झारखंड : 5 चरणों में चुनाव को लेकर उठ रहे सवाल?
81 सदस्यीय (1 मनोनीत, कुल 82) झारखंड विधानसभा के लिए पाँच चरणों में चुनाव की घोषणा हो चुकी है। लेकिन एक बार फिर ऐसा हुआ है कि चुनाव प्रचार का शोर होने से पहले चुनाव कराने वाले आयोग की ही निष्पक्षता पर सवाल उठने लगे हैं। चर्चित पत्रकार और ब्लॉगर कृष्ण बिहारी मिश्र ने उठ रहे इन सवालों को मुखर बनाते हुए पूछा है कि 288 सीटों वाले बड़े प्रदेश महाराष्ट्र और 90 सीटों वाले हरियाणा के विधानसभा चुनाव महज एक दिन में सम्पन्न कराये गए तो झारखंड जैसे एक छोटे प्रदेश का विधान सभा चुनाव पाँच चरणों में क्यों?
हालांकि ऐसा पहली बार नहीं है लेकिन चुनाव आयोग द्वारा प्रदेश के कई जिलों के नक्सलवाद प्रभावित होने को प्रमुख कारण बताने पर भी कृष्ण बिहारी जी अपने वीडियो ब्लॉग के माध्यम से पूछा है कि -- पिछले कई महीनों से सैकड़ों सार्वजनिक जन सभाओं और प्रेस वार्ताओं में खुद प्रदेश के मुख्यमंत्री ने दावा किया है कि उनकी सरकार ने नक्सलवाद का सफाया कर दिया है और उनके शासन के विकास कार्यों के प्रभाव से पूरे प्रदेश में नक्सलवाद अब अंतिम सांसें गिन रहा है... तो जनता को बताया जाय कि कौन झूठ बोल रहा है? माननीय चुनाव आयोग जो पाँच चरणों में चुनाव करने का सबसे बड़ा कारण नक्सलवाद को बता रहा है वह या फिर प्रदेश के मुख्यमंत्री जी, जिनका दावा है कि उनकी सरकार ने नक्सलवाद का सफाया कर दिया है?
दिलचस्प सवाल ये भी है कि बार-बार 'एक देश-एक चुनाव' (हालांकि जानकार इसे लोकतंत्र विरोधी विचार बताते हैं) की बात करने वाली भाजपा न तो तीन राज्यों, हरियाणा, महाराष्ट्र और झारखंड जिनकी विधानसभा का कार्यकाल आसपास ही पूरा हो रहा है, के चुनाव एक साथ करा सकी और न एक राज्य (झारखंड) का चुनाव एक चरण में करा रही है। लोग पूछ रहे हैं कि जब एक राज्य में पांच चरण और लगभग दो महीने (घोषणा से लेकर) में चुनाव संपन्न होंगे तो अगर एक साथ पूरे देश में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव कराए जाने लगें तो कितने सालों में पूरे होंगे?
विपक्ष का चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर यह भी आरोप है कि जो उनकी पहले से ही आशंका थी कि भाजपा सरकार अपनी पूरी तैयारी करके जब चुनाव आयोग से कहेगी तभी इसकी घोषणा होगी और सच में वैसा ही हुआ है। पिछले दिनों भाजपा ने प्रेस वार्ता करके पाँच चरणों में चुनाव कराये जाने की मांग भी की थी। चुनाव आयोग द्वारा हर विधानसभा क्षेत्र में इनकम टैक्स अफसरों की नियुक्ति किए जाने पर भी ये सवाल पूछा जा रहा है कि इसकी आड़ में कहीं विपक्षी दलों के चुनावी अभियानों को बाधित करने की मंशा तो नहीं है? वहीं सोशल मीडिया में भी अधिकांश लोगों ने सत्ताधारी दल द्वारा लोकसभा कि भांति विधानसभा में भी चमत्कारिक जीत हासिल करने के लिए फिर से ईवीएम हेराफेरी की साजिश की आशंका जताई है।
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फिलहाल प्रदेश में विधानसभा की चुनावी सीटी बज चुकी है और सभी दल व गठबंधन इसकी तैयारी में जी जान से जुट गए हैं। ताज़ा राजनीतिक हालात के मुताबिक 65 पार का आंकड़ा पाने और अपनी सरकार टिकाये रखने के लिए भाजपा–आजसू (एनडीए गठबंधन) ने पूरी ताकत झोंक दी है। हालांकि कई सीटों पर अब भी पेच फंसा हुआ है। सूत्रों के अनुसार एक वरिष्ठ आजसू नेता ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया है कि कई सीटों पर दोस्ताना संघर्ष होना निश्चित है।
वहीं प्रमुख विपक्षी दल झारखंड मुक्ति मोर्चा ने भी ‘बदलेंगे सरकार, लेंगे अधिकार’ की घोषणा के जरिये अपनी तैयारी का बिगुल फूँक दिया है। जबकि प्रमुख वामपंथी दल भाकपा माले ने ‘न फरेब चाहिए न फसाद चाहिए, जन सवालों के लिए बुलंद आवाज़ चाहिए' के ऐलान के साथ ज़मीनी गोलबंदी तेज़ कर रखी है ।
यह सही है कि विपक्षी महागठबंधन के अंदर सभी दलों में सर्वसम्मत फैसला अभी तक नहीं हो पाया है जो भाजपा में नहीं थी तब भी होता रहा है। लेकिन गोदी मीडिया और सत्ता पेड पत्रकारिता द्वारा विपक्ष के महागठबंधन को लेकर लगातार धुंध-अनिश्चितता की ख़बरों को फैलाया जाता रहा है। बावजूद इसके राजधानी में जारी चर्चा की खबरों के अनुसार झामुमो- कांग्रेस-राजद और वाम दलों के गठबंधन होने के कयास लगाए जा रहें हैं। कांग्रेस केंद्रीय नेतृत्व अपनी प्रदेश कमेटी को लोकसभा चुनाव के समय तय हुए आपसी सहमति के फार्मूले को ही लागू करने परे कायम है।
जिसके तहत ये तय हुआ था कि हेमंत सोरेन विपक्षी महागठबंधन का मुख्य चेहरा होंगे। चर्चा है कि झामुमो–कांग्रेस में सहमति की सीटों के बँटवारे के अलावा राजद को पाँच सीटें तथा वामपंथी दल भाकपा माले व मार्क्सवादी समन्वय समिति (मासस) को दो–दो सीटें देने की बात कही जा रही है। हालांकि भाकपा माले प्रदेश सचिव ने कहा है कि उनकी पार्टी समेत प्रदेश के सभी वाम दल भाजपा को सत्ता से हटाने को संकल्पबद्ध हैं लेकिन वे अपने प्रभाव के उन इलाकों को कैसे छोड़ सकते हैं जहां वे सालों भर जन विरोधी भाजपा राज के खिलाफ निरंतर आंदोलनों में जनता को सक्रिय बनाए हुए हैं।
विपक्षी दल झारखंड विकास मोर्चा फिलहाल महागठबंधन से दूर होता दिख रहा है। इस दल के सुप्रीमो नेता हेमंत सोरेन को विपक्षी महागठबंधन का मुख्य चेहरा बनाए जाने पर बिल्कुल सहमत नहीं हैं। कयास लगाया जा रहा है कि इस बार के विधानसभा चुनाव में झाविमो ‘एकला चलो' की राह अपना सकता है। सनद हो की पिछले विधानसभा चुनाव में इस पार्टी की टिकट पर जीते 8 विधायकों में से 6 दल छोडकर भाजपा में शामिल हो गए थे।
चुनाव आयोग द्वारा राज्य के जिन जिलों को सामान्य व अतिसंवेदनशील नक्सलवाद प्रभावित क्षेत्र बताए जाने के संदर्भ में यह वास्तविकता सनद रखने की ज़रूरत है कि राज्य में माओवाद प्रभावित इलाका ही वास्तविक नक्सल प्रभावित क्षेत्र है जो आज की तिथि में कुछ विशेष इलाकों तक है। शेष जिन इलाकों को नक्सलवाद प्रभावित बताया जा रहा है वह तथ्यपरक सही नहीं है। क्योंकि शेष इलाके ऐसे उग्रवादी गिरोह प्रभावित क्षेत्र कहे जा सकते हैं जिनका माओवाद या नक्सलवाद से कोई लेना देना नहीं है। कानून की भाषा में ये सभी शुद्ध तौर से आपराधिक गिरोह हैं जिनमें से कई के पैदा होने और फलने–फूलने के लिए सीधे तौर से सत्ता–पुलिस पर प्रत्यक्ष–परोक्ष ज़िम्मेवार होने के आरोप लगते रहे हैं।
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