अभी क्यों दूर है टैंकर मुक्त महाराष्ट्र का सपना?
महाराष्ट्र राज्य के शहरी क्षेत्रों के साथ-साथ ग्रामीण क्षेत्रों को भी हर साल पानी की किल्लत का सामना करना पड़ता है। गर्मी के दिन आते ही राज्य के हर अंचल में जल संकट से जुड़ी खबरों का अंबार लग जाता है। इस साल भी यह सिलसिला चालू हो चुका है।
देखा जाए तो महाराष्ट्र राज्य में सुरक्षित पेयजल उपलब्ध कराने के लिए सरकार के पास कई योजनाएं हैं। वहीं, ग्रामीण क्षेत्रों में पानी की कमी को दूर करने के कार्यक्रमों पर हर साल करोड़ों रुपये खर्च किए जाते हैं। महाराष्ट्र को टैंकर मुक्त करने की कई बार घोषणा हो चुकी है, लेकिन अभी भी जल संकट को दूर करने के लिए पानी से लदा 'टैंकर युद्ध' थमा नहीं है।
राज्य सरकार के मुताबिक वर्तमान में राज्य के 70 गांवों और 204 बस्तियों में टैंकरों से पानी की आपूर्ति की जा रही है। गर्मियों के दिन शुरू ही हुए हैं तब यह हाल है। जाहिर है कि भीषण गर्मी के बाद शहर-शहर गांव-गांव टैंकरों की संख्या बढ़ने वाली है। उसके बाद हर साल की तरह एक बार फिर जल संकट को लेकर महाराष्ट्र राष्ट्रीय सुर्खियों में होगा। इससे यह बात स्पष्ट होती है कि राज्य के लिए यह संकट मौसमी हो गया है और अब तक इसके अस्थायी समाधानों पर ही विचार किया गया है। लिहाजा, पानी की कमी के लिए स्थायी उपाय लागू नहीं करना एक सामान्य प्रश्न बन गया है। यह प्रश्न हर साल उठाया जाता है, इसके बावजूद कुछ दिनों में ही भुला दिया जाता है।
अधिकतर जलापूर्ति योजनाएं अधूरी
केंद्र सरकार ने 'हर घर नल से जल' के उद्देश्य को सामने रखते हुए 2020 से राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम को 'जल जीवन अभियान' में बदल दिया है। लेकिन, योजनाओं को अभियान कर देने भर से स्थिति नहीं बदल सकती है। इस बात की पुष्टि जल आपूर्ति करने वाले टैंकरों को देख कर हो जाती है।
दरअसल, जल जीवन अभियान का मुख्य उद्देश्य व्यक्तिगत नल कनेक्शन के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्रों के प्रत्येक घर में प्रतिदिन कम से कम 55 लीटर गुणवत्ता वाले पानी की आपूर्ति करना है। इस अभियान के तहत वर्ष 2024 तक ग्रामीण क्षेत्र के प्रत्येक परिवार, विद्यालय, ग्राम पंचायत भवन, स्वास्थ्य केन्द्र और सामुदायिक भवन आदि को नल कनेक्शन उपलब्ध कराए जाएंगे। बता दें कि महाराष्ट्र राज्य में वर्ष 2021-22 में जल जीवन अभियान पर 2 हजार 855 करोड़ रुपए खर्च किए गए हैं।
गौर करने वाली बात यह है कि महाराष्ट्र राज्य में जलापूर्ति में सुधार करके पर्याप्त और शुद्ध पेयजल उपलब्ध कराने के लिए मुख्यमंत्री ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम लागू किया गया। इस कार्यक्रम की अवधि 2016 से 2020 तक थी। इस कार्यक्रम के तहत 602 करोड़ रुपए की 743 नई नल जल आपूर्ति योजनाओं को मंजूरी दी गईं। लेकिन, इनमें से अधिकतर जल आपूर्ति योजनाओं को अमल में नहीं लाया जा सका। यही वजह है कि चालू जलापूर्ति योजनाओं के कार्यों को पूर्ण करने के लिए इस कार्यक्रम को वर्ष 2022-23 तक बढ़ाया गया है। इसके बावजूद, अक्टूबर 2022 तक दो सौ से ज्यादा जलापूर्ति योजनाओं को अमल में नहीं लायी जा सका है। वहीं, 30 क्षेत्रीय जलापूर्ति योजनाओं को पुनर्जीवित करने के लिए 124 करोड़ रुपये स्वीकृत किए गए थे, जिनमें से आधी योजनाएं अधूरी पड़ी हुई हैं।
हर घर नल कनेक्शन पर ही जोर
दूसरी तरफ, देखा गया है कि प्रशासनिक स्तर पर पानी की कमी राहत कार्यक्रम को ठीक तरह से लागू नहीं किया जा रहा है। दरअसल, पानी की कमी से प्रभावित गांवों और बस्तियों में हर साल अक्टूबर से जून तक पानी की कमी राहत कार्यक्रम लागू किया जाता है। राज्य सरकार की ओर से सूखा प्रभावित गांवों और बस्तियों में जल संकट की स्थिति से निपटने के लिए अस्थायी नल जल आपूर्ति योजना, कुओं और अन्य जल स्रोतों का पुनरुद्धार, टैंकरों द्वारा जलापूर्ति और छोटे कुओं की विशेष मरम्मत जैसे उपाय किए जाते हैं। इसके तहत नल और निजी कुओं का अधिग्रहण किया जाता है। साथ ही कुओं को गहरा किया जाता है और उनके अंदर से गाद निकाली जाती है। इसके तहत वर्ष 2021-22 में जल संकट राहत कार्यक्रम पर 72.27 करोड़ रुपए और 2022-23 में अक्टूबर तक 73.38 करोड़ रुपए वितरित किए जा चुके हैं। इसके बावजूद जल संकट से उभरने के लिए अपेक्षित परिणाम हासिल नहीं हो सके हैं।
इससे अलग यदि राज्य के शहरी क्षेत्रों का जायजा लें तो शहरी क्षेत्रों के लिए अलग से योजनाएं बनाई गई हैं। शहरों में जलापूर्ति सुविधाओं के विकास के लिए राशि उपलब्ध कराने के उद्देश्य से प्रदेश में वर्ष 2015-16 से अटल पुनर्जीवन एवं नगरीय परिवहन अभियान चलाया जा रहा है। अभियान के उद्देश्यों में से एक उद्देश्य प्रत्येक परिवार को सुनिश्चित जल आपूर्ति के लिए नल कनेक्शन और सीवेज सिस्टम सुनिश्चित करना है। इस अभियान के तहत राज्य के 44 शहरों को कवर किया गया है और शहरी क्षेत्रों की 76 प्रतिशत आबादी को कवर किया गया है।
बता दें कि इस अभियान के तहत केंद्र सरकार ने राज्य को सात हजार 759 करोड़ रुपये की सब्सिडी स्वीकृत की है। वहीं, 34 शहरों में कुल 38 जलापूर्ति परियोजनाओं को मंजूरी दी गई है। इन परियोजनाओं पर यदि ध्यान दिया जाए तो जल आपूर्ति के लिए नल कनेक्शन को विशेष बढ़ावा दे रही है। जाहिर है कि खास कर शहरों में उसका लक्ष्य जल संकट के नाम पर पानी के व्यापार को सुनिश्चित करना है। इसमें सार्वजनिक कुएं, तालाब, बावड़ियों और छोटी नदियों को जीवन देने से जुड़ी योजनाओं को अपेक्षाकृत कम महत्त्व दिया जा रहा है।
गांवों में सूख रहे पानी के स्त्रोत
वर्तमान में राज्य के कुल 70 गांवों और 204 बस्तियों में 75 टैंकरों से पानी की आपूर्ति की जा रही है। पिछले साल इसी अवधि के दौरान 65 गांवों और 105 बस्तियों में 43 टैंकर चल रहे थे। जाहिर है कि इस एक वर्ष में पानी के संकट से उभरने के लिए कोई सुधार होता नहीं दिखता है। अब ज्यों-ज्यों गर्मी प्रचंड होती जाएगी त्यों-त्यों पानी की किल्लत बढ़ती जाएगी और उसी के साथ जल आपूर्ति के लिए टैंकरों की संख्या भी बढ़ती जाएगी।
इन दिनों सबसे ज्यादा टैंकर राज्य के कोंकण अंचल में चल रहे हैं। कोंकण के चार जिलों ठाणे, रायगढ़, रत्नागिरी और पालघर में अधिकतम 62 टैंकर चल रहे हैं। वहीं दूसरे अंचलों के जिलों पर नजर डालें तो जलगांव जिले में 3, सतारा में 3, अमरावती में 2 और बुलढाणा जिले में 6 टैंकरों से पानी की आपूर्ति की जा रही है। गांवों में पानी के स्रोत सूख जाने के बाद टैंकरों की संख्या बढ़ने की आशंका है, जबकि हर साल जलापूर्ति योजनाओं और सूखा राहत कार्यक्रमों पर अरबों रुपये खर्च किए जाते हैं, लेकिन राज्य का कोई भी इलाका स्थायी समाधान की तरफ बढ़ता नहीं दिखता।
यह हाल तब है जब पिछले दो सालों में पूरे राज्य में अच्छी बारिश हुई है। सवाल है कि मानसून के दौरान पर्याप्त बरसात होने पर भी यह स्थिति क्यों बनती है। जाहिर है यह एक पहेली है जिसे सुलझाना सरकार का काम है।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)
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