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हरियाणा विधानसभा चुनाव : वोटों का गणित और मुद्दों का घालमेल

चुनाव प्रचार में भाजपा राज्य में स्थानीय मुद्दों से इतर राष्ट्रवाद से जुड़े मुद्दे की ज्यादा चर्चा कर रही है, क्योंकि भाजपा को आशंका है कि अगर स्थानीय मुद्दों पर जोर रहा तो हरियाणा में जाट आरक्षण, बेरोजगारी, कृषि संकट जैसे मुद्दे हावी हो सकते हैं।
हरियाणा चुनाव

हरियाणा में विधानसभा चुनाव में मतदान की तारीख़ अब बिल्कुल नज़दीक आ गई है। 21 अक्टूबर को वोट डाले जाएंगे और 24 को वोटों की गिनती होगी। यहां इस विधानसभा चुनाव में मुख्य मुकाबला सत्तारूढ़ बीजेपी और विपक्षी दलों कांग्रेस, इंडियन नेशनल लोकदल और जननायक जनता पार्टी के बीच है।

हरियाणा विधानसभा चुनाव प्रचार में भाजपा राज्य में स्थानीय मुद्दों से इतर राष्ट्रवाद से जुड़े मुद्दे की ज्यादा चर्चा कर रही है, क्योंकि भाजपा को आशंका है कि अगर स्थानीय मुद्दों पर जोर रहा तो हरियाणा में जाट आरक्षण, बेरोजगारी, कृषि संकट जैसे मुद्दे हावी हो सकते हैं।

लोकसभा चुनाव में हुई जीत से भाजपा विधानसभा चुनाव में भी वही प्रदर्शन फिर दोहराने की उम्मीद में है, परन्तु भाजपा की यह राह इतनी आसान नहीं होने वाली है । क्योकि इन लोकसभा चुनावों में कांग्रेस हिसार सीट को छोड़कर सभी सीटों पर दूसरे स्थान पर रही है इसलिए माना जा रहा है कि विधानसभा में कांग्रेस और बीजेपी में ही सीधी टक्कर देखने को मिलेगी और जननायक जनता पार्टी के कारण बहुत सी सीटों पर त्रिकोणीय मुकाबला हो सकता है

पिछले विधानसभा और लोकसभा के चुनावी आंकड़े

90 सीटों वाली हरियाणा विधानसभा में 2005 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 42 फीसदी वोट लेकर 67 सीटों पर अपनी जीत हासिल की थी और इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) ने 26.77 प्रतिशत और भाजपा ने 10.36 फीसदी लेकर क्रमश: 9 और 2 सीटें जीती थीं। इसके बाद 2009 और 2014 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के वोट शेयर में लगातार गिरावट हुई और उसका वोट प्रतिशत 2009 में 35 फीसदी और 2014 में गिरकर 20.58 फीसदी हो गया

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भाजपा की 2005 और 2009 के चुनाव में स्थिति बहुत बेकार रही इन दोनों चुनावों में भाजपा को क्रमश: 10.36 और 9.04 फीसदी वोट मिले थे और दोनों ही चुनाव में 70 से अधिक सीटों पर जमानत भी जब्त हुई थी लेकिन 2014 के विधानसभा चुनाव में भारी बढ़त बनाते हुए भाजपा ने 33 फीसदी वोट पाकर 47 सीटे जीती और मनोहर लाल खट्टर के नेतृत्व में सरकार बनाई

इसी प्रकार राज्य की मुख्य पार्टी इंडियन नेशनल लोकदल (इनलो) के चुनावी आंकड़े बताते है कि इनलो के पिछले तीन विधानसभा चुनाव भले सीटों कि संख्या के मामले में ऊपर नीचे रहे हो परन्तु उसका वोट बैंक लगभग एक जैसा ही रहा है, इनलो का वोट शेयर 2005 में 26.77 फीसदी, 2009 में 25.79 फीसदी और पिछले विधानसभा चुनाव 2014 में 24.11 फीसदी रहा था।

लोकसभा चुनाव

हरियाणा में लोकसभा चुनाव के आंकड़े हैरान करने वाले थे क्योंकि भाजपा ने 10 में से 10 सीटें जीतीं और अन्य विपक्षी दाल जीरो पर सिमट गए। पिछले लोकसभा चुनाव में इंडियन नेशनल लोकदल को 24.4 फीसदी वोट के साथ दो सीट मिली थी, जबकि कांग्रेस 23 फीसदी वोट शेयर के साथ 1 सीट जीतने में सफल हुई थी।

हरियाणा में वोट प्रतिशत की बात करे तो लोकसभा चुनाव में बीजेपी को 58.02 प्रतिशत, कांग्रेस को 28.42 प्रतिशत, इंडियन नेशनल लोकदल को 1.89 प्रतिशत वोट मिले, इनेलो के वोट में भारी गिरावट का कारण पार्टी में हुई फूट रहा है, इनलो से अलग होकर नई बनी पार्टी जननायक जनता पार्टी को पहली बार में ही 4.90 फीसदी वोट मिले ।

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वोटों के गणित में होने वाले बदलावों को देखने के बाद यह साफ जाहिर होती है कि दूसरे दलों को होने वाले नुकसान का अधिकतम फायदा बीजेपी कि तरफ शिफ्ट हुआ है। 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के वोट प्रतिशत में पिछले विधानसभा और लोकसभा चुनाव के मुकाबले बढ़ोतरी तो देखी गयी लेकिन लोकसभा चुनाव के बाद कांग्रेस खेमे में हुई गुटबाजी से स्थिति खराब हुई है।

भाजपा ने भले ही नारा 75 पार का दिया है पर उसके लिए जीत इतनी भी आसान नहीं है तभी भाजपा अपना चुनाव प्रचार राज्य के मुद्दे न रखकर, राष्ट्रवादी मुद्दों पर चुनाव लड़ रही है।

बीजेपी को जाट बनाम गैर-जाट की राजनीति का फायदा हुआ?

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि जाट बनाम ग़ैर-जाट का मुद्दा सालों से था तो लेकिन इसका असर नतीजों पर नहीं था। लोकसभा चुनावों में विपक्ष बिखरा हुआ था, कांग्रेस की गुटबाज़ी के अलावा इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) का बिखराव भी एक फैक्टर था। उसके दो-फाड़ होने के बाद जो वेक्यूम (खाली जगह) आया, उसे कांग्रेस नहीं भर पाई जिसकी वजह से जाट वोट दुविधा की वजह से बंट गए कि वे इनेलो में जाएं या कांग्रेस में और बड़ी संख्या में जाटों ने भी बीजेपी को वोट दिया जिसके कारण बीजेपी के वोट शेयर में भारी बढ़ोतरी हुई।

इंडियन नेशनल लोकदल और जननायक जनता पार्टी कि राजनीति और भविष्य

हरियाणा में आमतौर पर त्रिकोणीय मुक़ाबला होता रहा है जिसमें इनेलो प्रमुख ओम प्रकाश चौटाला की एक भूमिका होती थी परन्तु चौधरी देवीलाल की विरासत पर चल रही पार्टी अचानक 2018 दो फाड़ हो गई और ओमप्रकाश चौटाला के पौत्र दुष्यंत चौटाला ने अलग होकर जननायक जनशक्ति पार्टी बना ली। दुष्यंत चौटाला ने पार्टी को कब्जे में लेने में काम पर जोर लगाते हुए नई पार्टी बनाई और अपने मुद्दों और विजन के साथ लोगो के बीच निरंतर रहे है जिसके कारण इनेलो के लोग अलग होकर जेजेपी में शिफ्ट होते गए हैं, जींद चुनाव नतीजों ने भी जेजेपी को इनेलो के उत्तराधिकारी के रूप में स्वीकार्यता दी है।

वहीं दूसरी और इनेलो संभाल रहे अभय चौटाला की इतनी स्वीकार्यता नहीं है हालांकि उनके पिता ओम प्रकाश चौटाला को भी अपनी स्वीकार्यता बनाने में वक्त लगा था जब देवीलाल ने उन्हें अपना उत्तराधिकारी बनाया तो उनके ख़िलाफ़ पार्टी में भी विद्रोह हुआ था और एमएलए पार्टी छोड़ गए थे और आज एक बार फिर वही स्थिति है। जिसके कारण लोकसभा चुनाव में भी इनेलों के अवसान का नज़ारा देखने को मिला है।

इसके अलावा इनलो के कमज़ोर होने का एक कारण ओम प्रकाश चौटाला के जेल जाने, भ्रष्टाचार के आरोप आदि भी रहे। उनकी गैर मौजूदगी में बाक परिवार में कलह हो गया और पार्टी विभजित हो गयी।

बीजेपी दोहरा पाएगी विधानसभा में प्रदर्शन

इन लोकसभा चुनावों में कांग्रेस हिसार सीट को छोड़कर सभी सीटों पर दूसरे स्थान पर रही थी इसलिए माना जा रहा है कि विधानसभा में कांग्रेस और बीजेपी में ही सीधी टक्कर देखने को मिलेगी और जननायक जनता पार्टी भी पूरी टक्कर देगी।

चुनावी विश्लेषक मानते है कि विधानसभा के नतीजे लोकसभा से थोड़े अलग होंगे क्योंकि मतदाता समझदार हैं कि उसे पंचायत चुनाव में किसे चुनना है, नगर निगम में किसे चुनना है और लोकसभा में किसके लिए वोट करना है। लोकसभा चुनावों से ठीक पहले हुए तीन राज्यों के विधानसभा चुनाव जिनमे राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ जिनमे बीजेपी की सरकार थी उसमें जनता ने भाजपा को हटाकर कांग्रेस के हाथों में सत्ता दी परन्तु कुछ महीनों बाद हुए लोकसभा चुनावों में भाजपा की जीत हुई।

लोकसभा में लोग उम्मीदवार के नाम पर कम और राष्ट्रीय मुद्दों और मोदी के नाम पर वोट कर रहे थे इसलिए तो अभी नतीजों को लेकर कुछ साफ़ नहीं कहा जा सकता ।

यदि विपक्षी दल राज्य के मुद्दों को लेकर जनता के बीच जाकर ठीक से प्रचार करते हैं तो बीजेपी को लोकसभा चुनाव की तरह इतिहास दोहराना बहुत मुश्किल होगा और हो भी सकता है कि भाजपा को मुँह की भी खानी पड़े।

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