स्वास्थ्य बजट 2021-22 में जनता को दिया गया झांसा
रवि दुग्गल लिखते हैं कि स्वास्थ्य बजट से बहुत उम्मीदें थीं, लेकिन आखिरकार यह मात्र एक खोखला दावा निकला।
स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय को 2021-22 के लिए 71269 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया है। अगर हम इसमें आयुष और स्वास्थ्य शोध के लिए आवंटित पैसे को भी मिला दें, तो यह आंकड़ा महज़ 76,902 करोड़ रुपये तक ही पहुंचता है। यह कुल बजट का 2.21 फ़ीसदी हिस्सा है। जबकि 2020-21 के बजट में स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए आवंटित पैसे की हिस्सेदारी 2.27 फ़ीसदी थी, जो अंतिम संशोधित (RE) अनुमानों में 2.47 फ़ीसदी रही।
साफ़ है कि आने वाले साल में स्वास्थ्य पर होने वाले खर्च में कोई बढ़ोत्तरी नहीं होगी। 2020-21 में संशोधित अनुमानों की जो बढ़ोत्तरी हुई थी, वह भी कोरोना से पैदा हुए आपात हालातों के चलते हुई थी।
कोरोना आपात प्रतिक्रिया आवंटन सिर्फ़ 2020-21 के लिए ही हुआ है। 2021-22 के लिए यह नदारद है। 2020-21 का कोरोना आपात प्रतिक्रिया आवंटन कुछ इस तरीके से था:
- नेशनल सेंटर फॉर डिसीज़ कंट्रोल: 95 करोड़ रुपये
- कोविड-19 प्रतिक्रिया की आपूर्तियों के लिए: 4,724 करोड़ रुपये
- NRHM के अंतर्गत कोविड-19 खर्च: 6,935 करोड़ रुपये
- स्वास्थ्य और पहली पंक्ति में काम करने वाले कर्मचारियों के लिए कोविड वैक्सीन खर्च: 360 करोड़ रुपये
- कोरोना शोध के लिए सहायता: 2100 करोड़ रुपये
इन सभी खर्चों को मिलाने पर कुल आंकड़ा 14,217 करोड़ रुपये पहुंचता है, लेकिन इसमें से कितना खर्च किया जाएगा, उसका पता सिर्फ अगले साल ही लग सकेगा।
पहली सूची में हाल में पेश किए गए बजट का ऊपरी ब्योरा है, इससे पता चलता है कि कोरोना के जवाब में 2020-21 के बजट आवंटन में 23 फ़ीसदी की बढ़ोत्तरी की गई थी, लेकिन 2021-22 के आवंटन में 2020-21 के संशोधित अनुमानों की तुलना में दस फ़ीसदी की कमी कर दी गई है। जबकि अभी कोरोना खत्म नहीं हुआ, इसलिए मुख्य स्वास्थ्य बजट में हुई यह कटौती चौंकाने वाली है।
टेबल 1: 2019-20 से लेकर 2021-22 तक केंद्रीय सरकारी स्वास्थ्य बजट। स्त्रोत: बजट खर्च 2021-22 वॉल्यूम-2, वित्तमंत्रालय, भारत सरकार, 2021।
हालांकि 2021-22 के बजट में स्वास्थ्य सेवाओं के लिए वित्तमंत्रालय के तहत दो अतिरिक्त मदों को जोड़ा गया है। इन्हें विशेष अनुदान नाम दिया गया है। पहली मद में कोविड वैक्सीन के लिए जरूरत के वक़्त 35000 करोड़ रुपये का प्रवधान है। दूसरी मद के तहत 15वें वित्त आयोग द्वारा स्वास्थ्य क्षेत्र को दिया गया 13,192 करोड़ रुपये का विशेष अनुदान शामिल है। लेकिन 2020-21 में कोरोना आपात प्रतिक्रिया आवंटन की तरह यह भी सिर्फ़ एक बार का आवंटन है, ना कि इसे स्वास्थ्य बजट का आंतरिक हिस्सा बनाया गया है।
वित्तमंत्री ने केंद्रप्रायोजित पीएम आत्मनिर्भर स्वस्थ्य भारत योजना को लाए जाने की भी घोषणा की है। इसके लिए अगले 6 सालों में 64,180 करोड़ रुपये का आवंटन किया जाएगा, जो NHM बजट के अतिरिक्त होगा। इसके बारे में उन्होंने विस्तार से बताया।
इससे प्राथमिक, द्वितीयक और तृतीयक स्वास्थ्य सुविधा ढांचों की क्षमताओं का विकास और मौजूदा राष्ट्रीय संस्थानों को मजबूत किया जाएगा। साथ ही नए संस्थान बनाए जाएंगे, ताकि नई उभरने वाली बीमारियों की खोज और उनके इलाज़ की क्षमताएं विकसित हो सकें। योजना के मुख्य हिस्से कुछ इस तरह हैं:
1) 17,788 ग्रामीण और 11,024 शहरी स्वास्थ्य और कल्याण केंद्रों को मदद
2) 11 राज्यों के सभी जिला और 3382 ब्लॉक सार्वजनिक स्वास्थ्य केंद्रो में लैब का निर्माण
3) 12 केंद्रीय संस्थानों और 602 जिलों में "क्रिटिकल केयर हॉस्पिटल ब्लॉक" की स्थापना
4) नेशनल सेंटर फॉर डिसीज़ कंट्रोल (NCDC), इसकी पांचों क्षेत्रीय शाखाओं और 20 मेट्रोपॉलिटिन स्वास्थ्य निगरानी यूनिटों को मजबूत किया जाएगा
5) सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को सभी सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रयोगशालाओं से जोड़ने के लिए समग्र स्वास्थ्य जानकारी पोर्टल का विस्तार
6) देश में प्रवेश करने वाले बिंदुओं, मतलब 32 एयरपोर्ट, 11 बंदरगाह और पड़ोसी देशों के साथ प्रवेश के 7 बिंदुओं पर मौजूदा 33 सार्वजनिक स्वास्थ्य ईकाईयों को मजबूत किया जाएगा, साथ ही 17 नई सार्वजनिक स्वास्थ्य ईकाईयों की स्थापना की जाएगी।
7) 15 स्वास्थ्य आपात ऑपरेशन केंद्रों की स्थापना
8) देशव्यापी समग्र स्वास्थ्य व्यवस्था (वन हेल्थ) के लिए एक राष्ट्रीय संस्थान, WHO दक्षिण पूर्व क्षेत्र के लिए एक क्षेत्रीय शोध मंच, 9 बॉयो सेफ्टी लेवल-III लैब और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वॉयरोलॉजी के 4 क्षेत्रीय केंद्रों की स्थापना की जाएगी।
लेकिन बजट का दस्तावेज़ इन चीजों को किसी भी आवंटित में प्रदर्शित नहीं करता है। तो कहा जा सकता है कि यह सिर्फ एक घोषणा ही है।
2021-22 के स्वास्थ्य बजट ने नागरिकों की उन उम्मीदों पर पानी फेरा है, जिसमें वे आशा कर रहे थे कि कोविड संकट से सरकार सार्वजनिक स्वास्थ्य ढांचे में बदलाव लाने के लिए प्रेरित होगी और हम स्वास्थ्य बजट के GDP के 2.5 फ़ीसदी होने के लक्ष्य के ज़्यादा पास पहुंच सकेंगे।
हम इससे अभी काफ़ी दूर हैं। ऊपर से लोगों की जिंदगी और स्वास्थ्य में बदलाव लाने की कोई राजनीतिक इच्छाशक्ति ही दिखाई नहीं देती। अब हम इंतज़ार करते हैं और देखते हैं कि राज्यों के स्वास्थ्य बजट में क्या पेश किया जाता है।
यह लेख मुख्य: द लीफ़लेट में प्रकाशित हुआ था।
(रवि दुग्गल स्वास्थ्य शोधार्थी, सामाजिक कार्यकर्ता और समाजविज्ञानी हैं। वे पीपल्स हेल्थ मूवमेंट से जुड़े हैं। यह उनके निजी विचार हैं।)
इस लेख को मूलत: अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें।
अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।