दुर्भाग्य : बंगाल की अंतर्राष्ट्रीय महिला फुटबॉल खिलाड़ी जोमेटो में काम कर रहीं
पोलुमी अधिकारी अंडर-16 स्तर की फुटबॉल प्रतियोगिता में स्कोटलैंड, जर्मनी और श्रीलंका में भारत का प्रतिनिधित्व कर चुकी हैं।
पोलुमी पहले भारत के लिए फुटबाल खेलती थीं अब भारतीयों के लिए फ़ूड डिलीवरी यानी खाना पहुंचाने का काम करती हैं। यह दुखद कहानी है पश्चिम बंगाल की 24 वर्षीया एक महिला फुटबॉलर पोलुमी अधिकारी की जो पहले अंजर-16 स्तर पर स्कोटलैंड, जर्मनी और श्रीलंका में भारत का प्रतिनिधित्व कर चुकी हैं। और अब जोमैटो एजेंट के रूप में काम करती है।
ट्विटर पर @SanjuktaChoudh5 ने पोलुमी का एक वीडिओ साझा किया है जिसमें पोलुमी अपनी पीड़ा बयां कर रही हैं। यह वीडियो वायरल हो गया और इस वीडियो को 1,66,400 व्यूज, 2,230 लाइक्स, 872 रीट्विट और 78 कोट ट्वीट मिले हैं।
She is Polami Adhikary a football player who has represented India at the international level. Today she has to support her family as an online food delivery person. #football pic.twitter.com/pGnJ0QOUEg
— Sanjukta Choudhury (@SanjuktaChoudh5) January 10, 2023
कोलकाता के बेहला उपनगर की शिवरामपुर की रहने वाली पोलुमी इस वीडियो में बता रही हैं कि वे बहुत मुश्किल से 300 से 400 रुपये प्रतिदिन कमा पाती हैं और कुछ दिन तो कुछ भी आमदनी नहीं होती।
चारुचंद्र कॉलेज की थर्ड ईअर की छात्रा पोलुमी की मां का देहांत तब ही हो गया था जब वह मात्र दो महीने की थी। उनकी बड़ी बहन शादीशुदा है। उनके पिता ड्राईवर हैं। अभी वह अपने मामा के घर में रहती हैं।
वीडियो ट्वीट होने के बाद कई रिपोर्टरों ने उनका साक्षात्कार लिया।
पोलुमी ने ऑल इंडिया फुटबाल फेडरेशन( AIFF) से अपील की- “मुझे काम की बहुत ज़रूरत है और मेरी योग्यता के अनुसार मुझे काम दिया जाए।“ वह पूछती हैं कि “मैंने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत का प्रतिनिधित्व किया है। मैं अपनी आजीविका के लिए लोगों को खाना पहुंचाती हूं। क्या मैं इसी के लायक हूं?”
पोलुमी अधिकारी ने AIFF से अपनी योग्यता अनुसार जॉब के लिए अपील की
राज्य के पुरुष और महिला फुटबॉल टीम में अंतर को बताते हुए वह कहती हैं,“बंगाल टीम के पुरुष बहुत पैसा कमाते हैं लेकिन महिला फुटबॉल टीम में पैसा नहीं है। सम्मान और पहचान तो दूर की बात है। कोई यह भी नहीं देखता कि महिला फुटबॉलर के पास जूते हैं या नहीं। उसने लंच किया या नहीं।“
भाजपा नेता और ऑल इंडिया फुटबॉल फेडरेशन के अध्यक्ष कल्याण चौबे ने 7 जनवरी को एशिया फुटबॉल के नए पावरहाउस के रूप में भारत को विकसित करने के लक्ष्य के साथ नई दिल्ली में एक रोड मैप “विज़न 2047” जारी किया। उन्होंने कहा. “ एक साझा दृष्टिकोण और साझा जिम्मेदारी के तहत लक्षित कार्यक्रमों को चिन्हित किए गए रोड मैप के साथ प्रमुख क्षेत्रों में कार्यान्वित कर सकते हैं और फुटबॉल पारिस्थितिकी तंत्र (ecosystem) के लिए क्षमता बढ़ाने में मदद कर सकते हैं।“
हालांकि, पोलुमी अधिकारी की पीड़ा कुछ अलग ही कहानी बयां करती है। वर्ष 2016 में होमलेस वर्ल्ड कप में वह देश के लिए खेली थीं। वर्ष 2013 में आंडर-16 एएफसी एशियाई कप कवालीफाइंग राउंड में भारत का प्रतिनिधत्व किया था। उन्होंने आईएफए और कोलकाता यूनिवर्सिटी के लिए कई टूर्नामेंट भी खेला है।
आज वह अपनी आजीविका के लिए संघर्ष कर रही हैं –“मैं निराश हो गई हूं। मुझे लगता है अब मैं फिर कभी फुटबॉल नहीं खेल पाउंगी। मुझे ऑनलाइन फ़ूड डेलीवरी कर अपनी आजीविका चलानी होगी। मेरा वीडियो वायरल होने पर मीडिया ने मेरी पीड़ा को उजागर किया है पर यह मेरे लिए भोजन और फिर से फुटबॉल खेलने का प्रबंध नहीं कर पाएगा।“
पोलुमी अधिकारी अभी भी फ़ुटबॉल खेलने की नियमित प्रैक्टिस (अभ्यास) करती हैं और देश के लिए खेल कर लोकप्रिय होना चाहती हैं। वह कहती हैं, “मैं इस वीडियो के माध्यम से पोपुलर नहीं होना चाहती। मैं अभी भी फुटबॉल खेलना चाहती हूं। मुझे जॉब की जरूरत है। मैं भूखे रह कर नहीं खेल सकती। मैं फेडरेशन और IFA से विनम्रतापूर्वक निवेदन करती हूं कि वे मुझे काम दें ताकि मैं फुटबॉल खेलना जारी कर सकूं।“
पोलुमी वर्ष 2020 में राष्ट्रीय फ़ुटबॉल टीम ट्रायल के लिए चयनित किए गए खिलाडियों की सूची में थी। पहले छः खिलाडियों को नेशनल टीम में खेलने को बुलाया गया। वह सातवें नंबर पर थीं। पर दुर्भाग्य से उसी समय देश महामारी की चपेट में आ गया।
हालांकि नेशनल टीम की प्रतीक्षा सूची में वह नंबर वन पर थीं पर उन्हें कॉल नहीं आया। रिपोर्ट के अनुसार AIFF ने उन्हें तब बुलाया जब वीडियो वायरल हुआ। उन्होंने फेडरेशन के अधिकारियों से कहा कि उन्हें जॉब की जरूरत है ताकि वह खेलना जारी कर सकें।
FIFA और AFC पैनल की महिला रेफरी कनिका बर्मन ने कहा, “जब तक लड़कियां खेल में शामिल होती हैं तब तक फेडरेशन उनकी चिंता करता है। लेकिन जब वो खेलना बंद कर देती हैं तो फेडरेशन उन्हें तुरंत भूल जाता है। जब मैंने खेलना छोड़ दिया था तो मेरे साथ भी यही हुआ। फेडरेशन सिर्फ पुरुषों के फुटबॉल पर फोकस करता है। बहुत से मामलों में तो लड़कियों को उनके परिवार से भी समर्थन और सहायता नहीं मिलती।“
अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल ख़बर को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें :
From Dribbler to Pedaller: Bengal’s International Woman Footballer Works for Zomato
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