हरियाणा: महिला खेल पंचायत में फिर उठा संघर्ष का नारा, कैप्टन लक्ष्मी सहगल की गईं याद
भारत की आज़ादी और सार्वजनिक सेवा में महिला संघर्ष का पर्याय रहीं कैप्टन लक्ष्मी सहगल की याद में आज, गुरुवार 20 जुलाई को हरियाणा के रोहतक में एक महिला खेल पंचायत का आयोजन हुआ। इस पंचायत में महिलाओं के लिए विशेष खेल नीति बनाने, खेल संघों में यौन हिंसा विरोधी समितियों का गठन, कार्यस्थल पर यौन हिंसा और अन्य शोषण उत्पीड़न के मुद्दों पर गंभीर चर्चा हुई। कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के तौर पर कैप्टन लक्ष्मी सहगल की बेटी और पूर्व सांसद सुभाषिनी अली भी शामिल हुईं।
पंचायत में अंतर्राष्ट्रीय खिलाड़ी और भीम अवार्डी जगमति सांगवान के साथ ही कुश्ती खिलाड़ियों के आंदोलन की उच्चतम कमेटी के सदस्य व जाने माने कुश्ती कोच रणबीर सिंह ढाका, पूर्व खेल निदेशक व योगा कोच एम.एस. देशववाल और संदीप सिंह पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाने वाली जूनियर कोच के पिता भी मौजूद रहे। इस कार्यक्रम में खेल जगत से जुड़े कई प्रमुख लोगों ने हिस्सा लिया।
गैर सरकारी संगठन हिम्मत के तत्वाधान में आयोजित इस कार्यक्रम की अध्यक्षता कुल छ: लोगों ने की, जिसमें अध्यक्ष मंडल प्रोफेसर शमशेर सिंह कादियान, पूर्व जिला खेल अधिकारी एवं पूर्व हाॅकी खिलाड़ी सुंदर सिंह, पूर्व उप निदेशक खेल विभाग राजबीर सिंह बजाड़, ओलंपिक मैडेलिस्ट साक्षी मलिक की मां सुदेश मलिक, एक्स सर्विसमैन लीग कैप्टन शमशेर सिंह मलिक और प्रसिद्ध महिला नेत्री एवं कवियत्री शुभा ने संयुक्त रूप से शामिल थे।
हिम्मत संस्था की अध्यक्ष एवं अंतर्राष्ट्रीय भीम अवार्डी जगमति सांगवान ने महिला खेल पंचायत का मुख्य प्रस्ताव रखा और जनवादी समिति की राज्य अध्यक्ष सविता और उषा ने संचालन किया। कोषाध्यक्ष प्रोफेसर अमिता ने भीम अवार्ड का नाम महिला खिलाडियों के लिए कैप्टन लक्ष्मी सहगल के नाम पर करने का प्रस्ताव रखा। शंकुतला जाखड़ ने मणिपुर में हो रही भयावह हिंसा पर बीजेपी सरकार की चुप्पी के खिलाफ प्रस्ताव रखा।
महिला खेल पंचायत में ये निर्णय लिया गया कि पंचायत में पारित प्रस्तावों को लेकर अभी से अभियान शुरू किया जाएगा। अगर वर्तमान सरकार यह मांगे नहीं मानती तो, 2024 के लोकसभा चुनाव में तमाम राजनीतिक पार्टियों के चुनावी घोषणा पत्र में इन मुद्दों को शामिल करवाने के लिए आंदोलन चलाया जाएगा।
पंचायत में उठाई गई प्रमुख मांगें
• देश के तमाम राज्यों व राष्ट्रीय स्तर पर लिंग संवेदी महिला खेल-नीति बनवाना
• खेल नेतृत्व के तमाम निर्णयकारी, प्रशिक्षण संबंधी व ऑफिशियल, मैनेजर स्तर पर महिलाओं के लिए कम से कम एक तिहाई आरक्षण
• साल 2009 की खेल नीति में रखे गए पंचायत स्तर तक खेल सुविधाओं के विस्तार को आगे बढ़ाना
• अपने राज्य में होने वाले महिला खेल मुकाबलों का ज्यादा प्रचार प्रसार करवाना
• खेल निकायों में यौन शोषण विरोधी कमेटियों का गठन सुनिश्चित करवाना
• काम के स्थान पर होने वाली महिला यौन हिंसा को रोकने के तमाम उपायों को उनकी भावना अनुरूप लागू करवाना
• खेल निकायों के सभी स्तर पर सघन लिंग संवेदीकरण के प्रोग्राम चलाना
• दलित व अल्पसंख्यक समुदाय की खिलाड़ियों को विशेष प्रोत्साहन देना
• महिलाओं के सन्दर्भ में भीम अवार्ड का नाम आजाद हिन्द फौज की स्वतंत्रता सेनानी कैप्टन लक्ष्मी सहगल के नाम से बदला जाए।
• राज्य में बंद पड़े एक मात्र खेल कूद महाविद्यालय को दोबारा खुलवाना
खेल पंचायत में पारित हुए प्रस्ताव
• लिंग संवेदी महिला खेल नीति बनाना और नियमों को सख्ती से लागू करना
• बीजेपी सांसद बृजभूषण शरण सिंह और हरियाणा के मंत्री संदीप सिंह की गिरफ्तारी
• भीम अवार्ड का नाम कैप्टन लक्ष्मी सहगल के नाम पर करने का समर्थन
मणिपुर में हो रही हिंसा का विरोध
इस अवसर पर सुभाषिनी अली ने कहा कि आज देश के प्रधानमंत्री घूम-घूम कर ये ऐलान कर रहे हैं कि वो महिलाओं के अधिकारों की सुरक्षा के लिए एक नया कानून, समान नागरिक संहिता लाने वाले हैं लेकिन ये इस सरकार की घोर मक्कारी है कि जो कानून पहले से बने हुए हैं, उन्हें लागू करने में ये विफल हैं। गंभीर आरोपों के बावजूद संदीप सिंह और बृजभूषण के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं हुई, राम रहीम को बेल पे बेल मिल रही है, वहीं बिलकिस के अपराधियों को 'संस्कारी ब्राह्मण' बताकर छोड़ दिया गया।
लोकसभा में जहां से उन्हें सबसे ज्यादा वोट मिले, उसी यूपी के हाथरस में दलित बलात्कार पीड़िता पर मुख्यमंत्री ने सवाल उठाए। पीड़ित परिवार पुलिस घेरे में कैद कर आरोपियों के परिवारों को खुला छोड़ दिया गया। ये इस सरकार की असलियत है।
हमें कोई नया कानून नहीं चाहिए, पहले पुराने कानून ही सही से लागू कीजिए!
सुभाषिनी आगे मणिपुर में महिलाओं के खिलाफ हो रही हिंसा की निंदा करते हुए कहती हैं कि ये डबल इंजन की सरकार लगभग सवा दो महीने से मणिपुर पर झूठ बोल रही है। प्रधानमंत्री विदेश घूम रहे हैं और मणिपुर जल रहा है। ये ऐसी सरकार है जो नफरत फैलाने में लोगों को विभाजित करने में अपना पूरा समय लगा रही है। इसलिए हमें कोई नया कानून नहीं चाहिए पहले पुराने कानून ही सही से लागू हो जाएं, उसी से बहुत लोगों को न्याय मिल जाएगा। क्योंकि ये कानून किसी सरकार ने नहीं बनाए बल्कि महिला आंदोलन की देन हैं ये और आगे की इसके लिए संघर्ष जारी रहेगा।
जगमति सांगवान ने कहा कि पहलवानों के आंदोलन ने खेलों में यौन हिंसा के मुद्दे को सबके सामने रखा है। ये लड़ाई अब हमें आगे ले जानी है क्योंकि हरियाणा की मनोहरलाल खट्टर सरकार और केंद्र की बीजेपी सरकार से तो न्याय की उम्मीद ही नहीं है। वो लोग यौन शोषण आरोपी संदीप सिंह और बृजभूषण शरण सिंह के पक्ष में खुलकर खड़े दिखाई देते हैं। यही नहीं इस वर्तमान सरकार ने आते ही महिला सुरक्षा के तमाम कानूनों को निशाना बनाना शुरू करते हुए महिलाएं झूठ बोलती हैं, का प्रचार शुरू करके उनकी शिकायतों को संदिग्धता के दायरे में धकेलना शुरू कर दिया। वहीं दूसरी तरफ उन्नाव केस, बिलकिस बानो का मसला, हाथरस केस, कठुआ का आसिफा केस और अब संदीप सिंह और बृजभूषण का केस सभी जगह सरकार ने अपराधियों को बचाने तथा न्याय के लिए लड़ रही महिलाओं का मनोबल तोड़ने का काम किया है।
कैप्टन लक्ष्मी सहगल और महिलाओं के लिए उनका संघर्ष
गौरतलब है कि आगामी 23 जुलाई को कैप्टन लक्ष्मी सहगल की 11वीं पुण्यतिथि है। कैप्टन सहगल अखिल भारतीय लोकतांत्रिक महिला संगठन (एडवा) की संस्थापक सदस्य थीं, जिसकी स्थापना 1981 में हुई थी। यह संगठन उनके लिए महिलाओं के मुद्दों को लगातार उठाने और इसके लिए कई अभियान शुरू करने के लिए एक उपयुक्त मंच बन गया। तब से लेकर अब तक एडवा महिलाओं के ह़क़ और हुकूक के लिए आवाज़ उठाता रहा है। बीते दिनों हरियाणा के मंत्री और राज्य ओलंपिक एसोसिएशन के अध्यक्ष संदीप सिंह से लेकर भारतीय कुश्ती संघ के अध्यक्ष और बीजेपी सांसद बृजभूषण शरण सिंह तक खेलों में सभी शोषण-उत्पीड़न के मामलों को लेकर एडवा ने सड़कों पर ज़ोरदार प्रदर्शन और आंदोलन किया है।
पिछले महीने राजधानी दिल्ली के कांस्टिट्यूशन क्लब ऑफ इंडिया में एडवा ने कई महिला संगठनों के साथ महिला पंचायत में भी भागीदारी की थी, जिसका मुख्य उद्देश्य ही संघर्ष कर रही सभी महिला खिलाड़ियों को तत्काल न्याय की सुनिश्चतता के साथ ही खेल संघों में आईसीसी यानी आंतरिक जांच समिति समेत अन्य यौन हिंसा विरोधी समितियों का गठन और नियमों का पालन था। इस पंचायत में महिलाओं ने भंवरी देवी से लेकर विशाखा गाइडलाइंस और फिर महिलाओं के साथ वर्किंग प्लेस पर हुए उत्पीड़न के कानून यानी POSH एक्ट 2013 तक के सफर और संघर्ष को भी याद किया था।
खेलों में यौन हिंसा की भयानक तस्वीर
ध्यान रहे कि बीते दिनों भारतीय कुश्ती संघ के अध्यक्ष और बीजेपी सांसद बृजभूषण शरण सिंह पर उठते सवालों और पहलवानों के प्रदर्शन ने खेल जगत में यौन शोषण की तस्वीर देश-दुनिया के सामने रखी। इस दौरान खेलों में यौन हिंसा से जुड़े कुछ अन्य मामले भी सामने आए, जो केवल कुश्ती तक ही सीमित नहीं थे, बल्कि उनका दायरा लगभग हर छोटे-बड़े खेलों तक फैला हुआ था। जाहिर है खेलों में यौन शोषण के मामलों की तस्वीर और भयानक है। जबकि बहुत से मामले तो रिपोर्ट ही नहीं होते।
एक सच्चाई ये भी है कि देश के 30 राष्ट्रीय खेल संघों में से 16 ऐसे हैं जहां कार्यस्थल पर महिलाओं को यौन शोषण से बचाने वाले 'यौन उत्पीड़न रोकथाम अधिनियम' के तहत अनिवार्य आंतरिक शिकायत समिति है ही नहीं और इसकी किसी को पड़ी भी नहीं है। कई बार स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ़ इंडिया ने महिला खिलाड़ियों केे प्रशिक्षण लिए मेल कोचों को लेकर कोड ऑफ कंडक्ट भी बनाए, लेकिन कई रिपोर्ट्स बताती हैं कि वो कभी लागू ही नहीं हो पाएं। ऐसे में महिला खिलाड़ियों की सुरक्षा और उनकी सुनवाई की क्या स्थिति होगी, इसका अनुमान लगाना मुश्किल नहीं है।
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