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ये कैसा 'योगीराज' : मिर्ज़ापुर में दुर्घटना की ख़बर कवर करने गए आंचलिक पत्रकार के साथ अपराधियों जैसा सुलूक

आरोप है कि पुलिस ने थाने के लॉकअप में बंद कर पत्रकार को लाठी-डंडों से जमकर पीटा और मामले के तूल पकड़ने पर उसे शांति भंग की धारा में निरुद्ध कर दिया।
Journalist Abhinesh Pratap Singh
पत्रकार अभिनेश प्रताप सिंह

उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर से करीब 50 किलोमीटर दूर ड्रमनगंज थाना पुलिस ने सड़क हादसे की कवरेज करने गए एक आंचलिक पत्रकार के साथ अपराधियों कि तरह सलूक किया। आरोप है कि पुलिस ने थाने के लॉकअप में बंद कर पत्रकार को लाठी-डंडों से जमकर पीटा और मामले के तूल पकड़ने पर उसे शांति भंग की धारा में निरुद्ध कर दिया। पुलिसिया जुल्म-ज्यादती की खबरें और पीड़ित पत्रकार के शरीर पर लाठियों के निशान की तस्वीरें अब सोशल मीडिया पर तैर रही हैं। मिर्जापुर के पुलिस अधीक्षक संतोष कुमार मिश्र घटना से वाकिफ हैं, लेकिन आरोपी पुलिसकर्मियों के खिलाफ अभी कोई कार्रवाई नहीं हुई है।

पुलिसिया जुल्म के शिकार पत्रकार अभिनेश प्रताप सिंह (26 वर्ष) बनारस से प्रकाशित होने वाले एक दैनिक अखबार ‘जागरूक एक्सप्रेस’ के लिए बतौर आंचलिक संवाददाता के रूप में कार्यरत हैं। वह मूलतः किसान हैं और मिशन के तौर पर पत्रकारिता करते हैं। बउरा रघुनाथ सिंह ग्राम पंचायत के करनपुर गांव के अभिनेश जुझारू पत्रकार माने जाते हैं। 11 जून 2023 को ड्रमनगंज घाटी के समीप छोटका मोड़ के पास एक ट्रक दुर्घटनाग्रस्त हो गया था, जिसमें ट्रक के चालक और खलासी की मौत हो गई थी। सूचना मिलते ही अभिनेश मौके पर पहुंचे और उन्होंने घटनास्थल की कुछ तस्वीरें भी उतारी। यह सब ड्रमनगंज थाना पुलिस को नागवार गुजरा और खाकी वर्दीधारी जवानों ने उन्हें पकड़ लिया। ड्रमनगंज मिर्जापुर की लालगंज तहसील का एक छोटा सा कस्बा है।

क्या है पूरा मामला?

पुलिसिया अत्याचार की कहानी सुनाते अभिनेश रो पड़े। उन्होंने "न्यूज़क्लिक" से कहा, "आप सोच रहे होंगे कि पत्रकार होने के कारण किसी बहुत बड़ी गड़ब़ड़ी को उजागर करने पर हमें पीटा गया होगा, लेकिन ऐसा नहीं है। मेरा तो कोई गुनाह ही नहीं था। दुर्घाटना स्थल पर पहुंचते ही जीप में बैठे एक दरोगा और सिपाहियों ने मुझे घेर लिया। पुलिस वालों ने सबसे पहले मेरी बाइक की चाबी छीनी और फिर मोबाइल। हमसे कहा कि तुमसे पूछताछ करनी है। उन्होंने मुझे जबरिया घसीटा और उस जीप में ठूंस दिया गया, जिसमें पहले से ही कुछ मुल्जिम बैठाए गए थे। मेरी बाइक एक पुलिसकर्मी लेकर थाने आया। जीप में मौजूद सिपाही मुझे गालियां दे रहे थे और बोल रहे थे कि चलो थाने में हम तुम्हारा ऐसा हाल करेंगे कि तुम मीडियागीरी करना भूल जाओगे।"

"ड्रमनगंज थाने में पहुंचते ही सिपाहियों ने हमें इंस्पेक्टर वीरेंद्र कुमार के सामने पेश किया। कुछ देर बाद मेरे पास कई सिपाही आए और उन्होंने पकड़ लिया और हमें हवालात ले गए। वहां पहले से ही कई मुल्जिम थे। हवालात में पहुंचते ही हमारी पिटाई शुरू कर दी गई। तीन-चार पुलिसकर्मियों ने हमारा हाथ-पैर पकड़ा और खाकी वर्दीधारी जवानों ने हमारे शरीर पर लाठियां बरसानी शुरू कर दी। हम रोते-चिल्लाते रहे। अपना गुनाह पूछते रहे और पुलिस वाले हमें गालियां देते हुए पीटते रहे। हमारे शरीर पर तब तक लाठियां तोड़ी गई जब तक हम मूर्छित नहीं हो गए। होश में आने के बाद भी पुलिस वालों ने हमें दोबारा लाठी-डंडों से पीटा। कुछ पुलिस वाले हमें वाहन चोर गिरोह का सरगना बता रहे थे और हम बार-बार दुहाई दे रहे थे कि अपराधी नहीं हैं। हम सिर्फ खबरें लिखते हैं।"

कई घंटे तक पीटती रही पुलिस

घटनाक्रम का ब्योरा देते हुए आंचलिक पत्रकार अभिनेश प्रताप सिंह बताते हैं, "ड्रमनगंज थाने में तीन-चार घंटे तक हमारे ऊपर पुलिस ने कहर बरपाया। वो बार-बार कहते रहे कि पुलिस के खिलाफ बहुत खबरें लिखते हो। हमारे घेरे में आ गए हो। हिसाब चुकता कर देंगे। ड्रमनगंज थाना पुलिस का जब तक जी चाहा, वो हमें पीटते रहे। जब वो थक-हार गए तब बताया कि तुम्हें शांतिभंग के आरोप में जेल भेजा जाएगा। अगर जेल जाने से बचना चाहते हो तो जमानतदार बुलाओ। बाद में ओमप्रकाश नामक सिपाही ने हमें अपना मोबाइल फोन दिया। हमने अपनी मां को घटना की जानकारी दी तो वह दहाड़ मारकर रोने लगीं। हमारे परिजन जब तक थाने पहुंचते, उससे पहले पुलिस वालों ने दफा 151 (शांति भंग) के आरोप में हमारा चालान कर दिया। पुलिस की पिटाई से मेरे चेहरे, सीने और टांगों पर काफी चोटें आई हैं। मैं आज तक नहीं समझ पाया कि पुलिस ने हमें बुरी तरह क्यों पीटा। क्या किसी अखबार के लिए खबर लिखना जुर्म है? "

पत्रकार अभिनेश के शरीर पर अब भी मौजूद हैं चोट के निशान

करनपुर निवासी अभिनेश प्रताप सिंह काफी दिनों से जागरूक एक्सप्रेस के लिए समाचार संकलन का काम करते थे। वह पेशे से किसान हैं। इनके पिता महेंद्र प्रताप सिंह का निधन हो चुका है। इनके पास 15-16 बीघा जमीन है। पुलिस की बर्बर पिटाई की घटना के बाद इनकी मां पूनम सिंह का रो-रोकर बुरा हाल है। वह कहती हैं, "मेरे बेटे का गुनाह सिर्फ इतना है कि वह अखबार के लिए समाचार संकलन करता था। हमारे बेटे ने आज तक किसी को नहीं सताया। पुलिस ने न जाने क्यों उसे पकड़ा और अकारण उसके ऊपर लाठियां तोड़ी।"

एसपी दफ़्तर में दी शिकायत

पत्रकार अभिनेश कुमार 12 जून 2023 को ड्रमनगंज इंस्पेक्टर और दोषी पुलिस कर्मियों के खिलाफ कार्रवाई के लिए अर्जी देने मिर्जापुर पहुंचे। पुलिस अधीक्षक दफ्तर पर मौजूद मीडियाकर्मियों के सामने उन्होंने अपने शरीर पर लगे पुलिस के डंडे के जख्मों को दिखाया और रो पड़े। मौके पर कोई पुलिस अफसर मौजूद नहीं था। तब उन्होंने दफ्तर में अपनी अर्जी दी और रजिस्टर्ड डाक से भी शिकायत भेजी। पिछले दो दिनों से अभिनेश पर पुलिसिया जुल्म-ज्यादती की तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल हो रही हैं। मिर्जापुर के पुलिस अफसरों ने इस मामले को अभी तक संज्ञान में नहीं लिया है। यूपी पुलिस और डीजीपी को शिकायती-पत्र ट्वीट किए जाने के बावजूद पुलिस अफसरों का रवैया बेहद ढीला है। इस मामले में अभी जांच तक शुरू नहीं हो सकी है।

मिर्जापुर के एसपी को भेजा गया शिकायती-पत्र

पत्रकार अभिनेश कहते हैं, "पुलिस वाले मुझे अभी भी धमकियां दे रहे हैं। पुलिसिया आतंक से हर कोई डरा हुआ है। समझ में यह नहीं आ रहा है कि यूपी में ये कैसे रामराज है। पुलिस जिसे चाहती है, पकड़ लेती है और हवालात में ठूंसकर पिटाई करने लग जाती है।"

ज़ुल्म-ज़्यादती की तस्वीरें वायरल

आंचलिक पत्रकार अभिनेश प्रताप के साथ मारपीट की जो तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल हुई हैं उसमें उनके शरीर पर गंभीर चोट के निशान दिखाई दे रहे हैं। सोमवार को पुलिस कप्तान संतोष कुमार मिश्र से मिलने गए अभिनेश के मुताबिक, धारा 151 में जमानत के बाद पुलिस ने हमारी बाइक लौटा दी है। साथ ही मेरा फोन भी वापस कर दिया है। वह कहते हैं, "ड्रमंडगंज थाने में जिन पुलिसकर्मियों ने हमारे ऊपर लाठियां तोड़ी हैं उनमें एक एक दरोगा और तीन सिपाही शामिल हैं। इनमें से हम किसी का नाम नहीं जानते, लेकिन देखते ही हम उन्हें जरूर पहचान लेंगे। हमें तो अकारण ही थाने लाया गया और खाकी वर्दी ने बर्बर कार्रवाई की। हम शाम तक घर नहीं लौटे तो हमारे परिजन और सगे संबंधित परेशान रहे। ड्रमनगंज थाना पुलिस ने हमें जो शारीरिक और मानसिक यातना दी है उसकी पीड़ा हम नहीं भूल पा रहे हैं। हमारे मन-मस्तिक पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ा है।

मिर्जापुर के पुलिस अधीक्षक संतोष कुमार मिश्र ने इस मामले में मिर्जापुर के पत्रकारों को जो बयान दिया है उसके मुताबिक, "पत्रकार अभिनेश की शिकायत मेरे संज्ञान में हैं। किन परिस्थितियों में ऐसा हुआ है, हम इसकी जांच करा रहे हैं। मैं जांच रिपोर्ट का इंतज़ार कर रहा हूं। यदि पुलिसकर्मी रिपोर्ट में दोषी पाए गए तो हम सख़्त कार्रवाई करेंगे पुलिस ने अगर नियम विरुद्ध ढंग से मारपीट की है तो हम थाना प्रभारी समेत बाकी पुलिसकर्मियों पर कार्रवाई करेंगे। फिलहाल मामले की जांच लालगंज की डीएसपी को मामले जांच सौंपी गई है।" लालगंज की डिप्टी एसपी मंजरी राव से कई बार संपर्क करने की कोशिश की गई, लेकिन उनका फोन नहीं उठा।

पहले से बदनाम है मिर्ज़ापुर पुलिस

मानवाधिकार हितों की रक्षा के लिए कई सालों से मुहिम चला रहे जाने-माने एक्टिविस्ट डा. लेनिन रघुवंशी कहते हैं, "आंचलिक पत्रकार अभिनेश प्रताप सिंह के साथ थाने के लॉकअप में हुई बर्बर पिटाई के मामले में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग में शिकायत दर्ज कराई जाएगी। पुलिसिया जुल्म-ज्यादती के मामले में मिर्जापुर पहले से ही बदनाम रहा है। सिर्फ पूर्वांचल ही नहीं, पूरे देश को मालूम है कि मिड डे मील में नमक-रोटी परोसे जाने का खुलासा करने वाले पत्रकार पवन जायसवाल पर किसी तरह की कार्रवाई हुई थी। पवन के मामले में मिर्जापुर पुलिस ने धारा 120-बी, 186,193 और 420 के तहत फर्जी मामला दर्ज किया था। पत्रकार पर सिर्फ इसलिए फर्जी मुकदमा लादा गया था, क्योंकि खबर छपने से सरकार और नौकरशाही की नाक कट रही थी। स्कूली बच्चों को घटिया भोजन परोसे जाने के मामले को उजागर करने वाले पवन भी आंचलिक पत्रकार थे।"

डॉ. लेनिन यह भी कहते हैं, "पुलिस ने पिछले पांच सालों में जिस तरह से मीडिया का गला घोंटा है उसे लोकतंत्र का चौथा खंभा शायद कभी नहीं भुला पाएगा। पूर्वांचल की बात करें तो जुल्म-ज्यादती के भय से थर-थर कांप रहे मीडियाकर्मी और तथाकथित जर-खरीद पत्रकार अब सत्तारूढ़ दल से सवाल पूछना ही भूल गए हैं। पत्रकारों का लगातार दमन और बढ़ती पाबंदियों ने मीडिया की आजादी के लिए बड़ा खतरा पैदा कर दिया है। जो पत्रकार सरकार से सवाल करते हैं उनके खिलाफ सोशल मीडिया पर नफरत फैलाने का अभियान चलाया जाता है। कई बार तो बलात्कार या हत्या जैसी धमकियां भी दी जाती हैं। पुलिस झूठे मामले गढ़ देती है। योगी सरकार अलग-अलग तरीकों से पत्रकारों को काम करने से रोकती रही है। कभी उन्हें धमकाकर, फर्जी गिरफ्तारी या फर्जी मामले दर्ज करके अथवा कई तरह की पाबंदियां लगाकर चुप कराती रही है। जो सरकार के खिलाफ बोलते हैं उन पर देशद्रोह जैसे मुकदमों और गिरफ्तारी का खतरा लगातार बना रहता है।"

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