''जॉन पिल्जर ने अमेरिकी साम्राज्यवाद के काले कारनामों को उजागर किया'’
पटना: जॉन पिल्जर साधारण लोगों के लिए लिखते थे। जॉन पिल्जर की पत्रकारिता से आप दुनिया का सच जान सकते हैं। उन्होंने साम्राज्यवाद की साजिशों, षड्यंत्रों को बेनकाब किया। उनकी नजर पूरी दुनिया पर रहती थी। फिलिस्तीन, विएतनाम, कंबोडिया, पूर्वी तिमोर, अफगानिस्तान पर अमेरिकी हमले के खिलाफ कई फिल्में बनाई। उनकी फिल्में सभी को देखनी चाहिए। उक्त बातें विश्व प्रसिद्ध पत्रकार जॉन पिल्जर की स्मृति सभा में वक्ताओं ने कही।
अखिल भारतीय शांति व एकजुटता संगठन (ऐप्सो) की तरफ से विश्व प्रसिद्ध पत्रकार जॉन पिल्जर की स्मृति सभा का आयोजन बी.एम दास रोड स्थित मैत्री शांति भवन में किया गया।
स्मृति सभा में पटना शहर के कई पत्रकार, लेखक, संस्कृतिकर्मी, सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ता शामिल हुए।
स्मृति सभा के प्रारंभ में संचालक कुलभूषण गोपाल ने कहा " ऐप्सो हमेशा से साम्राज्यवाद और युद्ध का विरोध करता रहा है। जॉन पिल्जर पूरी जिंदगी बतौर पत्रकार युद्ध के खिलाफ रिपोर्ट करते रहे साम्राज्यवाद के खिलाफ फिल्में बनाईं , किताबें लिखीं। इन्हीं वजहों से आज हमलोग उनको याद करने और उनकी पत्रकारिता के महत्व पर बातचीत करने के लिए इकट्ठा हुए हैं। "
वरिष्ठ राजनीतिक नेता अरुण मिश्रा ने कहा “जॉन पिल्जेर मूलतः ऑस्ट्रेलिया के रहने वाले थे। बाद में इंग्लैंड चले गए। साम्राज्य वाद के खिलाफ लगातार लिखते रहे। उन्होंने फ्रीलांसर के रूप में शुरुआत की। लगभग सभी प्रमुख अखबारों के लिए काम किया। वियतनाम युद्ध के बारे बहुत लिखा। सैनिकों से उन्होंने बात की। कंबोडिया के बारे में लिखा। इराक, अफगानिस्तान पर अमेरिका के हमले का पुरज़ोर विरोध किया। इस पर बहुत लिखा। उन्होंने दुनिया भर के शासक वर्ग को एक्सपोज किया। वो हर चीज़ो पर नज़र रखते थे। मशहूर पत्रकार जूलियन असांजे की रिहाई के पक्ष में अभियान चलाया। शासक वर्ग के निशाने पर रहे । उन्हें नौकरयां छोड़नी पड़ी। अगर आप जनता के साथ खड़े नहीं है तो आपकी पत्रकारिता का कोई मतलब नहीं। उनकी तमाम फिल्मों को देखना चाहिए। नये लोगों को उनसे सीखना चाहिए।”
साहित्यकार व व्यंग्यकार अरुण शादवल ने बताया कि “उन्होंने साम्राज्यवाद के खिलाफ जमकर लिखा। अपने देश ऑस्ट्रेलिया में मूलनिवासियों के खिलाफ हो रहे कार्रवाइयों का खुलासा किया। उनकी डॉक्यूमेंट्री न्यू रूलर ऑफ वर्ल्ड देखने लायक है। इसमें वो मजदूरों के शोषण के सवाल को उठाते हैं। उनकी सारी फिल्में देखनी चाहिए। दबे-कुचले लोगों के खिलाफ साम्राज्यवाद के ख़तरे के बारे में खूब लिखा। अपने देश में सिर्फ जयघोष हो रहा है।”
ऐप्सो बिहार के महासचिव अनीश अंकुर ने कहा “ यह दुःखद है कि लोग जॉन पिल्जर को कम जानते हैं। मैंने पहली बार इन्हें तब जाना जब इराक पर अमेरिका के हमले के समय इन्होंने खोजी पत्रकारों को दोषी बताया। जॉन पिल्जर का कहना था की यदि खोजी पत्रकारों ने यह पता लगा लिया होता की इराक और एसडीडीएएम हुसैन के पास जन संहारक हथियारों के बारे में अमेरिका झूठ बोल रहा है तो शायद लाखों लोगों की जान बच जाती लेकिन अमेरिका और इंग्लैंड के पत्रकारों ने अपनी सरकार द्वारा फैलाए गए झूठ को ही फैलाया। कंबोडिया पर उनकी फिल्म 'जीरो इयर', 'द डेथ ऑफ नेशन' 'वार ऑन डेमोक्रेसी' तथा अंतिम फिल्म ' द कमिंग वार ऑन चाइना' हम सबको देखनी चाहिए ताकि अमेरिका ने किस प्रकार पूरी दुनिया में चुनी हुई सरकारों को तख्ता पलट के जरिए गिराया, जन नेताओं की हत्या कराई और अपने हितों की रक्षा के लिए सबसे जघन्य पाप किए।इंडोनेशिया में सुहार्तो की तानाशाही के दौरान दस लाख कम्युनिस्टों को मार दिया गया। पिल्जर ने बताया कि कैसे अमेरिका खमेर रूज और पॉल पोट जैसी हत्यारी जमात को समर्थन देता रहा। उनकी फिल्मों से आप दुनिया का असली सच जान सकते हैं। उन्होंने युद्ध की सच्चाई को उजागर किया। पिल्जर पूरी दुनिया में घूमते हैं। अमेरिकी साम्रज्यवाद ने पूरी दुनिया अस्थिर कर रखा है। उसके कुचक्रों को सामने लाते हैं पिल्जर। पिल्जर ने भारत के बारे में कहा कि अब यह देश वॉर इकोनॉमी बन गया है। अमेरिका सबसे ज्यादा हथियार पर खर्च करता है।अमेरिका और ब्रिटेन की सरकारें प्रोफेशनल झूठों बोलने वाली सरकारें हैं ।”
सामाजिक कार्यकर्ता गोपाल गोपी ने कहा " बराक ओबामा को शांति पुरस्कार मिलने पर जॉन पिल्जर ने कहा कि जिसने आठ साल में सात युद्ध लड़े उसे शांति पुरस्कार। स्टेट स्पॉन्सर टेरर के बारे में लिखने वाले पत्रकार थे जॉन पिल्जर। नागरिक सुविधा के बजाए हथियारों पर खर्च हो रहे हैं। साम्रज्यवाद के खिलाफ चल रहे संघर्ष से उन्हें बहुत उम्मीदें थीं।"
शिक्षक कुमार सर्वेश ने अपने वक्तव्य में बताया ' जॉन पिल्जर आलोचनात्मक नजरिया रखते थे।। पूरी दुनिया में दक्षिणपंथ का उभार है। उग्र राष्ट्रवाद को बढ़ावा दिया जा रहा है। इस समय भारत के साथ किसी भी पड़ोसी देश का संबंध अच्छा नहीं है। ये भारत सरकार का सबसे बड़ा फेलियर है। हमें अमेरिका के साथ चीन की भूमिका पर भी विचार करना होगा। "
रंगकर्मी विनोद कुमार वीनू ने बताया “पत्रकार का काम सरकार की तारीफ करना नहीं है। जॉन पिल्जर को याद करने के बहाने इस बात को रेखांकित किया जाना चाहिए। फिलस्तीन में बड़े पैमाने पर कत्लेआम हो रहा है। इस वक्त जॉन पिल्जर जैसे पत्रकारों का जाना दुःखद है।”
पटना विश्वविद्यालय में एसिस्टेंट प्रोफेसर सुधीर कुमार के अनुसार " वो पत्रकारिता पढ़ने वालों के लिए प्रेरक उदाहरण हैं।"
प्राच्य प्रभा के संपादक और ऐप्सो राज्य अध्यक्ष मंडली के सदस्य नेता विजय कुमार सिंह ने अध्यक्षीय वक्तव्य में कहा “ऐप्सो की तरफ से हम उन्हें श्रद्धांजलि देते हैं। उन्होंने अपनी फिल्मों से कंबोडिया को आर्थिक मदद दी। उनकी फिल्म है वी आर स्पार्टाकस।”
सभा को ऐप्सो के कार्यालय सचिव जयप्रकाश ने भी संबोधित किया।
सभा में गौतम गुलाल, मनोज कुमार, गोपाल शर्मा, अरुण सिंह, अमरनाथ झा, गजेन्द्र कांत शर्मा, अभिषेक कुमार, बालमुकुंद, अंचित, निखिल आनंद गिरी, कपिलदेव वर्मा, भोला शर्मा आदि उपस्थित थे।
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