छत्तीसगढ़: पंचायत सचिवों की अनिश्चितकालीन हड़ताल, बघेल सरकार पर वादाख़िलाफ़ी का आरोप
छत्तीसगढ़ में चुनावी समर के बीच कांग्रेस की भूपेश बघेल सरकार प्रदेश के तमाम पंचायत कार्यालयों पर जड़े तालों की चुनौती का सामना कर रही है। ये ताले पंचायत सचिवों के कामकाज ठप कर बीते 16 मार्च से अनिश्चितकालीन हड़ताल पर चले जाने के कारण लगे हैं। सचिवों का कहना है कि कांग्रेस के चुनावी घोषणा पत्र से लेकर खुद मुख्यमंत्री बघेल के मंच तक कई बार स्थाईकरण का वादा किए जाने के बाद ही इस पर कोई कार्यवाही नहीं हुई है। जिसके चलते अब 10 हजार से ज्यादा पंचायत सचिवों को मजबूरी में कामकाज बंद कर सड़कों पर अपने अधिकारों के लिए उतरना पड़ा है।
बता दें कि पंचायत सचिव संघ छत्तीसगढ़ के बैनर तले हो रहे इस प्रदर्शन और अनिश्चिकालिन हड़ताल को 25 दिन से अधिक का समय बीत गया है लेकिन सरकार ने अभीतक इस पर चुप्पी साधी हुई है। बीते दिनों सरकार ने कड़ा रुख अपनाते हुए सभी हड़ताली पंचायत सचिवों को 24 घण्टे के भीतर हड़ताल समाप्त कर कार्य में लौटने निर्देश जारी किया था। हालांकि इसके जवाब में इन प्रदर्शनकारियों ने सरकार के नोटिस की प्रतियों को ही फूंक कर अपना विरोध जारी रखा है।
क्या है पूरा मामला?
पंचायत सचिव संघ तिल्दा के ब्लॉक अध्यक्ष चिंतामणि साहू ने न्यूज़क्लिक को पूरे मामले की जानकारी देते हुए बताया कि ये प्रदर्शन प्रदेश में पहली बार नहीं हो रहे। बीते कई सालों से पंचायत सचिव लगातार अपनी मांगों को लेकर आंदोलनरत हैं, लेकिन सरकार हर बार आश्वासन देकर बात को टालती नज़र आती है। सभी पंचायत सचिव सालों से केवल एक ही मांग करते आ रहे हैं कि उन्हें परिवीक्षा अवधि (Probation period) के बाद शासकीयकरण यानी पक्का किया जाए।
चिंतामणि के मुताबिक कांग्रेस ने सत्ता में आने से पहले इस मुद्दे को अपने घोषणा पत्र में शामिल किया था। साल 2020 के आंदोलन के दौरान भी मुख्यमंत्री ने खुद पंचायत सचिवों के प्रतिनिधि मंडसे मिलकर दिसंबर 2021 तक सभी पंचायत सचिवों के शासकीयकरण का आश्वासन दिया था, जिसके बाद 42 दिन चली हड़ताल को खत्म किया गया। इसके बाद एक बार फिर 29 मार्च 2022 को रायपुर के इंडोर स्टेडियम में पंचायत सचिव/शिक्षक सम्मेलन के समय मुख्यमंत्री ने मंच से पंचायत सचिव के शासकीयकरण की घोषणा की थी।
इसी कड़ी में साल बीते 17 फरवरी को पंचायत मंत्री रविंद्र चौबे द्वारा भी पंचायत सचिवों के 70 से अधिक प्रतिनिधि मंडल के समक्ष शासकीयकरण को आगामी बजट में पूर्ण करने हेतु आश्वस्त किया गया था। लेकिन जब सरकार का 6 मार्च को बजट पेश हुआ तो उसमें इससे जुड़ा कोई प्रावधान नहीं था। जिसके चलते सभी में निराशा और रोष दोनों है।
पंचायत सचिवों की समस्या और सरकार को चुनौती
मालूम हो कि छत्तीसगढ़ के 70 विधायकों द्वारा भी पंचायत सचिवों के शासकीयकरण की अनुशंसा की गई है। फिलहाल प्रदेश में 11644 पंचायत कार्यालय में ताला लटका हुआ है और करीब 11 हज़ार सचिव हड़ताल पर हैं। इन प्रदर्शनकारियों के मुताबिक पंचायती ग्राम पंचायत में कार्यरत पंचायत सचिव 27 वर्ष नियमित कार्य करने के बाद भी शासकीय सेवक नहीं है। वहीं इन सचिवों के साथ नियुक्त अन्य विभाग के कर्मचारी जैसे शिक्षाकर्मी/वनकर्मी/लोक निर्माण विभाग के कर्मियों का शासकीयकरण कर दिया गया है।
अलग-अलग ब्लॉक स्तर पर हड़ताल पर बैठे कई प्रदर्शकारियों ने न्यूज़क्लिक को बताया कि इनका मानदेय काम के अनुसार बहुत कम है और कई बार तीन-तीन महीने की देरी से मिलता है। इसके अलावा इनके काम के लिए 1 से 30 तारीख के हिसाब से भुगतान नहीं होता बल्कि इनकी गिनती महीने की 15 तारीख से लेकर अगले 16 तक की होती है। साथ ही अन्य सुविधाएं जैसे ओपीएस,चिकित्सा भत्ता, अर्जित अवकाश, टीए, क्रमोन्नति-पद्दोन्नति,बीमा,ग्रेजयुटी से भी ये लोग वंचित हैं।
गौरतलब है कि पंचायती राज ग्रामीण भारत की रीढ़ है। ऐसे में इन सचिवों के हड़ताल पर जाने से पूरे प्रदेश में पंचायत का काम-काज लगभग रुक सा गया है। सरकार अगर जल्द ही इनकी मांगों पर ध्यान नहीं देती और ये लोग वापस काम पर नहीं लौटे, तो निश्चित ही पंचायतों में होने वाले विकास कार्य सहित अन्य कार्यों में भी परेशानी बढ़ जाएगी। जिसका खामियाजा ग्रामीण जनता के साथ आने वाले चुनावों में कांग्रेस सरकार को भुगतना पड़ सकता है।
सचिवों की हड़ताल की कुछ और तस्वीरें :
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