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उत्तराखंड : हल्द्वानी पीड़ितों को 8 महीने की राहत, अतिक्रमण मामले पर 2 मई को अगली सुनवाई

रेलवे की ज़मीन पर अतिक्रमण मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई, जिसमें पीड़ितों को फ़िलहाल राहत दी गई है।
Supreme court

उत्तराखंड के हल्द्वानी में रेलवे की जमीन पर अतिक्रमण का मामला पिछले एक महीने से सुर्खियों में है। इस जमीन पर जब लोगों नेरेलवे ट्रैक के किनारे बसना शुरू किया तो उन्हें शायद यह अंदेशा न रहा होगा कि आने वाला वक्त यहां एक बड़ी लकीर खींचेगा। ऐसी लकीर जो उनके जीवन को दो भागों में बांट देगी। पहला भाग वह 40 साल का वक़्त जो उन्होंने यहां गुजारा, लोग जन्मे, पले और बड़े हुए, और दूसरा जो अब घट रहा है।

उत्तराखंड के हल्द्वानी के लोगों के दिल की धड़कनें आज काफी तेजी से धड़क रही थीं। उनके आशियाने को लेकर आज बड़ा दिन था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के बाद इन लोगों ने राहत की सांस ली। सुप्रीम कोर्ट ने हल्द्वानी में रेल प्रशासन के दावे वाली जमीन से कब्जाधारियों को हटाने के उत्तराखंड हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ याचिका पर सुनवाई की। उत्तराखंड सरकार और रेलवे ने सुप्रीमकोर्ट से मामले का समाधान खोजने के लिए समय मांगा, जिसके बाद कोर्ट ने कहा कि हल्द्वानी के अतिक्रमण 8 हफ्ते तक नहीं हटाएजाएंगे। अब मामले में अगली सुनवाई 2 मई को होगी। अब हल्द्वानी के ये हजारों लोग 2 मई का इंतजार कर रहे हैं।

क्या था मामला?

हल्द्वानी के बनभूलपुरा में रेलवे की 29 एकड़ जमीन पर लोग रहते हैं। रेलवे ने नोटिस जारी कर अतिक्रमणकारियों को 1 हफ्ते केअंदर यानी 9 जनवरी तक कब्जा हटाने को कहा था। उत्तराखंड की नैनीताल हाईकोर्ट ने इस अवैध कब्जे को गिराने का आदेश दियाथा। इसके बाद करीब 4 हजार से अधिक कच्चे-पक्के मकानों को तोड़ा जाना था, लेकिन कोर्ट के आदेश के खिलाफ दिसंबर मेंकुछ लोगों ने प्रदर्शन किया और सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। 5 जनवरी को हुई सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट केअतिक्रमण हटाने के आदेश पर रोक लगा दी थी। कोर्ट ने कहा था कि 7 दिन में 50 हजार लोगों को विस्थापन संभव नहीं है।

हल्द्वानी रेलवे स्टेशन के आसपास का यह इलाका करीब 2 किलोमीटर से भी ज्यादा के क्षेत्र को कवर करता है। इन इलाकों कोगफ्फूर बस्ती, ढोलक बस्ती और इंदिरा नगर के नाम से जाना जाता है। यहां के आधे परिवार भूमि के पट्टे का दावा कर रहे हैं। यहांबसे 40 हजार लोगों का इतिहास करीब 40 साल पुराना है। रेलवे की जिस भूमि पर अतिक्रमण है वहां इस समय 4365 परिवारनिवास कर रहे हैं। जिसमें करीब 40 हजार लोग रहते हैं। अतिक्रमण के दायरे में दो इंटर कॉलेज, दो प्राइमरी स्कूल, एक जूनियरहाईस्कूल है। एक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र भी रेलवे की जमीन पर अतिक्रमण कर बनाया गया है। चार मदरसों के साथ ही कईधार्मिक स्थल भी चिह्नीकरण के दायरे में हैं। दो ओवरहेड टैंक भी इस जमीन पर बनाए गए हैं। इसके अलावा 15 मस्जिदें समेत पांचछोटे-बड़े मंदिर अतिक्रमण की जद में आ रहे हैं।

यहां रह रहे लोग विदेश से आकर नहीं बसे हैं। इसी भारत के हैं ये लोग। जितनी लोगों की सुविधा के लिए रेलवे जरूरी है उतना ही इनके लिए आशियाना। हालांकि, मामला कोर्ट में है। लोगों को न्यायिक व्यवस्था पर पूरा भरोसा है। अब देखना है कि 2 मई को सुप्रीम कोर्ट इनके लिए क्या खुशखबरी लाता है।

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