क्यूबा ने जगाई किसानों और पर्यावरण के लिए नई उम्मीद
पिछले 25 वर्षों के दौरान क्यूबा की कृषि क्षेत्र में रोमांचक प्रगति ने पूरी दुनिया के किसानों और पर्यावरणविदों के भीतर नई उम्मीद जागा दी है। रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के इस्तेमाल को काफी हद तक कम करते हुए, क्यूबा प्रतिकूल परिस्थितियों में खाद्य उत्पादन बढ़ाने में सफल रहा है।
क्यूबा की सफलता की कहानी न केवल पर्यावरण हितैषी (इको-फ्रेंडली) वाले तरीके हैं, बल्कि वे तरीके हैं जो खेती और भूमि संरचनाओं की समानता के लिए भी जिम्मेदार है, जो किसानों के बीच सहयोग बढ़ाते है, और इसलिए वैज्ञानिक किसानों के साथ मिलकर काम करते हैं। और पिछले 25 वर्षों का क्यूबा मॉडल कृषि के निगमीकरण के खिलाफ एक ठोस विकल्प है, जिसे भारत सहित कई देशों में शीर्ष मॉडल के रूप में पेल दिया गया है, जिसके चलते छोटे किसानों को कोई राहत नहीं मिली है।
1991 में, क्यूबा की कृषि व्यवस्था और खाद्य प्रणाली को बड़े संकट का सामना करना पड़ा था जिसमें सबसे अनुकूल देश से खाद्य और उर्वरक के आयात में बड़ा संकट पैदा हो गया था, क्योंकि क्यूबा इन देशों से आयात पर बहुत निर्भर था, फिर अचानक सोवियत संघ के विघटन से सब ढह गया। सोवियत के पतन की वजह से क्यूबा ने नब्बे के दशक के मध्य तक अपने अंतरराष्ट्रीय व्यापार का 80 प्रतिशत से अधिक हिस्सा खो दिया था।
जबकि आयात और सहायता में गिरावट हो गई थी, और उनके शत्रुतापूर्ण पड़ोसी देश संयुक्त राज्य अमेरिका का विभिन्न तरीके के दबाव बढ़े जिसमें व्यापक आर्थिक प्रतिबंध भी शामिल थे। हर तरफ से दबाया गया और उनके खाद्य उत्पादन में बड़ी गिरावट आ गई, क्यूबा ने टिकाऊ और आत्मनिर्भर तरीकों का उपयोग करके भोजन में आत्मनिर्भरता हासिल करने की योजना बनाई, और आयात पर भरोसा करने के बजाय स्थानीय संसाधनों का सबसे अच्छा उपयोग किया। इससे कृषि-पारिस्थितिकी आधारित दृष्टिकोण का बहुत सफल और निरंतर इस्तेमाल किया गया।
1970 के दशक के बाद से ही कृषि-पारिस्थितिकी दृष्टिकोण काफी चर्चा में रहा है और दुनिया भर में वाम-उन्मुख संगठनों/समूहों सहित कई किसान और पर्यावरण संगठन/समूहों ने इसे उत्साहजनक परिणामों के साथ लागू किया। हालाँकि, क्यूबा पहला देश था जिसने पहली बार इसे राष्ट्रीय नीति के रूप में अपनाया था और 25 वर्षों के निरंतर कार्यान्वयन और प्रयास से यह तरक्की सुनिश्चित की है।
कृषि-पारिस्थितिकी का दृष्टिकोण प्रकृति से सीखने, और खेती और खाद्य उत्पादन में प्रकृति के तरीकों को सीखने को शामिल करने पर आधारित है। इसमें जैविक खेती के आवश्यक पहलू शामिल हैं, लेकिन इसमें अधिक सामाजिक (केवल तकनीकी की तुलना में) दृष्टिकोण को जोड़ा जाता है, जिसमें वैज्ञानिकों और लोगों के करीबी सहयोग पर आधारित स्वदेशी ज्ञान से सीखना शामिल है, जिसमें दोनों ही इच्छुक हैं जो एक दूसरे से सीखते हैं।
क्यूबा के समाज में पहले के बदलाव जो उन्हे लोगों की समानता की दिशा में ले गए थे, उन्होने उन्हें सशक्त बनाया और शिक्षा और विज्ञान को बड़े पैमाने पर लोगों तक पहुंचाया। इससे अन्य क्षेत्रों में भी सफलताओं की नींव रखने में मदद मिली।
इनपुट और तकनीकी परिवर्तन में रासायनिक उर्वरक के बजाय कृमि खाद, पोल्ट्री खाद और जैव-उर्वरक पर अधिक निर्भरता शामिल थी। यह पोषक तत्वों के पुनर्चक्रण, फसलों और जानवरों के बेहतर और अधिक एकीकरण करने और फसल के बीच स्वस्थ्य अंतर पर आधारित था। मिट्टी संरक्षण को अधिक और बेहतर ध्यान मिला। जैव कीटनाशक एजेंटों और रासायनिक कीटनाशकों के अन्य विकल्पों को बढ़ावा देने के लिए कई केंद्र स्थापित किए गए थे।
इन परिवर्तनों को पेश करने के बाद कीटनाशक विषाक्तता के मामलों में तेजी से गिरावट शुरू हुई। पर्यावरण के अनुकूल खेती के लिए अनुकूल कानून पारित किए गए। इस तरह, जिस देश ने नब्बे के दशक में "आयातित उर्वरकों, कीटनाशकों, ट्रैक्टरों, पुर्जों और पेट्रोलियम के नुकसान" का सामना किया था और "स्थिति इतनी खराब थी कि क्यूबा ने लैटिन अमेरिका और कैरिबियन देशों में प्रति व्यक्ति खाद्य उत्पादन में सबसे खराब प्रदर्शन किया था”, जैसा की मिगुएल ए अल्टिएरी और फर्नांडो आर शोधकर्ताओं ने फन्नेस-मोनज़ोटे में 2012 में लिखा था, अब“ आयातित सिंथेटिक रासायनिक आदानों पर कम निर्भर रहने से कृषि को तेजी से उन्मुख किया गया, और यहाँ की पारिस्थितिक कृषि विश्व स्तरीय मामला बन गया।“
किसानों और उनकी सहकारी समितियों को आधिकारिक नीति के तहत पर्यावरण के अनुकूल मार्ग का अनुसरण करने के लिए प्रोत्साहित किया गया साथ ही किसानों और उनके संगठनों यूनियनों और आंदोलनों के माध्यम से इसे लागू करने की पहल की गई है। इस दृष्टिकोण ने सिर्फ छह साल के भीतर प्रभावशाली परिणाम देने शुरू कर दिए और तब से उत्साहवर्धक नतीजे सामने आ रहे हैं। 2007 तक, खाद्य उत्पादन न केवल बेहतर हो गया था, बल्कि कम हुए स्तरों की तुलना में काफी बढ़ गया था। 1996-97 के सीज़न में, क्यूबा ने 13 बुनियादी खाद्य फसलों में से दस फसलों में काफी ऊंचे स्तर का उत्पादन दर्ज किया था।
2007 तक सब्जियों का उत्पादन 1988 की तुलना में (विघटन से पहले के स्तर) से 145 प्रतिशत रहा, जबकि कृषि रसायनों का इस्तेमाल 1988 की तुलना में 72 प्रतिशत कम हुआ। सेम/बीन्स का उत्पादन 2007 में 1988 की तुलना में 351 प्रतिशत हुआ, जबकि कृषि-रसायनों का इस्तेमाल 55 प्रतिशत कम रहा हैं। 2007 में कंद-मूल का उत्पादन 1988 के मुक़ाबले 145 प्रतिशत तक बढ़ गया था, जबकि रासायनिक इस्तेमाल में 85 प्रतोषत की गिरावट आई।
बेशक, 1991-92 के विघटन स्तरों के साथ तुलना में उपलब्धियां और भी प्रभावशाली दिखाई देती हैं, लेकिन 1988 के पूर्व-विघटन स्तरों की तुलना में भी, ये उपलब्धियां बहुत सराहनीय हैं। उत्पादन बढ़ाने और कृषि-रासायनिक इतेमाल को कम करने के लिए अन्य देशों ने बहुत छोटे क्षेत्रों में इसे हासिल किया गया है, जबकि क्यूबा लंबे समय से ऐसा कर रहा है और राष्ट्रीय स्तर पर ऐसा कर उसने महत्वपूर्ण उदाहरण पेश किया है।
कृषि-पारिस्थितिकी तंत्र अधिक श्रमिक हितैषी और बहुत रचनात्मक है, इसलिए अधिक से अधिक लोगों को इस रचनात्मक आजीविका में शामिल होने का अवसर मिलता है। इच्छुक लोगों लोगों के लिए, कृषि-पारिस्थितिकी की रचनात्मक तस्वीर को समझने और इसके इस्तेमाल का एक निरंतर स्रोत है। यह विज्ञान शिक्षा, कृषि शिक्षा और युवाओं के लिए प्रकृति के बारे में सीखने का एक बहुत ही रचनात्मक स्रोत हो सकता है। तथ्य यह है कि इसे सीखना इतना दिलचस्प है कि यह स्कूल और कॉलेज दोनों स्तरों पर शिक्षा के मूल्य को बढ़ाता है।
यह दृष्टिकोण या राष्ट्रीय नीति किसानों को महंगे कृषि-रसायनों के खर्चों में कटौती करने में भी मदद करता है। ऐसे समय में यह पहलू बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है जब दुनिया भर के किसान लागत कम करने और कर्जों को चुकाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। इन परिवर्तनों के दौरान, क्यूबा में किसानों और वैज्ञानिकों ने महसूस किया कि उन्हें अपने अतीत से बहुत कुछ सीखना है। पीटर रॉसेट, जिन्होंने क्यूबा कृषि का बड़े पैमाने पर अध्ययन किया है, ने लिखा है, "लगभग हर किसान ने अपने मामले में बताया कि उन्होंने उन पुरानी तकनीकों को याद किया- जैसे कि इंटरकैपिंग और खाद कहते हैं- जिसे उनके माता-पिता और दादा-दादी आधुनिक रसायनों के आगमन से पहले इस्तेमाल करते थे, साथ ही साथ उन जैव-कीटनाशक और जैव-उर्वरक को जो उनकी उत्पादन प्रथाओं में सम्मिलित थे।”
एक और बहुचर्चित अध्ययन में, ओरेगॉन विश्वविद्यालय के मौरिसियो बेटनकोर्ट ने निष्कर्ष निकाला है कि... "हालांकि क्यूबा अभी भी कृषि के दायरे में और इसके बाहर कई चुनौतियों का सामना कर रहा है.... इस देश ने इतने कम बाहरी इनपुट संसाधनों के साथ जो हासिल किया है वह भी संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा आर्थिक, वाणिज्यिक और वित्तीय प्रतिबंधों के बावजूद, उल्लेखनीय सफलता है।”
दो वरिष्ठ कृषि-पारिस्थितिकीविदों, अल्टिएरी और फुन्स-मोनज़ोट ने इसे खास तौर पर दर्ज किया है कि अन्य देश भी क्यूबा से अधिक ऊर्जावान, कुशल, टिकाऊ, सामाजिक रूप से न्यायसंगत और लचीली कृषि प्रणाली की व्यवस्था को लागू करना सीख सकते हैं। "दुनिया के किसी भी अन्य देश ने कृषि में ऐसी सफलता के स्तर को हासिल नहीं किया है जो जैव विविधता की पारिस्थितिक सेवाओं का इस्तेमाल करता है और फूड मील, ऊर्जा का इस्तेमाल कम करता है, और प्रभावी रूप से स्थानीय उत्पादन और खपत चक्र को बंद कर देता है," उन्होंने 2012 में मंथली रिव्यू में क्यूबा में उठाए गए कदमों के बारे में विस्तार से लिखा था।
अब जबकि भारत अपनी कृषि प्रणाली में "सुधार" के लिए कदम उठा रहा है, तो भारत जैसे देश को क्यूबा से सीख लेने की जरूरत हैं, जहां पूरी दुनिया के सामने कृषि और किसान की तरक्की मिसाल बन कर उभरी है।
लेखक एक स्वतंत्र पत्रकार हैं जो कई सामाजिक आंदोलनों से जुड़े रहे हैं। व्यक्त विचार व्यक्तिगत हैं।
इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।
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