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इतनी औरतों की जान लेने वाला दहेज, नर्सिंग की किताब में फायदेमंद कैसे हो सकता है?

हमारे देश में दहेज लेना या देना कानूनन अपराध है, बावजूद इसके दहेज के लिए हिंसा के मामले हमारे देश में कम नहीं हैं। लालच में अंधे लोग कई बार शोषण-उत्पीड़न से आगे बढ़कर लड़की की जान तक ले लेते हैं।
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image credit- Social media

नर्सिंग सालों से लोगों की सेवा करने का प्रोफेशन माना जाता है और हमारे देश में बड़ी संख्या में इस पेशे से महिलाएं जुड़ी हुई हैं। हाल ही में नर्सिंग से जुड़े एक पाठ्यक्रम का ऐसा विवाद सामने आया है जिसने एक बार फिर महिलाओं के अस्तित्व और दहेज की कुप्रथा को लोगों के बीच बहस का मुद्दा बना दिया है। इस कोर्स की एक किताब में दहेज प्रथा को समाज के लिए एक अच्छी रवायत बताने के साथ ही इसे लड़कियों के रूप संग जोड़ दिया गया है। यानी इस पाठ्यक्रम को पढ़ने वाली लड़की यदि गोरी या सुंदर नहीं हैं तो यह किताब उसके आत्मविश्वास को भी कम करने का काम कर सकती हैं।

बता दें कि ये पहली बार नहीं है जब किसी किताब में दहेज का महिमामंडन किया गया हो। इससे पहले भी साल 2017 में एक रेफरेंस बुक से ऐसा ही कॉन्टेंट सामने आया था, जिसमें इस कुप्रथा के लाभ बताए गए थे। उस किताब में भी ‘बदसूरत लड़कियों को पति मिलने में आसानी’, ‘गरीब वर्गों के मेधावी लड़कों को अपनी मेहनत का पे-बैक’, ‘बेटी को हाइयर क्लास में प्रवेश दिलाकर अपना दर्जा बढ़ाना’ और ‘बेटियों को पैतृक संपत्ति में अपना हिस्सा मांगने से रोककर परिवार में सद्भाव और एकता बनाना’ जैसी दलीलें दी गईं थी। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर क्या सोचकर समितियां इस तरह की किताब को पास होने देती हैं? क्या किताबें रूढ़िवाद सोच रखने वाले लोगों के लिए प्रचार का एक नया माध्यम बन गई हैं।

क्या है पूरा मामला?

सोशियोलॉजी फॉर नर्सिंग के पाठ्यक्रम में टीके इंद्राणी की किताब Textbook of Sociology for Nurses का एक चैप्टर सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रहा है। इसमें शीर्षक मेरिट ऑफ डाउरी यानी दहेज के लाभ के बारे में लिखा गया है। इसके तहत बताया गया है कि कैसे फर्नीचर, वाहन और रेफ्रिजरेटर जैसे उपकरणों के साथ दहेज नया घर स्थापित करने में मददगार है। दहेज का एक लाभ बताते हुए यह लिखा गया है कि यह लड़कियों के माता-पिता की संपत्ति में हिस्सा पाने का एक तरीका है। वहीं वायरल तस्वीर के सबसे आखिरी प्वाइंट में यह बताया गया है कि दहेज प्रथा बदसूरत दिखने वाली लड़कियों की शादी करने में मदद कर सकती है।

nursing book

किताब के मुताबिक ‘दहेज के बोझ के कारण, कई माता-पिताओं ने अपनी लड़कियों को शिक्षित करना शुरू कर दिया है। जब लड़कियां शिक्षित होती हैं या नौकरी करती हैं, तो दहेज की मांग कम होगी यानी दहेज के चलते लड़कियों में शिक्षा का प्रसार हो रहा है। इसमें दहेज को एक तरीके से अप्रत्याशित लाभ बताया गया है।

मालूम हो कि ये किताब बीएससी द्वितीय वर्ष के पाठ्यक्रम का हिस्सा है और इसे नई दिल्ली स्थित जेपी. ब्रदर्स मेडिकल पब्लिकेशन प्राइवेट लिमिटेड से प्रकाशित किया गया है। बुक के कवर पेज पर इसे इंडियन नर्सिंग काउंसिल यानी आईएनसी के सिलेबस के अनुसार लिखा होना बताया गया है, हालांकि पूरे विवाद के सामने आते ही आईएनसी ने इससे अपना पल्ला झाड़ लिया है।

भारतीय नर्सिंग परिषद ने क्या कहा?

डेक्कन हेराल्ड के अनुसार भारतीय नर्सिंग परिषद ने वायरल तस्वीर पर एक नोटिस जारी किया है। नर्सिंग पाठ्यक्रम की किताब के इस पेज के बारे में लिखते हुए भारतीय नर्सिंग परिषद ने कहा है कि वो देश के कानून के खिलाफ किसी भी अपमानजनक सामग्री की कड़ी निंदा करता है। साथ ही लिखा है कि भारतीय नर्सिंग परिषद की नीति के अनुसार किसी भी ऐसे लेखक या प्रकाशन का भी समर्थन नहीं करती है और न ही किसी लेखक को अपने प्रकाशनों के लिए भारतीय नर्सिंग परिषद के नाम का उपयोग करने की अनुमति देती है।

सोशल मीडिया से लेकर राजनीति के गलियारों तक दहेज के फायदे बतानेवाली इस किताब का खूब विरोध हो रहा है। वायरल पेज की फोटो को शिवसेना नेता और राज्यसभा सांसद प्रियंका चतुर्वेदी ने अपने ट्विटर अकाउंट से शेयर कर इस कंटेंट को शर्मनाक बताते हुए केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान से इस पुस्तक को पाठ्यक्रम से हटाने और कार्रवाई की मांग की है। उन्होंने इसे अपमानजनक और पुरानी विचारधारा को प्रसारित करने वाला बताया।

महिला आयोग ने लिया संज्ञान, कड़ी कार्रवाई की मांग

राष्ट्रीय महिला आयोग और दिल्ली महिला आयोग ने भी इस किताब पर कड़ी आपत्ति जताई है। आयोग ने केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान को पत्र लिखकर नर्सों के लिए समाजशास्त्र की पाठ्यपुस्तक के खिलाफ हस्तक्षेप और मामले पर कार्रवाई की मांग की है। आयोग ने अपने पत्र में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के सचिव राजेश भूषण को भी इस मामले में कार्रवाई करने और सात दिनों के भीतर आयोग को सूचित करने के लिए पत्र लिखा है।

राष्ट्रीय महिला आयोग ने इस मामले पर संज्ञान लेते हुए कहा है कि दहेज भारत में एक गहरी जड़ें जमा चुकी सामाजिक बुराई है। सरकार विभिन्न योजनाओं और कानूनों के माध्यम से महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए सभी प्रकार के प्रयास कर रही है, लेकिन गहरी जड़ वाली बुराई को सकारात्मक तरीके से चित्रित करना महिला सशक्तिकरण को कमजोर करेगा, ये चिंता का विषय है।

दिल्ली महिला आयोग ने भी इस मामले में पाठ्यपुस्तक को मंजूरी देने में शामिल संबंधित अधिकारियों के खिलाफ भी दंडात्मक कार्रवाई करने की मांग की है। आयोग की अध्यक्ष स्वाति मालीवाल ने शिक्षा मंत्री धर्मेेंद्र प्रधान को लिखे अपने पत्र के माध्यम से इस बात पर भी प्रकाश डाला कि यह ऐसी कोई एकमात्र घटना नहीं है। पत्र में छात्रों के मन पर किताबों में दहेज का महिमामंडन करने वाले ऐसे अंशों के प्रभाव के बारे में गंभीर चिंता व्यक्त की गई है।

स्वाति के अनुसार उन्होंने शिक्षा मंत्री से पाठ्यक्रम को ‘लैंगिक आधार पर समावेशी और संवेदनशील’ बनाने की भी सिफारिश की है। उन्होंने कहा कि ये चिंताजनक कदम भारत सरकार के ‘बेटी बचाओ और बेटी पढ़ाओ’ एजेंडे को पूरी तरह से नाकाम कर देता है।

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दहेज हिंसा के डरावने आंकड़े और पिदर शाही की दुनिया

गौरतलब है कि हमारे देश में आधी आबादी सीधे तौर पर बड़ी संख्या में नर्सिंग के पेशे से जुड़ी हुई हैं। ऐसे में नर्सिंग से जुड़ी समाजशास्त्र की किताब में ऐसी बातों का सामने आना महिलाओं को सशक्तिकरण की दिशा में एक कदम धकेल देता है। हम कह सकते हैं कि रूढीवाद के इस समाज में किताबों के ज़रिये सीधे-सीधे पितृसत्ता के पाठ को औपचारिक बनाया जा रहा है। साथ ही महिलाओं के लिए सुंदर और बदसूरत के खांके को जहन में उतार कर किताबों के जरिए लड़कियों को रूढ़िवाद की शिक्षा दी जा रही है, जिसे पितृसत्ता द्वारा तय किया गया है।

फिलहाल विवाद बढ़ने के बाद प्रकाशक ने अपनी पुस्तकों को बाजार से वापस मंगा लिया है और सफाई दी है कि वो बाते 5 दशकों से अधिक समय से चिकित्सा समुदाय की सेवा कर रहे हैं। भविष्य में ऐसी घटनाओं से बचने के लिए गंभीरता से काम करेंगे। लेकिन सवाल अब भी बरकरार है कि अखिर ऐसी किताबों को अनुमति ही क्यों दी जाती है और क्या महज़ किताबों को वापस मंगा लेने से उसे पढ़ने वाले लोगों की मानसिकता भी वापस बदल जाएगी।

बहरहाल, हमारे देश में दहेज लेना या देना कानूनन अपराध है, बावजूद इसके दहेज के लिए हिंसा के मामले हमारे देश में कम नहीं हैं। लालच में अंधे लोग कई बार शोषण-उत्पीड़न से आगे बढ़कर लड़की की जान तक ले लेते हैं। एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक साल 2018 और 2019 दोनों सालों में 7100 से ज्यादा महिलाओं की मौत दहेज हिंसा से हुई। साल 2020 में भारत में दहेज के 10,366 मामले दर्ज हुए, वहीं 6966 मौतें दहेज हिंसा से हुईं। ये तो सिर्फ वो मामले हैं जो कागज़ों पर रिपोर्ट हुए, वास्तव में इनकी संख्या कहीं ज्यादा है। ऐसे में ज़रा सोचिए कि भला इतनी सारी औरतों की हत्या की वजह को कोई लेखक-प्रकाशक कैसे महिमामंडित कर सकता है। जो कानूनन अपराध है, उसे कोई किताब फायदा कैसे बता सकती है, ये सिर्फ लापरवाही नहीं हो सकती है, बल्कि ये एक सोची-समझी तरकीब लगती है जो लड़कियों को सालों पुराने पिदर शाही की दुनिया में फिर से धकेलना चाहती है, उसे कमतर और बोझ महसूस करवाना चाहती है।

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