कटाक्ष: गहरा न खोदियो कोय
संभल की शाही जामा मस्जिद। तस्वीर : प्रतीकात्मक प्रयोग के लिए।
मोदी जी, योगी जी, भागवत जी, आदि जी लोग गलत नहीं कहते हैं। उनके राज के बाद भी हिंदुत्व की राह आसान नहीं है। हिंदुत्व की राह में खतरे ही खतरे हैं। बल्कि उनके राज में हिंदुत्व के लिए खतरे जितने हो गए हैं, पहले कभी भी नहीं थे।
सब हिंदुत्वविरोधियों के षडयंत्रों के कारण है। उनके राज के खिलाफ षडयंत्र करने के लिए सब हिंदुत्वविरोधी एक जो हो गए हैं। और जाहिर है कि हिंदुत्वविरोधी भी एक हैं, सो सेफ हैं। बेचारे हिंदुत्ववादी ही जी लोगों की सारी कोशिशों के बाद भी, अब तक एक नहीं हो पाए हैं, सो पूरी तरह से सेफ भी नहीं हो पाए हैं।
वर्ना चार सौ पार के अभिलाषी मोदी जी को, नायडू-नीतीश और शिंदे की भी बैसाखियों का मोहताज नहीं होना पड़ता। और संभल की मस्जिद का जरा सा सर्वे कराते ही, ‘‘गहरा न खोदिए कोय’’ की वैधानिक चेतावनियां आनी शुरू नहीं हो जातीं। वैधानिक चेतावनी यानी वैसी ही चेतावनी जैसी सिगरेट के एक-एक पैकेट पर और बीड़ी के हरेक बंडल पर छपी रहती है। सिर्फ शब्दों में ही नहीं, खतरे के निशान से ही नहीं, बाकायदा डराने वाली तस्वीरों के साथ चेतावनी– गहरा न खोदियो कोय।
अभी तो खुदाई शुरू भी नहीं हुई है। संभल में ही सर्वे पर ही झगड़ा पड़ा हुआ है। जरा सा दंगा-फसाद क्या हो गया, पांच जानें क्या चली गयीं, सुप्रीम कोर्ट तक बीच में कूद पड़ा। सब कुछ रुकवा दिया। सर्वे की रिपोर्ट तक को सीलबंद लिफाफे में बंद करा दिया। खुदाई क्या खाक होगी! और अजमेर के दरगाह शरीफ के मामले में तो बेचारे विष्णु गुप्त जी सर्वे तक का आर्डर नहीं निकलवा पाए हैं। बस एक तारीख पड़ी है और तीन नोटिस जारी हुए हैं। पता नहीं कब नौ मन तेल होगा और कब खुदाई की राधा नाचेगी!
सच पूछिए तो बेचारे हिंदुत्ववादियों की गाड़ी अब भी मस्जिदों के सर्वे के सिग्नल पर ही अटकी हुई है; काशी में भी और मथुरा में भी और धार के कमाल मौला मस्जिद-मकबरा परिसर में भी। बेचारों को अब तक खोदकर मंदिर निकालने का मौका मिला है, तो एक बाबरी मस्जिद में। हां! यहां-वहां दरगाहें वगैरह तोड़ने का मौका भी मिला है, लेकिन तोड़ने का ही। खोदकर मंदिर निकालने का मौका और कहीं भी नहीं मिला है।
1984 से हिसाब लगाएं तो, पूरे चालीस साल लगे हैं एक मस्जिद को खोदकर मंदिर निकालने में। इस हिसाब से मंदिरों पर बनी अठारह हजार मस्जिदें खोदकर मंदिर निकालने में कितने साल लगेंगे? पांच-सात लाख साल तो कहीं गए नहीं हैं। लेकिन, मस्जिद में खोदकर निकाले मंदिर, एक से दो भी नहीं हुए हैं, तब तक वैधानिक चेतावनी आनी शुरू हो गयी– गहरा न खादियो कोय!
पर गहरा खोदने में खतरा क्या है? चेतावनी देने वालों की मानें तो बेशक मस्जिद खोदने में भी हजार दिक्कतें हैं। तभी तो बाबरी मस्जिद खोदकर मंदिर निकालने में ही कम से कम चालीस साल तो लग ही गए। और चालीस साल तो तब हैं, जब गिनती आरएसएस-भाजपा-विहिप-बजरंग दल के मैदान में आने से की जाए। हिंदू महासभा से गिनेंगे तो तीस-पैंतीस साल और पीछे जाना पड़ेगा। और उनके भी पुरखों से हिसाब लगाने बैठेंगे तो और सौ साल पीछे।
मोदी-योगी जी वगैरह के डबल इंजनिया राज में जीडीपी के बदले में मस्जिद के नीचे मंदिर खोजो विकास की रफ्तार तेज भी हो जाए तब भी, मस्जिदों/ मकबरों/ दरगाहों के नीचे और गिरजों/ गुरुद्वारों के नीचे भी, मंदिर खोजने में टैम तो लगेगा। फिर भी चाहे जितना भी खोद लो। चाहे काशी खोदो, चाहे मथुरा खोदो। चाहे संभल खोदो, चाहे जौनपुर खोदो। चाहे धार खोदो। चाहे अजमेर खोदो, चाहे बुंदनगिरी खोदो। चाहे ताजमहल खोदो चाहे लाल किला खोदो। चाहे एक-एक मस्जिद/ दरगाह/ मकबरा खोदो। चाहे उत्तर में खोदो, चाहे दक्षिण में खोदो। पूरब में खोदो, चाहे पश्चिम में खोदो। पूरे देश में खोदो। बस में हो तो अखंड भारत के दूसरे देशों में आने वाले इलाकों में भी जाकर खोदो। बहाने से खोदो। न हो तो किसी के सपने के बहाने से खोदो। वह भी न हो तो बिना किसी बहाने के ही खोदो। बस खोदो। न हो तो मंदिर खोजने के लिए ही नहीं, सिर्फ खोदने के लिए ही खोदो। यह बताने के लिए खोदो कि मुसलमानों का कुछ भी खोद सकते हैं। बस हिंदुत्ववादियों के लिए, गहरा खोदना मना है!
मगर क्यों? हिंदुत्ववादियों के लिए गहरा खोदना क्यों मना है? क्योंकि मस्जिद के नीचे/ दरगाह के नीचे मंदिर निकले न निकले कोई नहीं कह सकता। बेशक, नहीं भी निकले, तब भी झूठ-मूठ में निकलने की अफवाह फैला सकते हैं। मांसाहारियों द्वारा फेंकी गयी हड्डियां निकलें, तब भी मंदिर का परिसर निकला बता सकते हैं। सांप की रस्सी और रस्सी का सांप बना सकते हैं। राज अपना हो तो कुछ भी कर सकते हैं, पर और नीचे नहीं जा सकते। क्यों? क्योंकि मस्जिद के नीचे मंदिर की कोई गारंटी नहीं है, पर हर पुराने मंदिर के नीचे बौद्ध मठ निकलने की पक्की गारंटी है। खुदाई का फावड़ा ज्यादा अंदर जाएगा, तो हरेक मंदिर के नीचे बौद्ध मठ निकल आएगा। फिर हिंदुत्ववादी क्या करेंगे? बौद्ध मठ को दोबारा दबा देंगे, जैसे उनके पर-पुरखों ने कभी बौद्ध धर्म को दबाया था? वाकई खतरा है। यह मस्जिदों को खोदने से ज्यादा मुश्किल होगा। बौद्ध इस बार न बंटेंगे और न कटेंगे।
गहरा खोदने में एक खतरा और है। पृथ्वी गोल है। मस्जिद के नीचे खोदा और कुछ नहीं मिला तो खुदाई कहां जाकर रुकेगी? दुनिया के दूसरे सिरे पर। हिंदुत्ववादी जिसे गहरा दबा बताएंगे, दूसरे क्या अपना हिस्सा नहीं बताएंगे। धार में खोदना शुरू करेंगे तो क्या गारंटी है कि न्यूयार्क में नहीं निकल आएंगे? विश्व गुरु किस-किस से झगड़ने जाएंगे। सो हिंदुत्ववादियो, ऊपर-ऊपर से चाहे पूरा देश खोद लेना, पर गहरा मत खोदना। जो तुम ऐसा जानते, गहराई में बौद्ध मठ होइ, जगत ढिंढोरा पीटते, गहरा न खोदियो कोय!
(इस व्यंग्य स्तंभ के लेखक वरिष्ठ पत्रकार और लोक लहर के संपादक हैं।)
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