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सर्व सेवा संघ: SC में तीसरी मर्तबा टली सुनवाई, अब 17 जुलाई को सुनी जाएंगी दलीलें

महाधिवक्ता तुषार मेहता और उनके सहयोगियों ने, न्यायमूर्ति हॄषिकेश राय और पंकज मित्तल की खंडपीठ से, सरकारी दावे को साबित करने के लिए अतिरिक्त समय की मांग की।
SC

उत्तर प्रदेश के वाराणसी स्थित सर्व सेवा संघ के खिलाफ ध्वस्तीकरण के मामले में सुप्रीम कोर्ट में शुक्रवार को सुनवाई पूरी नहीं हो सकी। कोर्ट में मौजूद महाधिवक्ता तुषार मेहता और उनके सहयोगियों ने सरकार का पक्ष रखा। सरकारी दावे को साबित करने के लिए मेहता ने अतिरिक्त समय की मांग की। न्यायमूर्ति हॄषिकेश राय और पंकज मित्तल की खंडपीठ ने महाधिवक्ता को तीन दिन का समय दिया। अब इस मामले की सुनवाई तीसरी मर्तबा 17 जुलाई (सोमवार) को होगी। सुप्रीम कोर्ट फिर दोनों पक्षों की दलीलें सुनेगी। उत्तर रेलवे का दावा है कि सर्व सेवा संघ की ज़मीन उसकी है।

सुप्रीम कोर्ट में अपराह्न करीब एक बजे सर्व सेवा संघ मामले की सुनवाई शुरू हुई। सरकार का पक्ष रखने के लिए महाधिवक्ता तुषार मेहता खुद कोर्ट में हाज़िर हुए। याचिकाकर्ता सर्व सेवा संघ की ओर से जाने-माने अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने अपनी मजबूत दलीलें पेश कीं। बाद में उन्होंने अपने दावे को साबित करने के लिए कोर्ट से अतिरिक्त समय की मांग की।

सुप्रीम कोर्ट में बहस के दौरान अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने कहा कि "बनारस जिला प्रशासन और उत्तर रेलवे ने इस मामले में जो जल्दबाजी दिखाई है, उससे उसकी बदनीयत का पता चलता है। प्रशासन अपने फैसलों की कानूनी व्याख्या करें और शिकायतकर्ता मोइनुद्दीन को गवाही के लिए व्यक्तिगत रूप से कोर्ट में हाज़िर करे। उत्तर रेलवे यह भी बताए कि सर्व सेवा संघ की ज़मीन की रजिस्ट्री के लिए जो धनराशि जमा की गई थी, क्या वह उसके खाते में नहीं गई थी? छह दशक पहले रेलवे के जिस अफसर ने बैनामा किया था, उस समय बनारस में कौन और किस पद पर तैनात था?"

सरकारी अधिवक्ता फौरी तौर पर प्रशांत भूषण के सवालों का जवाब नहीं दे सके। महाधिवक्ता के आग्रह पर सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें तीन दिनों का अतिरिक्त समय दिया। अब 17 जुलाई 2023 को तीसरी मर्तबा सर्व सेवा संघ मामले की सुनवाई होगी।

इससे पहले सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की पीठ ने 07 जुलाई को अधिवक्ता प्रशांत भूषण की दलीलों को संज्ञान में लेते हुए कहा था कि वह जिलाधिकारी को सूचित कर सकते हैं कि शीर्ष अदालत उनकी याचिका पर सुनवाई करने के लिए सहमत है और इस दौरान ढांचा नहीं गिराया जाएगा।

उत्तर प्रदेश सरकार और उत्तर रेलवे के मामले में सुप्रीम कोर्ट में 06 जुलाई 2023 को एक एसएलपी नंबर 014209/ 2023 दायर की गई थी, जिस पर मुख्य न्यायाधीश ने सुनवाई के लिए 10 जुलाई की तारीख लगाई थी। सर्व सेवा संघ के मामले में आज पहली बार न्यायमूर्ति हॄषिकेश राय और न्यायमूर्ति पंकज मित्तल की खंडपीठ ने कानूनी तौर पर बहस सुनी। सर्व सेवा संघ ने कई अहम सबूत पेश किए। सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता से कुछ और भी ज़रूरी दस्तावेज मांगे और दूसरी मर्तबा सुनवाई के लिए 14 जुलाई को नई तारीख तय की।

अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने सुप्रीम कोर्ट में सर्व सेवा संघ मामले की तत्काल सुनवाई करने और विवादित इमारत को गिराने के त्वरित आदेश पर रोक लगाने का अनुरोध किया था, जिसे कोर्ट ने स्वीकार कर लिया था। पहली बहस में अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने कहा कहा था, "महात्मा गांधी के विचारों और दर्शन का प्रचार करने के लिए आचार्य विनोबा भावे ने 1948 में सर्व सेवा संघ की स्थापना की थी, जिस पर 63 साल बाद उत्तर रेलवे ने अपना दावा किया है।

इससे पहले सर्व सेवा संघ ने वाराणसी के राजघाट स्थित 12.898 एकड़ भूखंड पर बने ढांचों को गिराने के लिए उत्तर रेलवे द्वारा जारी नोटिस को चुनौती देते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। संघ का कहना था कि वाराणसी के ‘परगना देहात’ में उसके परिसर के लिए ज़मीन साल 1960, 1961 और 1970 में तीन पंजीकृत सेल डीड के माध्यम से खरीदी गई थी। यह मामला सुप्रीम कोर्ट में तब पहुंचा जब हाईकोर्ट के जस्टिस एमसी त्रिपाठी और जस्टिस प्रशांत की पीठ ने इसे सुनने से इनकार कर दिया और याचिकाकर्ताओं को निचली अदालत में जाने को कहा।

इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका रिजेक्ट होने के बाद महात्मा गांधी के अनुयायियों ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया। याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि वाराणसी जिला प्रशासन ने 12.898 एकड़ भूखंड उत्तर रेलवे को देने का निर्देश दिया है जो उनके अधिकार क्षेत्र में नहीं है। जिलाधिकारी का फैसला आने के साथ ही उत्तर रेलवे ने सर्व सेवा संघ परिसर की सभी इमारतों को गिराने के लिए नोटिस चस्पा करा दिया। उनकी नोटिस को चुनौती देते हुए सर्व सेवा संघ ने हाईकोर्ट का रुख किया था, लेकिन कोर्ट ने इस मामले को नहीं सुना।

याचिकाकर्ता सर्व सेवा संघ के मुताबिक "यह परिसर उनका है। छह दशक बाद जिस ज़मीन को उत्तर रेलवे अपना बता रहा है उसे उत्तर रेलवे से साल 1960, 1961 और 1970 में खरीदा गया था। दान के पैसे से खरीदी गई इस ज़मीन को वाराणसी जिला प्रशासन ने उत्तर रेलवे के हवाले करने का निर्देश दिया है, जिसके विरोध में देश भर के गांधीवादी सत्याग्रह आंदोलन कर रहे हैं। बनारस में सत्याग्रह आंदोलन का आज 55वां दिन था।"

सर्व सेवा संघ को बचाने के लिए महात्मा गांधी के पुत्र राजमोहन गांधी ने देश के प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री को खत भेजा है। साथ ही कांग्रेस की वरिष्ठ नेता श्रीमती प्रियंका गांधी ने भी इस मामले में एक बयान जारी करते हुए कहा है कि देश की जनता मनमाने फैसले को बर्दाश्त नहीं करेगी। इस बीच बीएचयू के लंका गेट पर स्टूडेंट्स ने सर्व सेवा संघ को बचाने के लिए हस्ताक्षर अभियान चलाया और मोदी-योगी सरकार की नीतियों की कड़ी आलोचना की। कानपुर, इलाहाबाद, लखनऊ समेत देश के कई राज्यों में गांधीवादियों की बैठकें हुई और उन्होंने बापू की विरासत को बचाने की बात दोहराई।

इस बीच सर्वोदय सेवा मंडल के प्रदेश अध्यक्ष रामधीरज ने शुक्रवार को मीडिया से कहा, "सर्व सेवा संघ के साथ ही प्रशासन बनारस के राजघाट पर स्थित ऐतिहासिक संस्था कृष्णमूर्ति फाउंडेशन (बेसेंट स्कूल एवं बसंत महिला महाविद्यालय) पर भी बुलडोज़र चलाने की योजना बना रहा है। सर्व सेवा संघ के भवनों पर  ध्वस्तीकरण की नोटिस चस्पा की गई है और कृष्णमूर्ति फाउंडेशन को खाली करने का हुक्म दे दिया है। सर्व सेवा संघ 75 साल पुरानी संस्था है, जबकि कृष्णमूर्ति फाउंडेशन 95 साल पुरानी है।"

"एनी बेसेंट ने कृष्णमूर्ति फाउंडेशन की स्थापना की और सर्व सेवा संघ की स्थापना संत विनोबा भावे ने की थी। पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद समेत जवाहरलाल नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री, मुख्यमंत्री संपूर्णानंद, स्वामी सहजानंद, बाबा राघव दास आदि की सहमति और सहयोग से यह संस्था साधना का केंद्र बनी। इसका मकसद राष्ट्र निर्माण के लिए युवकों को तैयार करना और सद्साहित्य का प्रकाशन करना था। लगता है कि अब देश को विनोबा-जेपी जैसे राष्ट्र नायकों की नहीं, बल्कि अंधभक्तों की ज़रूरत है।"

रामधीरज ने यह भी कहा, "कृष्णमूर्ति फाउंडेशन के हज़ारों विद्यार्थी, शिक्षक और अभिभावक शासन-प्रशासन में महत्वपूर्ण जगहों पर हैं, लेकिन सभी डरे-सहमे हुए हैं और वो बोल नहीं पा रहे हैं। ऐतिहासिक धरोहरों को मिटाकर सरकार यहां पर्यटकों के लिए होटल और मॉल बनाना चाहती है। अगर ऐसा होता है तो हम हम सर्व सेवा संघ और कृष्णमूर्ति फाउंडेशन का इतिहास नालंदा और तक्षशिला की तरह पढ़ेंगे। नालंदा और तक्षशिला को आक्रांताओं ने नष्ट किया था और दोनों सामाजिक, शैक्षणिक, सांस्कृतिक संस्थाओं की विरासत हमारी अपनी सरकार मिटाने पर तुली है।"

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