बिहारः नदी के कटाव के डर से मानसून से पहले ही घर तोड़कर भागने लगे गांव के लोग
पटना: मानसून अभी आया नहीं है लेकिन इस दौरान होने वाले नदी के कटाव की दहशत गांवों के लोगों में इस कदर है कि वे कड़ी मशक्कत से बनाए अपने घरों को तोड़ने से बाज नहीं आ रहे हैं। गरीबी से हलकान अब्दुल हलीम को इस हफ्ते की शुरुआत में बांस के खंभे पर टीन की छत वाले घर को उजाड़ना पड़ा और पैतृक गांव छोड़कर एक सुरक्षित स्थान पर जाने के लिए मजबूर होना पड़ा। मानसून के दौरान पानी आने के कारण हर साल नदी फूल जाती है, तो वह कटाव करती है, जिससे उसके किनारे बसे गांवों को उसमें समा जाने का गंभीर खतरा पैदा हो जाता है। इसको देखते हुए हलीम ने यह कड़ा कदम उठाया है।
गांव में हलीम की तरह, 50 से अधिक गरीब परिवारों ने भी नदी के क्षरण के खतरे और इसको रोक पाने में सरकार की अब तक की विफलता को देखते हुए अपने घर उजाड़ कर सुरक्षित ठिकानों पर जाना ही मुनासिब समझा है।
हलीम कहते हैं, “फिलहाल, मानसून के आने में अभी कम से कम दो सप्ताह की देर है, इस समय नदी उफान पर नहीं है या वह फूली हुई नहीं है, बाढ़ भी नहीं आई है, लेकिन हम उसके किनारों के कटाव के खतरे से बहुत डरते हैं। इसलिए कि पिछले साल और उससे पहले हुए कटाव ने आसपास के घरों, खेत, स्कूल, मस्जिद सहित सब कुछ को गड़प लिया था। नदी का कटाव एक वास्तविकता है, जो हर साल हमें डरा-धमका जाता है; अगर हम उसके डर से छुटकारा पाना चाहते हैं तो यहां से भागने के अलावा हमारे पास कोई रास्ता नहीं है"। वे कटाव से त्रस्त बाबला बन्ना गांव के निवासी हैं, जो फिलहाल अमदाबाद प्रखंड में पड़ता है।
यह गांव गंगा नदी के तट के पास है, और आधिकारिक उदासीनता के कारण वर्षों से नदी के अपरदन का वास्तविक शिकार रहा है। नदी के कटाव के खतरे से बचाने के लिए ग्रामीणों ने बार-बार स्थानीय प्रशासन से गुहार लगाई पर इसके बावजूद कटाव रोकने के लिए एक भी काम नहीं किया गया है।
इसके लिए अपील करने वालों में जाकिर हुसैन, नूर आलम, अब्दुस समद, मतिउर रहमान और मोहम्मद हुसैन जैसे कई अन्य लोग शामिल हैं। ये सभी बबला बन्ना के रहने वाले थे। इन लोगों में एक बात आम है कि वे सभी पिछले एक सप्ताह में नदी के कटाव के डर से पलायन पर मजबूर हुए हैं।
इनमें से एक हुसैन कहते हैं, “गांव के लोगों ने नदी के खतरनाक कटाव से बचाने के लिए क्षरण-रोधी आवश्यक कार्यों के लिए स्थानीय अधिकारियों से संपर्क किया है। वे इसे लेकर निर्वाचित प्रतिनिधियों से भी मिले हैं। लेकिन उन सबने पिछले तीन वर्षों में, हमसे केवल कोरा वादा किया है और आश्वासन दिया है। परंतु हमें स्थाई संरक्षण देने के लिए कुछ नहीं किया गया है।”
समद के अनुसार, गांव के ज्यादातर लोग जिले के ही अन्य गांवों और पड़ोसी जिले पूर्णिया के अलग-अलग गांवों में रहने चले गए हैं, जो बबला बन्ना की तरह नदी के कटाव के खतरे का सामना नहीं कर रहे हैं। पिछले साल लगभग 80 परिवारों को नदी के कटाव के कारण पलायन पर मजबूर होना पड़ा था, और खेती की उनकी जमीन गंगा नदी में विलीन हो गई थी।
समद ने कहा, “गांव में बने दर्जनों घर और खेत नदी कटाव के खतरे का सामना कर रहे हैं।"
भवानीपुर खटी पंचायत मुखिया तपन मंडल ने बताया कि आने वाले मानसून के दौरान नदी के कटाव के डर से बबला बन्ना में तट के करीब के साथ रहने वाले चार दर्जन से अधिक परिवार हाल ही में पलायन कर गए थे। उनका डर आधारहीन नहीं है क्योंकि पिछले कुछ वर्षों में गंगा में दर्जनों घर, तीन सरकारी मिड्ल स्कूल और एक प्राथमिक स्कूल, दो मस्जिदें और सैकड़ों खेत बह गए हैं।
“हमने फरवरी 2022 में इसके बारे में जिला अधिकारियों, स्थानीय विधायक और एमएलसी को एक पत्र लिखा था तथा उनसे बबला बन्ना के पास कटाव रोकने का इंतजाम करने की मांग की। लेकिन दुर्भाग्यवश, अभी तक कोई कटाव-रोधी कार्य शुरू नहीं हुआ है। यह न होने की वजह से इस साल भी गांव को कटाव का सामना करना पड़ेगा, और फिर ज्यादा से ज्यादा घर और खेत नदी में बह जाएंगे।”
मंडल कहते हैं कि बाबला बन्ना अकेला गांव नहीं है। अमदाबाद के कई गांव हर साल कटाव के खतरे का सामना कर रहे हैं।
कटिहार के बाढ़ नियंत्रण के अधीक्षक अभियंता गोपाल चंद्र मिश्रा ने कहा कि बबला बन्ना के पास कटाव रोधी कार्य के लिए आज तक कोई आदेश नहीं दिया गया है। विभाग स्तर पर आदेश पारित होने के बाद ही कटाव निरोधक कार्य किए जाते हैं। मिश्रा ने स्वीकार किया कि कटिहार नदी कटाव से सबसे अधिक पीड़ित होती है, जिसके चलते हर साल हजारों लोग विस्थापित हो जाते हैं।
इस तथ्य ने सरकार की लापरवाही और राज्य में साल-दर-साल बढ़ते नदी कटाव से निपटने में इसकी गंभीरता को उजागर किया है।
कटिहार में मानसून के दौरान चार प्रमुख नदियों गंगा, महानंदा, कोशी और बरंडी में कटाव हुए हैं और इनके नतीजतन हजारों लोग विस्थापित हुए हैं।
विडंबना यह है कि राज्य सरकार ने कटिहार और अन्य संवेदनशील जिलों में बाढ़ नियंत्रण उपायों के तहत कटाव रोधी कार्य चलने का दावा किया है। कागज के हिसाब से तो बाढ़-नियंत्रण के उपाय, मुख्य रूप से लंबे तटबंधों और कटाव-रोधी रख-रखाव को 15 मई तक पूरा हो जाना चाहिए था, लेकिन कई जगहों पर अभी भी काम चल रहा है।
बाढ़ नियंत्रण के विशेषज्ञों ने नदी में होने वाले बार-बार के कटावों और इसके प्रतिकूल प्रभावों को बढ़ते जाने का मुद्दा उठाया है। उन्होंने इस तथ्य पर गंभीर चिंता व्यक्त की है कि नदी के कटाव ने सैकड़ों गांवों के अस्तित्व पर और उनके हजारों निवासी की आजीविका पर खतरा उत्पन्न कर दिया है।
हालांकि सरकार के पास इसका कोई आधिकारिक आंकड़ा नहीं है कि राज्य में नदी के कटावों से कितने लोग विस्थापित हुए है।
मौसम विभाग ने बिहार में 12 से 15 जून के बीच मानसून के आने का अनुमान जताया है। WRD की वेबसाइट के अनुसार, देश में बिहार सबसे अधिक बाढ़ पीड़ित राज्य है, जो देश के कुल बाढ़ पीड़ित क्षेत्र का लगभग 17.2 फीसदी है। कुल 94.16 लाख हेक्टेयर भूमि में से 68.80 लाख हेक्टेयर (उत्तर बिहार का 76 प्रतिशत और दक्षिण बिहार का 73 प्रतिशत) बाढ़ पीड़ित क्षेत्र है। इस समय प्रदेश के 38 जिलों में से 28 जिले बाढ़ पीड़ित हैं।
कोशी नव निर्माण मंच (केएनएनएम) के संस्थापक-संयोजक महेंद्र यादव ने कहा कि नदी के कटाव ने सब कुछ तहस-नहस कर दिया है और बाढ़ पीड़ित जिलों में हजारों लोग सालाना विस्थापित हो जाते हैं। अपनी जमीन से उखड़े हुए इन लोगों को जीवित रहने के लिए खुद के बलबूते भारी जद्दोजहद करने, और उन्हें ऊंचाई वाले तटबंधों, रेलवे पटरियों और अन्य स्थानों पर गुरबत में रहने के लिए छोड़ दिया गया है।
“नदी के बढ़ते कटाव के परिणामस्वरूप छोटे और सीमांत किसान आजीविका की तलाश में राज्य से बाहर जाने पर मजबूर हुए हैं। उनके खेत के खेत बह गए हैं। इस तरह उनकी आजीविका का स्रोत नष्ट हो गया है। यह नदी के कटाव का सामना करने वाले गांवों में अधिक स्पष्टता से दिखता है,"यादव ने कहा।
काठमांडू स्थित इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंटीग्रेटेड माउंटेन डेवलपमेंट (आईसीआईएमओडी) के शोधकर्ताओं की एक टीम द्वारा पिछले साल किए गए एक अध्ययन में कहा गया था कि जलवायु परिवर्तन के कारण हिमालय में मानसून की भारी वर्षा हुई है, जिससे कि प्रमुख नदियों में से एक कोशी के जलग्रहण क्षेत्रों में बिहार के कुछ क्षेत्रों में अधिक मिट्टी का क्षरण हो रहा है। गांव के गांव तेजी से हो रहे मिट्टी के कटाव की परिस्थितियों का सामना कर रहे हैं। इनके निवासियों की आजीविका को संकट में डाल रहा है और लोगों में विस्थापन बढ़ावा देता है।
इसके अध्ययन में कहा गया है, “कोशी बेसिन बहुत उच्च स्तर के कटाव से ग्रस्त है, जो न केवल भूमि पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है, बल्कि नीचे की ओर अवसादन (सेडिमेंटेशन) से कई नकारात्मक प्रभाव भी डालता है।" इसके मद्देनजर, बेसिन के लिए कटाव नियंत्रण के कामों की बेहतर योजना बनाना और उन्हें कार्यान्वित करना महत्त्वपूर्ण है, लेकिन उसका क्षेत्र बड़ा है।
इसलिए, अधिकतम असरकारक उपायों को अपनाने के लिए उस अध्ययन में यह सुझाव दिया गया कि: "क्षरण नियंत्रण उपायों को सबसे कमजोर क्षेत्रों पर लक्षित किया जाना चाहिए, जहां कटाव के दुष्प्रभाव सबसे बड़ा होने की आशंका है।”
यह बताया गया है कि उच्च स्तर के कटाव के परिणामस्वरूप अवसादन भी उच्च स्तर के होते हैं, जो भंडारण के बुनियादी ढांचे (क्षतिग्रस्त झीलों को भरने) को प्रभावित करते हैं, वे खेतों को नष्ट कर सकते हैं, और अनुप्रवाह से साथ नदीय संबंधी जोखिम बढ़ाते हैं।
अंग्रेजी में मूल रूप से प्रकाशित लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करे
Bihar: Ahead of Monsoon, Fearing River Erosion, Villagers Begin Abandoning Villages
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