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विश्व जल सप्ताहः लगातार बढ़ रहा है पानी का संकट, साफ़ पेयजल भी एक बड़ी समस्या

देश की क़रीब 80 प्रतिशत आबादी कुओं व हैंडपंप के साथ-साथ अन्य जलस्रोतों पर निर्भर है। इतनी बड़ी आबादी को मजबूरन दूषित पानी का इस्तेमाल करना पड़ता है।
विश्व जल सप्ताहः लगातार बढ़ रहा है पानी का संकट, साफ़ पेयजल भी एक बड़ी समस्या

देशभर में खासकर ग्रामीण इलाक़ों में लोगों के पास पीने के पानी को साफ़ करने की कोई व्यवस्था न होने के चलते उन्हें ज़हरीला पानी पीना पड़ता है जो कई तरह की बीमारियों का कारण बनता है। कई शोधों में पाया गया है कि ग्राउंड वाटर में आर्सेनिक व यूरेनियम जैसे रासायनिक तत्व तय मानक से अधिक होने के चलते लोग समय से पहले बूढ़े हो रहे हैं और असमय उनकी मौत हो जाती है।

ज्ञात हो कि वैश्विक स्तर पर पानी के मुद्दों और इसके मूल्यों को लेकर लोगों को जागरूक करने के लिए विश्व की कई बड़ी संस्थाएं निरंतर काम कर रही हैं। इसी कड़ी में इस महीने की 23 तारीख से लेकर 1 सितंबर तक विश्व जल सप्ताह का आयोजन स्टॉकहोम इंटरनेशनल वाटर इंस्टिट्यूट (एसआईडब्ल्यूआई) द्वारा 'सीइंग द अनसीनः द वैल्यू ऑफ वाटर’ थीम के तहत किया जा रहा है।

पानी से जुड़ी चुनौतियों के समाधान के लिए एसआईडब्ल्यूआई द्वारा वर्ष 1991से हर साल विश्व जल सप्ताह का आयोजन किया जाता है। इसमें विभिन्न क्षेत्रों और देशों के विशेषज्ञ, पेशेवर, इन्नोवेटर और उद्यमी इकट्ठा होते हैं और समाधान ढ़ूंढ़ते हैं। यह वैश्विक जल सम्मेलन एक सप्ताह तक चलने वाला कार्यक्रम है जो हर साल अगस्त महीने के आख़िर में या सितंबर की शुरुआत में आयोजित किया जाता है।

बता दें कि अगले साल 'यूएन 2023 वाटर वीक' कार्यक्रम होना निर्धारित है ऐसे में इस साल का ये विश्व जल सप्ताह बेहद महत्वपूर्ण माना जा रहा है।

मौजूदा समय में पीने के पानी को लेकर जो हालात बने हुए हैं उससे भविष्य में न केवल मनुष्य बल्कि हर एक जीव के लिए बड़ा संकट पैदा हो सकता है। समय-समय पर इसको लेकर विशेषज्ञों द्वारा चिंता ज़ाहिर की जाती रही है। एक तरफ दुनिया की आबादी जहां तेज़ी से बढ़ रही है वहीं दूसरी तरफ ग्राउंड वाटर का लेवल लगातार घटता जा रहा है। ऐसे में निस्संदेह अगली पीढ़ी को बड़े स्तर पर पीने के पानी के संकट का सामना करना पड़ सकता है।

आंकड़ों की माने तो विश्व के क़रीब 1.5 अरब लोगों को पीने का शुद्ध पानी नहीं मिल रहा है। ज्ञात हो कि दुनिया भर में क़रीब चार बिलियन लोगों को हर साल कम से कम एक महीने तक पानी के गंभीर संकट का सामना करना पड़ता है। वहीं दो अरब से अधिक लोग उन देशों में रहते हैं जहां पानी की आपूर्ति अपर्याप्त है। साथ ही 2025 तक दुनिया की आधी आबादी पानी की कमी से जूझ रहे क्षेत्रों में रह सकती है और 2030 तक लगभग 700 मिलियन लोग अत्यधिक पानी की कमी से विस्थापित हो सकते हैं। जबकि 2040 तक, दुनिया भर में लगभग 4 में से 1 बच्चा अत्यधिक जल की कमी वाले क्षेत्रों में रह रहा होगा।

बता दें कि हाल ही में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हुए अध्ययन की रिपोर्ट में ये बात सामने आई है कि उत्तर भारत के कई इलाकों में जलवायु परिवर्तन के कारण वर्ष 2060 तक पीने के पानी की उपलब्धता में कमी आ सकती है। यह रिपोर्ट जर्नल 'नेचर क्लाइमेट चेंज' में प्रकाशित हुई थी। शोध में यह कहा गया है कि एशिया का वाटर टावर कहलाने वाला तिब्बत का पठार निचले प्रवाह क्षेत्र के क़रीब दो अरब आबादी को ताज़ा पानी उपलब्ध कराता है। कमज़ोर जलवायु नीति की वजह से इस क्षेत्र में ताज़े पानी की उपलब्धता में कमी आ सकती है।

वहीं पीने के पानी को लेकर भारत की बात करें तो अपने देश में भी इसका संकट गहराता जाता रहा है। अक्सर मीडिया में ख़बरे पढ़ने सुनने को मिल जाती हैं कि पीने के पानी के लिए लोगों को कई-कई किलोमीटर दूर चल कर जाना पड़ रहा है। इससे स्पष्ट है कि ग्राउंड वाटर का लेवल लगातार घट रहा है जिससे लोगों को पीने का पानी नसीब नहीं हो रहा है।

80 फ़ीसदी भारतीयों के पास पीने का साफ़ पानी उपलब्ध नहीं है। हर साल तकरीबन 2 लाख लोगों की मौत पानी की कमी की वजह से हो जाती है। नीति आयोग की रिपोर्ट में कहा गया था कि साल 2030 तक पानी की मांग पानी की उपलब्धता से दो गुनी अधिक हो जाएगी। ऐसे में यह साफ है कि अगर पानी का इस्तेमाल उचित तरीके से नहीं किया जाता है तो भविष्य में बड़ा जल संकट पैदा हो सकता है। बता दें कि जल गुणवत्ता सूचकांक में 122 देशों की सूची में भारत का स्थान 120वां है।

सरकार के आंकड़ों के अनुसार देश की क़रीब 80 प्रतिशत आबादी कुओं व हैंडपंप के साथ साथ अन्य जलस्रोतों पर निर्भर है। इतनी बड़ी आबादी को मजबूरन दूषित पानी का इस्तेमाल करना पड़ता है।

ग्राउंड वाटर के दूषित होने की बात करें तो जांच में पाया गया है कि पानी में कई ऐसे रासायनिक तत्व अपनी सीमा से अधिक हैं जो सेहत के लिए ख़तरनाक हैं। सरकारी आंकड़ों के अनुसार देश के 25 राज्यों के 209 जिलों के कुछ हिस्सों के ग्राउंड वाटर में आर्सेनिक की मात्रा 0.01 मिलिग्राम प्रति लीटर से अधिक है। वहीं 21 राज्यों के 176 जिलों के कुछ हिस्सों में भूजल में सीसा तय मानक 0.01 मिलिग्राम प्रति लीटर से अधिक है। साथ ही 29 राज्यों के 491 जिलों के कुछ एरिया के ग्राउंड वाटर में आयरन की मात्रा 1 मिलिग्राम प्रति लीटर से अधिक है। 18 राज्यों के 152 जिले के इलाकों में ग्राउंड वाटर में यूरेनियम 0.03 मिलिग्राम प्रति लीटर से अधिक पाया गया।

आंकड़ों के मुताबिक़ आंध्र प्रदेश के 12, तेलंगाना के 10, असम के 17, बिहार के 13, छ्त्तीसगढ़ के 22, दिल्ली के 7, गुजरात के 24, हरियाणा के 21, हिमाचल प्रदेश के 1 , जम्मू-कश्मीर के 2 और झारखंड के 16 ज़िले ऐसे हैं जहां भूजल में फ्लोराइड की आंशिक मात्रा 1.5 एमजी प्रति लीटर से अधिक है। वहीं इन्हीं जिलों में भूजल में आर्सेनिक की मात्रा 0.01 एमजी प्रति लीटर से अधिक है।

इंटरनेशनल जर्नल ऑफ एनवायर्नमेंटल रिसर्च एंड पब्लिक हेल्थ की रिपोर्ट की माने तो भारत में क़रीब पौने दो करोड़ से लेकर 3 करोड़ लोगों पर आर्सेनिक का गंभीर ख़तरा बना हुआ है। पानी में आर्सेनिक की अधिक मात्रा की मौजूदगी से गुर्दा, फेफड़े और त्वचा के कैंसर होने की संभावना भी बढ़ जाती है।

देश में शहरों की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों में समस्या काफी अधिक है। ग्रामीण इलाक़ों में लोग पीने के पानी के लिए कुआं, हैंडपंप, नदी और तालाब जैसे स्रोतों पर निर्भर हैं। गांवों में पानी को पीने लायक साफ करने की व्यवस्था का अभाव है। ऐसे में लोग पीने के लिए ज़हरीला पानी इस्तेमाल करने को मजबूर हैं। हालांकि केंद्र की मोदी सरकार ने लोगों को पीने के लिए साफ पानी मुहैया कराने के लिए 15 अगस्त 2019 को हर घर नल-जल योजना की घोषणा की थी। इस योजना के तहत 2024 तक हर घर तक साफ पीने का पानी पहुंचाने का लक्ष्य तय किया गया है। जल जीवन मिशन 3.60 लाख करोड़ रुपये की योजना है। इस साल के बजट में नल-जल योजना के लिए 60 हजार करोड़ रुपए आवंटित किए गए हैं। इस योजना की शुरुआत के समय सिर्फ 17 फ़ीसदी आबादी यानी 3.23 करोड़ घरों तक ही नल के ज़रिए जल पहुंच रहा था। जल शक्ति मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार 19 जुलाई तक करीब 51.43 फीसदी घरों में ही नल का पानी पहुंच पाया है। इस रफ़्तार से साल 2024 तक इस योजना के लक्ष्य को पूरा कर पाना असंभव दिखाई दे रहा है।

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