सुनिए स्वास्थ्य मंत्री जी, आपका जवाब सामान्य शिष्टाचार के भी विपरीत है!
मोदी सरकार के स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन की छवि एक सौम्य और मिलनसार नेता की रही है। वे कभी ऊँचा नहीं बोलते न बड़ी-बड़ी बातें करते हैं और न ही विरोधियों के प्रति द्वेष भाव रखते हैं। लेकिन जैसे ख़रबूज़े को देख कर ख़रबूज़ा रंग बदलता है, वही हाल अब उनका भी हो गया है। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के पत्र का जवाब देते हुए वे आपा खो बैठे और सारे शिष्टाचार को ताक पर रख कर उन्होंने जवाब दिया, कि “अपने सुझाव अपने नेता को दीजिए”। उन्होंने कहा कि “जहाँ-जहाँ आपकी पार्टी की सरकारें हैं वहाँ के मुख्यमंत्री गण टीके के बारे में मनगढ़ंत अफ़वाहें उड़ाते हैं। यही कारण है कि कांग्रेस शासित राज्यों में टीकाकरण राष्ट्रीय औसत से कम है”।
एक दिन पहले डॉ. मनमोहन सिंह ने प्रधानमंत्री को पत्र लिख कर टीकाकरण को और बढ़ाने की सलाह दी थी। बुजुर्ग प्रधानमंत्री को इस तरह से जवाब देना शोभनीय नहीं कहा जा सकता। डॉ. मनमोहन सिंह देश के दो बार प्रधानमंत्री रहे हैं। और साल 2008 की वैश्विक महामारी का उन्होंने कुशलतापूर्वक सामना किया था। उन्हें इस तरह से जवाब देना हेकड़ी जताना है।
कोरोना कोई अचानक नहीं प्रकट हुआ। क़रीब डेढ़ साल हो गया इसको फैले। लेकिन इस डेढ़ साल में सरकार ने क्या किया? जबकि इस बीच लाखों करोड़ रुपया तो प्रधानमंत्री केयर फंड में आया है, इसके अतिरिक्त संयुक्त राष्ट्र और विश्व स्वास्थ्य संगठन से भी आया किंतु इस धन से कोरोना आपदा नियंत्रण पर काम नहीं किया गया। अस्पतालों की हालत दयनीय है। पूरे देश में हाहाकार मचा हुआ है। कोरोना संक्रमण पिछले साल के मुक़ाबले कई गुना ज़्यादा गति से बढ़ रहा है मगर सरकार निश्चिंत है। हर बार कह दिया जाता है कि टीकाकरण का काम तेज़ी से चल रहा है। लेकिन कितना तेज़ी से चल रहा है, इसके जनसंख्या के अनुरूप आँकड़े कभी नहीं दिए गए।
आज की तारीख़ में अब तक कुल 12.69 करोड़ लोगों को कोरोना टीका लगने का दावा है। यह कुल आबादी का दस परसेंट से भी कम हुआ। जबकि सरकार दुनिया भर में तीन महीने से ढिंढोरा पीट रही है, कि हमने सबसे पहले टीकाकरण शुरू किया। वास्तविकता यह है कि रूस और चीन में काफ़ी पहले टीकाकरण शुरू हो गया था। बस उन्होंने इसे प्रचारित नहीं किया। अपने देश में लोगों को टीका लगाने के पहले पड़ोसी देशों को बाँटा गया ताकि मोदी जी की वैक्सीन डिप्लोमेसी हिट हो जाए। किंतु अपने ही देश में जिनको पहला टीका लगा है, उन्हें दूसरी डोज़ नहीं मिल रही। और जिनको दोनों डोज़ लग चुकी है, वे भी कोरोना संक्रमित हो रहे हैं। इससे साफ़ है कि इस टीकाकरण में काफ़ी झोल है।
यह सच है कि कोरोना केवल भारत में ही नहीं है बल्कि योरोप, अमेरिका, कनाडा, आस्ट्रेलिया और अफ़्रीका में भी हालत गम्भीर है। लेकिन उन मुल्कों में बहुत पहले से ही तैयारियाँ मुकम्मल कर ली गई थीं। एक तो सख़्त लॉकडाउन और पैनिक को न बढ़ने देना भी कारगर उपाय रहे। भारत के अलावा किसी भी अन्य देश में सदैव मॉस्क लगाए रहने पर ज़ोर नहीं है। जब आप भीड़-भाड़ वाली जगहों में जाएँ तब मॉस्क लगा लें। मगर लॉकडाउन पर सख़्ती से अमल हो रहा है। वहाँ भी अस्पताल फुल हैं, बेड नहीं हैं। परंतु वहाँ पैनिक नहीं होने के कारण लोग बुख़ार आने पर घर पर रहना पसंद करते हैं। घबरा कर अस्पताल की तरफ़ नहीं भागते। वहाँ की स्वास्थ्य सेवाओं में लगे लोग पीड़ित को फ़ोन कर हाल-चाल लेते रहते हैं और उसे आवश्यक दवाओं की सलाह भी देते रहते हैं। यहाँ की तरह नहीं कि फ़ौरन अस्पताल भागे। यहाँ जिसका भी राजनीतिक रसूख़ है, जिनके पास पैसा है वे हल्का-सा बुख़ार होने पर अस्पताल में बिस्तर घेर लेते हैं। क्योंकि यहाँ बीमार पड़ने पर नामी अस्पताल में भर्ती होकर इलाज करवाना भी एक फ़ैशन है। नतीजा यह होता है कि ज़रूरतमंद को न इलाज मिलता है न अस्पताल में बेड न कोई सलाह। पिछले दिनों एक केंद्रीय मंत्री ने ग़ाज़ियाबाद के ज़िला अधिकारी को इसलिए तलब कर लिया क्योंकि उनके किसी रिश्तेदार को अस्पताल में बेड क्यों नहीं मिल रहा। ऐसी स्थिति में कोरोना से कैसे लड़ेंगे?
शायद इसीलिए पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने 18 अप्रैल को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर सरकार को पांच सुझाव दिए थे। इनमें कोरोना से लड़ाई के लिए टीकाकरण को बढ़ाना और यूरोपीय एजेंसियों अथवा यूएसएफडीए द्वारा स्वीकृत टीकों को मंजूरी प्रदान करना शामिल है। मनमोहन सिंह ने अपने पत्र में लिखा, 'इस संबंध में मेरे पास कुछ सुझाव हैं। इन्हें रखते समय मैं इस बात पर जोर देना चाहता हूं कि मैं इन्हें रचनात्मक सहयोग की भावना से आपके विचार के लिए रख रहा हूं। मैंने इस भावना में हमेशा विश्वास किया है और अमल किया है।'
पूर्व प्रधानमंत्री ने जो सुझाव दिए हैं उसके मुताबिक, कोरोना के खिलाफ हमारी लड़ाई में टीकाकरण के प्रयासों को बढ़ाना ही होगा। हमें टीकाकरण की कुल संख्या की ओर देखने की बजाय कुल आबादी में कितने प्रतिशत लोगों का टीकाकरण हुआ है, उस पर ध्यान देना चाहिए। सच बात तो यह है, कि भारत में अभी तक बहुत कम प्रतिशत आबादी का टीकाकरण हुआ है। पूर्व प्रधानमंत्री ने कहा, 'मुझे विश्वास है कि सही नीति के जरिये हम कहीं बेहतर और बेहद जल्द काम कर सकते हैं’।
उन्होंने यह भी कहा कि सरकार को कुछ टीके एडवांस में रखने चाहिए। और प्रधानमंत्री को-वैक्सीन तथा कोविशील्ड के अलावा विदेशी टीकों को भी मँगवाएँ। साथ में सरकार यह भी तय करे कि केंद्र कितने टीके अपने पास रखेगा और कितने राज्यों को देगा, इसमें पारदर्शिता रहनी चाहिए। उनके अनुसार केंद्र अपने पास दस फ़ीसदी टीका ही रिज़र्व रखे। उन्होंने लिखा, राज्यों को ऐसे फ्रंटलाइन वर्कर्स की श्रेणियों को परिभाषित करने की कुछ छूट दी जानी चाहिए जिन्हें टीके लगाए जा सकते हैं भले ही वे 45 साल से कम उम्र के हों। उदाहरण देते हुए उन्होंने बताया कि राज्य शायद स्कूल अध्यापकों या वाहन चालकों इत्यादि को फ्रंटलाइन वर्कर्स की श्रेणी में रखना चाहें। डॉक्टर मनमोहन सिंह ने याद दिलाया कि भारत में वैक्सीन का बड़ा हिस्सा निजी क्षेत्र ही बनाता है। इसलिए सरकार इनकी मदद करे। उन्होंने कहा, 'मेरा मानना है कि यह समय अनिवार्य लाइसेंस क़ानूनों को लागू करने का है ताकि बड़ी संख्या में कंपनियां लाइसेंस के तहत टीकों का उत्पादन कर सकें’।
इस पत्र से सरकार में हड़कंप मचा और जवाब देने के लिए केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री उतरे। जिनकी छवि एक सौम्य राजनेता की है। मगर उन्होंने भी जवाब देने में सामान्य शिष्टाचार को भुला दिया और बुजुर्ग पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को ही कठघरे में खड़ा कर दिया। उन्होंने कहा कि आपके सुझाव मिलने के एक सप्ताह पहले ही हमने विदेशी कंपनियों को वैक्सीन के ऑर्डर दे दिए हैं। उन्होंने तोहमत लगाई कि उल्टे आपके नेता ही टीकाकरण का मखौल उड़ा रहे हैं। उन्होंने कहा कि कांग्रेस शासित सरकारों में टीकाकरण की स्थिति बहुत ख़राब है।
जबकि हक़ीक़त यह है कि पूर्व प्रधानमंत्री का पत्र मिलने के बाद सरकार ने कुछ कदम उठाए। सोमवार को सरकार ने फ़ैसला किया कि एक मई से 18 साल से ऊपर की उम्र के लोगों का टीकाकरण होगा। लेकिन सरकार के पास इस बात का कोई जवाब नहीं है कि क्या सरकार के पास इतने वैक्सीन हैं कि सबका टीकाकरण क़राया जा सके? यदि नहीं हैं तो सिर्फ़ घोषणाएँ करने से क्या होगा?
यह समय परस्पर मिल-बैठ कर आपदा से उबरने के लिए रणनीति बनाने का है। यह नहीं कि यदि कोई विरोधी नेता राय दे तो सरकार पलट कर जवाब देने लगे।
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉक्टर हर्षवर्धन ने इस बात पर भी विचार नहीं किया, कि डॉक्टर मनमोहन सिंह 88 वर्ष के हैं, विश्वप्रसिद्ध अर्थशास्त्री हैं। वे दस साल तक देश के प्रधानमंत्री रहे हैं। उन्हें इस जवाब से आघात पहुँच सकता है। इधर डॉक्टर हर्षवर्धन ने ट्वीट किया और उधर मनमोहन सिंह कोरोना संक्रमित हो गए। कुल मिलाकर समय चुनौतीपूर्ण है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)
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