तख़्तापलट का विरोध करने वाले सूडानी युवाओं के साथ मज़बूती से खड़ा है "मदर्स एंड फ़ादर्स मार्च"
शनिवार, 26 फरवरी को सूडान में हज़ारों बुजुर्ग लोगों ने "मदर्स एंड फादर्स मार्च" में हिस्सा लिया। यह मार्च उन युवाओं के साथ समर्थन जताने के लिए निकाला गया था, जो प्रतिरोधक समितियों (रेसिस्टेंस कमेटीज़- आरसी) के तहत संगठित हुए हैं। यह युवा देश की सड़कों पर सैन्य शासन का विरोध कर रहे हैं। "सीसीएसडी (सेंट्रल कमेटी ऑफ़ सूडानीज़ डॉक्टर्स) के मुताबिक़, सुरक्षाबलों ने युवाओं के एक जुलूस पर हमला कर दिया था, जिसमें कम से कम 34 लोग घायल हो गए थे।
25 अक्टूबर, 2021 को सेना प्रमुख अब्दुल फतह अल बुरहान द्वारा तख़्तापलट किए जाने के बाद से हो रहे प्रदर्शनों में सेना ने कम से कम 83 लोकतंत्र समर्थकों की हत्या हो चुकी है, वहीं 3000 से ज़्यादा लोग इन चार महीनों में घायल हो चुके हैं।
हरदीन ऑर्गेनाइज़ेशन द्वारा जुटाए गए आंकड़ों के मुताबिक़, रविवार, 27 फरवरी तक करीब़ 450 घायल प्रदर्शनकारी अस्पतालों में हैं। 26 घायल ऐसे हैं, जो अपने हाथ-पैर या किसी अहम अंग को गंवा चुके हैं या उन्हें लकवा मार चुका है।
बुजुर्ग लोगों ने राजधानी खार्तुम में झंडे और शहीद हुए प्रदर्शनकारियों की तस्वीरों के साथ अल-सितीन (60) सड़क तक मार्च किया। इस दौरान यह लोग नारे लगाते हुए कह रहे थे, "हमारे बच्चे अकेले नहीं हैं, हम उनके साथ हैं।"
#Feb26March
They’re chanting:
“Our children aren’t alone, we stand with them”
4/#SudanCoup #alKeepEyesOnSudan pic.twitter.com/PnRCYD33Tr— Nada Ali (@Nmhali) February 26, 2022
सैन्य जुंटा प्रदर्शनकारियों को "आवारा" बताने की कोशिश कर रही है, और उन्हें नशेबाज़, अनैतिक और अराजकतावादी प्रदर्शित करने में जुटी है। नादा अली ट्वीट करते हुए कहते हैं, "झूठ यहां खत्म होता है।" इस ट्वीट में उन्होंने एक तस्वीर भी लगाई है, जिसमें लिखा है, "दुनिया को देखने दिया जाए कि यह "अवारा सड़कों के बच्चों" का परिवार है, जो उनके साथ खड़ा है।"
मारे गए प्रदर्शनकारियों के परिवारों के अलावा कई राजनेताओं ने भी इस मार्च में हिस्सा लिया था। इन नेताओं में सू़डानीज़ कम्यूनिस्ट पार्टी (एससीपी) के नेता नेमत मलिक और मुख्तार अल-खातिब भी शामिल थे। एससीपी के कई नेता इन प्रतिरोधक समितियों में सक्रिय हैं।
एससीपी की सदस्या और महिला अधिकार कार्यकर्ता अमीरा ओसमान, जिन्हें हाल में जेल से रिहा किया गया है, उन्हें भी इस मार्च में देखा गया। ओसमान को सुरक्षाबलों ने मनमाफ़िक ढंग से दो हफ़्ते तक जेल में रखा था। ओसमान को उनके घर से बंदूक के बल पर अपहृत किया गया था।
الاستاذة اميرة عثمان ، رئيسة مبادرة #لا_لقهر_النساء تشارك رغم الاصابة في #مليونية26فبراير ✨ #كلنا_معاكم #88Plus pic.twitter.com/aM4szg663z
— خالد سلك (@KhalidSelik) February 26, 2022
सीसीएसडी का वक्तव्य कहता है, "घायल 34 लोगों में से 20 को स्टन ग्रेनेड और आंसू गैस के गोले सीधे लगे हैं, जिन्हें प्रदर्शनकारियों के शरीर पर मारा जा रहा था। पांच दूसरी चोटें, जिनमें कपार का फटना भी शामिल है, वे लाठी से बुरे तरीके से पिटाई के चलते आई हैं। एक दूसरे व्यक्ति को नियमित सुरक्षाबलों के वाहन ने रौंद दिया था।" सुरक्षाबलों द्वारा प्रदर्शनकारियों के खिलाफ़ हथियार उपयोग करने की घटनाएं बढ़ती ही जा रही हैं, इनका कई वीडियो में अच्छे ढंग से दस्तावेजीकरण भी हुआ है, जिनमें देखा जा सकता है कि सुरक्षाबलों के ट्रक प्रदर्शनकारियों का पीछा कर रहे हैं और उन्हें रौंद रहे हैं।
Armored vehicles have been viciously used by the military coup security forces and militias as weapons to intentionally run over protesters in today’s demonstrations in #khartoum, January the 6th @hrw @UNHumanRights @EU_SUDAN @amnesty #SudanCoup #sudan pic.twitter.com/WHg5qJJHYL
— Sudanese Translators for Change STC (@SudaneseTc) January 6, 2022
शनिवार को इस तरह के प्रदर्शन में बुजुर्गों के साथ हिस्सा लेना जोख़िम भरा था, लेकिन फिर भी कई बच्चों ने भी इसमें हिस्सा लिया। लेकिन सुरक्षाबलों ने इनको भी नहीं छोड़ा। 21 फरवरी को "लाखों लोगों का जुलूस (मार्च ऑफ़ मिलियन्स)" के 20वें संस्करण में हिस्सा लेने वाले आमिर खालिद को सुरक्षाबलों के ट्रक ने रौंद दिया था। वे अब भी कोमा में हैं। कम से कम 158 लोग तब घायल हुए हैं, जब 14 शहरों में बड़े प्रदर्शन हुए थे।
आठ साल की स्कूली लड़की, 14 साल की माया हसन अहमद को ओमडर्मैन से दूसरे अवयस्क प्रदर्शनकारियों के साथ गिरफ़्तार किया गया था। उन्हें 25 फरवरी को रिहा गया है। वकीलों का कहना है कि यह "जबरदस्ती गुम" करने का मामला है। क्योंकि सुरक्षाबलों ने यह नहीं बताया था कि माया हसन अहमद को कहां हिरासत में रखा गया था। रेडियो दबंगा ने बताया कि किसी भी पुलिस स्टेशन ने उनकी हिरासत को दर्ज नहीं किया था, ना ही उनके खिलाफ़ चार्ज लगाए गए थे।
जब से तख़्तापलट हुआ है, तब से 200 बच्चों को हिरासत में लिया जा चुका है और उनके साथ "सभी तरह की हिंसा हुई है।"
एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में सूडान में मानवाधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र के विशेषज्ञ एडामा दिएंग ने जेल से रिहा की गईं महिलाओं से मिलने वाली "डरावनी रिपोर्टों" पर चर्चा की है। दिएंग ने हाल में 24 फरवरी को ही अपनी सू़डान यात्रा खत्म की है।
इन महिलाओं को "क्रांति की मां" के नाम से बुलाया जा रहा है। उन्होंने ऐसे ही दुष्परिणाम का जोख़िम उठाते हुए 26 फरवरी को गेज़िरा राज्य, रिवर नील और उत्तरी कोर्दोफन में दूसरे शहरों में जुलूस निकाला।
रविवार को खार्तुम राज्य में "प्रतिरोधक समिति समन्वय", "जनता के शासन की स्थापना" के लिए चार्टर का प्रस्ताव पेश करेगी। इस चार्टर को महीनों के विचार-विमर्श के बाद तैयार किया गया है। पिछले महीने ही मदनी में प्रतिरोधक समिति ने प्रस्ताव पेश किया था।
इल कवायद से एक साझा राजनीतिक दृष्टिकोण बनने की संभावना है, जहां 5200 से ज़्यादा प्रतिरोधक समितियां एक साथ आई हैं, जिन्होंने घोषणा में कहा है कि "सेना के साथ कोई बातचीत नहीं, कोई समझौता नहीं, कोई साझेदारी नहीं होगी।"
तख्तापलट से पहले सूडान में नागरिक और सैन्य सरकार साझा तरीके से शासन करते थे। लेकिन प्रतिरोधक समितियों ने इस प्रबंधन के वापस आने से इंकार कर दिया है। प्रतिरोधक समितियों ने कहा कि वे पूर्ण नागरिक शासन से कम कुछ भी मान्य नहीं करेंगी, जिसके अंतर्गत सेना आएगी, जिसके तहत तख़्तापलट के लिए जिम्मेदार जनरलों पर कार्रवाई की जाएगी।
तख़्तापलट के बाद से प्रतिरोधक समितियों में एकजुटता बढ़ती ही जा रही है, लेकिन सेना में दरारें बढ़नी और दिखनी शुरू हो गई हैं। ऐसी रिपोर्टें हैं कि बुरहान को यह डर है कि उन्हें भी एक दूसरे तख़्तापलट से हटाया जा सकता है। इस महीने की शुरुआत में 14 फरवरी को बुरहान ने मध्यम रैंक वाले कई अधिकारियों को विद्रोह के डर से बर्खास्त कर दिया था।
साभार : पीपल्स डिस्पैच
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