उत्तराखंड: नए कृषि कानूनों से किसानों को कितनी मिली आज़ादी
ऋषिकेश के श्यामपुर न्याय पंचायत के 18 गांव के किसान खेत में खड़ी फसल और नज़दीकी खरीद केंद्र की लंबी दूरी का आकलन कर रहे थे। खेत और खरीद केंद्र की दूरी के बीच खड़े बिचौलिए ही उन्हें मुनाफे का सौदा लगे।
ऋषिकेश के श्यामपुर न्याय पंचायत के खदरी खड़कमाफ गांव के किसान विनोद जुगलान कहते हैं “हमें समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करें। अपनी उपज कहां और किसे बेचें। हमारे आसपास कोई खरीद केंद्र नहीं था। डोईवाला और हरबर्टपुर में खरीद केंद्र खुले थे जो हमारे यहां से 40 और 80 किलोमीटर दूर हैं। हम छोटे किसान हैं। इतनी दूर खुले खरीद केंद्र तक आने-जाने और ट्रैक्टर का भाड़ा देने के बाद हमारे लिए ज्यादा कुछ नहीं बचता। इस बात की भी गारंटी नहीं होती कि खरीद केंद्र वाले हमारा धान खरीदेंगे ही। धान में नमी या हलका धान बताकर हमें वापस भी लौटाया जा सकता है। अक्टूबर का तीसरा हफ्ता बीत जाने के बाद भी जब आसपास कोई सरकारी खरीद केंद्र नहीं खुला तो मैंने खेत में खड़ी अपनी उपज बिचौलियों के हवाले कर दी।”
‘छोटा किसान तो लुट रहा है’
सरकार ने धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य क्वालिटी के आधार पर 1888 और 1868 रुपये प्रति क्विंटल तय किया है। विनोद जुगलान बताते हैं “ बिचौलिए हमें 1200-1300 रुपये प्रति क्विंटल से अधिक दाम नहीं दे रहे। मैंने 9 बीघा ज़मीन में धान लगाया था। एक बीघे में मोटे तौर पर 20 क्विंटल की उपज मिलती है। हम छोटे किसान हैं। इस स्थिति में नहीं कि अपनी उपज की कीमत खुद तय कर सकें। हमारे पास बिचौलियों या व्यापारियों के तय किए गए रेट पर उपज बेचने के अलावा कोई चारा नहीं बचा। धान तुरंत निकालना है और खेतों को खाली करना है ताकि अब हम गेहूं की फसल बोने की तैयारी कर सकें”।
विनोद जुगलान कहते हैं कि छोटा किसान तो लुट रहा है।
ऋषिकेश में ज्यादातर छोटे किसान हैं। खरीद केंद्र दूर होने की सूरत में वे खेत तक आने वाले बिचौलिये या व्यापारी को अपनी उपज बेचने को मजबूर होते हैं। देहरादून में उत्तराखंड कोऑपरेटिव सोसाइटी के असिस्टेंट रजिस्ट्रार राजेश चौहान कहते हैं “खरीद केंद्र खोलना आसान नहीं होता। बहुत सी व्यवस्थाएं करनी पड़ती हैं। ऋषिकेश की तरफ कभी खरीद केंद्र नहीं रहा। लेकिन इस बार किसानों की ओर से दबाव बनाए जाने के बाद श्यामपुर में सीजनल खऱीद केंद्र खोला गया”।
26-27 अक्टूबर खरीद केंद्र खुला। तब तक ज्यादातर किसान धान बेच चुके थे। चौहान कहते हैं “ क्रय केंद्र खुलने के बाद भी किसान की उपज मंडी में बिक जाएगी इसकी कोई गारंटी नहीं है। धान की क्वालिटी को लेकर तय किये गए नियम पूरे करने ही होते हैं। धान में नमी हुई तो रिजेक्ट हो जाएगा। सरकारी खरीद में नहीं आएगा”।
हमारा नंबर कब आएगा
हरिद्वार के चमरिया क्षेत्र के किसान हरीश मिश्रा ने 10 बीघे में धान बोया था। वह बताते हैं “नज़दीक के सरकारी खरीद केंद्र पर तोल हो रही है लेकिन बहुत समय लग रहा है, बहुत भीड़ हो रही है। हमारे पास इतना समय नहीं है कि रोज वहां जाएं। हमारे यहां के करीब 150 किसानों का ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन हुआ है। सरकारी खरीद केंद्र पर इनकी उपज तोलने में ही तीन महीने लग जाएंगे। अभी तक मात्र 15-20 किसानों का धान ही तोला जा सका है। केंद्र 3-4 किसानों का धान प्रति दिन तोल पा रहे हैं। बड़े किसान की उपज तो एक दिन में भी नहीं तोला जा पा रही। छोटे किसानों के लिए बड़ी समस्या है”।
हरीश मिश्रा बताते हैं कि उनके यहां भी 1300-1350 रुपये प्रति क्विंटल की दर से बिचौलिए धान की खरीद कर रहे हैं। वह कहते हैं “ जिनकी सोसाइटी में सेटिंग चल रही है, वे हमसे खरीद कर सीधे सोसाइटी में धान डाल दे रहे हैं। वहां उऩ्हें 1880 की कीमत मिल रही है। हमारी मेहनत पर मुनाफा वे कमा रहे हैं। हम इतने सस्ते में अपनी उपज नहीं बेचेंगे। लागत इतनी आती है कि 13-14 सौ में हमें मुनाफा नहीं मिलता। हमारा विचार है कि चावल बनाकर कस्टमर को धीरे-धीरे बेचेंगे”।
बासमती उगाने वाली किसान
देहरादून के रानी पोखरी क्षेत्र की किसान रंजना कुकरेती एक प्रगतिशील किसान हैं। वह इंटिग्रेटेड फार्मिंग करती हैं। रंजना बताती हैं “ मैंने करीब साढ़े तीन बीघे में कस्तूरी बासमती लगाई। ये दून बासमती की एक किस्म है। करीब 10-12 क्विंटल धान हुआ है। इसमें से 6 क्विंटल के आसपास चावल निकला। कस्तूरी बासमती की बाज़ार में मांग और कीमत दोनों ज्यादा है। कस्तूरी की कीमत करीब 6 हजार रुपये क्विंटल है। हमारी उपज खेतों से ही निकल जाती है। कस्टमर सीधे हमारे पास आते हैं। हम धान नहीं बेचते क्योंकि इसमें बहुत कम दाम मिलता है। 1400-1500 रुपये प्रति क्विंटल पर किसान को क्या मिलेगा। हम तो चाहते हैं कि हमारी उपज तुरंत खेतों से निकल जाए”।
दून बासमती का दर्द
देहरादून के छोटे-छोटे किसान समूहों की समस्या इस वर्ष अलग किस्म की है। कभी बड़े पैमाने पर उगायी जाने वाली दून बासमती अब बेहद सीमित हो गई है। हर बार उत्तराखंड जैविक उत्पाद परिषद की मदद से किसान समूह बाहर से आने वाले व्यापारियों और दावत जैसी कंपनियों को अपनी उपज बेचा करते थे। बासमती चावल जैसे उन्नत किस्म की कीमत सरकार तय नहीं करती। लेकिन किसानों और व्यापारियों के बीच मध्यस्थता की भूमिका होती थी। व्यापारी बोली लगाते थे। जो अच्छी कीमत देगा उसे चावल बेचा जाएगा।
देहरादून के डोईवाला किसान फेडरेशन के अध्यक्ष और किसान उम्मेद वोरा कहते हैं “नए कृषि कानून के बाद सरकार ने इस बार हाथ खड़े कर दिए। पहले एक क्षेत्र के किसान एक जगह अपनी उपज जमा करते थे और समूह के माध्यम से व्यापारी को बेचते थे। इस तरह किसान को उपज की बेहतर कीमत मिलती थी। इस बार व्यापारी हमारे पास नहीं आ रहे। सीधा किसानों से संपर्क कर रहे हैं। चार-पांच हज़ार प्रति क्विंटल की रेट पर व्यापारी किसान समूह से बासमती चावल खरीदते थे। अब वे 2800-3000 रुपए प्रति क्विंटल के रेट पर सीधे किसान से खरीद रहे हैं। वह स्थानीय अखबार की एक खबर का हवाला देते हैं जिसमें व्यापारी की तौल में 70 किलो का धान का कट्टा 55 किलो निकला। मामला पकड़ में आया तो व्यापारी भाग निकला”।
उम्मेद वोरा जैसे किसान कहते हैं कि हमारे दून बासमती को सरकार पेटेंट ही करा देती तो कुछ किसानों का भला हो जाता। बाजारों में दून बासमती के नाम से दूसरे बासमती बेचे जाते हैं। दून बासमती उगाने वाले किसान खेती छोड़ रहे हैं।
छोटे किसान कैसे तय करेंगे दाम
नए किसान कानून के बाद भी छोटे किसान इस स्थिति में नहीं कि अपनी उपज का दाम तय कर सकें। वर्ष 2010-11 की कृषि गणना के मुताबिक राज्य में 8.15 लाख हेक्टेअर क्षेत्र में खेती होती है। इसमें से 2.95 लाख हेक्टेअर खेत एक हेक्टेअर से कम जोत वाले किसानों के पास है। 2.25 हेक्टेअर ज़मीन ऐसे किसानों की है जिनके पास एक से दो हेक्टेअर तक के खेत हैं। दो से चार हेक्टेअर जोत वाले किसानों के पास 1.75 लाख हेक्टेअर ज़मीन है। चार से 10 हेक्टेअर जोत वाले मध्यम किसान के पास 0.94 लाख हेक्टेअर ज़मीन है। 100 हेक्टेअर से अधिक जोत वाले किसान मात्र 3.11 प्रतिशत हैं, जिनके पास 0.25 लाख हेक्टेअर खेती की ज़मीन है। यानी अधिकांश छोटे किसान हैं। जो बिचौलिए और व्यापारियों के भरोसे हैं।
छोटे किसानों की उपज बाजार तक पहुंचाने में सरकार की भूमिका सीमित है। तो व्यापारी हों या बिचौलिए वही उपज का दाम तय करते हैं। हालांकि रंजना जैसे प्रगतिशील किसान उम्मीद जगाते हैं।
(देहरादून में रह रहीं वर्षा सिंह स्वतंत्र पत्रकार हैं।)
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