एनआरसी का आतंक : अभी और कितनों को बेवतन बनाया जाएगा!
असम की कुल तीन करोड़ तीस लाख की आबादी में क़रीब बीस लाख लोगों को बेवतन, बेमुल्क व बेसहारा घोषित करने के बाद राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) का आतंक अब देश के अन्य हिस्सों में फैलना शुरू हो गया है। कोलकाता, दिल्ली, मुंबई, लखनऊ, देहरादून, चंडीगढ़, भुवनेश्वर, चेन्नई, बंगलुरु व अन्य शहरों और क़स्बों में लोगों ने भारत की अपनी नागरिकता व निवास का सबूत देने के लिए ज़रूरी काग़ज़ात इकट्ठा करना/बनवाना शुरू कर दिया है या इस दिशा में सोचने लगे हैं। घबराहट, बेचैनी, अनिश्चित भविष्य, नागरिकता छीन लिये जाने, देश से बाहर खदेड़ दिये जाने की आशंका ने लोगों को—ख़ासकर मुसलमानों को—घेरना शुरू कर दिया है। एनआरसी अब आतंकवाद का रूप लेता नज़र आ रहा है। इसकी वजह से देश में गृहयुद्ध-जैसी स्थिति पैदा हो सकती है।
लेकिन केंद्र में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की सरकार व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह को इसकी रत्ती भर चिंता नहीं है। वे लोग हिंदुत्व फ़ासीवाद का वाहक बन चुके राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) को—जो ख़तरनाक ढंग से सांप्रदायिक, विभाजनकारी और विघटनकारी है—पूरे देश में लागू करने पर आमादा हैं। अमित शाह ने, जो भाजपा के अध्यक्ष भी हैं, पिछले दिनों कहा कि देश की जनता ने 2019 में फ़ैसला कर लिया है कि एनआरसी को लागू करना है, और जिनके नाम एनआरसी में नहीं होंगे, उन्हें क़ानूनी प्रक्रिया के बाद देश से बाहर निकाला जायेगा।
याद रहे, 2019 के लोकसभा चुनाव के ठीक पहले अमित शाह ने ‘घुसपैठियों’ (यहां पढ़िये मुसलमान) की तुलना दीमक से करते हुए कहा था कि ‘एक-एक घुसपैठिए’ (यहां पढ़िये मुसलमान) को पकड़ा जायेगा और उसे समुद्र में फेंक दिया जायेगा। उत्तर प्रदेश, हरियाणा व उत्तराखंड की भाजपा सरकारों के मुख्यमंत्रियों ने अपने-अपने राज्य में एनआरसी लागू करने का इरादा जताया है। पश्चिम बंगाल व दिल्ली में भाजपा एनआरसी लागू करने की मांग लगातार कर रही है। यह मांग कर्कश हो चली है। उड़ीसा के केंद्रपाड़ा ज़िले में पिछले दिनों एनआरसी की तर्ज पर ‘घुसपैठियों’ की ‘पहचान’ करने का अभियान चलाया गया था।
एनआरसी की प्रक्रिया और उससे जुड़ी नागरिकता-संबंधी बहस अब पूरी तरह से सांप्रदायिक और मुस्लिम-विरोधी हो चली है। भाजपा के नेता आये-दिन बयान देते फिर रहे हैं कि जिन हिंदुओं के नाम एनआरसी में शामिल होने से रह गये हैं, उनकी पूरी हिफ़ाज़त की जायेगी। भाजपा नेता कैलाश विजयवर्गीय ने, जो पार्टी की पश्चिम बंगाल राज्य इकाई के प्रभारी हैं, कुछ दिन पहले कहा कि एनआरसी लागू होगा, लेकिन एक भी हिंदू को देश नहीं छोड़ना होगा—‘हर एक हिंदू को नागरिकता दी जायेगी’।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सर्वेसर्वा मोहन भागवत भी कह चुके हैं कि असम में एनआरसी की अंतिम (फ़ाइनल) सूची में जिन हिंदुओं के नाम नहीं हैं, उनके साथ संघ मज़बूती से खड़ा है, और भारत के किसी भी हिस्से में रहनेवाले हिंदू को चिंतित होने की ज़रूरत नहीं है। (यानी चिंता सिर्फ़ मुसलमान को करनी है!)
भाजपा-आरएसएस के लिए एनआरसी का मतलब हो गया हैः हिंदू को नागरिकता दो, मुसलमान की नागरिकता छीन लो। भाजपा-आरएसएस और नरेंद्र मोदी-अमित शाह के लिए बांग्लादेश, पाकिस्तान व अफ़गानिस्तान से जान बचाकर भारत आया हुआ हिंदू या बौद्ध घुसपैठिया नहीं, शरणार्थी है, और वह भारत की नागरिकता का हक़दार है। जबकि ऐसी ही स्थिति में इन देशों से भारत आया हुआ मुसलमान शरणार्थी नहीं, घुसपैठिया है, और उसे देश से निकाल दिया जाना चाहिए। जिस तरह की हिंसक व डरावनी भाषा अमित शाह और अन्य भाजपा नेता बोल रहे हैं, उससे हिटलर के नाज़ी जर्मनी-जैसा ख़ौफ़नाक नज़ारा दिखायी देने की आशंका पैदा हो गयी है।
असम में एनआरसी की प्रक्रिया पूरी होते-होते, जुलाई 2018 से जून 2019 तक, कम-से-कम 50 लोग आत्महत्या कर चुके हैं, यह सोचकर कि एनआरसी में नाम न होने पर उन्हें कैसी यातना झेलनी पड़ेगी। असम में बड़े पैमाने पर नज़रबंदी केंद्र (डिटेंशन सेंटर) बनाये जा रहे हैं, जहां उन लोगों को रखा जायेगा जिनके नाम एनआरसी की अंतिम सूची में शामिल नहीं हैं। इन नज़रबंदी केंद्रों की नारकीय स्थितियां किसी नाज़ी जर्मन यातना केंद्र से कम नहीं हैं। ये नज़रबंदी केंद्र असम के उन क़रीब 20 लाख बाशिंदों का अपना जबड़ा खोले इंतज़ार कर रहे हैं, जिनके नाम एनआरसी की अंतिम सूची में शामिल नहीं हो पाये।
पश्चिम बंगाल में भी एनआरसी के ख़ौफ़ के चलते आत्महत्याओं का सिलसिला शुरू हो गया है। पश्चिम बंगाल पुलिस ने 24 सितंबर 2019 को बताया कि राज्य में कम-से-कम आठ व्यक्ति एनआरसी लागू होने की आशंका से पैदा हुए ख़ौफ़ की वजह से या तो मर गये या उन्होंने आत्महत्या कर ली। पुलिस का कहना है कि पड़ोसी राज्य असम में जिस तरह लाखों-लाख लोगों को एनआरसी से बाहर कर दिया गया, उसका पश्चिम बंगाल की जनता पर डरावना असर पड़ा है।
हालांकि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी कई बार कह चुकी हैं कि राज्य में एनआरसी लागू नहीं होगा, लेकिन लोगों को लग रहा है कि देर-सबेर यहां भी यह लागू होगा। इसलिए कोलकाता व राज्य के अन्य शहरों व क़स्बों में नगर निगमों व नगर पालिकाओं के दफ़्तरों और अन्य सरकारी दफ़्तरों के आगे रोज़ लोगों की लंबी-लंबी कतारें लग रही हैं—जन्म प्रमाणपत्र, निवास प्रमाणपत्र, मतदाता पहचानपत्र, राशन कार्ड, आदि ज़रूरी काग़ज़ात बनवाने या उन्हें अपडेट कराने के लिए, ताकि भारत की नागरिकता या निवास का सबूत दिया जा सके।
असम में एनआरसी ने बीस लाख नागरिकता विहीन लोगों की—भारत के अनाथ लोगों की—फ़ौज खड़ी कर दी है, जिनका भविष्य अनिश्चित और जीवन अंधकारमय है। वे आगे क्या रास्ता चुनेंगे, कहना मुश्किल है। भाजपा-नरेंद्र मोदी-अमित शाह पूरे देश में एनआरसी लागू कर क्या इसी तरह अनगिनत अनाथ, नागरिकता-विहीन, भविष्यहीन लोगों की कतार खड़ी करना चाहते हैं?
(लेखक वरिष्ठ कवि और राजनीतिक विश्लेषक हैं। यह उनके निजी विचार हैं।)
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