तालाबीरा : आदिवासियों के विरोधों के बावजूद अडानी का खनन कार्य जारी
ओडिशा के मुंडा पाड़ा में संबलपुर औद्योगिक क्षेत्र के भीतर मौजूद गोंड और मुंडा जनजाति के लोग राज्य का हरित फेफड़ा कहे जाने वाले क्षेत्र तालाबीरा वन की रक्षा के लिए एक अकेली लड़ाई लड़ रहे हैं।
इस क्षेत्र में अडानी समूह की खनन गतिविधि के विस्तार के कारण इसका हरित वन समाप्ति के कगार पर है। खुले गड्ढे वाली कोयला खदान की स्थापना के लिए 9 और 10 दिसंबर को तालाबीरा वन में 40,000 से अधिक पेड़ काट दिए गए। आदिवासी समुदायों द्वारा जारी विरोध आंदोलन के बावजूद इस क्षेत्र में खनन गतिविधियों में तेज़ी आई है।
वन अधिकार समाप्त, आदिवासी दावा ख़ारिज :
विरोध स्थल से अनंत ने बातचीत में कहा, "कुल कवर किया जाने वाला क्षेत्र लगभग 4,000 एकड़ भूमि है, जिसमें से 54% वन भूमि है जो लगभग 2,500 एकड़ भूमि है।" न्यूज़क्लिक से बात करते हुए एक स्थानीय व्यक्ति ने कहा, “खनन कार्य शुरू हो गई है और हमारे पेड़ काट दिए गए हैं। कल्पना कीजिए कि हम कितनी भूमि गंवा देंगे?”
ये कोयला खनन परियोजना पूरी तरह से वन-निर्भर लगभग सात गांवों को अपने दायरे में ले लेगी जो 10,000 से अधिक आदिवासियों को प्रभावित कर रहा है जिसमें सबसे अधिक प्रभावित संबलपुर और झारसुगुड़ा हुआ है। अनंत कहते है, “ये प्रतिरोध हमारे लिए मजबूरी है क्योंकि हमें अपनी भूमि को लेकर अंधेरे में रखा गया था।
हमें भूमि के दावों पर कोई जवाब नहीं दिया गया जो हमने दायर किए थे। पूरे गांवों में एक जैसा पैटर्न है। पतरापाली में हम 2012 से विशिष्ट वन अधिकारों की मांग कर रहे हैं जो अभी भी मंज़ूर नहीं किए गए हैं। ग्राम सभा की प्रक्रिया ने सामुदायिक अधिकारों को नज़रअंदाज़ कर दिया जबकि सरकार इसे भूमि के "क़ानूनी" अधिग्रहण के रूप में पेश कर रही है। हालांकि, हमारे लिए, ग्राम सभा की मंज़ूरी "जालसाज़ी" से अधिक कुछ भी नहीं है।"
11 दिसंबर को, स्थानीय अधिकारियों ने कथित रूप से तालाबीरा से 3 किलोमीटर दूर पतरापाली गांव में काटे गए पेड़ को स्थानांतरित कर दिया और उन्होंने जंगलों को नष्ट करने की धमकी दी जो ग्रामीणों ने पिछले चार दशकों से संरक्षित किए हैं।
मार्च 2019 में पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने तालाबीरा II और III कोयला ब्लॉक नामक ओपन-कास्ट कोयला खनन परियोजनाओं के लिए 1,038 हेक्टेयर वन भूमि को हटाने की मंज़ूरी प्रदान की। प्रस्तावित परियोजना निवेली लिग्नाइट कॉरपोरेशन (एनएलसी) इंडिया की है और यह ओडिशा के झारसुगुड़ा और संबलपुर ज़िलों में स्थित है। दिलचस्प बात यह है कि एनएलसी ने 2018 में अडानी ग्रुप के साथ माइन डेवलपमेंट और ऑपरेटर कॉन्ट्रैक्ट साइन किया था।
इस क्षेत्र को ग्रामीणों द्वारा 40 से 50 वर्षों तक सक्रिय रूप से संरक्षित किया गया है। ऐसा करने के लिए ग्राम समुदायों ने पारंपरिक ग्राम वन समितियों का गठन किया है जो दशकों से इन वनों की रक्षा कर रही हैं। इसकी रक्षा के लिए या तो समुदाय के सदस्यों द्वारा गश्त की जा रही है या ग्रामीणों द्वारा स्वैच्छिक योगदान के माध्यम से चौकीदारों द्वारा किया जाता है।
इस क्षेत्र में वनों का विनाश भी वन अधिकार अधिनियम (एफ़आरए) 2006 का घोर उल्लंघन है। नेशनल पीपल्स मूवमेंट (एनएपीएम) के अनुसार पतरापाली गांव पहले ही सामुदायिक वन अधिकार के दावे प्रस्तुत कर चुका है जो अभी भी लंबित हैं। इसके अलावा ग्रामीणों ने कहा कि जिले के अधिकारियों ने खनन करने के लिए एक फ़र्ज़ी ग्राम सभा की सहमति प्राप्त कर ली।
30 जुलाई 2009 को एक एमओईएफ एंड सीसी सर्कुलर के अनुसार फॉरेस्ट डायवर्जन से पहले ग्राम सभा की सहमति प्राप्त करनी होगी। वास्तव में ग्राम समुदायों ने कोयला-खदान के लिए वनों के प्रस्तावित डायवर्जन को अस्वीकार करते हुए सशक्त ग्राम सभा प्रस्ताव पारित किए हैं। इस प्रकार, इस परियोजना के चरण II की मंजूरी ग़ैर-क़ानूनी है और न केवल एफ़आरए बल्कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम (पीओए), 1989 का उल्लंघन करता है, क्योंकि अधिकांश आबादी एससी/एसटी है। धरातल पर सक्रिय कार्यकर्ताओं का कहना है कि वन अधिकारी एफआरए के तहत ग्रामीणों और ग्राम सभा को दिए गए अधिकारों के बारे में जागरूकता फैलाने में विफल रहे, जिससे आदिवासी समुदाय के अधिकारों का ह्रास हुआ।
स्थानीय लोग कॉरपोरेट दिग्गज द्वारा किए जा रहे “री-प्लांटेशन” वादों के बारे में आश्वस्त नहीं हैं और अपने प्रतिरोध को जारी रखते हुए सरकार के उदासीन रवैये का सामना कर रहे हैं।
अंग्रेजी में लिखा मूल आलेख आप नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं।
Talabira: Adani’s Mining Work in Odisha Commences Despite Tribal Protests
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