मुस्लिम विरोधी हिंसा के ख़िलाफ़ अमन का संदेश देने के लिए एकजुट हुए दिल्ली के नागरिक
10 अप्रैल रामनवमी के जुलूस के दौरान भड़की हिंसा और उसके बाद मुसलमानों के घर-दुकान चिह्नित कर के तोड़ दिए गए।
देश में लगातार मुसलमानों पर हिजाब, मीट और रामनवमी के नाम पर जो हमले किये जा रहे हैं उसके ख़िलाफ़ दिल्ली के अलग-अलग वर्गों के छात्र, कलाकार, शिक्षक और आम नागरिक 16 अप्रैल को जंतर मंतर पर जमा हुए और हिंसा और हेट स्पीच का विरोध करते हुए अमन, मुहब्बत और भाईचारे की आवाज़ बुलंद की।
यह विरोध प्रदर्शन सिटीज़न्स विजिल यानी नागरिक जुलूस के नाम से किया गया जिसमें वामपंथी राजनीतिक दलों से लेकर छात्र संगठन, शिक्षक, सामाजिक कार्यकर्ता शामिल हुए।
देश में मुस्लिम समुदाय के ख़िलाफ़ हमले लगातार बढ़ रहे हैं और देखा जा रहा है कि सत्ताधारी पार्टी बीजेपी और आरएसएस, बजरंग दल जैसे हिंदुत्ववादी संगठन इसमें शामिल हो रहे हैं। जंतर मंतर पर भाषण देते हुए सीपीआई(माले) की पोलिट ब्यूरो सदस्य कविता कृष्णन ने कहा, "जो आज हो रहा है वह हिटलरशाही है। आरएसएस जब से बनी है तब से ही यह रवैया चल रहा है। गोलवलकर, दीन दयाल उपाध्याय की किताबें पढ़िये, उन्होंने सीधे कहा था कि मुस्लिम अगर भारत में रहे तो वह हिन्दू धर्म अपनाए वरना उन्हें यहाँ नहीं रहने दिया जाएगा, उसी सोच के तहत आज मोहन भागवत हिन्दू राष्ट्र का ऐलान करते हैं।"
कविता कृष्णन ने उन राजनीतिक क़ैदियों की भी बात की जिन्हें महामारी के दौरान भी जेल में बंद रखा गया है।
अमन की इच्छा और आशा की बात करते हुए प्रोफ़ेसर अपूर्वानंद ने कहा, "मैं नौजवानों को शुक्रिया अदा करना चाहता हूं कि वह आज यहाँ जमा हुए और यह दिखाया कि अमन की इच्छा हिंदुस्तान में आज भी जिंदा है।"
न्यूज़क्लिक ने सामाजिक कार्यकर्ता शबनम हाशमी से बात की। उन्होंने कहा, "यह 4-5 साल से चल रहा है। पहले गाय के नाम पर यह घटनाएं शुरू हुई जिसमें लोगों को लिंच किया गया। फिर दलितों के ऊपर अत्याचार होंगे पूरे देश में, फिर महिलाओं के बलात्कार होंगे; यह अलग अलग तरीक़े हैं जो बाकायदा सुनियोजित होते हैं। यह सब आरएसएस हेडक्वार्टर पर तय किया जाता है, और ऊपर से नीचे तक निर्देश जाते हैं कि अब क्या करना है।"
शबनम ने कहा कि रामनवमी के इस तरह के जुलूस कई सालों से हो रहे हैं जिनमें मस्जिदों के बाहर जा कर मुसलमानों के ख़िलाफ़ डीजे पर भद्दे गाने चलाए जाते हैं।
दिल्ली के मध्य में एक तरफ़ नागरिक अमन और मुहब्बत की बात कर रहे थे वहीं उत्तरी दिल्ली के जहांगीरपुरी में हनुमान जयंती पर निकाले जा रहे जुलूस से उसी तरह की हिंसा भड़की जो रामनवमी पर भड़की थी। 16 अप्रैल को आम आदमी पार्टी सहित कई दलों और संगठनों ने हनुमान जयंती पर शोभायात्रा निकाली। जहाँगीरपुरी के अलावा दक्षिण भारत के कुल्नुर, उत्तराखंड के रुड़की से भी हिंसा की ख़बरें सामने आईं।
आम आदमी पार्टी और अन्य विपक्षी दलों द्वारा भी बीजेपी की तरह की धार्मिक राजनीति किये जाने पर शबनम ने कहा, "धर्मनिरपेक्ष पार्टियां इस देश में ज़्यादा बची नहीं हैं, उनका जो काडर है या जो नेतृत्व है उनमें भी वही लोग हैं जो ख़ुद सांप्रदायिक सोच रखते हैं। इनमें कोई भी पार्टी ऐसी नहीं है जो तैयार हो कि धर्मनिरपेक्षता के बेस के ऊपर लड़ाइयां लड़ी जाएं, सभी कोशिश कर रही हैं कि बीजेपी की बी-टीम बन जाएं।
दिल्ली स्थित वकील और छात्र आंदोलन में सक्रिय रहीं कवलप्रीत कौर ने न्यूजक्लिक से बात करते हुए कहा, “नफ़रत की फ़िज़ा बनी हुई है। बीजेपी के अलावा जो बाकी पार्टियां हैं वह भी हिन्दू विरोधी नहीं दिखना चाहतीं, मगर हम उनसे हिन्दू विरोधी होने को नहीं कह रहे हैं, हम कह रहे हैं कि आप न्याय और शांति सुनिश्चित करें। अगर मस्जिदों पर हमला हो रहा है कम से कम आप पुलिस को तो वहाँ रखिए कि वह उसे रोक पाए। दरअसल राजनीतिक पार्टियों ने भी नरेटिव अलग तरह का बना दिया है। अगर आप हिन्दुत्व को चुनौती देने से डरेंगे तो मुझे लगता है कि एक बहुत बुरे दौर की तरफ़ जा रहे हैं।”
शायर और वैज्ञानिक गौहर रज़ा ने न्यूजक्लिक से बात करते हुए आगे की राह बताते हुए कहा, “मुझे लगता है कि एक व्यापक स्तर पर राजनीतिक पार्टियों को धर्मनिरपेक्षता वैज्ञानिक चेतना को पैदा करने की जरूरत है, और खुलेआम खतरा मोल लेने की जरूरत है, कि हम खड़े हैं। हो सकता है वह चुनाव हार जाएँ, मगर इसके बावजूद यह करना ही पड़ेगा, आप समझौता नहीं कर सकते। आपने समझौता कर लिया इसलिए यहाँ तक पहुंचे।
जंतर मंतर पर जब सुरक्षा बल प्रदर्शनकारियों को हटाने लगे तो भाईचारे और एकता का सबूत देते हुए रोज़ेदारों के साथ मिल कर प्रदर्शनकारियों ने इफ्तारी भी की और नारे लगाते हुए हिन्दू राष्ट्र, मुस्लिम विरोधी हिंसा के खिलाफ़ अपनी मुखालफ़त ज़ाहिर की।
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