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कड़ी कार्रवाई के बावजूद सूडान में सैन्य तख़्तापलट का विरोध जारी

सुरक्षा बलों की ओर से बढ़ती हिंसा के बावजूद अमेरिका और उसके क्षेत्रीय और पश्चिमी सहयोगियों के साथ-साथ संयुक्त राष्ट्र भी बातचीत का आह्वान करते रहे हैं। हालांकि, सड़कों पर "कोई बातचीत नहीं, कोई समझौता नहीं, कोई सत्ता की भागीदारी नहीं" के नारे गूंज रहे हैं।
Sudan

सूडान में लोकतंत्र समर्थक आंदोलन पर कार्रवाई शनिवार, 15 जनवरी को भी जारी रही, क्योंकि सुरक्षा बलों ने तख़्तापलट विरोधी और भी ज़्यादा प्रदर्शनकारियों को हिरासत में ले लिया था। 13 जनवरी के प्रदर्शनों के दौरान प्रदर्शनकारी घायल हो गये थे और जब उन्हें गिरफ़्तार किया गया, उस समय वे ईस्ट ख़ार्तूम के बुरी स्थित रॉयल केयर अस्पताल से निकल रहे थे।

कथित तौर पर अस्पताल के बाहर सादे कपड़ों में तैनात लोगों ने उन घायल प्रदर्शनकारियों को उनके साथियों के साथ गिरफ़्तार कर उन्हें बिना नंबर प्लेट वाले गाड़ियों में अज्ञात स्थानों पर ले जाया गया था।  

गिरफ़्तार लोगों में 17 साल के मोहम्मद एडम उर्फ़ तुपैक भी शामिल हैं, जिनका अस्पताल में दो गोली लग जाने के सिलसिले में इलाज चल रहा है। उन पर एक पुलिस ब्रिगेडियर जनरल की कथित हत्या का आरोप लगाया जा रहा है, जिसकी पुलिस के मुताबिक़ 13 जनवरी को किसी प्रदर्शनकारी ने चाकू मारकर हत्या कर दी थी।

कई पर्यवेक्षकों ने इस मामले में उस बात का ज़िक़्र करते हुए गड़बड़ी का संदेह जताया है कि 13 जनवरी को पुलिस ने पहले ही एक ऐसे प्रदर्शनकारी को गिरफ़्तार करने और उसके क़ुबूलनामे का बयान लेने का दावा किया था, जिस पर मूल रूप से उस पुलिस अधिकारी को चाकू मारने का आरोप लगाया गया था।

उसी दिन 21 साल के एल रयेह मोहम्मद को पेट में गोली मार दी गयी थी। 25 अक्टूबर को सैन्य तख़्तापलट के बाद से सुरक्षा बलों की ओर से मारे जाने की पुष्टि करते हुए एल रयेह मोहम्मत 64वें प्रदर्शनकारी बने। कई दर्जन दूसरे लोग चलायी जा  रही गोलियों, आंसू गैस के कनस्तरों और हथगोलों से घायल हुए थे। इन हथियारों को सुरक्षा बल सीधे-सीधे प्रदर्शनकारियों के शरीर पर दाग रहे हैं।

ख़बर है कि ज़्यादातर घायल ख़ार्तूम स्टेट के तीन शहरों से थे। राजधानी ख़ार्तूम सिटी में कई मुहल्लों से शुरू हुई रैलियां भारी सुरक्षा घेरे को तोड़ते हुए राष्ट्रपति भवन, सेना प्रमुख और तख़्तापलट करने वाले नेता अब्देल फ़तह अल-बुरहान की कुर्सी तक पहुंच गयी थी। इधर, प्रदर्शनकारियों को सेना के वाहनों से घेर लिया गया और बलपूर्वक तितर-बितर कर दिया गया।

पड़ोसी ख़ार्तूम नॉर्थ और ओमदुर्मन के प्रदर्शनकारियों को इस स्थल तक पहुंचने से रोकने के लिए सेना ने गोलियां चलायी थीं। सेना ने नील नदी से अलग होते तीन शहरों को जोड़ने वाले पुलों की नाकेबंदी कर दी थी।

ख़ार्तूम नॉर्थ में प्रतिरोध समितियों ने दावा किया कि रिहा होने से पहले कई प्रदर्शनकारियों को हिरासत में ले लिया गया और उन्हें पीटा गया और उन पर चाकू से हमला किया गया। सूडान के पूर्व-मध्य क्षेत्र में स्थित एल गेज़िरा स्टेट की राजधानी वाड मदनी से भी गोलीबारी की सूचना मिली थी।

रेडियो दबंगा ने बताया कि देश भर के कई दूसरे स्टेट के शहरों में भी बड़े पैमाने पर प्रदर्शन होते देखे गये हैं, जिनमें कसला, ब्लू नील शामिल है, जबकि नील, सेनार, रीवर नील और साउथ कोर्डोफ़न और दारफ़ुर क्षेत्र के अशांत स्टेट भी इसमें शामिल हैं।

लाल सागर, नॉर्थ कोर्डोफ़न और नॉर्थ दारफ़ुर स्टेट में एक दिन पहले 12 जनवरी को प्रदर्शन होते देखा गया था, जब तख़्तापलट के बाद से एक नियमित प्रतिरोध आम क़वायद बन गयी है, जबकि 'मार्च ऑफ़ मिलियन्स' का यह दौर मूल रूप से निर्धारित किया गया था।

"प्रतिरोध समितियों ने सड़कों पर नियंत्रण कर रहे सुरक्षा बलों को अपना दम दिखा दिया "

ख़ार्तूम के पड़ोस में नियमित रूप से प्रतिरोध समिति की बैठकों में भाग लेने वाले एक प्रदर्शनकारी ने कहा, "हालांकि, विरोध शुरू होने के ठीक एक घंटे पहले, प्रतिरोध समितियों ने यह ऐलान कर दिया था कि विरोध को 13 जनवरी तक के लिए स्थगित कर दिया गया है। जो हज़ारों लोग पहले ही निकल चुके थे, उन्होंने तुरंत सड़कों से पीछे लौट गये थे, जबकि अन्य घर पर ही रहे।"

इसके बाद जो कुछ हुआ, वह पुलिस, सेना और मिलिशिया के लिए शर्मिंदगी भरा था। पुलों की नाकेबंदी और संचार माध्यम को काटे जाने के साथ-साथ सभी मुख्य सड़कों पर सैन्य बलों की तैनाती कर दी गयी थी, ऐसा सिर्फ़ इस इत्मिनान के लिए किया गया था कि विरोध स्थगित हो सके और कोई भी नहीं आ-जा सके। उनका कहना था कि इससे दो अहम निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं।

"उन्होंने कहा कि सबसे पहली बात तो "प्रतिरोध समितियों ने सड़कों पर नियंत्रण कर रहे सुरक्षा बलों के सामने अपना दम दिखा दिया। इससे पता चल गया कि सड़कों पर अराजकता नहीं है, वे बेहद संगठित हैं और उनके पास बहुत असरदार नुमाइंदगी है। दूसरी बात यह दिखती है कि सरकार के पास इस विरोध आंदोलन को लेकर निम्न स्तर की ख़ुफ़िया जानकारी है। सुरक्षा बल इसमें घुसपैठ करने में पूरी तरह नाकाम रहे हैं। हम में से बहुत से लोग एक दिन पहले से जानते थे कि आख़िरी समय में विरोध को स्थगित कर दिया जायेगा। लेकिन, ऐसा लग रहा था कि सुरक्षा बलों को इसे  लेकर कोई सुराग़ तक नहीं था। वे सिर्फ़ फ़ेसबुक पर बयान पढ़ते रहे।"

प्रतिरोध समितियों के तय किये गये वक़्त और तारीख़ों पर लाखों प्रदर्शनकारी सूडान की सड़कों पर उतर रहे हैं। 12 जनवरी को प्रतिरोध समितियों ने अपनी इस ताक़त को दिखा दिया कि एक निर्धारित विरोध प्रदर्शन से एक घंटे पहले भी उनका संगठन यह सुनिश्चित कर सकता है कि एक संगठित सुरक्षा बल को सामना करने के लिए ख़ाली सड़कों के अलावा कुछ नहीं मिलता।

गिरफ़्तारी की एक श्रृंखला ने कथित तौर पर प्रतिरोध समितियों के लोगों को निशाना बना लिया है। हालांकि, सुरक्षा बलों की ओर से की जा रही हत्याओं, अंग-भंग और गिरफ़्तारियों ने भी इस विरोध आंदोलन को विचलित नहीं कर पाया है, जो कि इस समय सोमवार, 17 जनवरी को एक और 'मार्च ऑफ़ मिलियन्स' के लिए लामबंद रहे है।

सूडानी डॉक्टरों की केंद्रीय समिति (CCSD) ने ऐलान कर दिया है कि तख़्तापलट की अगुवाई करने वाले सैन्य जनरलों को उखाड़ फेंकने के इस विरोध आंदोलन के आह्वान पर बार-बार अमल करते हुए डॉक्टर और चिकित्सक भी जुलूस निकालते रहेंगे। पिछले विरोध प्रदर्शनों के दौरान ड्यूटी पर तैनात अस्पतालों और चिकित्सा कर्मचारियों पर हमलों की निंदा करने को लेकर भी जुलूस निकाले गये थे।

पूर्वी भूमध्यसागरीय विश्व स्वास्थ्य संगठन के क्षेत्रीय निदेशक डॉ अहमद अल-मंधारी ने 11 जनवरी को एक बयान में कहा," (WHO) सूडान में बढ़ते संकट पर बड़ी चिंता के साथ नज़र रख रहा है, जिसमें नवंबर 2021 से स्वास्थ्य सेवा से जुड़े कर्मचारियों और स्वास्थ्य सुविधाओं पर 15 हमले शामिल हैं ...इनमें से 11 हमलों की पुष्टि हो चुकी है।"

“इनमें से ज़्यादतर हमले स्वास्थ्य देखभाल कर्मचारियों के ख़िलाफ़ शारीरिक हमले, काम में बाधा डालने, हिंसक तलाशियों और सम्बन्धित मनोवैज्ञानिक ख़तरों और दी जा रही धमकियों के तौर पर किये गये थे। स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं पर छापेमारी और सैन्य घुसपैठ से जुड़ी 2 घटनाओं की भी सूचना है।”

बयान में कहा गया है कि चिकित्सा से जुड़े हमलों की संख्या में तेज़ी आयी है, क्योंकि 2020 में इस तरह के महज़ एक हमले की सूचना मिली थी। 2019 में भी जब 2018 के आख़िर में शुरू हुई दिसंबर क्रांति ने तानाशाह उमर अल बशीर को उखाड़ फेंका था, तो इस तरह के होने वाले हमलों की महज़ सात घटनायें दर्ज की गयी थीं।

सुरक्षा बलों की ओर से डॉक्टरों, मरीज़ों, बुज़ुर्गों और नौजवानों पर समान रूप से हिंसा में हो रही इस बढ़ोत्तरी के बीच अमेरिका और उसके क्षेत्रीय और पश्चिमी सहयोगियों के साथ-साथ संयुक्त राष्ट्र भी बातचीत का आह्वान करते रहे हैं। 

मध्यमार्गी और दक्षिणपंथी राजनीतिक दल, जिन्होंने संयुक्त नागरिक-सैन्य संक्रमणकालीन सरकार के लिए रास्ता बनाते हुए पहले सेना के साथ सत्ता की साझेदारी का समझौता किया था, एक बार फिर बातचीत के लिए सहमत हो गये हैं,जबकि 25 अक्टूबर को तख़्तापलट के बाद उस सरकार को भंग कर दिया गया था।

हालांकि, सड़कों पर ज़्यादतर प्रदर्शनकारियों की कमान संभाल रही प्रतिरोध समितियों, सूडानी प्रोफ़ेशनल्स एसोसिएशन (SPA) नाम से जाने जाते ट्रेड यूनियन गठबंधन और सूडानी कम्युनिस्ट पार्टी (SCP) ने इस आह्वान को मज़बूती के साथ खारिज कर दिया है। उन्होंने इस बात को दोहराया है कि सिर्फ़ सैन्य सत्ता को पूरी तरह से उखाड़ फेंकने से ही लोकतांत्रिक परिवर्तन का मार्ग प्रशस्त हो सकता है।

यही वजह है कि जनरलों के साथ "नो निगोशिएशन, नो कंप्रोमाइज़, नो पावर-शेयरिंग"(यानी कोई बातचीत नहीं,कोई समझौता नहीं, सत्ता में कोई भागीदारी नहीं) के नारे एक बार फिर सूडान में सोमवार, जनवरी 17 को चल रही गोलियों, फेंके जा रहे हथगोलों और छोड़े जा रहे आंसू गैस की आवाज़ के बीच प्रदर्शनों में गूंज रहे थे।  

साभार: पीपल्स डिस्पैच

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