क्या औरत की इच्छाएं ज़रा भी मायने नहीं रखतीं ?
आधुनिक नारी विमर्श के सिद्धांतकार 'सिमोन द बुआ' ने अपनी पुस्तक में लिखा है कि, "औरत पैदा नहीं होती, बना दी जाती है।" मैं उनके इस वाक्य में आगे जोड़ना चाहूंगा, कि औरत को आज महज़ संपत्ति या वस्तु के तौर पर देखा जाता है। मेरे इस बात को कहने का एक विशेष संदर्भ भी है। पिछले दिनों पाकिस्तान से भारत में अवैध रूप से आई एक महिला सीमा हैदर, जिसका ऑनलाइन गेम खेलते हुए नोएडा के एक लड़के से कथित रूप से प्रेम हो गया है और वह अपने चार बच्चों के साथ नेपाल के रास्ते अवैध रूप से भारत पहुंच गई। उसने इच्छा ज़ाहिर की कि वह अपने प्रेमी सचिन से धर्म परिवर्तन करके विवाह करेगी। अभी भारत-पाकिस्तान के मीडिया में इस घटना पर तरह-तरह के एंगल से चर्चाएं चल ही रही थीं कि इसी से मिलती-जुलती एक और घटना हो गई, लेकिन इसमें धर्म और किरदार बदल गए, परंतु दोनों के केंद्र में दो औरतें ही हैं। जयपुर में रहने वाली अंजू विश्वकर्मा वैध वीज़ा लेकर पाकिस्तान पहुंचती है और बताती है कि वह कथित रूप से अपने मित्र नसीरुल्लाह से मिलने के लिए वैध कागज़ातों के साथ पाकिस्तान आई है। उसका भी संपर्क ऑनलाइन गेम के द्वारा हुआ था। इसके बाद वह कहती है कि वह उससे प्रेम भी करती है, शादी भी कर सकती है। भारत में उसके दो बच्चे हैं और पति है। वह दावा करती है कि उसका पति और ससुराल वाले उसे बहुत तंग करते थे। अब ख़बरें हैं कि उसने पाकिस्तान में धर्म परिवर्तन करके अपने कथित प्रेमी या दोस्त से विवाह भी कर लिया है। अंजू का कहना है कि मीडिया और उसके परिवार वालों ने इतना ग़लत प्रचार किया है कि अब भारत में उसकी जान को ख़तरा है, सीमा हैदर भी यही कहती है कि अगर वह पाकिस्तान भेजी गई, तो उसकी जान को ख़तरा है।
उन दोनों के कथनों में काफ़ी हद तक सच्चाई भी है। इस तथ्य के कारणों की तलाश करने के लिए हमें इन दोनों महिलाओं के साथ भारत और पाकिस्तान में आम जनता व मीडिया के ट्रीटमेंट को देखना होगा। यह एक ऐसी सच्चाई है, जो दोनों समाजों में पितृसत्ता के घिनौने चेहरों को उजागर करती है। भारत-पाकिस्तान दोनों का समाज और संस्कृति एक है, भले धर्म अलग हो और औरतों को लेकर दोनों की सोच भी एक-सी है। सीमा हैदर जब भारत आती है और यह कहती है कि वह अपना धर्म परिवर्तन करके सचिन से विवाह करेगी, तब मीडिया और हिंदू वर्ग का एक तबका इस तरह ख़ुशी मनाता है, मानो उसने कोई जंग जीत ली हो। दूसरी ओर भारत में ही कुछ लोग, निश्चित रूप से वे हिंदू नहीं, इसे दूसरी तरह से प्रस्तुत करते हैं, जैसे सीमा हैदर मुस्लिम है ही नहीं। उसे इस्लाम के बारे में कुछ भी नहीं पता, वह उर्दू भाषा नहीं बोलती और वह फर्राटेदार इंग्लिश बोलती है, इसलिए कुछ लोग उसे पाकिस्तान का एजेंट या भारतीय गुप्तचर विभाग का एजेंट बता रहे थे। हालांकि इसमें ज़्यादातर बातें तथ्यत: गलत थीं। पहला - किसी हिंदू या मुस्लिम के लिए ज़रूरी नहीं कि उसे अपने धर्म के बारे में जानकारी हो। दूसरा - पाकिस्तान का आम मध्यम और निम्न वर्ग उर्दू नहीं बोलता, वह पंजाबी, उर्दू और हिंदी से बनी मिली-जुली भाषा बोलता है, जिस तरह की भाषा पंजाब, हरियाणा और दिल्ली में भी बोली जाती है। इसके अलावा तीसरा - सबसे हास्यास्पद पहलू है उसे पाकिस्तानी जासूस के रूप में पेश करना। कोई भी महिला अपने चार बच्चों को साथ लेकर जासूसी करने नहीं आएगी। अब तो सुरक्षा एजेंसियों ने भी इस बात को प्रमाणित किया है कि हर पहलू से पूछताछ करने पर उसके पाकिस्तानी जासूस होने के कोई प्रमाण नहीं मिले हैं। उसको कहीं भी फर्राटेदार इंग्लिश बोलते कभी नहीं सुना गया, थोड़ी-बहुत कामचलाऊ इंग्लिश सभी बोलते हैं।
सीमा हैदर और अंजू विश्वकर्मा दोनों में ये समानताएं हैं कि दोनों ही पहले से शादीशुदा हैं और दोनों के बच्चे हैं। अंतर केवल यह है, कि सीमा अपने बच्चों को साथ ले आई और अंजू अपने बच्चों को भारत ही में छोड़ गई। अब हम देखते हैं कि इन दोनों पर भारतीय और पाकिस्तानी मीडिया में क्या कहा जा रहा है?
आफ़ताब इकबाल पाकिस्तान के एक वरिष्ठ और जनपक्षधर पत्रकार हैं। सैनिक शासन का विरोध करने के कारण उन्हें अनेक बार जेल जाना पड़ा। उनके यूट्यूब चैनल पर भारत और पाकिस्तान के लाखों फ़ॉलोअर्स हैं। वे अपने यूट्यूब के एक प्रोग्राम में कहते हैं, "मुझे जब सीमा हैदर के बारे में पता लगा, तो मुझे लगा कि यह कोई बेवा होगी या फ़िर उसके आदमी ने उसे छोड़ दिया होगा, लेकिन पता लगा कि चार बच्चों की मां है, जिसका आदमी बेचारा मेहनत मज़दूरी करके सऊदी अरब से पैसा भेजता था, वह उसी के पैसे से बने घर को बेचकर शादी करने के लिए हिंदुस्तान चली गई।" फिर वे सोशल मीडिया पर खींझते हुए कहते हैं कि "ये हाथ-हाथ में मोबाइल सारी नैतिकता और सामाजिक मान्यताओं को नष्ट कर देगा।"
पाकिस्तान के एक और चर्चित प्रगतिशील लेखक जियो न्यूज़ चैनल पर कहते हैं कि "देखिए ये सारा मामला नैतिकता के प्रश्न से जुड़ा है कि एक शादीशुदा औरत अपने आदमी को छोड़कर बच्चों को लेकर दूसरे देश चली जाती है और धर्म बदलकर विवाह करने की बात करती है। यह धार्मिक और नैतिक दोनों दृष्टि से गलत है, इस तरह की प्रवृत्तियों को समर्थन देना देश और समाज दोनों के लिए बहुत अनर्थकारी है।" अपने यूट्यूब चैनल में भी इसी बात को दोहराते हैं, लेकिन यही यूट्यूबर और न्यूज़ चैनल वाले; जब एक हिंदुस्तानी महिला बिना तलाक़ दिए अपने पति और बच्चों को छोड़कर पाकिस्तान जाकर कथित रूप से धर्म परिवर्तन करके विवाह कर लेती है, तो चुप्पी साध लेते हैं तथा कुछ लोग हर्ष मनाते हैं। ये सारे लोग कोई मुल्ला-मौलवी नहीं हैं, प्रगतिशील और जनपक्षधर लोग हैं। मानो यह कोई हॉकी या फुटबॉल का मैच हो गया, जो अभी एक-एक की बराबरी पर है। चाहे भारत हो या पाकिस्तान, दोनों मुल्कों में इन सारे प्रकरण को लेकर लोग बेहद भद्दी टिप्पणियां कर रहे हैं।
इस संदर्भ में मैंने दोनों देशों की तुलना करके यह दिखाया है कि औरत हर धर्म में भोग्या है, निजी संपत्ति है। पुरुष प्रधान समाज में यदि कोई स्त्री किसी पुरुष के बारे में सोच भी ले या बातचीत कर ले, तो उसे समाज में चरित्रहीन करार दिया जाता है, वहीं यदि पुरुष ऐसा करे तो प्रतिक्रिया एक समान नहीं रहती। बचपन से ही लड़कियों पर नियंत्रण रखा जाता है तथा विवाह के बाद उसे यह सीख दी जाती है कि उसका पति ही उसका सब कुछ है, उसे दूसरे किसी भी पुरुष के बारे में नहीं सोचना चाहिए। अगर स्त्री कम उम्र में विधवा हो जाती है और उसके छोटे बच्चे हैं, तो हिंदू समाज में आमतौर पर यह कहा जाता है कि वह बच्चों का मुंह देखकर अपना जीवन काट ले, लेकिन वहीं किसी की पत्नी के मरने पर यही समाज उसका विवाह जल्द से जल्द करवाना चाहता है क्योंकि वह बेचारा अकेले इतना लंबा जीवन कैसे काटेगा? एक विधवा स्त्री की भी इच्छा-आकांक्षा और शारीरिक ज़रूरतें होती हैं, जिस बात पर यह समाज अपनी आंखें मूंद लेता है या चुप्पी साध लेता है। सीमा और अंजू के मामले में भी ऐसा है, जिसमें एक जाति और धर्म इस बात पर गर्व अनुभव करता है, कि एक दूसरे जाति-धर्म की स्त्री हमारे ख़ेमे में आ गई, अब हमारे धर्म का आदमी उसका उपभोग करेगा, क्योंकि सारे युद्ध औरत के शरीर पर भी लड़े गए हैं। मणिपुर में एक जाति और धर्म के लोग दूसरी जाति और समुदाय की दो स्त्रियों को निर्वस्त्र करके घुमाते हैं। मणिपुर की घटना हो या सीमा-अंजू की दास्तां, दोनों में ही औरत दूसरे समुदाय के लिए किसी ट्रॉफी की तरह है, जो एक जीत के रूप में उन्हें हासिल हुई है।
लेफ़ तलस्तोय के महान उपन्यास 'अन्ना करेनिना' की नायिका का विवाह एक बड़े ज़मींदार घराने में होता है, उसका एक बच्चा और धन-संपत्ति सब कुछ है, उसका पति मक्कार और धूर्त है, लेकिन अन्ना इसके विपरीत स्वभाव वाली है। उसका पति से सामंजस्य नहीं बैठता, इसलिए वह अपने ही समाज के एक दूसरे कुलीन व्यक्ति से प्रेम करने लगती है, लेकिन फिर अनेक सामाजिक नैतिकता के प्रश्न उसके सामने खड़े होते हैं, इन्हीं प्रश्नों से जूझते हुए उसे अंत में रेलवे लाइन से कटकर आत्महत्या करनी पड़ती है। 1887 में तलस्तोय के लिखे इस उपन्यास में नायिका की त्रासदी दो शताब्दी बीत जाने के बाद भी आज भी जारी है, सीमा हैदर और अंजू की कहानियां कुछ ऐसा ही कहती हैं।
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