हिमाचल : केंद्र सरकार से नाराज़ मज़दूर-किसान 5 अप्रैल को संसद घेरने की तैयारी में जुटे !
रविवार को हिमाचल के मंडी में किसानों और मज़दूरों ने बैठक की और देशव्यापी प्रदर्शन को लेकर रणनीति बनाई। ये बैठक मज़दूर संगठन सेंटर ऑफ इंडियन ट्रेड यूनियन (सीटू) और हिमाचल किसान सभा ने आयोजित किया। आगामी 5 अप्रैल को दिल्ली में होने वाले संसद मार्च को सफल बनाने को लेकर मंडी के कॉमरेड तारा चंद भवन में राज्य स्तरीय सम्मेलन आयोजित किया गया।
इस सम्मेलन में निर्णय लिया गया कि 10 फ़रवरी तक ज़िला व खंड स्तर पर सम्मेलन आयोजित किया जाएगा तथा 11 फ़रवरी से 10 मार्च तक घर-घर जनसंपर्क अभियान चलाया जाएगा जिसमें एक लाख घरों तक दस्तक दी जाएगी। उसके बाद 15 मार्च को ज़िला व खंड स्तर पर विरोध प्रदर्शन किए जाएंगे।
सम्मेलन की अध्यक्षता सीटू के प्रदेश अध्यक्ष विजेंद्र मेहरा और हिमाचल किसान सभा के प्रदेश अध्यक्ष डॉ कुलदीप सिंह तंवर ने की और सम्मेलन का उदघाटन सीटू के राष्ट्रीय सचिव डॉ कश्मीर सिंह ठाकुर ने किया और समापन पूर्व विधायक राकेश सिंघा ने किया। इस सम्मेलन को अखिल भारतीय किसान सभा के राष्ट्रीय नेता पुष्पेंद्र त्यागी, प्रेम गौतम, ओंकार शाद, होतम सौंखला, भूपेंद्र सिंह ने भी संबोधित किया।
डॉक्टर कश्मीर ठाकुर ने सभा को संबोधित करते हुए कहा कि केंद्र की मोदी सरकार निरंतर मज़दूर व किसान विरोधी नीतियां लागू कर रही है। सरकार ने सब कुछ अपने निजी मित्रों और कंपनियों को देने का अभियान छेड़ रखा है। महंगाई लगातार बढ़ती जा रही है। स्थायी रोज़गार के बजाए पार्ट टाइम और फिक्स्ड टर्म के रोज़गार देने की नीति लागू की जा रही है।
राकेश सिंघा ने कहा की केंद्र की मोदी सरकार ने किसानों के लंबे आंदोलन के बाद काले कृषि क़ानून वापस ले लिए थे और न्यून्तम समर्थन मूल्य की गारंटी क़ानूनी तौर पर करने का वादा किया था लेकिन अभी तक इस बारे सरकार ने कोई निर्णय नहीं लिया है। सरकार की इन किसान विरोधी नीतियों के कारण हिमाचल प्रदेश में बागवानी और कृषि क्षेत्र में लगे बागवान भारी आर्थिक संकट से गुज़र रहे हैं। मज़दूरों के लिए भी ऐसे ही चार श्रम कोड बना दिये गए हैं जिनके लागू होने से मज़दूरों द्वारा लंबे संघर्षों के बाद मिले अधिकारों को छिने जाने की योजना है। इसके ख़िलाफ़ मज़दूरों और किसानों के संगठनों ने 5 अप्रैल को दिल्ली में संसद भवन तक मार्च निकालने का निर्णय लिया है।
उन्होंने कहा कि इससे पहले निचले स्तर पर जन जागरण अभियान चलाने का निर्णय लिया गया है। इससे मज़दूरों और किसानों को जागरूक किया जाएगा और पर्चा वितरण किया जायेगा। जिसके तहत सभी कामगारों को न्यूनतम 26 हज़ार रुपये वेतन और दस हज़ार रुपये पेंशन देने, चार श्रम सहिंताओं औऱ संशोधित बिजली विधेयक को वापस लेने, सभी कृषि उत्पादों के लिए एमएसपी लागू करने, सभी ग़रीब और मध्यम किसानों के ऋण माफ़ करने और 60 साल से अधिक उम्र के लोगों को पेंशन देने, मनरेगा में दो सौ दिनों का रोज़गार देने और 600 रुपये दैनिक वेतन देने, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों और सेवाओं के निजीकरण पर रोक लगाने, बढ़ती महंगाई पर रोक लगाने और आवश्यक वस्तुओं को जीएसटी से बाहर करने, पेट्रोल, डीज़ल, रसोई गैस से केंद्रीय एक्ससाईज ड्यूटी कम करने, सार्वजनिक राशन वितरण प्रणाली को मज़बूत करने और सभी आवश्यक खाद्य सामग्री डिपो के माध्यम से उपलब्ध कराने, वन अधिकार क़ानून को सख़्ती से लागू करने, पिछड़े तबक़ों का दमन रोकने और सामाजिक न्याय सुनिश्चित करने, सभी नागरिकों के लिए सार्वभौमिक गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य और शिक्षा सुनिश्चित करने, राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 वापस लेने, सभी के लिए आवास सुनिश्चित करने और अति अमीरों और कॉरपोरेट घरानों पर टैक्स की दर बढ़ाने और ग़रीबों के लिए घटाने की नीति लागू की जाए।
बता दें 5 सितंबर 2022 को नई दिल्ली में एक विशाल मज़दूर-किसान सम्मेलन आयोजित किया गया था जिसमें सभी राज्यों के 6000 से अधिक श्रमिकों-किसानों-कृषि-श्रमिकों ने भाग लिया था। इसे अखिल भारतीय किसान सभा, अखिल भारतीय खेत मज़दूर यूनियन तथा सीटू ने आयोजित किया था। यह मोदी सरकार की जन-विरोधी नीतियों को अस्वीकार करने और जन-समर्थक नीतियों का एक वैकल्पिक सेट पेश करने के लिए औद्योगिक श्रमिकों, किसानों और कृषि श्रमिकों के बीच पहले से ही बढ़ती एकता के निर्माण में एक और बड़े क़दम का प्रतिनिधित्व करता है।
इसमें ही किसान मज़दूर संगठनों ने एक साथ ऐलान किया था कि निजीकरण, विनिवेश और मोदी सरकार की अन्य सभी कॉरपोरेट-परस्त, मज़दूर-विरोधी और किसान-विरोधी नीतियों के ख़िलाफ़ 5 अप्रैल 2023 को दिल्ली में एक विशाल मज़दूर किसान रैली का आयोजन करेंगे। इसी के मद्देनज़र ये तैयारी हो रही है और इस तरह के साझे कन्वेन्शन पूरे देश मे आयोजित किए जा रहे है।
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