अमेरिका-ईरान के बीच खुलते बातचीत के रास्ते
अमेरिका और ईरान के बीच टकराव की जमीं हुई झील से अब बर्फ के टूटने की आवाज आने लगी है। बर्फ के टूटते टुकड़ों ने यद्यपि अभी वह टंकार उत्पन्न नहीं की है। लेकिन ये तो अभी शुरुआती दिन हैं।
यह बीते बृहस्पतिवार की बात है, जब अमेरिका और तीन यूरोपीयन देश-जर्मनी, फ्रांस और ब्रिटेन-(ई-3) ने एक संयुक्त बयान जारी कर तेहरान की वकालत की। उल्लेखनीय है कि ये तीनों देश जेसीपीओए (ईरान के साथ 2015 में हुए समझौते) में एक पक्षकार थे। उसी बयान के तहत अमेरिकी राष्ट्रपति जोए बाइडेन प्रशासन ने घोषणा की कि वह ईरान के साथ राजनयिक संबंध बहाली के लिए उत्सुक हैं।
यह शुरुआती हाथ बढ़ाने का एक तरीका था। बाइडेन प्रशासन महज अपने रुख को दोहरा रहा था कि वह जेसीपीओए की तरफ लौटेगा अगर तेहरान इसकी शर्तों के साथ कड़ाई से पालन करता है। ये ई-3 देश और अमेरिका एक हो कर ईरान से जुड़ी व्यापक सुरक्षा चिंताओं के मद्देनजर जेसीपीओए को मजबूत किये जाने की मांग करते हैं। लेकिन इसके साथ-साथ उसी दिन कुछ अन्य पहलकदमी भी हुई थी :
- वाशिंगटन ने तथाकथित पी-5+1 देशों-ब्रिटेन, चीन, फ्रांस, जर्मनी, रूस और संयुक्त राज्य अमेरिका का ईरान के साथ आगे बढ़ने के लिए एक अनौपचारिक ‘राजनयिक वार्ता’ पर विचार के लिए बैठक में भाग लेने के यूरोपीयन यूनियन उच्च प्रतिनिधि का न्योता मानने की बात कही थी;
- बाइडेन प्रशासन ने अपने पूर्ववर्ती डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन के ईरान के खिलाफ सितम्बर 2020 में सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव संख्या 2231 के प्रावधान के तहत पूरी दुनिया में लगाये गए “स्नैपबैक प्रतिबंधों” को संयुक्त राष्ट्र में हटा दिया। इसे पहले सुरक्षा परिषद के 14 सदस्यों ने खारिज कर दिया था; और,
- बाइडेन प्रशासन ने न्यू यार्क में ईरान के संयुक्त राष्ट्र मिशन को यह भी सूचित किया कि उसने तेहरान के राजनयिक के कहीं आने-जाने पर ट्रंप प्रशासन की लगाई पाबंदी को रद्द कर दिया है। अब ईरान के राजनयिक संयुक्त राष्ट्र की 25 मील की परिधि में कहीं भी आ-जा सकेंगे। कुछ ईरानी अधिकारियों को भी संयुक्त राष्ट्र में आने की भी इजाजत दी गई है।
अमेरिकी और ईरानी राजनयिकों के बीच औपचारिक बातचीत की पहल, जो अभी तक एक विचार है, अगर उस पर अमल किया जाता है तो उससे निश्चित ही मकसद का हल होगा; ईरान के विदेश मंत्री जावेद जरीफ ने सीएनएन चैनल को पहली फरवरी को दिये एक इंटरव्यू में यह विचार रखा। उन्होंने कहा कि यूरोपीयन यूनियन की विदेश नीति के प्रमख जोसेफ बोरोइल इसमें एक समन्वयक का किरदार निभा सकते हैं। वे जेसीपीओए समझौते को फिर से बहाल किये जाने के लिए अमेरिका तथा ईरान दोनों देशों द्वारा कदम उठाये जाने का तरीका सुझाएंगे। शनिवार को ईरान के उप विदेश मंत्री, अब्बास अर्ची जो देश के प्रमुख परमाणु वार्ताकार हैं, ने भी कहा कि तेहरान भी ब्रूसेल्स के प्रस्ताव पर विचार कर रहा है और “इस प्रस्ताव (औपचारिक बातचीत) पर आगे अपनी राय जाहिर करेगा।”
अब यह देखना आसान है कि “स्नैपबैक प्रतिबंधों” पर पीछे हटने और ईरानी राजनयिकों की गतिविधियों पर लगी बंदिशों को हटाना, अमेरिका और ईरान के बीच किसी भी तरह की बातचीत शुरू किये जाने की पहली अपरिहार्यताएं थीं।
इस बीच, बाइडेन ने वर्चुअल म्युनिख सुरक्षा कॉन्फ्रेंस में शुक्रवार को कहा कि अमेरिका जेसीपीओए को फिर से बहाल करने के लिए “बातचीतों में फिर से पहल” करेगा। उन्होंने एक सकारात्मक टिप्पणी की कि “किसी रणनीतिक नासमझी और गलतियों के खतरों को कम से कम करने लिए हमें पारदर्शिता बरतने और बातचीत जारी रखने की जरूरत है।”
व्हाइट हाउस के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जैक सुल्लीवन ने रविवार को कहा कि अमेरिका ने ईरान में बंधक बनाये गये अपने पांच लोगों को छुड़ाने के लिए तेहरान सरकार के साथ बातचीत शुरू कर दी है। उन्होंने कहा “हमने इस विषय पर ईरानियों से गुफ्तगू की शुरुआत कर दी है।”
रविवार को ही, आइएईए के प्रमुख राफेल ग्रोसी ने तेहरान में ईरानी सरकार के अधिकारियों के साथ एक बैठक की। इसमें उन्होंने स्पष्ट किया कि तेहरान के परमाणु कार्यक्रम की ‘निगरानी’ की उनकी हैसियत बरकरार है। इस बातचीत के बाद एक साझा बयान जारी किया गया, जिसमें बताया गया कि लगातार जरूरी जांच और गतिविधियों की निगरानी का काम शुरू किये जाने से पहले “तीन महीने तक एक अस्थायी द्विपक्षीय तकनीकी समझदारी” बनाने पर परस्पर सहमति बनी है।
परंतु, समझौते में आइएईए के इंस्पेक्टरों की कार्यक्रमों तक पहुंच घटाने तथा त्वरित जांच आगे न किये जाने बात कही गई है। यानी, ईरान अपने रुख पर कायम है कि अगरचे अमेरिका ने पाबंदियां नहीं हटाईं तो वह जेसीपीओए के एडिशनल प्रोटोकोल का जल्द ही त्याग कर देगा। लेकिन, वह इस बिंदु पर इंस्पेक्टरों की गतिविधियों पर केवल आंशिक बंदिश लगा रहा है।
व्यापक रूप से कहें तो अमेरिका और ईरान दोनों ही धीरे-धीरे किंतु सधे कदमों से बातचीत की मेज की तरफ बढ़ रहे हैं। दोनों ही चाहते हैं कि पहल पहले दूसरे की तरफ से हो, और कोई नहीं चाहतता कि इस कवायद को उनकी कमजोरी मानी जाए या यह कि वे ऐसा किसी के दबाव में कर रहे हैं। यह ऐसा नाजुक मामला है कि जहां दोनों ही भिन्न रुख जाहिर करते हुए परस्पर समझौता भी कर रहे हैं।
संडे टाइम्स ने बीते दिन एक संवेदनशील रिपोर्ट छापी थी, जिसमें राष्ट्रीय सुरक्षा सूत्र के हवाले से कहा गया था कि 2015 के समझौते को फिर से जिंदा करने के लिए अमेरिका अपने पहले कदम के रूप में ईरान पर लगी पाबंदियों में कुछ में राहत देने पर सोच-विचार कर रहा है। यदि ऐसा होता है, तो वाशिंगटन इस अपेक्षा की पूर्ति की दिशा में अपना पहला कदम बढ़ा सकता है, जिससे तेहरान भी कुछ खास रियायतें देने पर राजी हो जाए।
संडे टाइम्स में उस सूत्र ने कहा “यकीनन ही पाबंदियों में रियायत दी जा रही है, आज नहीं तो कल, पर निस्संदेह दी जाएंगी।” लेकिन झोल यह है कि ईरान जेसीपीओए की तरफ तभी लौटेगा जब वह समझौते में तय की गई मात्रा से ज्यादा मात्रा में यूरेनियम को संवर्द्धित कर ले, अपने जखीरे का निर्यात कर ले और प्रतिबंधित अपकेंद्रण का भंडारण कर ले। जबकि, बाइडेन प्रशासन के लिए आगे का रास्ता बेहद कठिन है। उन्हें ट्रंप के कार्यकाल के वित्तीय, आर्थिक, व्यवसाय, व्यक्तियों को निशाने बनाने, कारोबार पाबंदियों तथा जेसीपीओए के उल्लंघन करने जैसे अनेक व्यवधानों को हटाना है।
एक संभावना है कि बाइडेन प्रशासन यूरोपीयन यूनियन की विदेश नीति के प्रमुख की पहल पर होने वाली ‘राजनयिक बातचीत’ के बाद इस दिशा में कदम बढ़ा सकता है। तेहरान के आकलन में, अमेरिकी बंदिशों को हटाया जाना पहले से तय है और अब यह केवल कुछ ही वक्त की बात रह गई है। इसे लेकर भी तेहरान में ढेर सारी उम्मीदें संजो ली गई हैं कि व्हाइट हाउस इस मामले में अमेरिका के अपने क्षेत्रीय सहयोगियों को दखल देने की इजाजत नहीं देगा।
ईरान की आधिकारिक खबर की एजेंसी ईरना ने इस बात पर संतोष जताया कि अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडेन ने इस्राइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू को “कोई भाव नहीं दिया”। वह बराक ओबामा के प्रति बेंजामिन के उस व्यवहार को भी नहीं भूले हैं, जब वह वाशिंगटन में कांग्रेस की बैठक में बिन बुलाये मेहमान की तरह आ धमके थे और ईरान के साथ बराक प्रशासन की बातचीत की पहल की आलोचना की थी। इस पर “उप राष्ट्रपति रहे बाइडेन ने गुस्से में चीखते हुए कहा था कि अमेरिका के राष्ट्रपति का अपमान करने का इस्राइल को कोई अधिकार नहीं है। नेतन्याहू को बाइडेन प्रशासन से सीधे भिड़ने से बचने की सलाह दी गई है।”
फिर, यह भी चर्चा है कि व्हाइट हाउस की मंशा सऊदी अरब के पत्रकार जमाल खशोगी के मामले पर सीआइए की नई रिपोर्ट को जारी करने की है। खशोगी की 2018 में इस्तांबुल के कॉन्सुलेट में बेरहमी से हत्या कर दी गई थी। अगर यह रिपोर्ट सऊदी के राजकुमार को दोषी करार देती है, तो इससे अमेरिकी-सऊदी अरब के रिश्तों में खलल पड़ेगी। बाइडेन ने राजकुमार के प्रति अपने दुराव को जाहिर कर दिया है और संभवत: ऐसा उन्होंने जताया है कि वह आगे केवल राजा सलमान से ही बातचीत करना पसंद करेंगे।
स्पष्ट है कि ईरान के साथ बातचीत शुरू करने के बाइडेन प्रशासन के फैसले को लेकर सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात में काफी असहजता का माहौल है। इन सबसे संभावित रूप से, तेहरान को यह आभास हो रहा है कि खाड़ी के अरब देशों और इस्राइल के साथ मिल कर ईरान को घेरे रखने की अमेरिका की दशकों पुरानी रणनीति के खत्म होने का वह तवारीखी पल उसके बेहद करीब है।
आगामी हफ्तों और महीनों में ईरान को लेकर स्थिति में बदलाव जैसे शुरू होगा, पश्चिमी एशियाई राजनीति और क्षेत्रीय सुरक्षा के परिदृश्य में आमूल बदलाव होगा। यह पहली बार है, जब पश्चिमी ताकतें फारस की खाड़ी में क्षेत्रीय मतभेदों का समाधान और उनका फायदा उठाने के बजाय उनके बीच तथा तमाम क्षेत्रीय देशों में सद्भाव की अपरिहार्यता को समझ रहे हैं।
अमेरिका और ई-3 देशों ने 18 फरवरी को अपने बयान में, “खाड़ी क्षेत्र में तनाव को दूर करने के लिए मिल कर काम करने की अपनी प्रतिबद्धता जताई है”। हालात के दबाव में, पश्चिमी ताकतें उसी विचार का स्वायत्तीकरण करना पड़ रहा है, जिसे रूस और चीन कब से प्रतिपादित करते रहे हैं।
अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें
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