विवादों में कोवैक्सीन: भोपाल गैस पीड़ितों को धोखे में रखकर ट्रायल का आरोप!
भारत बायोटेक की कोवैक्सीन एक बार फिर सुर्खियों में है। वजह वैक्सीन का ट्रायल तो है ही साथ ही यह आरोप भी है कि कंपनी ने सही जानकारी दिए बिना भोपाल में लोगों पर इसका ट्रायल किया है। इसमें ज्यादातर गैस पीड़ितों का परिवार और गरीब बस्तियों में रहने वाले कम पढ़े-लिखे लोग शामिल हैं। कंपनी के खिलाफ सोशल मीडिया पर कई लोगों ने लिखा कि उन्हें धोखे में रखकर कोवैक्सीन का डोज़ दिया गया। जिसके बाद एक-बार फिर से आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू हो गया।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक वैक्सीन के ट्रायल में शामिल कई लोगों का कहना है कि उन्हें सूचित सहमति पत्र यानी इंफोर्म्ड कंसेंट की प्रति नहीं दी गई, जो ऐसे ट्रायल में अनिवार्य होती है। न ही ऐसे परीक्षणों के जोखिमों के बारे में जागरूक किया गया।
यूनियन कार्बाइड के आसपास टिंबर फैक्ट्री, शंकर नगर, उड़िया नगर जैसे इलाकों के कई लोगों का कहना है कि वो इस बात से अंजान थे कि उन्हें ट्रायल में शामिल किया जा रहा है, उन्हें केवल यह बताया गया था कि इंजेक्शन (वैक्सीन) कोरोना वायरस से संक्रमित होने से बचाएगा।
क्या है पूरा मामला?
भोपाल ग्रुप फ़ॉर इन्फॉर्मेशन एंड एक्शन की कार्यकर्ता रचना ढींगरा, जो सालों से भोपाल गैस त्रासदी के पीड़ितों के लिए काम कर रही हैं। उन्होंने 3 जनवरी को एक ट्वीट किया। इस ट्वीट में उन्होंने जानकारी दी कि भोपाल में कोवैक्सीन के तीसरे चरण का ट्रायल किया जा रहा है, जिसमें नियमों का उल्लंघन किया गया है।
3rd Phase #Covaxine trial taking place in Bhopal hasviolated every rule in d book
Poor & vulnerable residents of gas
affected communities r herded by d People's ? with a promise of Rs750. No copy of informed consent is being given 2 d participants @CDSCO_INDIA_INF pic.twitter.com/dsb9u8L77T— Rachna Dhingra (@RachnaDhingra) January 3, 2021
उन्होंने लिखा, “पीपल्स यूनिवर्सिटी के आसपास रहने वाले तीन-चार समुदाय के लोगों को ट्रायल वैक्सीन लगवाने के लिए 750 रुपये देने की बात कही गई। इन लोगों से यह कहा गया कि ये वैक्सीन कोरोना वायरस से बचने के लिए है। इन्हें ये नहीं बताया गया कि ये वैक्सीन कोरोना वैक्सीन के तीसरे चरण के ट्रायल के तहत दिया जा रहा है। इन लोगों में से किसी को भी ब्लड और पीसीआर रिपोर्ट भी नहीं दिए गए हैं। जिन लोगों पर वैक्सीन का ट्रायल किया गया है, उन्हें कोई कंसेंट लेटर तक नहीं दिया गया है।”
पहले टीके के बाद दूसरा डोज़ क्यों नहीं दिया गया?
इस संबंध में रचना ढिंगरा ने छोटू दास नाम के एक लड़के का वीडियो भी पोस्ट किया। इस वीडियो में छोटू कह रहे हैं, “ हमें 3 दिसंबर को टीका लगाया गया। उन लोगों ने कहा था कि आपको कुछ भी होगा तो उसका इलाज़ हम करेंगे। उन्होंने पर्ची पर दवाई लिख के दी और ये दवाई हमने बाहर की दुकान से अपने पैसे से ली। 3 जनवरी को दूसरी बार बुलाया गया था। लेकिन उन्होंने कोई इंजेक्शन नहीं दी। टीका लगाने के बाद मोहल्ले में कई लोगों को उल्टी, रीढ़ की हड्डियों में दर्द आदि जैसी दिक्कतें आ रही हैं।”
When a participant experiences an adverse event they call up d hospital who asks them to come in and then they r prescribed medicines & investigations where the participant is expected to foot the bill. Things cannot get any worse than this. @CDSCO_INDIA_INF pic.twitter.com/AXqOestmXM
— Rachna Dhingra (@RachnaDhingra) January 3, 2021
आपको बता दें कि आरोप है कि गैस पीड़ित बस्तियों में रहने वाले लगभग 700 लोगों को कोविड वैक्सीन ट्रायल में टीके लगाये गये। इन लोगों को अस्पताल प्रबंधन ने क्षेत्र में गाड़ी भेजकर वैक्सीन ट्रायल का हिस्सा बनाया।
"मुझे कुछ नहीं बोला बस टीका लगा दिया”
अमर उजाला की खबर के अनुसार भोपाल की शंकर नगर में रहने वाली सावित्री ने ट्रायल के बारे में बताया, "मुझे कुछ नहीं बोला बस टीका लगा दिया। बोला कोरोना का टीका लग रहा है, जिसको लगवाना है लगवा लो। यही कहा कोई तकलीफ हो तो फोन कर देना। वो कह रहे थे लिख लेना, लेकिन हमें लिखना नहीं आता।
वहीं संजय नरवारिया आरा मिल में काम करने वाले हैं। उनके परिवार में पांच लोग हैं। संजय कहते हैं कि जबसे वैक्सीन लगवाया बीमार पड़ गए। अस्पताल ने सुध नहीं ली। काम नहीं कर पा रहे हैं, पछता रहे हैं कि अस्पताल गए क्यों।
“टीके से जो पुरानी बीमारी है वो पूरी तरह से ठीक हो जायेगी"
बीबीसी की रिपोर्ट् के मुताबिक शहर के छोला रोड पर रहने वाले 37 साल के जितेंद्र नरवरिया भी ट्रायल का हिस्सा हैं, जो फिलहाल पीपल्स अस्पताल में भर्ती हैं और अस्पताल प्रबंधन उनका इलाज कर रहा है।
जितेंद्र का कहना है, "जब मैं अस्पताल में गया था तब तक मुझे नहीं मालूम था कि वहां पर टीका लगाया जा रहा है। मैंने उनसे पूछा भी कि इसको लगाने से कोई साइड इफ़ेक्ट तो नहीं होगा तो उन्होंने कहा कि नहीं कोई परेशानी नहीं होगी बल्कि जो पुरानी बीमारी है वो पूरी तरह से ठीक हो जायेगी।"
लेकिन, जितेंद्र नरवरिया ने बताया कि जब उन्हें टीका लग गया तो उन्हें पीलिया हो गया और उसके बाद सर्दी, ज़ुक़ाम और बढ़ गया।
जितेंद्र नरवरिया अब अस्पताल प्रबंधन पर आरोप लग रहे हैं कि वैक्सीन लगने के बाद जब लोगों को दिक्क़तें आयीं तो उन्होंने मुफ़्त में इलाज करने के बजाय उन्हें ऐसे ही छोड़ दिया। हालांकि, अस्पताल ने ऐसे किसी भी आरोप से इनकार किया है।
अस्पताल प्रबंधन का क्या कहना है?
मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में स्थित निजी अस्पताल पीपल्स हॉस्पिटल ने इन सभी आरोपों से इनकार किया है। उनका कहना है कि ट्रायल सरकार के दिशानिर्देशों के अनुसार किए गए थे। इसमें संभावित प्रतिभागियों के लिए न्यूनतम आधे घंटे की काउंसलिंग शामिल है, जिसमें उन्हें खुराक और संभावित दुष्प्रभावों के बारे में बताया जाता है। पीपुल्स कॉलेज ऑफ मेडिकल साइंसेज के डीन डॉ. एके दीक्षित ने कहा कि वैक्सीन के ट्रायल में भाग लेने वाले सभी लोगों की सहमति ली गई, जिन्होंने भी कंसेंट फॉर्म मांगा, उन्हें दिया गया।
इस मामले को लेकर पीपल्स यूनिवर्सिटी ने अपने आधिकारिक ट्विटर पेज से कई ट्वीट किए।
इन ट्वीट्स के माध्यम से अस्पताल ने बताया, “महामारी काल में रचना ढिंगरा बेबुनियाद आरोप लगा रही हैं। ट्रायल वैक्सीन के लिए लोगों की सहमति ली गई थी और इसमें समाज के सभी वर्ग के लोग शामिल थे। किसी भी गैस पीड़ित पर ट्रायल वैक्सीन नहीं किया गया है। सिर्फ कोविड नेगेटिव वालंटियर्स को ही ट्रायल वैक्सीन दी गई है। 750 रुपये दैनिक भत्ता के रूप में इन लोगों को दिया गया था।”
It is shocking, in this pandemic time people are making baseless allegations. W.r.t @RachnaDhingra 's tweets the rebuttal is as follows :- 1. All participants were volunteers who consented for this trial & represent various sections of society & professions. @CDSCO_INDIA_INF
— People's University Bhopal (@Uni_Peoples) January 4, 2021
ट्रायल के बाद अस्पताल प्रबंधन ने इन्हें इनके हाल पर छोड़ दिया!
हालांकि रचना ढींगरा का कहना है कि इन लोगों को गाड़ी में भरकर ले जाया गया और बग़ैर जानकारी दिए इन पर वैक्सीन का ट्रायल कर दिया गया। ये घोषणा कर दी कि कोरोना से बचाव का इंजेक्शन लग रहा है और साथ में 750 रुपये मिलेंगे। अगर बाद में लगायेंगे तो आपको पैसे देने पड़ेंगे। ट्रायल के बाद आने वाली परेशानियों पर भी अस्पताल प्रबंधन ने कुछ नहीं किया बल्कि इन्हें इनके हाल पर छोड़ दिया गया।
रचना ये भी कहती हैं कि ये लोगों के अधिकारों का हनन है क्योंकि उनकी सहमति नहीं ली गई है। क़ानून कहता है कि जो लोग ग़रीब हैं और पढ़-लिख नहीं सकते उनसे आपको केवल हस्ताक्षर नहीं करवाना है बल्कि उन्हें बताना है कि अध्ययन के क्या फ़ायदे और नुक़सान हैं। यह भी बताना है कि वे एक ट्रायल का हिस्सा हैं। लेकिन यहां पर ऐसा कुछ भी नहीं किया गया।
गौरतलब है कि खबर लिखे जाने तक इस पूरे मामले पर भोपाल प्रशासन, मध्य प्रदेश सरकार और भारत बायोटेक की तरफ से कोई आधिकारिक बयान सामने नहीं आया है। हालांकि लोग सोशल मीडिया के माध्यम से सरकार से लगातार इन सवालों के जवाब मांग रहे हैं और स्थिति स्पष्ट करने की बात कर रहे हैं।
अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।