इतवार की कविता: जहाँ मैं साँस ले रहा हूँ अभी…
“मेरे दिल में अब भी उसकी उड़ीक बाक़ी है…”
उड़ीक का मतलब इंतज़ार होता है। उन्होंने ख़ुद बताया था। ‘उसकी’ उड़ीक, उसके इंतज़ार में नीलाभ थे, और अब उनके इंतज़ार में हम हैं, यह जानते हुए भी कि यह इंतज़ार अब कभी ख़त्म नहीं होगा। मशहूर कवि और पत्रकार नीलाभ, कभी नीलाभ इलाहाबादी, कभी नीलाभ अश्क। इन्हीं नीलाभ की कल 23 जुलाई को पुण्यतिथि थी। 23 जुलाई 2016 में वे हमें अलविदा कह गए। आज इतवार की कविता में पढ़ते हैं उनकी एक कविता
जहाँ मैं साँस ले रहा हूँ अभी
जहाँ मैं साँस ले रहा हूँ अभी
वहाँ से बहुत कुछ ओझल है
ओझल है हत्यारों की माँद
ओझल है संसद के नीचे जमा होते
किसानों के ख़ून के तालाब
ओझल है देश के सबसे बड़े व्यापारी की टकसाल
ओझल हैं ख़बरें
और तस्वीरें
और शब्द
जहाँ मैं साँस ले रहा हूँ अभी
वहाँ से ओझल हैं
सम्राट के आगे हाथ बाँधे खड़े फ़नकार
ओझल हैं उनके झुके हुए सिर,
सिले हुए होंठ,
मुँह पर ताले,
दिमाग़ के जाले
जहाँ मैं साँस ले रहा हूँ अभी
वहाँ एक आदमी लटक रहा है
छत की धन्नी से बँधी रस्सी के फन्दे को गले में डाले
बिलख रहे हैं कुछ औरतें और बच्चे
भावहीन आँखों से ताक रहे हैं पड़ोसी
अब भी बाक़ी है
लेनदार बैंकों और सरकारी एजेन्सियों की धमकियों की धमक
जहाँ मैं साँस ले रहा हूँ अभी
वहाँ दूर से सुनाई रही हैं
हाँका लगाने वालों की आवाज़ें
धीरे-धीरे नज़दीक आती हुईं
पिट रही है डुगडुगी, भौंक रहे हैं कुत्ते
जहाँ मैं साँस ले रहा हूँ अभी
भगदड़ मची हुई है आदिवासियों में,
कौंध रही हैं संगीनें वर्दियों में सजे हुए जल्लादों की
जहाँ मैं साँस ले रहा हूँ अभी
चारों तरफ़ फैली हुई है रात
ख़ौफ़ की तरह—
चीख़ते-चिंघाड़ते निशाचरी दानव हैं
शिकारी कुत्तों की गश्त है
बिच्छुओं का पहरा है
कोबरा ताक लगाए बैठे हैं
जहाँ मैं साँस ले रहा हूँ अभी
वहाँ एक सुगबुगाहट है
आग का राग गुनगुना रहा है कोई
बन्दूक को साफ़ करते हुए,
जूते के तस्मे कसते हुए,
पीठ पर बाँधने से पहले
पिट्ठू में चीज़ें हिफ़ाज़त से रखते हुए
लम्बे सफ़र पर जाने से पहले
उस सब को देखते हुए
जो नहीं रह जाने वाला है ज्यों-का-त्यों
उसके लौटने तक या न लौटने तक
इसी के लिए तो वह जा रहा है
अनिश्चित भविष्य को भरे अपनी मैगज़ीन में
पूरे निश्चय के साथ
जहाँ मैं साँस ले रहा हूँ अभी
जल उठा है एक आदिवासी का अलाव
अँधेरे के ख़िलाफ़
जहाँ मैं साँस ले रहा हूँ अभी
ऐसी ही उम्मीदों पर टिका हुआ है जीवन
- नीलाभ अश्क
(कविता साभार- कविता कोश)
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