसैनीवाला की दूरी हेलीकाप्टर से तय करनी थी। लेकिन मौसम के बिगड़ जाने से आनन-फ़ानन रूट बदला गया और प्रधानमंत्री ने सड़क मार्ग से जाना तय किया। हुसैनीवाला से कुछ पहले एक फ़्लाईओवर पर किसानों ने ज़ाम लगा रखा था। ऐसे में प्रधानमंत्री का क़ाफ़िला रुक गया और क़रीब 20 मिनट तक जब किसान वहाँ से नहीं हटे तो एसपीजी ने यू टर्न लेने का फ़ैसला किया और क़ाफ़िला वापस बठिंडा लौट आया। यह पंजाब पुलिस की एक सामान्य चूक थी, जो अचानक रूट के बदल देने और वैकल्पिक रूट-निर्धारण से हो सकती है। इस चूक के लिए ज़िम्मेदार लोगों से जवाब तलब किया जा सकता था। केंद्रीय गृह मंत्रालय पंजाब के डीजीपी से पूछता और आगे के लिए आगाह कर देता। किंतु प्रधानमंत्री की एक टिप्पणी ने इस पूरे मामले को राजनीतिक बना दिया।
प्रधानमंत्री ने दिल्ली रवाना होने के पूर्व बठिंडा एयरपोर्ट में पंजाब के अधिकारियों से कहा, “अपने सीएम को थैंक्स कहना मैं बठिंडा एयरपोर्ट तक ज़िंदा लौट आया हूँ”। इस टिप्पणी के बाद राजनीतिक उठापटक शुरू हो गई। इस तरह एक सिक्योरिटी चूक राजनीतिक उठापटक की भेंट चढ़ गई। भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस के बीच वाक-युद्ध शुरू हो गया। पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी ने कहा है, कि वे प्रधानमंत्री की सुरक्षा के प्रति अपनी ज़िम्मेदारी बख़ूबी समझते हैं। और उनके क़ाफ़िले के बाधित होने पर हमें खेद है। लेकिन यह कोई सुरक्षा चूक नहीं है और न किसी हमले की आशंका थी। बीजेपी का कहना है, कि प्रधानमंत्री का रूट लीक किया गया और विरोध के लिए किसान बुला लिए गए थे। उनके अनुसार पंजाब पुलिस के मुखिया का भरोसा मिलने के बाद ही प्रधानमंत्री का क़ाफ़िला सड़क मार्ग से हुसैनीवाला के लिए रवाना हुआ था। अब इसमें बहुत सारे किंतु-परंतु हैं। और हर एक अपने विवेक से इसके निहितार्थ निकालेगा। किंतु यदि प्रधानमंत्री बिना कोई टिप्पणी किए बठिंडा एयर पोर्ट से वापस दिल्ली चले जाते तो इस तरह की राजनीति नहीं होती।
प्रधानमंत्री की सुरक्षा अभेद्य होती है। कई स्तर पर हज़ारों सुरक्षाकर्मी उन्हें घेरे रहते हैं। पहले तो एसपीजी फिर पर्सनल गार्ड, इसके बाद एनएसजी और केंद्रीय सुरक्षा बलों के जवान। इसके बाद वे जिस राज्य में हैं, वहाँ की पुलिस। कोई परिंदा भी उनके क़ाफ़िले के बीच नहीं आ सकता। इसके बाद भी किसी न किसी स्तर पर चूक हो जाती है। याद कीजिए, 2015 में बिहार विधानसभा चुनाव के समय उनकी जनसभा में कई जगह विस्फोट हुआ था। लेकिन इस पर न प्रधानमंत्री कुछ बोले, न वहाँ के सीएम। उलटे उस समय मंच पर मौजूद शाहनवाज़ हुसैन ने यह कह कर पूरे मामले को हल्का कर दिया कि “अरे कोई पटाखा है!’ और श्रोतागण थोड़ा खिसक कर दूसरी जगह बैठ गए। ऐसे मामलों की तह तक जाए बिना किसी भी ज़िम्मेदार राजनेता या संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्ति को कोई टिप्पणी नहीं करनी चाहिए। इससे थोड़ी देर के लिए पंजाब के कांग्रेसी मुख्यमंत्री सकुचाए ज़रूर, लेकिन उसके बाद दोनों दलों के बीच तुर्की-बतुर्की ज़बानी जंग होने लगी और इससे प्रधानमंत्री की गरिमा को भी आँच पहुँची ही।
अब कुछ अन्य तथ्यों को देखें। जिस जगह प्रधानमंत्री का क़ाफ़िला रुका वहाँ से पाकिस्तान सीमा 48 किमी है। और अभी हाल के केंद्र सरकार के फ़ैसले के अनुसार सीमा से 50 किमी का दायरा बीएसएफ के अधीन रहेगा। इसलिए अब इस पर विवाद शुरू हो गया है, कि पंजाब पुलिस इसमें क्या करती। दूसरे पंजाब पुलिस का कहना है कि उन्होंने पत्र लिख कर प्रधानमंत्री को रैली करने से मना किया था। इसकी दो वजह थीं। एक तो किसानों की नाराज़गी और दूसरे मौसम का ख़राब होना। तब केंद्र सरकार के मंत्री शेखावत ने कहा कि किसानों को उन्होंने मना लिया है। लेकिन जब बठिंडा एयरपोर्ट पर मौसम ख़राब दिखा तब एसपीजी ने सड़क मार्ग से प्रधानमंत्री को ले जाने के बारे में सोचा। पंजाब पुलिस के मुखिया ने कहा, आधे घंटे का वक्त दीजिए, लेकिन प्रधानमंत्री का क़ाफ़िला तत्काल चल दिया। इसके अतिरिक्त सूत्रों के अनुसार MI-17 हेलीकाप्टर ख़राब मौसम में उड़ान भर सकता है। इन सबकी भी अनदेखी हुई।
सच बात तो यह है, कि बीजेपी और उसके नेता चौबीसो घंटे राजनीति करते हैं, इसलिए वे हर उस मौक़े को लपक लेते हैं, जिसमें उन्हें कुछ राजनीतिक लाभ मिलने की संभावना हो। पंजाब में अगले महीने विधानसभा चुनाव है। यद्यपि भाजपा वहाँ सरकार बनाने की कोई उम्मीद नहीं रख सकती लेकिन 2007 से 2017 तक वह शिरोमणि अकाली दल के साथ मिलकर सरकार में रहने का स्वाद चख चुकी है। 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने कैप्टन अमरिंदर सिंह की अगुआई में विधानसभा चुनाव जीत लिया था। मगर पिछले साल किसानों के विरोध प्रदर्शन के कारण अकाली दल ने भाजपा से नाता तोड़ लिया था और कुछ महीने पहले कांग्रेस ने कैप्टन अमरिंदर सिंह को हटा कर चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री बना दिया, जो कि दलित समाज से आते हैं। कैप्टन ने पार्टी से बग़ावत कर एक नई पार्टी बना ली और अब वे भाजपा के साथ तालमेल कर चुनाव लड़ेंगे। राज्य में अकाली दल ने बहुजन समाज पार्टी से समझौता किया हुआ है। इसके अलावा वहाँ आम आदमी पार्टी भी तेज़ी से उभर रही है। इस तरह फ़िलहाल लड़ाई वहाँ चौकोनी है। सब को लगता है, कि शायद वहाँ बहुमत किसी को न मिले। ऐसे में थैलियाँ खुलेंगी। आज की तारीख़ में थैली के मामले में भाजपा सब पर इक्कीस है।
पिछले दिनों चंडीगढ़ नगर निगम चुनाव का चुनाव एक बानगी है। पिछले महीने पड़े वोटों में 29.9 प्रतिशत वोट कांग्रेस को मिले लेकिन उसके मात्र 8 लोग जीते। 29.3 प्रतिशत वोट पाकर बीजेपी दूसरे नम्बर पर रही, उसके 12 लोग जीते। आम आदमी पार्टी को वोट तो सिर्फ़ 27.2 प्रतिशत मिले, किंतु उसके 14 लोग जीत गए। एक सभासद अकाली दल का जीता। अब कुल 35 का सदन है। कांग्रेस का एक सभासद देवेंद्र सिंह बाबला ने बीजेपी जॉयन कर ली। अब बीजेपी के पास हो गए 13 और चूँकि सांसद भी बीजेपी का है इसलिए उसके पास भी 14 सभासद हैं। आप पार्टी को अपने सदस्यों के टूटने का ख़तरा है, इसलिए अरविंद केजरीवाल अपने सभासदों को दिल्ली ले गए। अब मेयर उसी का होगा जिसके पास 19 सदस्य होंगे क्योंकि 35 सभासद प्लस एक सांसद मिला कर 36 लोग होते हैं। बीजेपी को यक़ीन है कि मेयर उसी का होगा।
इसी तरह पंजाब में बीजेपी के निशाने पर कांग्रेस है। भले वह न जीते लेकिन कांग्रेस भी पीछे रहे। शायद इसीलिए प्रधानमंत्री ने नवम्बर की 19 तारीख़ को ऐन गुरु नानक जयंती के दिन तीनों कृषि विधेयक वापस लिए। साथ में यह भी कहा था, कि ये तीनों विधेयक वे किसानों की भलाई के लिए लाए थे, किंतु कतिपय राजनीतिक दलों ने किसानों को गुमराह किया। इसलिए वे इसे समझ नहीं पाए। अब पंजाब के लिए वे 42750 करोड़ रुपयों की परियोजनाओं की घोषणा करने वाले थे और इसीलिए पांच जनवरी को फ़िरोज़पुर में जनसभा करने जा रहे थे। इसके पहले उन्हें हुसैनीवाला में शहीद स्थल का शिलान्यास करना था। मगर पंजाब में किसान उनसे खुश नहीं हैं। उनको लगता है, प्रधानमंत्री ने किसानों के साथ किए गए वायदों पर अभी तक अमल नहीं किया है। इसलिए सूत्रों का यह भी कहना है कि बीजेपी के नेता भी प्रधानमंत्री की फ़िरोज़पुर रैली को टलवाने की फ़िराक़ में थे। वहाँ पर लोग इकट्ठे ही नहीं हुए। ऐसे में प्रधानमंत्री का रूट बाधित हो गया और राजनीति खेलने का एक बहाना भी मिला।
आजकल सोशल मीडिया का ज़माना है। असंख्य यू-ट्यूब चैनल हैं, फेसबुक, ट्वीटर आदि हैं। अब मेन स्ट्रीम मीडिया के चैनलों, समाचार पत्रों आदि को भले सरकारी पार्टी मैनेज कर ले लेकिन अधिकांश लोग इसे गोदी मीडिया बता कर ख़ारिज कर देते हैं, और वे खबर जानने के लिए सोशल मीडिया की शरण लेते हैं। वहाँ पर बीजेपी और प्रधानमंत्री को लेकर खूब लानत-मलामत हो रही है। इससे भाजपा को जितना फ़ायदा होता है, उससे अधिक नुक़सान भी। अमृतसर से कांग्रेस के विधायक राज कुमार वेरका तो साफ़ कह रहे हैं, कि प्रधानमंत्री का क़ाफ़िला ख़ुद बीजेपी नेताओं के दबाव में वापस हुआ, क्योंकि रैली स्थल पर भीड़ नहीं थी। अब झेंप मिटाने के लिए सिक्योरिटी चूक की बात की जा रही है। इससे देश के सर्वोच्च पद का अपमान है। प्रधानमंत्री को ऐसे बयानों से बचना चाहिए था। और जो कुछ करना था, वह सीधे गृह मंत्रालय के आला अधिकारी करते तो भविष्य में ऐसी किसी भी चूक से प्रशासन सतर्क रहते। तथा राजनीति की ऐसी शर्मनाक उठापटक न होती।
अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।