पंजाब में बेअदबी की घटनाएँ, असली मुद्दों से ध्यान हटाने की कोशिश
एक नौजवान 18 दिसंबर को सुरक्षा घेरे से उछलकर अमृतसर स्थित स्वर्ण मंदिर के गर्भगृह में दाखिल हो जाता है और श्री गुरु ग्रंथ साहिब के सामने रखी तलवार को उठा लेता है, लेकिन सेवादार, यानी शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक समिति (एसजीपीसी) के सदस्य उसे पकड़ ले जाते हैं। कुछ ही पल बाद वहां मौजूद श्रद्धालु उस शख़्स की पीट-पीट कर हत्या कर देते हैं।
अमृतसर स्थित गुरु नानक देव यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर जगरूप सिंह सेखों कहते हैं, "यह कहानी का आख़िरी भाग है।” पंजाब की राजनीति और चुनावों के जानकार सेखों ने न्यूज़क्लिक को बताया, “हमें नहीं पता चल सकेगा कि वह नौजवान दिमाग़ी तौर पर बीमार था या किसी शरारत का हिस्सा था या यह किसी की राजनीतिक या धार्मिक साज़िश थी? दुर्भाग्य से ऐसे कई सवालों के जवाब ढूंढ़ पाना जांच एजेंसियों के लिए एक चुनौती होगी। ”
पंजाब में सिखों के 11वें और शाश्वत गुरु के रूप में पूजे जाने वाले गुरु ग्रंथ साहिब के ख़िलाफ़ यह पहली बेअदबी नहीं थी। 1 जून 2015 को फ़रीदकोट ज़िले के बुर्ज जवाहर सिंह वाला गांव से धार्मिक ग्रंथ का एक सरूप यानी प्रति चोरी हो गयी थी।
दूसरे मामले में कुछ महीने बाद ही 25 सितंबर को उसी गांव के पास एक समाध पर दो सिख प्रचारकों को निशाना बनाते हुए दो अपमानजनक पोस्टर चिपका दिये गये थे। ये पोस्टर फ़िल्म एमएसजी: द मैसेंजर ऑफ़ गॉड पर प्रतिबंध लगाने के ख़िलाफ़ थे। जेल में रह रहे डेरा सच्चा सौदा के प्रमुख और हत्या के दोषी गुरमीत राम रहीम ने पुलिस को चुनौती दी थी कि वह (चोरी हुए) उस सरूप का पता लगाये, जिसके बारे में दावा किया गया था कि वह गांव में ही था।
तीसरे मामले में उसी साल 12 अक्टूबर को बरगारी गांव में गुरुद्वारा और पास की एक गली के सामने गुरु ग्रंथ साहिब के फटे पन्ने बिखरे हुए मिले।
इनमें से हर एक घटना की निंदा की गयी, दोषियों का पता लगाने और इंसाफ़ दिलाने का वादा किया गया और सत्ताधारी दल ने इसके लिए विशेष जांच दल (SIT) की स्थापना की गयी। लेकिन, दुर्भाग्य से कुछ नहीं निकला।
सेखों कहते हैं, 'इन मामलों को बिना सुलझे हुए छह साल हो चुके हैं। तत्कालीन मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने गुटका साहिब की क़सम खायी थी कि दोषियों को पकड़ा जायेगा और उन्हें इंसाफ़ दिलाया जायेगा, और मामलों को सुलझाने के लिए कम से कम पांच एसआईटी और दो आयोगों का गठन किया गया था, लेकिन कुछ भी नहीं हुआ। राज्य के गृह मंत्री सुखजिंदर सिंह रंधावा की इस ताज़ातरीन घटना की जांच को लेकर एक और एसआईटी बनाने की घोषणा की ज़्यादा अहमियत नहीं है। लोग इन एसआईटी और उनके निष्कर्षों को लेकर बहुत संशय में हैं।"
पंजाब के सामाजिक और आर्थिक इतिहास के जानकार गुरु नानक यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर सुखदेव सिंह सोहल सेखों की बातों का समर्थन करते हैं। वह आरोप लगाते हैं, "लोग जानते हैं कि इन जांचों से कुछ भी नहीं निकलना है। 18 दिसंबर की घटना में व्यक्ति की पहचान अज्ञात बनी हुई है। सिंघू बॉर्डर पर हुई हत्या मामले का क्या हुआ? उसके अतीत और उसके रिश्तों के बारे में क्या? ज़ाहिर है, कुछ गड़बड़ चल रहा है।”
सोहल कहते हैं, “शायद एक निश्चित स्तर पर पुलिस भी बेबस हो जाती है, क्योंकि अक्सर उच्च एजेंसियां खेल का हिस्सा होती हैं। इससे पहले कैप्टन अमरिन्दर सिंह ने राज्य में अशांति के लिए विदेशी संस्थाओं को ज़िम्मेदार ठहराया था, लेकिन अब वह ख़ामोश हैं। अब कोई ख़ालिस्तानियों को दोष क्यों नहीं दे रहा है ? लोग अफ़वाहों पर विश्वास करने लगते हैं। “सोहल मानते हैं कि ऐसी घटनायें हिंदुओं और सिखों के बीच ध्रुवीकरण करने की कोशिशें हैं।वह कहते हैं, "लेकिन वे ग़लत हैं। वे समाज का ध्रुवीकरण कर पाने में कामयाब नहीं हो पायेंगे।”
सेखों इन घटनाओं और एसआईटी के गठित किये जाने को लोगों से जुड़े असली मुद्दों से ध्यान हटाने के उपाय के तौर पर देखते हैं। पंजाब में कृषक समुदाय के लगातार हाशिए पर जाने, आतंकवाद के बाद की स्थिति, बेरोज़गारी, ड्रग्स और इसी तरह की दूसरी अहम समस्याओं से बारी-बारी से आने वाली सरकारें निपट नहीं पायी है। अलग-अलग गुरुद्वारों/डेरों के बीच तनातनी और प्रतिद्वंद्विता ने इन हालात को और बढ़ा दिया है। हाल ही में बीकेयू उग्राहन ने कहा था कि जब भी लोग अपनी मांगों के लिए आवाज़ उठाते हैं, तो असली मुद्दों से ध्यान हटाने के लिए ऐसी घटनायें हो जाती हैं।
सेखों कहते हैं, “जनता ऐसी सरकार चाहती है, जो काम करे। ऐसा लगता है कि शिरोमणि अकाली दल (SAD) और कांग्रेस ने लोगों को निराश किया है। विकल्प क्या है? बीजेपी अमरिंदर सिंह की पार्टी के साथ साठ-गांठ करने की पुरज़ोर कोशिश कर रही है। यहां कोई विचारधारा नहीं है; यह सब चुनाव जीतने को लेकर है।" वह आगे कहते हैं, "राजनीतिक दल उस गुरुद्वारा प्रबंधक समितियों को विभाजित करने की कोशिश कर रहे हैं, जो बेहद सुव्यवस्थित लोकतांत्रिक संस्थान हैं, और ये दल वोट पाने के लिए लोगों की धार्मिक भावनाओं का इस्तेमाल करते हैं। राजनीतिक, सामाजिक और धार्मिक भावनाओं का यह घाल-मेल बहुत ही चिंताजनक है।"
सभी राजनीतिक दलों ने 18 दिसंबर की उस घटना की निंदा की है, लेकिन उनमें से किसी ने भी बाद में हुई उस हिंसा की आलोचना नहीं की है, जिसमें पुलिस की मौजूदगी में एक व्यक्ति को स्वर्ण मंदिर में और दूसरे को कपूरथला में मारा गया था। हालांकि, जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी के पूर्व प्रोफ़ेसर चमन लाल धर्म और राजनीति के इस घालमेल पर अपनी चिंता जताते हैं और उन्हें लगता है कि ये दोनों घटनायें एक दूसरे से जुड़ी हुई नहीं हो सकती हैं। मसलन, कपूरथला की घटना चोरी की घटना का नतीजा हो सकती है।
पंजाब प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू ने 18 दिसंबर की घटना की निंदा की है और मलेरकोटला में एक रैली के दौरान धार्मिक ग्रंथों का अपमान करने वालों को सार्वजनिक रूप से फांसी देने की मांग की है, लेकिन उस शख़्स की नृशंस हत्या का उल्लेख तक नहीं किया है। इसी तरह, शिरोमणी अकाली दल के प्रवक्ता महेशिंदर सिंह ग्रेवाल ने राष्ट्रीय टेलीविज़न पर कहा कि गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी करने वाले शख़्स की हत्या करना एकदम सही है। उनमें से किसी ने भी क़ानून के शासन को लेकर बात नहीं की है। यह तो सही मायने में लिंचिंग में भाग लेने वालों का महिमामंडन करना था।
सेखों का कहना है कि पंजाब धार्मिक और राजनीतिक दोनों ही तौर पर एक नाजुक सूबा है। उन्हें डर है कि चुनाव ख़त्म होने तक इस तरह की घटनायें होती रहेंगी।
अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें:
Punjab Sacrilege Incidents ‘Attempt to Divert Attention From Real Issues’
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