वाद-विवाद: हिंदुत्व द्वारा सनातन धर्म की वैचारिक रक्षा की कोशिश
“सनातन (धर्म) डेंगू, मलेरिया या कोरोना फैलाने वाले मच्छर के समान है। इसका विरोध करना ही काफी नहीं है, इसे खत्म करना होगा'' - यही कहना है तमिलनाडु के युवा कल्याण और खेल मंत्री और डीएमके युवा विंग के सचिव उदयनिधि स्टालिन का, जो संयोग से डीएमके मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के बेटे भी हैं। मंत्री ने 2 सितंबर 2023 को चेन्नई के तेनाम्पेट के कामराजार मैदान में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की साहित्यिक शाखा, तमिलनाडु प्रोग्रेसिव राइटर्स एसोसिएशन द्वारा आयोजित सनातन (धर्म) को खत्म करने के लिए एक सम्मेलन में यह कहा।
इस टिप्पणी से अखिल भारतीय स्तर पर बड़ा विवाद खड़ा हो गया है। अगले ही दिन, भाजपा के आधिकारिक प्रवक्ता अमित मालविया ने इस अवलोकन को विकृत करते हुए कहा कि उदयनिधि भारत की 80% हिंदू आबादी को खत्म करना चाहते हैं। फिर केंद्रीय गृह मंत्री अमित जैसे व्यक्ति ने इसे यह कहते हुए सांप्रदायिक मोड़ दिया कि इंडिया गुट की पार्टियां वोटबैंक की राजनीति (मुस्लिम अल्पसंख्यकों को तुष्ट करने के लिए) के लिए हिंदू धर्म पर हमला कर रही हैं। केंद्रीय मंत्रिमंडल में तीसरे सबसे बड़े मंत्री, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह भी "हिंदू धर्म पर हमले" की निंदा करने में उनके साथ शामिल हो गये। अगले दिन, एक अन्य वरिष्ठ केंद्रिय मंत्री निर्मला सीतारमण भी इस मुद्दे पर बहस में शामिल हो गईं और उदयनिधि स्टालिन की निंदा करने लगीं।
भाजपा की दिल्ली इकाई ने औपचारिक रूप से एमके स्टालिन को पत्र लिखकर उदयनिधि को उनके मंत्रिमंडल से बर्खास्त करने की मांग की, बीजेपी से जुड़े दिल्ली के वकील जिंदल ने उदयनिधि के खिलाफ दिल्ली पुलिस में शिकायत दर्ज करा दी है। तमिलनाडु बीजेपी सचिव और वकील अश्वत्थामन ने तमिलनाडु के राज्यपाल आरएन रवि को पत्र लिखकर मांग की कि हिंदू भावनाओं को ठेस पहुंचाने और दो समुदायों के बीच दरार और तनाव पैदा करने के लिए उदयनिधि के खिलाफ आईपीसी 153, 153 6जे, 295, 295 6जे, 296, 298, 499, 504 और 505 के तहत मामला दर्ज किया जाए। उन्होंने उदयनिधि के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए राज्यपाल से अनुमति भी मांगी क्योंकि वह एक मंत्री हैं और एक मंत्री के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए राज्यपाल की अनुमति आवश्यक होती है। चूंकि राज्यपाल का डीएमके सरकार के साथ लगातार टकराव चल रहा है, इसलिए कई लोग सोच रहे हैं कि वह इस मामले में अनुमति दे भी सकते हैं।
ब्राह्मणवादी जातिवाद के सनातन आदेश के खिलाफ इस तरह का बयान तमिलनाडु में द्रविड़ आंदोलन की तर्कवादी परंपरा में काफी आम है। इसमें कोई नई बात नहीं है। उदयनिधि के बयान पर भाजपा के कई वरिष्ठ नेताओं की तीखी प्रतिक्रिया सात निर्वाचन क्षेत्रों में मध्यावधि चुनाव और मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ , राजस्थान और मिजोरम में आगामी विधानसभा चुनावों में अपनी घटती संभावनाओं को बचाने के लिए अंतिम समय में इंडिया ब्लॉक के खिलाफ इसे एक बड़ा मुद्दा बनाने की भाजपा की योजना के कारण थी।
हिंदुत्व के आलोचकों के ख़िलाफ़ एक वैचारिक लड़ाई
आसन्न चुनावों में इसे एक अभियान के मुद्दे के रूप में उपयोग करने के तात्कालिक उद्देश्य के अलावा, यह प्रतिक्रिया हिंदुत्व के विरोधियों के खिलाफ एक वैचारिक जवाबी हमले का भी प्रतिनिधित्व करती है। यह याद किया जा सकता है कि तमिलनाडु के राज्यपाल स्वयं एमके स्टालिन द्वारा समर्थित द्रविड़ मॉडल की विशेषता वाले निचली जातियों के तर्कवाद और आत्म-सम्मान के दावे के खिलाफ एक वैचारिक धर्मयुद्ध का नेतृत्व कर रहे हैं। यह नया जवाबी हमला भी द्रविड़ मॉडल पर भाजपा के हमले की अगली कड़ी है।
तमिलनाडु में कई लोग इस बार शीर्ष भाजपा नेताओं की तीखी प्रतिक्रिया से आश्चर्यचकित हैं क्योंकि इस तरह का भाषण आमतौर पर कई डीएमके, द्रविड़ कड़गम, एमडीएमके और विदुथलाई चिरुथिगल पार्टी के नेताओं या द्रविड़ आंदोलन के सामाजिक सुधार की गौरवशाली विरासत को कायम रखने वाले किसी भी व्यक्ति द्वारा दिया जाता रहा है।
आख़िरकार, फ़ासीवाद महज़ एक राजनीतिक परिघटना नहीं है; सबसे पहले और सबसे महत्वपूर्ण, यह एक वैचारिक परिघटना है जिसमें उदारवाद, समाजवाद, तर्कवाद और जातिवाद-विरोध सहित अल्पसंख्यक धर्मों आदि का जबरन विरोध शामिल है। फ़ासीवादी युग की शुरुआत तब होती है जब उनके आधिपत्य के विपरीत छोटे-मोटे अहानिकर बयानों पर भी बात का बतंगड बनाया जाता है। प्रतिक्रिया अत्यधिक और निर्दयी होगी- ये संयोगवश हिंदुत्व फासीवाद के भारतीय ब्रांड की पहचान भी हैं।
उदयनिधि के कई पूर्ववर्ती हैं जिनमें अंबेडकर और पेरियार भी शामिल हैं। भाजपा की प्रतिकूल प्रतिक्रिया के बावजूद, वह अवज्ञाकारी बने रहे। उन्होंने केंद्र सरकार को उन्हें गिरफ्तार करने की चुनौती दी। उनके कई बचाव कर्ता यह सवाल भी उठा रहे हैं कि क्या संघ परिवार इसी तरह के बयान देने के लिए पेरियार और अंबेडकर की भी निंदा करेगा? वास्तव में, बाबासाहेब अंबेडकर हिंदू रूढ़िवाद पर हमला करने वाले अग्रदूतों में से एक थे। उन्होंने अपनी ‘रिडल्स ऑफ हिंदूइज्म’ पुस्तक में दमनकारी ब्राह्मणवादी हिंदू धर्म की तीखी आलोचना की थी।
हिंदू धर्म में अंबेडकर की पहेलियां
वह अंबेडकर ही थे जिन्होंने सनातन ब्राह्मणवादी हिंदू धर्म पर व्यवस्थित तरीके से हमला किया था। अपनी ‘रिडल्स ऑफ हिंदूइज्म’ पुस्तक में, उन्होंने जातिवादी ब्राह्मणवादी हिंदू धर्म की व्यापक आलोचना विकसित की।
उन्होंने सनातन शब्द का अर्थ शाश्वत एवं अपरिवर्तनीय रेखांकित किया था। उन्होंने हिंदू विचारकों के हिंदू धर्म को कालजयी होने का श्रेय देने के दावे का उपहास भी किया था।
उन्होंने ‘रिडल्स ऑफ हिंदूइज्म’ का परिचय इन तीखे शब्दों के साथ समाप्त किया:
“समय आ गया है जब हिंदू दिमाग को ब्राह्मणों द्वारा प्रचारित मूर्खतापूर्ण विचारों की जकड़ से मुक्त किया जाना चाहिए। इस मुक्ति के बिना भारत का कोई भविष्य नहीं है। मैंने यह कार्यभार अच्छी तरह से जानते हुए लिया है कि इसमें कितना जोखिम शामिल है। मैं परिणामों से नहीं डरता। अगर मैं जनता को उद्वेलित करने में सफल हो जाऊं तो मुझे खुशी होगी।''
इस प्रकार ब्राह्मणवादी हिंदू धर्म पर अंबेडकर का हमला बहुत स्पष्ट और तल्ख है। समय के साथ, ‘सनातन धर्म’ स्वयम ही क्रूर और पदानुक्रमित जाति व्यवस्था का प्रतिनिधित्व करने लगा है। वह अंबेडकर ही थे जिन्होंने बताया कि भारत में इस दमनकारी व्यवस्था पर हमला किए बिना कोई भी प्रगतिशील और लोकतांत्रिक नहीं हो सकता। विशुद्ध रूप से दलित वोटों को जीतने और अपने स्वयं के उच्च जाति के चरित्र को छिपाने के लिए, भाजपा अंबेडकर को भी अपने भगवा पंथ (pantheon) में शामिल करने की कोशिश कर रही है, जो पाखंड की पराकाष्ठा है। हिंदू धर्म का अंबेडकर से बेहतर और कटु आलोचक कोई नहीं हो सकता।
दूसरे, उदयनिधि पर हमला करके, भाजपा अपने हिंदू रूढ़िवाद के आधुनिकतावाद-विरोधी मूल को उजागर कर रही है, जो अल्पसंख्यकों, दलितों, आदिवासियों और महिलाओं के खिलाफ है। अपने उद्भव के समय भी बुद्धिवाद (rationalism) और नास्तिक विचारधारा में कोई अंतर नहीं था। यहां तक कि जिओर्डानो ब्रूनो और सर्वेंट्स जैसे विधर्मियों को भी धर्म के अंधविश्वास को चुनौती देने के लिए जिंदा जला दिया गया था। संघ परिवार नया हिंदू धर्माधिकरण (inquisition) है। लेकिन प्रतिगामी सनातन धर्म की रक्षा में उनका मुकाबला निचली जाति के लोगों से है, जो भारतीय समाज में भारी बहुमत में हैं।
उनका अधिनायकवादी विचार-नियंत्रण लंबे समय तक राजनीतिक आधिपत्य प्रदान नहीं कर सकता। उनका मुकाबला सिर्फ एक युवा राजनीतिक नेता से नहीं है। वे इतिहास और सभ्यता की प्रगति के ख़िलाफ़ खड़े हैं। वे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के ख़िलाफ़ भी हैं, जो स्वतंत्रता का सार है। संघ परिवार का असफल होना निश्चित है। पेरियार की भूमि में उनकी विफलता और भी तीव्र होगी।
(लेखक आर्थिक और श्रम मामलों के जानकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं।)
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