अवैध बूचड़खानों पर योगी सरकार के प्रतिबंध से ख़त्म हुई बहराइच के मीट व्यापारियों की आजीविका
उत्तर प्रदेश में बहराइच जिले के व्यस्त चांदपुरा चौराहे पर, एक बड़ी मीट की दुकान जो कभी हर प्रकार के मांस को बेचने के लिए प्रसिद्ध थी, अब वहां 10 किलो बकरी का मांस या चिकन बेचने के लिए जद्दोजहद जारी है।
दुकान के मालिक मोहम्मद निज़ाम (बदला हुआ नाम) मीडिया से बात करने से डरते हैं। काफी समझाने-बुझाने पर वे बातचीत के लिए तैयार होते हैं। निज़ाम जो कुरैशी समुदाय से ताल्लुकात रखते हैं, कहते हैं- “मेरे दुकान बहराइच की सबसे बड़ी मांस की दुकानों में से एक थी और ग्राहकों की अच्छी-खासी तादाद थी, जो उनके बदले में, इसे शहर के हर नुक्कड़ पर भी बेचते थे। अब, लोग न केवल मांस बेचने से बचते हैं बल्कि उसे खाने से भी डरते हैं। ”
2017 में निज़ाम और अन्य मीट व्यापारियों की रोजमर्रे की जिंदगी ने एकदम से 360 डिग्री मोड़ ले लिया, जब भारतीय जनता पार्टी की सरकार के नए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अवैध बूचड़खानों पर प्रतिबंध लगा दिया, जिससे प्रत्यक्ष या परोश रूप से मांस के कारोबार में शामिल हजारों लोगों के जीवन और उनकी आजीविका पर काफी बुरा असर पड़ा।
अब निज़ाम अपने परिवार को दो वक्त का खाना मुहैया कराने के लिए फिक्रमंद हैं। “2017 में, जब बूचड़खानों और बिना लाइसेंस वालों पर कार्रवाई शुरू हुई, तो हमने लगभग एक साल के लिए अपनी दुकानें बंद कर दीं। रोक की वजह से बड़ी तदाद में मीट व्यापारी या तो शहर छोड़ गए या फिर उन्होंने अपना धंधा बदल लिया। पुलिस कार्रवाई से आशंकित, मेरे कई पड़ोसी दिहाड़ी मजदूर के रूप में काम करने के लिए उन्नाव, कानपुर और हैदराबाद जैसे बड़े शहरों में चले गए।”
निजाम कहते हैं कि "मेरे कई दूर के रिश्तेदारों ने भी मांस बेचने का कारोबार छोड़ दिया है।”
बढ़ती असुरक्षा और अनिश्चितता के कारण निज़ाम नहीं चाहते कि उनके बेटे इस पारंपरिक-पारिवारिक व्यवसाय में हाथ लगाएं।
योगी आदित्यनाथ के पूर्ववर्ती अखिलेश यादव ने अपने प्रशासन को यह सुनिश्चित करने का आदेश दिया था कि उचित अपशिष्ट और जल प्रबंधन के साथ बूचड़खानों को आइएसओ दिशानिर्देशों पर चलाया जाए। इसके डेढ़ साल बाद राज्य भर के 10 नगर निगमों के लिए भी इस मद में बजट आवंटित किया गया था। हालाँकि, आदित्यनाथ के सत्ता में आने के बाद उन उपायों को लागू नहीं किया जा सका।
उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (यूपीपीपीसीबी) के एक वरिष्ठ अधिकारी अजय शर्मा के अनुसार, उप्र में लगभग 37 लाइसेंसी बूचड़खाने हैं, जो पूरे राज्य में मांस की आपूर्ति करते हैं। उन्होंने बताया कि “उत्तर प्रदेश में लगभग 37 या 38 बूचड़खाने सरकार और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के दिशानिर्देशों के अनुसार चल रहे हैं। 2017 में सैकड़ों अवैध बूचड़खाने बंद कर दिए गए।”
प्रतिबंध के प्रभाव के बारे में पूछे जाने पर एक अन्य वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, "इस मुद्दे पर रिपोर्ट न करें; यह राष्ट्र को बदनाम करता है। कृपया, राष्ट्रहित में चीजों को रिपोर्ट करें।” उन्होंने कहा कि इनमें से अधिकतर लाइसेंस प्राप्त बूचड़खाने मांस के निर्यात कारोबार में लगे हैं।
“मांस का बड़ा हिस्सा मुस्लिम देशों को निर्यात किया जाता है क्योंकि यह हलाल है और इसकी कीमत कम है। बरेली का एक निजी बूचड़खाना जो मांस का निर्यात करता है, वह बहराइच की मांस की जरूरतों को पूरा करता है। बूचड़खाने की स्थापना के लिए कम से कम 10 एकड़ का भूखंड, 1 करोड़ रुपए से अधिक की कार्यशील पूंजी और 15 वर्ष से अधिक उम्र के जानवरों को मारने के लिए लाइसेंस की आवश्यकता होती है।"
यूपी कभी मांस का सबसे बड़ा उत्पादक था, लेकिन 2014-15 में उसका उत्पादन 1.3 मिलियन टन (MT) से गिरकर 2019-20 में 1.16 मीट्रिक टन हो गया। दूसरी ओर, इसी अवधि में महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश में मांस उत्पादन में वृद्धि हुई।
मोहम्मद अतहर की मीट की दुकान
मोहम्मद अतहर (बदला हुआ नाम) ने अपनी दुकान को एक साल से अधिक समय तक बंद रखा था। इसकी बजाय वे पके हुए चने और चावल और बिरयानी बेच रहे थे, जिससे उन्हें 2017 से पहले लगभग 600 रुपये की तुलना में प्रति दिन केवल 200 रुपये मिलते थे।
अतहर ने कहा “2017 से पहले बहराइच में रही 200 मीट की दुकानों में से आधी अब बंद हो गई हैं। अपने घरों से कारोबार करने वाले मांस विक्रेता भी पुलिस के खौफ से विलुप्त होने के कगार पर हैं। पलायन के कारण मांस विक्रेताओं की संख्या काफी कम हो गई है। यह लगभग 5,000-6,000 होने का अनुमान है”
अपनी बेटी की शादी के लिए लिए गए 3 लाख रुपये का कर्ज चुकाने वाले अतहर ने कहा, “कुछ परिवारों को बिना भोजन के ही कई रातें बितानी पड़ी थी और उन्हें अपने बच्चों को खिलाने के लिए कर्ज लेना पड़ा।”
2011 की जनगणना के अनुसार, यूपी में लगभग 38.48 मिलियन मुसलमान हैं, जो इसकी सकल आबादी का लगभग 19 फीसदी हैं, लेकिन उनमें से केवल 25.6 फीसदी ही कार्यरत हैं, जिनमें से एक बड़ा हिस्सा मांस बेचने जैसे कम नियमित और कम आय वाले व्यवसायों में लगा हुआ है।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं। लेख अज़ीम मिर्जा के इनपुट्स के साथ।)
अंग्रेजी में मूल रूप से लिखे गए लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें:
Yogi’s ban on Illegal Slaughterhouses Culled Livelihood of Bahraich Butchers
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