ग्राउंड रिपोर्ट: बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि किसानों के लिए त्रासदी से कम नहीं, तैयार फसलें चौपट!
बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि उत्तर प्रदेश के किसानों के लिए किसी त्रासदी से कम नहीं। किसानों की तैयार फसलें बेरहम मौसम की भेंट चढ़ गईं। जिन फसलों से किसानों को बेहद उम्मीदें थीं वो बर्बाद हो गईं जिसके बाद से किसान निराशा के अंधकार में हैं। पेश है ग्राउंड रिपोर्ट :
"मैंने बीते बीस सालों में मार्च के महीने में इतनी बारिश और ओले कभी नहीं देखे हैं। 19 मार्च की रात अचानक तेज़ अंधड़ आया और बाद में बारिश के साथ ओले गिरने लगे। इसके बाद जब खेत देखा तो लगा कि कुछ नहीं बचा है। आपको कैसे बताएं कि कितना नुकसान हुआ है। गेहूं की जिन फसलों में अभी दाना तक नहीं पड़ा था वो लेट गई हैं और बर्बाद हो गईं। जो कुछ भी था, सब ख़त्म हो गया।" ये कहना है बनारस के जाल्हूपुर गांव की राधिका का।
तेज़ आंधी और बारिश के साथ ओलावृष्टि से हुई तबाही का मंज़र दिखाते हुए राधिका के चेहरे का रंग फीका पड़ जाता है। नम आंखों के साथ वह कहती हैं, "उम्मीद थी कि ये फसल 12 महीने के लिए गेहूं देकर जाएगी, लेकिन खेती पर जो हमारी हज़ारों रुपये की लागत आई है वो भी नहीं निकलेगी। न जाने अब आगे क्या होगा? मवेशियों को पालने के लिए एक छप्पर डाल रखा था, वो भी उड़ गया। आम और खरबूजे की फसल चौपट हो गई। सारा फूल झड़ गया।"
जाल्हूपुर के किसान लालू यादव
उत्तर प्रदेश के कई हिस्सों में मार्च के दूसरे पखवाड़े में रिकॉर्ड तोड़ बारिश और ओलावृष्टि हुई है। तेज़ बारिश और ओलावृष्टि की वजह से यूपी के किसानों और बागवानों पर दोहरी मार पड़ी है। जाल्हूपुर में महज़ एक-एक बीघे में गेहूं की खेती करने वाले किसान लालू यादव, विजई, मुरारी और बुल्लू यादव की फसल को भी ऐसा ही नुकसान हुआ है। इन्हें बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि से उबरने का रास्ता दिखाई नहीं दे रहा है। विजई कहते हैं, "मेरे मन में क्या है, ये सिर्फ़ मैं ही जानता हूं। जब ओले गिर रहे थे तो मेरे बच्चों ने कहा कि पापा आप चिंता मत करो, मैं बड़ा होकर ख़ूब पढ़ाई करूंगा। अब मैं अपनी व्यथा न बेटे को बता सकता हूं और न ही अपनी पत्नी को। जो है, सब कुछ मेरे दिल में है।"
बर्बाद गेहूं की फसल
उत्तर प्रदेश में गेहूं, चना और सरसों, रबी सीज़न की तीन प्रमुख फसलें हैं। इसमें गेहूं का रकबा इस बार क़रीब 343.23 लाख हेक्टेयर से अधिक था। राज्य में मसूर, मटर, जौ आदि फसलों की खेती होती है। यूपी के पूर्वी इलाक़े में ज़्यादातर लोग खेती-किसानी पर आश्रित हैं। ख़राब मौसम और ओलावृष्टि ने यूपी के किसानों को परेशान कर दिया है। इस साल की शुरुआत से ही रबी की फसलों को मौसम की मार का सामना करना पड़ रहा है। पहले शीतलहर, फिर गर्मी और कुछ हफ़्तों के अंतराल में आंधी और ओलावृष्टि ने यूपी में रबी की खेती को ख़ासा नुकसान पहुंचाया है। पिछले दो-तीन दिनों में राज्य के ज़्यादातर इलाकों में 50 फ़ीसदी फसल बर्बाद हो चुकी है।
बर्बाद हो गया गेहूं-सरसो!
बनारस के चिरईगांव प्रखंड के बराई गांव के किसान संदीप कुमार ‘न्यूज़क्लिक’ से कहते हैं, "दिसंबर के अंत से लेकर क़रीब 20 जनवरी तक भयंकर ठंड पड़ी। फरवरी में तापमान में अभूतपूर्व वृद्धि हुई। फिर मार्च में बारिश और ओलावृष्टि हो गई। भयंकर सर्दी और फिर समय से पहले आई गर्मी ने गेहूं, सरसों और चने की फसलों को अपनी पूरी क्षमता तक बढ़ने नहीं दिया। थोड़ी बहुत जो उम्मीद बची थी वो 19 मार्च की रात आई तेज़ आंधी और बारिश के साथ ओलावृष्टि की भेंट चढ़ गई। खेतों में खरीब की जो फसल बची है उसकी गुणवत्ता बेहद ख़राब है। इस बार खेती की लागत निकाल पाना मुश्किल हो जाएगा। इस बार बड़ा नुकसान होने वाला है। हमें अपना गुज़ारा चलाना मुश्किल हो जाएगा।"
बराई गांव के सीवान में बारिश के बीच गेंदा-खेत में फूलों को तोड़ रहीं मीना काफ़ी चिंतित नज़र आईं। उन्होंने 'न्यूज़क्लिक' से कहा, "तेज़ आंधी के साथ बारिश और ओलावृष्टि ने फूलों की खेती को भी बर्बाद कर दिया है। मेरे गांव में किसानों की पचास फ़ीसदी तक फसल बर्बाद हो चुकी है। बारिश के बीच हम गेंदा, गुलाब और श्रीकांती के फूल तोड़ रहे हैं ताकि उन पर दाग़ न पड़ सके। सर्वाधिक नुकसान गेहूं की फसल को हुआ है। हमारी चिंता यह है कि हम अपने बच्चों की पढ़ाई के लिए फ़ीस कैसे भरेंगे?"
बारिश के बीच फूलों की तोड़ाई करते किसान
शंकरपुर गांव के किसान अजय यादव ने अपना दुखड़ा सुनाया और कहा, "हमारे पास सिर्फ़ दो बीघा खेत है, जिसमें हमने गेहूं और सब्जियां बोई थीं। रात में तेज़ आंधी आई। फिर बारिश के साथ ओले गिरने लगे। क़रीब एक घंटे तक मूसलाधार बारिश के चलते गेहूं और सरसों के खेत जलमग्न हो गए। हमारे पड़ोस के गांव डुबकियां, संदहा, चौबेपुर, बर्थराकला में आंधी के साथ बारिश और ओलावृष्टि ने कहर बरपाया है। खेतों में गेहूं की जो फसलें हैं उनमें एक दाना भी मिलने की उम्मीद नहीं है।"
झड़ गए आम के बौर
बनारस के भंदहांकला गांव के प्रगतिशील किसान बल्लभ पांडेय असमय बारिश और ओलावृष्टि से परेशान नज़र आए। वह कहते हैं, "सिर्फ़ गेहूं ही नहीं, तिलहन की भी सभी फसलें बर्बाद हो गईं। ज़्यादातर किसानों की फसलें लेट गई हैं। बागानों में अबकी अच्छे बौर आए थे, वो भी झड़ गए। मसूर और चने को भी नुकसान पहुंचा है। 17 मार्च से मीन नक्षत्र की शुरुआत हुई थी। इसके बाद रबी की फसलें पकने की ओर जाती हैं। अगले 15 दिन किसानों के लिए बहुत महत्वपूर्ण थे। बारिश के साथ ओलावृष्टि एक बड़ी त्रासदी है। सिर्फ़ रबी की फसलें ही नहीं, अमरूद, आंवला, लीची और नींबू की फसलों को काफ़ी नुकसान हुआ है। सरकार को चाहिए कि वो किसानों और बागवानों को राहत पैकेज दे।"
बनारस के कैथी के किसान अशोक कुमार यादव बताते हैं, "पूर्वांचल के किसानों की हालत ये है कि चाहें कुछ भी हो, हमें साहूकारों से कर्ज लेना ही पड़ता है। किसान क्रेडिट कार्ड जैसी योजनाएं किसानों को एक बार कर्ज दे देती हैं, जिसे साल भर में वापस करना पड़ता है। लेकिन अब जब ऐसी घटनाएं हो जाती हैं तो हमें नई शुरुआत करने के लिए साहूकारों से कर्ज लेने के लिए मजबूर होना पड़ता है।"
पूर्वांचल व बुंदेलखंड में भारी तबाही
बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि ने सिर्फ़ बनारस ही नहीं, समूचे पूर्वी उत्तर प्रदेश और बुंदेलखंड के सात ज़िलों में भारी तबाही मचाई है। ओलावृष्टि से पूर्वांचल के सोनभद्र और बनारस के सभी इलाक़ों में क़रीब एक-तिहाई रबी की फसलें बर्बाद हो गईं।
सोनभद्र ज़िले में 18 मार्च 2023 को तेज़ बारिश के साथ ओले पड़े। क़रीब दस मिनट तक मटर के आकार के ओले गिरने से रबी की फसलों को भारी नुकसान हुआ है। बेमौसम बारिश से खेतों में पककर तैयार दलहन और तिलहन की फसलें भी प्रभावित हुई हैं। कई गांवों में खड़ी फसलें बर्बाद हो गईं। हिंदुआरी, महोखर, बभनौली कलां, तेंदू क्षेत्र में बारिश के साथ ओले गिरे। इन इलाकों में क़रीब 40 से 45 मिनट तक बारिश हुई। ओलावृष्टि से लहसुन, प्याज के साथ बैंगन, भिंडी आदि को भारी क्षति पहुंची है। वहीं चना, मसूर, सरसों, अलसी, मटर की फसलें भी प्रभावित हुई हैं। किसान सुनील कुमार और मनोज के मुताबिक़ ओलावृष्टि से अगर गेहूं की बालियां टूटी हैं तो इससे उपज भी प्रभावित होगी।
बुंदेलखंड के किसानों की तकदीर में बेरहम मौसम सालों से तबाही की पटकथा लिख रहा हैं। कभी सूखा पड़ रहा है तो कभी ओलावृष्टि और बारिश फसलों को चौपट कर रही है। यह एक बार की कहानी नहीं है, पिछले 10 सालों से लगातार ऐसा होता चला आ रहा है। उत्तर प्रदेश में ओलावृष्टि ने ललितपुर ज़िले में सबसे ज़्यादा तबाही मचाई है। यहां क़रीब 60 फ़ीसदी तक रबी की फसलें चौपट हो गईं। ललितपुर में बड़े पैमाने पर बारिश के साथ ओले गिरे, जिससे फसलें खेतों में बिछ गईं। झांसी में भी बबीना इलाक़े के कई गांवों में यही स्थिति रही।
ललितपुर सीमा से लगते झांसी के बबीना क्षेत्र के बेदौरा, सरबा, भड़रा, पृथ्वीपुरा नयाखेड़ा, गुवावली, हीरापुरा, घिसौली, खजराहा, डुबकी आदि गांवों में भी ओलावृष्टि और बारिश हुई है। इससे फसलों को भारी नुकसान हुआ है। झांसी मंडल के तीनों जनपदों झांसी, ललितपुर और जालौन के क़रीब 8,20,000 किसानों की मेहनत पर कई सालों से क़ुदरत की मार पड़ रही है। हमीरपुर ज़िले की सरीरा तहसील के दो गांवों में ओलावृष्टि से 40 फ़ीसदी से अधिक फसल ख़राब हुई है। ललितपुर ज़िले की चार तहसीलों के 17 गांवों में जबर्दस्त ओलावृष्टि हुई है। इनमें से चार गांवों में क़रीब 60 फ़ीसदी से अधिक फसल ख़राब हुई है। महोबा ज़िले की दो तहसीलों के दो गांव में क़रीब 40 फ़ीसदी से ज़्यादा फसलें बर्बाद हुई हैं।
उत्तर प्रदेश के कुछ ज़िलों में किसानों की फसलें दस फ़ीसदी से कम ख़राब हुई है। नियमानुसार 33 फ़ीसदी से कम फसल ख़राब होने पर मुआवज़े का प्रावधान नहीं है। जिन इलाकों में 33 फ़ीसदी से कम फसल ख़राब हुई है, वहां किसानों को मुआवज़ा नहीं मिल सकेगा। ओलावृष्टि और बारिश से सहरानपुर, प्रतापगढ़, मथुरा, झांसी, बहराइच और औरेया में फसलों को क़रीब पांच से दस फ़ीसदी तक नुकसान हुआ है। आगरा, बुलंदशहर के कुछ गांवों में क़रीब 10 से 15 फ़ीसदी तक फसलें ख़राब हुई हैं।
पश्चिमी यूपी में बेमौसम बरसात और तेज़ हवाओं के चलते रबी की फसलों को भारी नुकसान पहुंचा है। गेहूं की फसलें गिर गईं तो वहीं सरसों की फलियां टूट गई हैं। इसके अलावा आलू भी प्रभावित हुआ है। बागपत ज़िले में 18 मार्च को बारिश होने से किसानों की परेशानी बढ़ गई। गेहूं और सरसों की फसलों के साथ ही सब्जियों को काफ़ी नुकसान हुआ है। आम के बौर के भी ख़राब होने का डर सता रहा है। मुजफ्फरनगर, सहारनपुर, रामपुर, बरेली, मुरादाबाद आदि ज़िलों में बेमौसम बारिश ने किसानों की चिंता बढ़ा दी है। रुक-रुककर हो रही बारिश के चलते जन-जीवन अस्त-व्यस्त है।
सड़ जाएंगे आलू?
हमने कृषि क्षेत्र के वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों से बात करके इस बारिश और ओलावृष्टि से खेती पर पड़ने वाले व्यापक और दूरगामी असर को समझने की कोशिश की है। संयुक्त कृषि निदेशक रमेश चंद्र मौर्य बताते हैं, "इस मौसम में सामान्यत: एक दो-बार बारिश होती है। लेकिन इस दफ़े कई बार बारिश होने से उन फसलों को नुकसान हो रहा है जो खेतों में पकी हुई खड़ी हैं। बेमौसम बारिश से सीधे-सीधे सरसों, गेहूं, आलू और हरी सब्जियों के अलावा आम व नींबू की फसलों को भारी नुकसान पहुंचा है। यूपी में इस समय आलू की खुदाई का सीज़न है। इस समय ज़्यादा बारिश की वजह से खेत में आलू की खुदाई नहीं हो पाती है। और बार-बार पानी गिरने की वजह से आलू सड़ने लगता है। बारिश के साथ-साथ तेज़ हवा चलने से गेहूं की फसल को नुकसान हुआ है, क्योंकि तेज़ हवा में गेहूं के तने टूट जाते हैं जिससे अनाज का ठीक से विकास नहीं हो पाता है। और इस वजह से किसान की पैदावार घट जाती है।"
"बेमौसम बारिश की घटना का दूरगामी परिणाम सब्जियां उगाने वाले किसानों और आम के बागानों पर पड़ेगा, क्योंकि ओले गिरने से खेतों में बोई हुई सब्जियों की पौध ख़राब हो गई है। वहीं, आम के बगीचों में ओले गिरने से उन्हें भी नुकसान पहुंचा है। इस मौसम में ओले गिरने, तेज़ हवाएं चलने और तेज़ बारिश से भारी तबाही हुई है।"
बढ़ेंगे सब्जियों के दाम?
इस बारिश से सब्जियों और फलों की तैयार फसलों को नुकसान पहुंचने से एक बड़ा सवाल पैदा हुआ है कि क्या आने वाले दिनों में सब्जियों के दामों पर इसका असर दिखाई देगा। चंदौली के प्रयोगवादी किसान अनिल मौर्य को लगता है कि बेमौसम बारिश का असर स्वाभाविक रूप से आने वाले दिनों में नज़र आएगा। वह कहते हैं, "टमाटर, गोभी, मिर्च, लहसुन, भिंडी, लौकी, तरोई, खरबूजा और तरबूज जैसी फसलों को नुकसान पहुंचा है। इससे आने वाले दिनों में इन सब्जियों के दाम ऊपर जाते हुए नज़र आएंगे। आम की फसल की बात करें तो तेज़ हवाओं की वजह से कई जगहों पर पेड़ तक उखड़ गए हैं। ओलावृष्टि का असर तो पड़ा ही है।"
निर्यातक खेतीबाड़ी के संपादक जगन्नाथ कुशवाहा कहते हैं कि, "जब किसानों को हुए नुकसान की बात आती है तो अक्सर किसान बीमा योजना का ज़िक्र किया जाता है। इस तरह की मौसमी घटनाओं को लेकर किसानों को बीमा मिलना चाहिए, लेकिन ऐसा होता नज़र नहीं आता है। किसानों पर आज मौसम की मार पड़ी है और इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि दस महीने बाद भी उन्हें बीमे की रक़म मिल पाएगी। ज़मीनी हकीक़त की बात की जाए तो भूमिहीन किसानों पर ऐसी मौसमी घटनाओं की मार सबसे ज़्यादा पड़ती है। भारत जैसे देश में जहां 40 फ़ीसदी किसान भूमिहीन हैं, ऐसे में तमाम किसानों को बीमे की रक़म मिलने की जगह खेत का किराया जुटाने के लिए जद्दोजहद करनी पड़ती है।"
वह कहते हैं, "कृषि को लेकर चलाई जा रही दूसरी तमाम योजनाओं का लाभ भूमिहीन किसानों को नहीं मिलता है। इनमें सब्सिडी देने की योजनाएं शामिल हैं। ये एक बड़ी समस्या है। सरकार की ज़्यादातर नीतियां डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर की ओर बढ़ रही हैं। ऐसे में ये बात समझ से बाहर है कि ये नीतियां किसके लिए बनाई जा रही हैं, जबकि किसानों की आबादी का एक बड़ा हिस्सा इस सुरक्षा कवच से बाहर है।"
काशी हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के मौसम वैज्ञानिक प्रो. मनोज कुमार श्रीवास्तव कहते हैं, "मार्च के महीने में ये जो बारिश और ओलावृष्टि हो रही है, ये पश्चिमी विक्षोभ की वजह से हो रही है। एक तरह से तो ये एक सामान्य घटना है। लेकिन इसका संबंध कहीं न कहीं जलवायु परिवर्तन से भी है, क्योंकि बीती सर्दियों में 15 से 20 दिनों तक भीषण ठंड का समय आया, वो भी बहुत सालों के बाद आया था।"
उनके मुताबिक़, "आमतौर पर जब कई बार पश्चिमी विक्षोभ आता है तो मानसून में देरी की आशंका पैदा होती है। ऐसे में ये निश्चित है कि जलवायु परिवर्तन का प्रभाव किसी न किसी तरह बारिश और ओलावृष्टि पर पड़ रहा है। फिलहाल ऐसी स्थितियां नज़र नहीं आ रही हैं लेकिन अगर ये पश्चिमी विक्षोभ अप्रैल तक जारी रहता है तो ऐसी स्थितियां ज़रूर पैदा हो सकती हैं।"
(लेखक बनारस के वरिष्ठ पत्रकार हैं।)
अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।