किसान संघर्ष की आवाज़ रहा वेब पोर्टल 'गांव सवेरा' फिर सरकारी निशाने पर, सोशल मीडिया अकाउंट बंद किया गया!
गांव-देहात और किसानों के संघर्ष को आवाज़ देने वाली स्वतंत्र मीडिया वेबसाइट 'गांव सवेरा' के फिलहाल 'सरकार के निशाने' पर हाने की बात कही जा रही है। इस वेबसाइट के सोशल मीडिया अकाउंट्स पर रोक लगा दी गई है। जहां इसका एक्स (ट्विटर) अकाउंट ‘सरकार के निर्देश के बाद’ भारत में बंद कर दिया गया है। वहीं फेसबुक अकाउंट बंद किए जाने के पीछे मेटा की ओर से अभी तक कोई कारण नहीं बताया गया है। आज शुक्रवार, 25 अगस्त को ट्विटर पर #recover_gaonsavera_account के जरिए देश के कई बड़े पत्रकार, पहलवान और किसान नेता वेबसाइट के समर्थन में अपनी एकजुटता जाहिर कर रहे हैं।
बता दें कि ये वेबसाइट अधिक पुरानी नहीं है और इसकी पूरी रूपरेखा ऐतिहासिक किसान आंदोलन के दौरान ही पत्रकार मनदीप पुनिया ने तैयार की थी। मंदीप किसानों के इस संघर्ष को ग्राउंड ज़ीरो से कवर कर रहे थे, जिसके चलते उन्हें जेल भी जाना पड़ा था। हालांकि इससे उनकी हिम्मत टूटी नहीं थी और उन्होंने जेल से बाहर आकर किसानों के संघर्ष को और धैर्य और धार के साथ जनता के सामने रखा। बीते साल 2022 में आई उनकी किताब ‘किसान आन्दोलन ग्राउंड जीरो 2020-21’ भी इसी का जीवंत दस्तावेज़ है।
मैं गाँव सवेरा के साथ हूँ. @mandeeppunia1 के साथ हूँ. हमें उनका साथ देना चाहिए. और इस साहसी पत्रकार की आवाज दबाने के हर प्रयास का विरोध करना चाहिए. #recover_gaonsavera_account https://t.co/w99x7Rrm6u
— Abhisar Sharma (@abhisar_sharma) August 25, 2023
देश में दिन -रात नफ़रत फैलाने वाले चैनलों को कोई रोक -टोक नहीं है . सत्ता की चापलूसी करने वाले प्लेटफ़ार्म फ़र्ज़ी ख़बर छापकर भी चैन से रहते हैं. गाँव सवेरा जैसा प्लेटफ़ार्म सत्ता को खटकने लगता है . उसे बंद कराने की साज़िशें होने लगती है . #recover_gaonsavera_account https://t.co/pIDRdxQcje
— Ajit Anjum (@ajitanjum) August 24, 2023
मंदीप पुनिया ने गांव सवेरा के अपने संपादकीय में सरकार पर आरोप लगाते हुए लिखा है कि हरियाणा और पंजाब की सरकारों ने 20 अगस्त से एक ज्वाइंट ऑपरेशन के हरियाणा और पंजाब के किसान नेताओं और सक्रिय किसानों को हिरासत में लेना शुरू कर दिया था। दो दिन तक इन राज्यों के किसानों के घरों में छापेमारियां चलती रहीं। किसानों के इस संघर्ष को उनका न्यू मीडिया प्लेटफॉर्म लगातार कवर कर रहा था, जिसके चलते सरकार की ये कार्रवाई सामने आई है। क्योंकि सरकार चाहती है कि ग्रामीण संकट को लेकर सिर्फ़ सतही जानकारियां बाहर आएं, सही और ठोस जानकारियां नहीं।
"भारत में ग्राउंड ज़ीरो से रिपोर्ट करना बहुत मुश्किल"
उन्होंने आगे ये भी लिखा है कि भारत में ग्राउंड जीरो से रिपोर्ट करना बहुत मुश्किल होता जा रहा है। वैसे तो पत्रकारिता का कोई स्वर्णिम दौर भारत में नहीं रहा, लेकिन यह सबसे ख़राब वक़्त ज़रूर है। जब पत्रकारों को नौकरियों से निकाला जा रहा है, पुलिस केस किए जा रहे हैं और उनके प्लेटफ़ॉर्म बंद किए जा रहे हैं। सरकार ने किसान आंदोलन के दौरान सिर्फ गांव सवेरा को ही निशाना नहीं बनाया है बल्कि खेती-बाड़ी एक्सपर्ट रमनदीप मान के ट्विटर अकाउंट को भी बंद किया है। इसके अलावा लगभग 12 किसान संगठनों के फेसबुक पेज भी सरकार ने बंद किए हैं।
मनदीप के मुताबिक किसान या मज़दूर के कपड़े फटे हैं, मेहनत कर रहे हैं, इस किस्म की जानकारियां जो लोगों को पहले ही पता हैं, सरकार उन्हें रिपोर्ट करने से बिल्कुल नहीं रोकती, लेकिन जैसे ही आप किसान-मज़दूरों द्वारा ग्रामीण संकट से निपटने के लिए उनके संघर्षों को रिपोर्ट करने लगते हैं, तो सरकार कई तरह से तंग करने लगती है। खासकर देहातियों द्वारा अपने संकट के उलट खड़े किए गए आंदोलनों की सही रिपोर्टिंग करने पर अलग-अलग तरह से आपको तंग किया जाने लगता है। स्थानीय पुलिस को आपके घर और दफ्तर पर भेजा जाता है। और फिर भी आप लगातार रिपोर्टिंग जारी रखते हैं तो सरकार आपके प्लेटफॉर्म को ही बंद कर देती है।
ध्यान रहे कि इसी साल जून में ट्विटर के पूर्व मालिक जैक डोर्सी ने कहा था कि भारत सरकार ने किसान आंदोलन के दौरान सरकार की आलोचना करने वाले ट्विटर अकाउंट को बंद करने का आदेश दिया था। हालांकि केंद्रीय राज्य मंत्री राजीव चंद्रशेखर ने जैक डोर्सी के आरोप को झूठा बताया था। लेकिन इस दौरान कई पत्रकारों, स्वतंत्र मीडिया वेबसाइट्स को निशाना बनाने और उनपर छापेमारी का आरोप भी सरकार पर लगा था।
स्वतंत्र आवाज़ों को दबाने के लिए नीतिगत कोशिश
इसी संबंध में बीते दिनोंं दिल्ली प्रेस क्लब में हुई एक बैठक में दिल्ली पत्रकार संगठन (डीयूजे) ने दोनों स्वतंत्र न्यूज़ वेबसाइट (द कश्मीर वाला और गांव सेवेरा) के अकाउंट को निलंबित करने पर प्रतिक्रिया देते हुए बयान जारी किया। संगठन ने सरकार के इस कदम की निंदा करते हुए कहा कि ये स्वतंत्र अवाजों को दबाने के लिए नीतिगत कोशिश है।
ज्ञात हो कि अभी हाल ही में श्रीनगर स्थित न्यूज़ वेबसाइट ‘द कश्मीर वाला’ के अकाउंट को भी निलंबित कर दिया गया था। दलित और हाशिए पर खड़े लोगों की खबरें रिपोर्ट करने वाली वेबसाइट 'द मूकनायक' और इसकी फाउंडर मीना कोटवाल ने भी बीते दिनों जाति के चलते वेवसाइट और खुद को टारगेट करने की बात सोशल मीडिया पर रखी थी। मीना ने लिखा था कि 'द मूकनायक' को इस उम्मीद से शुरू किया गया था कि वंचितों और शोषितों की खबरें ग्राउंड ज़ीरो से दिखाएंगे। लेकिन अब इसे खत्म करने की जैसे साजिश रच दी गई है।
गौरतलब है कि पत्रकारों को उनका काम करने के लिए दी जा रही आज़ादी के लिहाज़ से दुनिया भर के 180 देशों की एक अंतरराष्ट्रीय सूची 'प्रेस फ्रीडम रैंक' में भारत का स्थान लगातार गिरता जा रहा है। अंतरराष्ट्रीय संस्था 'रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स' की इस सूची में भारत साल 2017 में 136वें स्थान पर था, वहीं साल 2020 में भारत 142वें स्थान पर आ गया, जबकि साल 2022 में 150वें और 2023 में 161वें स्थान पर लुढ़क गया है। अपनी तमाम रिपोर्ट्स में इस संस्था ने भारत को लेकर कहा था कि भारत में लगातार प्रेस की आज़ादी का उल्लंघन हुआ है। संस्था ने बताया था कि पत्रकारों पर पुलिस की हिंसा, राजनीतिक कार्यकर्ताओं का हमला, आपराधिक गुटों या भ्रष्ट स्थानीय अधिकारियों की ओर से बदले की कार्रवाई की गई है। आपको जानकर हैरानी होगी कि साल 2023 की रैंकिंग इंडेक्स के मुताबिक अब भारत प्रेस फ्रीडम में पाकिस्तान और अफगानिस्तान से भी कई पायदान पीछे है।
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