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सांसदों को दी गई संविधान की प्रति में ‘धर्मनिरपेक्ष’ और ‘समाजवादी’ शब्द गायब : अधीर रंजन चौधरी

लोकसभा में सदन के कांग्रेस नेता ने यह भी कहा कि अगर कोई आज संविधान की प्रति देता है, तो वह आज का संस्करण होना चाहिए।
Adhir Ranjan
फ़ोटो: PTI

नयी दिल्ली: कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने बुधवार को आरोप लगाया कि नये संसद भवन के उद्घाटन के दिन सांसदों को दी गई संविधान की प्रति में प्रस्तावना से "धर्मनिरपेक्ष" और "समाजवादी" शब्द गायब थे।

कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने कहा कि प्रति में संविधान की प्रस्तावना का मूल संस्करण था और ये शब्द बाद में संवैधानिक संशोधनों के बाद इसमें जोड़े गए थे।

उन्होंने कहा, ‘‘यह मूल प्रस्तावना के अनुसार है। संशोधन बाद में किए गए।’’

मामले को गंभीर करार देते हुए चौधरी ने कहा कि शब्दों को बड़ी ही चालाकी से हटा दिया गया है। उन्होंने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) नीत केंद्र सरकार की मंशा पर संदेह व्यक्त किया।

चौधरी ने संवाददाताओं से कहा, ‘‘संविधान की प्रस्तावना की जो प्रति हम नये भवन में ले गए, उसमें धर्मनिरपेक्ष और समाजवादी शब्द शामिल नहीं हैं। उन्हें चतुराई से हटा दिया गया है... यह एक गंभीर मामला है और हम इस मुद्दे को उठाएंगे।’’

मीडिया से बात करते हुए अधीर रंजन चौधरी ने कहा, “जब मैं प्रति पढ़ रहा था तो मुझे ये दो शब्द नहीं मिले। फिर मैंने खुद ही उन दो शब्दों को जोड़ा।”

कांग्रेस नेता ने कहा कि उन्हें यह पता है कि ये शब्द बाद में 1976 में संविधान में जोड़े गए थे।

उन्होंने कहा, ‘‘मेरे लिए यह एक गंभीर मुद्दा है। मुझे उनकी मंशा पर संदेह है, क्योंकि इस पर उनका दिल साफ नहीं लगता।’’ 

लोकसभा में सदन के कांग्रेस नेता ने यह भी कहा कि अगर कोई आज संविधान की प्रति देता है, तो वह आज का संस्करण होना चाहिए।

मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के नेता विनय विश्वम ने शब्दों को कथित तौर पर हटाए जाने को "अपराध" करार दिया।

इसके अलावा राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) ने भी आरोप लगाते हुए कहा कि नये संसद भवन में कामकाज के पहले दिन सांसदों को दी गई संविधान की प्रति में प्रस्तावना से ‘‘समाजवादी’’ और ‘‘धर्मनिरपेक्ष’’ शब्द कथित तौर पर हटाना सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की ‘‘पक्षपाती मानसिकता’’ को दर्शाता है। 

शरद पवार नीत NCP के प्रवक्ता क्लाइड क्रास्टो ने एक बयान में कहा, ‘‘भाजपा सरकार का कहना है कि यह मुद्रित प्रति ही मूल प्रस्तावना थी। अगर भाजपा प्रस्ताव में संवैधानिक संशोधन का सम्मान नहीं करना चाहती और मूल प्रस्तावना पर ही अमल करना चाहती है, तो उसने ‘लोकतंत्र के मूल मंदिर’ पुराने संसद भवन से नये भवन में स्थानांतरण क्यों किया? ‘समाजवादी’ और ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्दों को हटाना असल में भाजपा की पक्षपाती मानसिकता को दर्शाता है।’’

क्रास्टो ने कहा, ‘‘भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेताओं को अपने बेतुके जवाबों से भारत की जनता को मूर्ख बनाना बंद करना चाहिए, क्योंकि लोग जानते हैं कि वे क्या हासिल करने की कोशिश कर रहे हैं।’’

(न्यूज़ एजेंसी भाषा के इनपुट के साथ)

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