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दलित जितेंद्र की हत्या पहाड़ के लिए चेतावनी!

“दलित के घर शादी हुई और उसमें सामान्य लोग भी आ रहे हैं तो नियम के मुताबिक तथाकथित ऊंची जाति के लोग खाना बनाते हैं। फिर पहले सवर्ण समुदाय के लोग खाना खाते हैं, उसके बात दलितों को खाना खिलाया जाता है। दलित अपना खाना खुद नहीं निकाल सकते...।”
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“हिंदू हिंसक नहीं होता, अहिंसक होता है” इस मुद्दे पर हरिद्वार का संत समाज जिस समय आग-बबूला हो रहा था, उसी समय टिहरी के दलित युवक को हिंदुओं ने इतना पीटा, कि इलाज के दौरान उसने दम तोड़ दिया। सीताराम येचुरी ने रामायण-महाभारत की हिंसक घटनाओं को लेकर टिप्पणी की थी। जिस पर संत समाज हिंदुत्व का झंडा बुलंद कर रहा था। लेकिन जब टिहरी का एक दलित नौजवान मारा गया तो उन संतों ने कोई टिप्पणी नहीं की।

टिहरी के जौनपुर विकास खंड के बसाण गांव के 23 साल के जितेंद्र दास की हत्या इसलिए की गई क्योंकि एक शादी समारोह में वह सवर्णों के सामने कुर्सी पर बैठकर खाना खा रहा था। शादी भी दलित की थी। सवर्णों ने कुर्सी मांगी और जितेंद्र ने कुर्सी देने से इंकार किया। सवर्ण समुदाय के उन लोगों को ये बात इतनी नागवार गुजरी कि उन्होंने उसे इतनी बुरी तरह पीटा कि वो मरणासन्न हो गया। कुछ दिन बाद 5 मई को अस्पताल में जितेंद्र ने दम तोड़ दिया। ये घटना पहाड़ के समाज में छिपी बसी जातिवाद की वीभत्सता दर्शाती है।

राष्ट्र सेवादल और समता सैनिक दल से जुड़े ज़बर सिंह इस घटना के बाद पूरी पुलिसिया कार्रवाई पर सवाल खड़े करते हैं। उन्होंने इस मामले में चौकी इंचार्ज, एसएचओ और सीओ के खिलाफ़ एससी-एसटी एक्ट में लापरवाही बरतने पर एसडीएम को तहरीर भी दी है। जिसे वापस लेने का दबाव बनाया जा रहा है।

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ज़बर सिंह बताते हैं कि टिहरी के बसाण गांव का रहने वाला जितेंद्र दास 26 अप्रैल की रात को पड़ोस के कोट गांव में अपने ही रिश्तेदार की शादी में गया हुआ था। इसी रात को कुर्सी पर खाना खाने पर जितेंद्र को सवर्ण समुदाय के कुछ लोगों ने मना किया। शादी समारोह में भी मारपीट हुई,लेकिन लोगों ने बीच-बचाव कर दिया था। इसके थोड़ी ही देर बाद दबंग उसे समारोह से कुछ दूर ले गए।

मरणासन्न हालत में जितेंद्र को किसने घर तक पहुंचाया, ये पता नहीं चल सका। अगले दिन परिजन उसे अस्पताल ले गए। जहां से उसे हायर सेंटर रेफर किया गया। फिर देहरादून के इंद्रेश अस्पताल में भर्ती कराया गया। ज़बर बताते हैं कि करीब 12-14 लोग इस मारपीट में रहे होंगे। सात लोगों के खिलाफ नामजद रिपोर्ट दर्ज करायी गई। लेकिन पुलिस ने मामले में कुछ नहीं किया। 29 अप्रैल की रात को जब पुलिस पर दबाव बढ़ा तो एससी-एसटी एक्ट में मुकदमा दर्ज किया गया। लेकिन उसके बाद 5 मई तक पुलिस ठंडी पड़ी रही। ज़बर कहते हैं कि पुलिस ने जानबूझ कर मामले को टाला, इसका नतीजा ये निकला कि सारे गवाह मुकर गए। यहां तक कि जो लोग जितेंद्र के साथ बीच-बचाव में पिटे थे, वे भी अपने बयान से मुकर गए। उनका कहना है कि दबंगों ने मृतक के घर में भी जाकर धमकियां दीं।

ज़बर सिंह के मुताबिक भाजपा नेता इस मामले को हलका करने का दबाव बना रहे हैं। इसीलिए पुलिसवालों ने भी ढिलाई बरती। जबकि मारा गया जितेंद्र दास भाजपा विधायक खजान दास का रिश्तेदार भी था। जिस गांव में ये घटना हुई, उसके ठीक बगल में खजानदास का गांव झगेड़ी पड़ता है। खजान दास पर भी मामले को दबाने के आरोप है।

ज़बरसिंह कहते हैं टिहरी के जौनसार बावर समेत कुछ अन्य क्षेत्रों में पिछले दो-तीन साल से दलित मूवमेंट चल रहा है। जिससे सवर्ण समुदाय के लोगों में आक्रोश है। पिछले वर्ष सितंबर महीने में लखनलाल नाम के एक और व्यक्ति की हत्या हुई, लेकिन उसका शव नहीं मिला। उनका आरोप है कि स्थानीय भाजपा नेताओं के दबाव में पुलिस ने परिजनों से गुमशुदगी का मामला दर्ज कराया। ताजा घटना उसी का आक्रोश है। इसके अलावा जौनसार की तरह ही कुछ जगहें ओबीसी या एससी-एसटी बेल्ट घोषित हैं। जैसे जौनपुर में सवर्ण जातियां ओबीसी श्रेणी में आती हैं। जौनसार बावर में एसटी घोषित हैं। तो यहां अपर कास्ट को एसटी का सर्टिफिकेट मिलता है। तो इन जगहों पर इस तरह के झगड़ों में एससी-एसटी का मुकदमा दर्ज नहीं होता।

5 मई को जितेंद्र की मौत हुई थी। उस दिन हंगामा बढ़ा तो पुलिस ने तीन लोगों को गिरफ़्तार किया। 6 मई को 2 और लोग गिरफ्तार किए गए। सोमवार को टिहरी के एसपी पीड़ित परिवार से मिले।

कैसी होती है दलित की शादी

ज़बर सिंह बताते हैं कि दलित के घर शादी हुई और उसमें सामान्य लोग भी आ रहे हैं तो नियम के मुताबिक तथाकथित ऊंची जाति के लोग खाना बनाते हैं। फिर पहले सवर्ण समुदाय के लोग खाना खाते हैं, उसके बात दलितों को खाना खिलाया जाता है। दलित अपना खाना खुद नहीं निकाल सकते, क्योंकि उसे ऊंची जाति के व्यक्ति ने बनाया होता है। दोनों जातियों के खाने की जगहें भी अलग-अलग होती हैं। दलित समुदाय अपनी ही शादी में एक तरफ को खाना खाता है। वे सवर्णों के आगे कुर्सी पर नहीं बैठते। जितेंद्र के साथ ऐसा ही हुआ था। उससे कुर्सी मांगी गई और उसने कहा- भाई जी मैं खाना खा रहा हूं, इस पर सवर्ण समुदाय के लोगों को गुस्सा आ गया।

पहाड़ों में भी ऐसा होता है

सामाजिक कार्यकर्ता और मूल रूप से टिहरी निवासी गीता गैरोला कहती हैं कि पहाड़ों में भी बहुत जातिवाद है। ये बहुत ही शर्मनाक घटना है। उत्तराखंडियों को इससे सबक लेना चाहिए। वे कहती हैं कि हमारे यहां भी बहुत भेदभाव है। दलितों के साथ रोटी-बेटी का रिश्ता नहीं है। शादी ब्याह में अलग से खाना खिलाते हैं। पहले सवर्ण खाते हैं। दलितों के बनाए हुए मंदिर में लोग पूजा करते हैं लेकिन उन्हें मंदिर में नहीं घुसने देते। वे पुराना वाकया याद करती हैं कि जब 21 दिन तक सवर्णों ने दलित की बारात रोके रखी थी। पुलिस-पटवारी भी 21 दिन तक वहीं रुके रहे। सवर्ण अपने गांव के सामने से दलित की पालकी-डोली ले जाने को तैयार नहीं थे। गीता गैरोला कहती हैं कि वैसे तो ये चाचा-ताऊ जैसे रिश्ते लगाते हैं लेकिन घर में नहीं घुसने देते।

मुख्यमंत्री का बयान क्यों नहीं आया?

सामाजिक कार्यकर्ता दीपा कौशलम कहती हैं कि आपकी सामाजिक स्थिति और आर्थिक स्थिति ही आपको कमज़ोर या मजबूत बनाती है। यदि इसका कॉम्बीनेशन ही कमजोर हो तो सब हावी हो जाते हैं। वे कहती हैं कि पहाड़ में ये माना ही नहीं जाता था कि इस तरह का जातिगत भेदभाव होता है। लेकिन ये घटना बताती है कि पहाड़ी समाज में भी किस तरह की वीभत्सता छिपी हुई है।

दीपा कहती हैं कि निम्न जातियों के लोग अब थोड़े से विरोधी हो रहे हैं, अपने हक के लिए बोलने लगे हैं, इसीलिए इस तरह की प्रतिक्रियाएं सामने आ रही हैं। जब तक आप ऐसी चीजों को स्वीकार करते हो तब तक कुछ नहीं होता, लेकिन जब आप इसका विरोध करते हो तो इस तरह सबक सिखाने की कोशिश की जाती है। फिर ऐसी घटनाओं से दूसरे लोग डर जाते हैं।

दीपा खेद जताती हैं कि मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत का इस मामले पर कोई बयान नहीं आया। उन्होंने कोई संवेदनशीलता नहीं दिखायी।

न तो भाजपा, न ही कांग्रेस समेत अन्य दलों ने इस मामले पर मज़बूत तरीके से आवाज़ उठाई। कांग्रेस के किशोर उपाध्याय और सीपीआई-एमएल के इंद्रेश मैखुरी ने घटना की निंदा की।

मृतक के परिजन शव के साथ सीएम आवास कूच कर रहे थे, तो उन्हें रोक लिया गया। उन्होंने राज्यपाल बेबीरानी मौर्य से मिलने की कोशिश की,लेकिन मुलाकात नहीं हुई।

अलार्मिंग घटना

पहाड़ की ये घटना चौंकती है। देहरादून में साहित्यकार लाल बहादुर वर्मा कहते हैं कि पहाड़ में घटी ये घटना अलार्मिंग है। सिविल सोसाइटी को इस पर नोटिस लेना चाहिए। ये चीज यदि खत्म नहीं हुई, तो रोकी नहीं जा सकती, बल्कि ये समय के साथ बढ़ेगी ही। वर्मा कहते हैं कि ये बीज तो समाज में मौजूद हैं बस एक विस्फोट की जरूरत होती है। ऐसा ही टिहरी में हुआ और एक व्यक्ति पर गुस्सा उतर गया। वे कहते हैं कि जो मारा गया, उसमें भी मैं हूं, जिन्होंने मारा, उसमें भी मैं शामिल हूं।

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