बांग्लादेश की राजनीति की कुछ पहेलियां
शेख हसीना के इस्तीफे के बाद प्रधानमंत्री कार्यालय के सामने इकट्ठा हुआ लोगों का विशाल हुज़ूम। फोटो: मोहम्मद जोनी हुसैन/विकिमीडिया कॉमन्स
सोमवार, 5 अगस्त को पूर्व-प्रधानमंत्री शेख हसीना जल्दबाजी में बांग्लादेश वायुसेना के सी-130जे सेना के विमान से दिल्ली के पास हिंडन वायुसेना अड्डे पर उतरी। रिपोर्ट्स के मुताबिक, उनका इरादा या तो यूनाइटेड किंगडम (जहां उनकी भतीजी, ट्यूलिप सिद्दीक रहती हैं और जो नई लेबर सरकार में मंत्री हैं), फ़िनलैंड (जहां उनके भतीजे रादवान मुजीब सिद्दीक रहते हैं और जिनकी शादी फ़िनिश नागरिक से हुई है) या संयुक्त राज्य अमेरिका (जहां उनके बेटे सजीब वाजेद जॉय रहते हैं और जो बांग्लादेश-अमेरिका के नागरिक हैं) के यहां जाने का था। सेना प्रमुख वेकर उज-ज़मान, जो छह सप्ताह पहले ही सेना प्रमुख बने थे और शादी के नजरिए से उनके रिश्तेदार हैं, ने उन्हें उसी दिन ख़बर दे दी थी कि हालात गंभीर हैं और भविष्य में चुनाव कराने से पहले वे एक अंतरिम सरकार का गठन करेंगे।
शेख हसीना, बांग्लादेश के इतिहास में सबसे लंबे समय तक प्रधानमंत्री रहने वाली महिला थीं। वे 1996 से 2001 तक प्रधानमंत्री रहीं और फिर 2009 से 2024 तक यानी कुल 20 साल तक पद पर रहीं हैं। यह उनके पिता शेख मुजीब के कार्यकाल से बिलकुल अलग बात थी क्योंकि उनकी हत्या सत्ता में चार साल रहने के बाद 1975 में कर दी गई थी, या जनरल जियाउर रहमान जिनकी हत्या 1981 में की गई जो सत्ता में केवल छह साल ही रह पाए थे। आज फिर से श्रीलंका में महिंदा राजपक्षे के शासन के अंत की याद दिलाने वाला दृश्य सबकी आँखों के सामने घूम गया, हज़ारों की भीड़ ने प्रधानमंत्री के आधिकारिक निवास, गणभवन के दरवाज़े तोड़ दिए और जो कुछ भी हाथ आया उसे लेकर भाग गए।
बंगाल फाउंडेशन के फोटोग्राफर और चीफ क्यूरेटर तंजीम वहाब ने बताया कि, "जब [जनता] महल में घुसी और पालतू हंसों, अण्डाकार मशीनों और आलीशान लाल सोफे को लेकर भागी, तो आप एक लालची शासन के खिलाफ़ निचले तबके के लोगों में कितना गुस्सा है उसे आसानी से महसूस कर सकते हैं।" हसीना के सत्ता से हटाने का जश्न पूरे बांग्लादेश में मनाया गया, साथ ही सरकारी इमारतों पर हमले भी हुए- निजी टीवी चैनल और सरकारी मंत्रियों के आलीशान घर आगजनी के निशाना बने। शेख हसीना की अवामी लीग के कई स्थानीय स्तर के नेता पहले ही मारे जा चुके हैं (पार्टी के स्थानीय अध्यक्ष मोहसिन रजा को खुलना में पीट-पीटकर मार डाला गया)।
बांग्लादेश में स्थिति अस्थिर बनी हुई है, लेकिन “अंतरिम सरकार” के परिचित फॉर्मूले के बाद कहते हैं हालात बड़ी तेजी से सुधर रहे हैं। यही अंतरिम सरकार अंतत नए चुनाव कराएगी। बांग्लादेश में राजनीतिक हिंसा असामान्य बात नहीं है, 1971 में देश के जन्म के समय से ही हिंसा मौजूद है। वास्तव में, शेख हसीना द्वारा अपनी किसी भी आलोचना या विरोध को इतनी मजबूती से दबाने का एक कारण उनका यह डर भी था कि कहीं ऐसी गतिविधि न दोहराई जाए जिसे उन्होंने अपनी युवावस्था में अनुभव किया था। उनके पिता, शेख मुजीबुर रहमान (1920-1975), जो बांग्लादेश के संस्थापक थे, का 15 अगस्त 1975 को तख्तापलट कर दिया गया और उनके परिवार के अधिकांश लोगों की हत्या कर दी गई थी। इस हमले में शेख हसीना और उनकी बहन बच गईं थी क्योंकि वे उस समय जर्मनी में थीं – अब दोनों बहनों को इसी हफ्ते एक ही हेलीकॉप्टर में बैठ कर बांग्लादेश से भाग कर जान बचानी पड़ी। हसीना कई बार हत्या के प्रयासों का शिकार रही हैं, अपने ऊपर इस प्रकार के हमलों के डर से शेख हसीना को अपने खिलाफ किसी भी विरोध के प्रति गहरी चिंता हो जाती थी और यही कारण है कि वे अपने प्रस्थान से 45 मिनट पहले तक चाहती थीं कि सेना एकत्रित भीड़ के खिलाफ फिर से बलपूर्वक कार्रवाई करे।
हालांकि, सेना ने माहौल को भांप लिया था। और तय किया कि अब उनके जाने का समय आ गया है।
शेख हसीना को हटाने से किसको फ़ायदा होगा, इस बारे में पहले से ही होड़ शुरू हो चुकी है। एक तरफ़ छात्र हैं, जिनका नेतृत्व बांग्लादेश स्टूडेंट अपराइजिंग की सेंट्रल कमेटी कर रही है, जिसमें लगभग 158 लोग और छह प्रवक्ता शामिल हैं। मुख्य प्रवक्ता नाहिद इस्लाम ने छात्रों के विचार स्पष्ट किए: "हमारे द्वारा सुझाई गई सरकार के अलावा कोई भी सरकार स्वीकार नहीं की जाएगी। हम अपने उद्देश्य को पाने में शहीदों के बहाए गए ख़ून को धोखा नहीं देंगे। हम जीवन की सुरक्षा, सामाजिक न्याय और एक नए राजनीतिक परिदृश्य के अपने वादे के ज़रिए एक नया लोकतांत्रिक बांग्लादेश बनाएंगे।" दूसरी तरफ़ सेना और विपक्षी राजनीतिक ताकतें हैं (जिनमें मुख्य विपक्षी पार्टी बांग्लादेश नेशनल पार्टी, इस्लामिस्ट पार्टी बांग्लादेश जमात-ए-इस्लामी और छोटी वामपंथी पार्टी गणोसंहति आंदोलन शामिल हैं)। जबकि सेना ने पहली बैठक इन विपक्षी दलों के साथ की थी, छात्र आंदोलन को ख़त्म करने की वकालत करने पर जनता के आक्रोश बढ़े और सेना को छात्र केंद्रीय समिति से मिलने और उनकी प्राथमिक मांगों को सुनने पर मजबूर होना पड़ा।
बांग्लादेश में पोल्टी ख्वा या "फुटबॉल मैच के बीच टीम की जर्सी बदलना" नामक एक प्रथा प्रचलित है, जहाँ सेना हमेशा रेफरी की भूमिका निभाती है। इस नारे का इस्तेमाल अब सार्वजनिक चर्चा में किया जा रहा है, ताकि छात्रों द्वारा खेल के नियमों में व्यापक बदलाव की मांग किए जाने पर सेना द्वारा केवल जर्सी बदलने के किसी भी प्रयास की ओर ध्यान आकर्षित किया जा सके। सेना ने छात्रों की इस मांग को मान लिया है कि नई सरकार का नेतृत्व बांग्लादेश के एकमात्र नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री मुहम्मद यूनुस करेंगे। माइक्रोक्रेडिट आंदोलन के संस्थापक और "सामाजिक व्यवसाय" के प्रवर्तक के रूप में यूनुस को मुख्य रूप से नवउदारवादी एनजीओ दुनिया में एक घटना के रूप में देखा जाता था। हालांकि, पिछले एक दशक में हसीना सरकार ने उनके खिलाफ़ लगातार राजनीतिक प्रतिशोध और छात्र आंदोलन का समर्थन करने के उनके फैसले ने उन्हें प्रदर्शनकारियों के लिए एक अप्रत्याशित "संरक्षक" बना दिया था। छात्र उन्हें अपने एकमात्र के नेता के रूप में देखते हैं, हालांकि उनकी मितव्ययिता की नवउदारवादी राजनीति उनकी मुख्य मांग, जो कि रोजगार की है, से अलग हो सकती है।
छात्र
आज़ादी से पहले भी और क्षेत्र के ग्रामीण चरित्र के बावजूद, बांग्लादेशी राजनीति का केंद्र शहरी क्षेत्र रहा है, जिसका मुख्य केंद्र ढाका रहा है। यहां तक कि जब अन्य ताकतें राजनीतिक क्षेत्र में प्रवेश कर रही थीं, तब भी छात्र बांग्लादेश में प्रमुख राजनीतिक अभिनेता बने हुए थे। उपनिवेशवाद के बाद के पाकिस्तान में सबसे शुरुआती विरोधों में से एक भाषा आंदोलन था, जो ढाका विश्वविद्यालय से उभरा था, जहां 1952 के आंदोलन के दौरान छात्र नेताओं की हत्या कर दी गई थी (उनकी याद में ढाका में शहीद मीनार बनाई गई है)। 1971 में पाकिस्तान से आज़ादी चाहने के स्वतंत्रता संग्राम में छात्र एक महत्वपूर्ण हिस्सा बने थे, यही वजह है कि पाकिस्तानी सेना ने ऑपरेशन सर्चलाइट में विश्वविद्यालयों को निशाना बनाया, जिसके कारण छात्र कार्यकर्ताओं का नरसंहार किया गया था। 1971 के बाद बांग्लादेश में जो राजनीतिक दल उभरे वे मुख्य रूप से खुद के छात्र विंग के माध्यम से विकसित हुए थे – जिसमें अवामी लीग की बांग्लादेश छात्र लीग, बांग्लादेश नेशनल पार्टी की बांग्लादेश जातीयतावादी छात्रदल और जमात-ए-इस्लामी की बांग्लादेश इस्लामी छात्र शिविर शामिल है।
पिछले एक दशक में बांग्लादेश के छात्र इस बात से नाराज़ हैं कि अर्थव्यवस्था में तेज़ी के बावजूद, रोज़गार की कमी बढ़ रही है और उन्हें लगता है कि सरकार को इसकी कोई परवाह नहीं है। शेख हसीना की सरकार में मंत्री शाहजहां खान की बेरुखी भरी टिप्पणियों से छात्रों में गुस्सा उबलने लगा। जुलाई 2019 में ढाका के एयरपोर्ट रोड पर एक बस ने दो कॉलेज छात्रों को कुचल कर मार दिया। इस घटना के बाद सभी उम्र के छात्रों ने सड़क सुरक्षा के लिए बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन किया, जिसके जवाब में सरकार ने गिरफ़्तारियां कीं (जिसमें फ़ोटो जर्नलिस्ट शाहिदुल आलम को 107 दिनों की कैद भी शामिल थी)।
सड़क सुरक्षा विरोध के पीछे, जिसने इस मुद्दे को अधिक आगे बढ़ाया, एक और प्रमुख विषय था। पाँच साल पहले, यानि 2013 में, बांग्लादेश सिविल सेवा में प्रवेश से वंचित छात्रों ने सरकारी नौकरियों में प्रतिबंधात्मक कोटा का विरोध करना शुरू किया था। फरवरी 2018 में, यह मुद्दा बांग्लादेश सामान्य छात्र अधिकार संरक्षण मंच में छात्रों के काम के माध्यम से वापस आया। जब सड़क सुरक्षा विरोध हुआ, तो छात्रों ने कोटा मुद्दा (साथ ही महंगाई/मुद्रास्फीति का मुद्दा) उठाया। कानून के अनुसार, सरकार ने अपने रोजगार में अविकसित जिलों को (10 प्रतिशत), महिलाओं को (10 प्रतिशत), अल्पसंख्यकों को (5 प्रतिशत) और विकलांगों को (1 प्रतिशत) कोटा के साथ-साथ स्वतंत्रता सेनानियों के वंशजों के लिए (30 प्रतिशत) आरक्षण का इंतजाम किया था।
स्वतंत्रता सेनानियों के वंशजों का ही वह कोटा है जिस पर 2013 से ही विवाद चल रहा है और इस साल छात्र प्रदर्शनकारियों के लिए यह एक भावनात्मक मुद्दा बन गया था - खासकर प्रधानमंत्री की एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में की गई भड़काऊ टिप्पणी की ब्रिटिश पत्रकार डेविड बर्गमैन, जो बांग्लादेश की जानी-मानी कार्यकर्ता वकील सारा हुसैन से विवाहित हैं और जिन्हें हसीना सरकार ने निर्वासित कर दिया था, ने इस टिप्पणी को “भयानक गलती” कहा जिसने सरकार को घुटनों पर ला दिया।
सैन्य इस्लाम
फरवरी 2013 में, जमात-ए-इस्लामी के अब्दुल कादर मोल्ला को बांग्लादेश के मुक्ति संग्राम के दौरान मानवता के खिलाफ अपराध करने के लिए आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी (उसे कम से कम 344 नागरिकों की हत्या करने के लिए जाना जाता था)। जब वह अदालत से बाहर निकला, तो उसने एक वी साइन बनाया, जिसके अहंकार ने बांग्लादेश के समाज के बड़े वर्गों को भड़का दिया। ढाका में कई लोग शाहबाग में एकत्र हुए, जहाँ उन्होंने जन जागरण मंच का गठन किया। इस विरोध आंदोलन ने सुप्रीम कोर्ट को फैसले पर दोबारा सोचने पर मजबूर किया, और मोल्ला को 12 दिसंबर को फांसी दे दी गई। शाहबाग आंदोलन ने राजनीति में धर्म की भूमिका को लेकर बांग्लादेश में लंबे समय से चले आ रहे तनाव को सतह पर ला दिया था।
शेख मुजीबुर रहमान ने शुरू में दावा किया था कि बांग्लादेश एक समाजवादी और धर्मनिरपेक्ष देश होगा। सेना द्वारा उनकी हत्या के बाद, जनरल जियाउर रहमान ने देश की कमान संभाली और 1975 से 1981 तक इस पर शासन किया। इस दौरान, जिया धर्म को सार्वजनिक जीवन में वापस ले आए, जमात-ए-इस्लामी पर से प्रतिबंध हटा दिया (जो 1971 के नरसंहार में इसकी भागीदारी के कारण लगाया गया था), और 1978 में भारत के प्रति एक मजबूत आलोचनात्मक रुख वाली राष्ट्रवादी बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) का गठन किया गया। जनरल हुसैन मुहम्मद इरशाद, जिन्होंने 1982 में तख्तापलट के बाद सत्ता संभाली और 1990 तक शासन किया, ने एक कदम आगे बढ़कर घोषणा की कि इस्लाम ही राज्य का धर्म है। इसने मुजीब और उनकी बेटी शेख हसीना के विचारों के साथ एक राजनीतिक विरोधाभास पैदा किया, जिन्होंने 1981 में अपने पिता की पार्टी, अवामी लीग की बागडोर संभाली थी।
शेख हसीना की मध्यमार्गी-धर्मनिरपेक्ष अवामी लीग और बीएनपी के बीच लंबे समय तक चलने वाले मुकाबले के लिए मंच तैयार हो गया था, जिसे 1981 में जनरल की हत्या के बाद ज़िया की पत्नी खालिदा ज़िया ने अपने नियंत्रण में ले लिया था। धीरे-धीरे, सेना-जो अपने शुरुआती दिनों में धर्मनिरपेक्ष थी- में इस्लामवादी भावना का उदय होने लगा। बांग्लादेश में राजनीतिक इस्लाम का विकास आम लोगों में धर्मनिष्ठता के उदय के साथ हुआ है, जिसका कुछ हिस्सा खाड़ी देशों और दक्षिण-पूर्व एशिया में प्रवासी श्रमिकों के इस्लामीकरण से प्रेरित है। आतंकवाद के खिलाफ युद्ध के कई परिणामों के बाद, इस्लामी आस्था में लगातार वृद्धि देखी गई है। किसी को इस खतरे को न तो बढ़ा-चढ़ाकर बताना चाहिए और न ही इसे कम करके आंकना चाहिए।
राजनीतिक इस्लामवादियों का सेना के साथ संबंध, जिनका लोकप्रिय प्रभाव 2013 से बढ़ा है, एक और कारक है जिस पर अधिक स्पष्टता की आवश्यकता है। युद्ध अपराध न्यायाधिकरण द्वारा यह दस्तावेज किए जाने के बाद से जमात-ए-इस्लामी की किस्मत में आई गिरावट को देखते हुए कि कैसे यह समूह मुक्ति संग्राम के दौरान पाकिस्तान के पक्ष में शामिल था, यह संभावना है कि राजनीतिक इस्लाम के इस गठन की वैधता के संदर्भ में एक सीमा है। हालांकि, एक जटिल कारक यह है कि हसीना सरकार ने 2018 और 2024 में दो चुनावों के लिए अमेरिका और भारत की मौन सहमति हासिल करने के लिए “राजनीतिक इस्लाम” के डर का लगातार इस्तेमाल किया। यदि अंतरिम सरकार निर्धारित समय पर निष्पक्ष चुनाव कराती है, तो इससे बांग्लादेशी लोगों को यह पता लगाने का मौका मिलेगा कि क्या राजनीतिक इस्लाम वह व्यवस्था है जिसके लिए वे वोट करना चाहते हैं।
नया शीत युद्ध
छात्रों द्वारा उठाए गए मुख्य मुद्दों से दूर, जिसके कारण शेख हसीना को सत्ता से बाहर होना पड़ा, ऐसे खतरनाक मुद्दे हैं, जिनकी चर्चा अक्सर इस रोमांचक समय में नहीं होती हैं। बांग्लादेश जनसंख्या के हिसाब से दुनिया का आठवां सबसे बड़ा देश है, और दक्षिण एशिया में इसका सकल घरेलू उत्पाद दूसरे नंबर पर है। अपने क्षेत्र और दुनिया में इसकी भूमिका को कम करके नहीं आंका जा सकता है।
पिछले दशक के दौरान, दक्षिण एशिया ने महत्वपूर्ण चुनौतियों का सामना किया है क्योंकि संयुक्त राज्य अमेरिका ने चीन के खिलाफ एक नया शीत युद्ध शुरू किया हुआ है। शुरुआत में, भारत ने अमेरिका के साथ मिलकर यूएस इंडो-पैसिफिक रणनीति बनाने के इर्द-गिर्द काम किया। लेकिन, फरवरी 2022 में यूक्रेन पर रूसी आक्रमण के बाद से, भारत ने खुद को इस अमेरिकी पहल से दूर करना शुरू कर दिया था और अपने खुद के राष्ट्रीय एजेंडे को सबसे आगे रखने की कोशिश की है। इसका मतलब यह हुआ कि भारत ने रूस की निंदा नहीं की, लेकिन रूसी तेल खरीदना जारी रखा। उसी समय, चीन ने बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के ज़रिए भारत के पड़ोसियों बांग्लादेश, नेपाल, पाकिस्तान और श्रीलंका में बुनियादी ढाँचा बनाया था।
यह शायद संयोग नहीं है कि इस क्षेत्र की चार सरकारें जो बीआरआई के साथ सहयोग करना शुरू कर चुकी थीं, गिर गईं और उनमें से तीन में उनकी जगह लेने वाले लोग संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ बेहतर संबंध बनाना चाहते हैं। इसमें शहबाज शरीफ शामिल हैं, जो अप्रैल 2022 में इमरान खान (अब जेल में) को हटाने के बाद पाकिस्तान में सत्ता में आए, रानिल विक्रमसिंघे, जो जुलाई 2022 में श्रीलंका में एक बड़े पैमाने पर हुए विद्रोह के बाद कुछ समय के लिए सत्ता में आए थे और जिनका संसद एक ही सदस्य यानि खुद विक्रमसिंघे थे, जबकि विद्रोह का मक़सद कुछ और था, और नेपाल के केपी शर्मा ओली, जो जुलाई 2024 में संसदीय फेरबदल के बाद सत्ता में आए, जिसने माओवादियों को सत्ता से हटा दिया।
सवाल यह है कि, शेख हसीना को हटाने से क्या होगा, इसका अंदाजा अंतरिम सरकार के तहत होने वाले चुनावों के बाद ही लगाया जा सकता है। लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं है कि ढाका में ये लिए जाने वाले फैसले क्षेत्रीय और वैश्विक नतीजों वाले होंगे।
छात्र आंदोलन की वैधता उसके जन-आंदोलन की ताक़त पर निर्भर है। उनके पास बांग्लादेश के लिए कोई एजेंडा नहीं है, यही वजह है कि पुराने नवउदारवादी टेक्नोक्रेट पहले से ही अंतरिम सरकार के इर्द-गिर्द शार्क की तरह तैर रहे हैं। उनके टीम में वे लोग शामिल हैं जो बीएनपी और इस्लामवादियों का समर्थन करते हैं। वे क्या भूमिका निभाएंगे, यह अभी देखा जाना बाकी है।
यदि छात्र समिति, ट्रेड यूनियनों, खास तौर पर परिधान कर्मचारी यूनियनों के साथ एक गुट बना लेती है, तो संभावना है कि वे वास्तव में एक नए लोकतांत्रिक और जन-केंद्रित बांग्लादेश के निर्माण की राह खोल सकते हैं। अगर वे इस ऐतिहासिक गुट का निर्माण करने में असमर्थ रहते हैं, तो उन्हें मिस्र के छात्रों और श्रमिकों की तरह किनारे लगा दिया जा सकता है, और उन्हें अपने प्रयासों को सेना और एक अभिजात वर्ग के सामने आत्मसमर्पण करना पड़ सकता है जिसने केवल उनकी जर्सी बदली है।
विजय प्रसाद, भारतीय इतिहासकार, संपादक और पत्रकार हैं। वे ग्लोबट्रॉटर में राइटिंग फेलो और मुख्य संवाददाता हैं। वे लेफ्टवर्ड बुक्स के संपादक और ट्राईकॉन्टिनेंटल: इंस्टीट्यूट फॉर सोशल रिसर्च के निदेशक हैं। उन्होंने द डार्कर नेशंस और द पुअरर नेशंस सहित 20 से अधिक पुस्तकें लिखी हैं। उनकी नवीनतम पुस्तकें हैं स्ट्रगल मेक्स अस ह्यूमन: लर्निंग फ्रॉम मूवमेंट्स फॉर सोशलिज्म और (नोम चोम्स्की के साथ) द विदड्रॉल: इराक, लीबिया, अफगानिस्तान, एंड द फ्रैगिलिटी ऑफ यूएस पावर हैं।
यह लेख ग्लोबट्रॉटर में प्राकाशित हुआ था।
सौजन्य: पीपल्स डिस्पैच
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