...हर एक दिल में है इस ईद की ख़ुशी
हमारे दौर का नज़ीर कहां है...जो जिस शिद्दत से ईद के लिए लिखता है, उसी शिद्दत से झूमकर होली दिवाली के लिए लिखता है। अफ़सोस, नज़ीर का हिन्दुस्तान भी आज कहां है….उसी में तो आग लगाई जा रही है।
फिर भी..., आज ईद है तो आइए हम झूमके गाएं, सिवइयां पकाएं...सबको खिलाएं…यक़ीन मानिए, आप और हम जितना ख़ुश होंगे, जितना मिलजुल कर त्योहार मनाएंगे, मोहब्बत और इंसानियत के दुश्मन उतने ही पशेमां होंगे। हैरान-परेशान और परास्त होंगे।
तो आइए मिलकर ईद मनाते हैं और साथ में पढ़ते हैं नज़ीर अकबराबादी का यह ख़ास कलाम- ईद उल फ़ितर
ईद उल फ़ितर
है आबिदों को त‘अत-ओ-तजरीद की ख़ुशी
और ज़ाहिदों को जुहाद की तमहीद की ख़ुशी
रिन्द आशिकों को है कई उम्मीद की ख़ुशी
कुछ दिलबरों के वल की कुछ दीद की ख़ुशी
ऐसी न शब-ए-बरात न बक़रीद की ख़ुशी
जैसी हर एक दिल में है इस ईद की ख़ुशी
पिछले पहर से उठ के नहाने की धूम है
शीर-ओ-शकर सिवईयाँ पकाने की धूम है
पीर-ओ-जवान को नेम‘तें खाने की धूम है
लड़कों को ईद-गाह के जाने की धूम है
ऐसी न शब-ए-बरात न बक़रीद की ख़ुशी
जैसी हर एक दिल में है इस ईद की ख़ुशी
कोई तो मस्त फिरता है जाम-ए-शराब से
कोई पुकारता है कि छूटे अज़ाब से
कल्ला किसी का फूला है लड्डू की चाब से
चटकारें जी में भरते हैं नान-ओ-कबाब से
ऐसी न शब-ए-बरात न बक़रीद की ख़ुशी
जैसी हर एक दिल में है इस ईद की ख़ुशी
क्या है मुआन्क़े की मची है उलट पलट
मिलते हैं दौड़ दौड़ के बाहम झपट झपट
फिरते हैं दिल-बरों के भी गलियों में गट के गट
आशिक मज़े उड़ाते हैं हर दम लिपट लिपट
ऐसी न शब-ए-बरात न बक़रीद की ख़ुशी
जैसी हर एक दिल में है इस ईद की ख़ुशी
काजल हिना ग़ज़ब मसी-ओ-पान की धड़ी
पिशवाज़ें सुर्ख़ सौसनी लाही की फुलझड़ी
कुर्ती कभी दिखा कभी अंगिया कसी कड़ी
कह “ईद ईद” लूटें हैं दिल को घड़ी घड़ी
ऐसी न शब-ए-बरात न बक़रीद की ख़ुशी
जैसी हर एक दिल में है इस ईद की ख़ुशी
रोज़े की ख़ुश्कियों से जो हैं ज़र्द ज़र्द गाल
ख़ुश हो गये वो देखते ही ईद का हिलाल
पोशाकें तन में ज़र्द, सुनहरी सफेद लाल
दिल क्या कि हँस रहा है पड़ा तन का बाल बाल
ऐसी न शब-ए-बरात न बक़रीद की ख़ुशी
जैसी हर एक दिल में है इस ईद की ख़ुशी
जो जो कि उन के हुस्न की रखते हैं दिल से चाह
जाते हैं उन के साथ ता बा-ईद-गाह
तोपों के शोर और दोगानों की रस्म-ओ-राह
मयाने, खिलोने, सैर, मज़े, ऐश, वाह-वाह
ऐसी न शब-ए-बरात न बक़रीद की ख़ुशी
जैसी हर एक दिल में है इस ईद की ख़ुशी
रोज़ों की सख़्तियों में न होते अगर अमीर
तो ऐसी ईद की न ख़ुशी होती दिल-पज़ीर
सब शाद हैं गदा से लगा शाह ता वज़ीर
देखा जो हम ने ख़ूब तो सच है मियां ‘नज़ीर‘
ऐसी न शब-ए-बरात न बक़रीद की ख़ुशी
जैसी हर एक दिल में है इस ईद की ख़ुशी
- नज़ीर अकबराबादी
(कविता कोश से साभार)
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