नगालैंड में सेना पर एफ़आईआर तो कश्मीर में क्यों नहीं
उत्तर-पूर्वी राज्य नगालैंड भी भारत में है और धुर उत्तर में स्थित केंद्र-शासित क्षेत्र जम्मू-कश्मीर भी। लेकिन, लगता है, दोनों के लिए क़ानून या दंड विधान अलग-अलग हैं।
नगालैंड में पुलिस (सरकार) भारतीय सेना पर हत्या/जनसंहार करने का आरोप लगाते हुए एफ़आईआर (प्रथम सूचना रिपोर्ट) दर्ज़ कर सकती है और मुक़दमा चलाने के लिए चार्जशीट (आरोप पत्र) दाख़िल कर सकती है। लेकिन जम्मू-कश्मीर में यह सोचना भी किसी कुफ़्र से कम नहीं। हो सकता है, कश्मीर में यह मांग करनेवाली/वाले को गोली मार दी जाये।
नगालैंड में राज्य सरकार ने जून 2022 में भारतीय सेना के 30 फ़ौजियों के ख़िलाफ़ हत्या/जनसंहार करने की नामज़द एफ़आईआर दर्ज़ की है और बाक़ायदा उन पर मुक़दमा चलाने के लिए चार्जशीट दाख़िल की है।
चूंकि आफ़्सपा (सशस्त्र सैन्य बल विशेष अधिकार क़ानून, 1958) के तहत सेना पर मुक़दमा चलाने के लिए केंद्र सरकार की मंज़ूरी चाहिए, इसलिए राज्य सरकार केंद्र की मंज़ूरी का इंतज़ार कर रही है। नगालैंड में आफ़्सपा लागू है।
नगालैंड पुलिस की ओर से दर्ज की गयी एफ़आईआर में सेना के 30 फ़ौजियों के नाम लिये गये हैं। इनमें एक मेजर, दो सूबेदार व आठ हवलदार शामिल हैं।
यह मामला दिसंबर 2021 में नगालैंड के मोन ज़िले का है। यहां सेना ने, दिन भर काम करके शाम को अपने-अपने घर लौट रहे दिहाड़ी मज़दूरों पर अंधाधुंध गोलियां चला कर 14 निहत्थे भारतीय नागरिकों को मार डाला।
सेना को शक था कि वे हथियारबंद उग्रवादी/आतंकवादी हैं, उसने शुरू में इस घटना के बारे में प्रचारित भी यही किया। उसने लाशों के पास कुछ हथियार व गोला-बारूद भी रख दिया। लेकिन उसका झूठ जल्दी पकड़ में आ गया। और पता चल गया कि सेना ने इस सिलसिले में निश्चित प्रक्रिया का पालन नहीं किया।
इस हत्याकांड की नगालैंड में बड़ी तीखी प्रतिक्रिया हुई। राज्य सरकार, राजनीतिक पार्टियों व नागरिक समुदाय ने इसे सीधे-सीधे जनसंहार कहा और सेना पर मुक़दमा चलाने की मांग की।
नगालैंड सरकार ने इस घटना की जांच के लिए विशेष टीम का गठन किया। इसने इस साल अपनी विस्तृत जांच-पड़ताल रिपोर्ट सरकार को सौंपी जिसके बाद सेना के ख़िलाफ़ पुलिस ने एफ़आईआर दर्ज की।
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जांच रिपोर्ट में साफ़ तौर पर कहा गया है कि सेना ने जानबूझकर, हत्या करने के इरादे से, गोलियां चलायीं।
ग़ौर करने की बात है कि नगालैंड में इस समय जो गठबंधन सरकार (पीपुल्स डेमोक्रेटिक अलायंस) है, उसमें भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) शामिल है। 60 सदस्यों वाली नगालैंड विधानसभा में भाजपा के 12 विधायक हैं।
अब कश्मीर की ओर लौटें और देखें कि वहां क्या यह संभव है।
कश्मीर में 1 जनवरी 2022 से 18 जुलाई 2022 तक सेना के साथ तथाकथित मुठभेड़ों में 125 कश्मीरी नौजवान—भारतीय नागरिक—मारे जा चुके हैं। इनमें से 35 तो सिर्फ़ जून के महीने में मारे गये। अभी दिसंबर तक का समय पड़ा है। तब तक और कितनी लाशें गिरेंगी, इसकी कल्पना की जा सकती है।
मारे गये कश्मीरी नौजवानों का आंकड़ा जम्मू-कश्मीर का है। सरकार व सेना की निगाहों में वे हथियारबंद मिलिटेंट (विद्रोही) थे, जिनका सफ़ाया ज़रूरी था।
लेकिन क्या वे वाक़ई हथियारबंद मिलिटेंट थे, वे मिलिटेंट थे भी या नहीं, क्या वाक़ई मुठभेड़ हुई या वह फ़र्जी व प्रायोजित थी, क्या उन्हें घेर कर और आत्मसमर्पण करने के बाद मारा गया, क्यों हर ‘मुठभेड़’ का पैटर्न/तौर-तरीक़ा एक-जैसा है—ये और इससे मिलते-जुलते सवाल अनुत्तरित हैं।
कश्मीर में इन तथाकथित मुठभेड़ों और हत्याओं की न स्वतंत्र जांच-पड़ताल हुई, न सेना को कठघरे में खड़ा किया गया। इनके बारे में सेना ने जो कहा, उसे ही सच मानकर प्रचारित कर दिया गया।
नगालैंड में सेना की गोलियों से 14 भारतीय नागरिक मारे गये। तब इतना तहलका मच गया। कश्मीर में इस साल अब तक 125 भारतीय नागरिक सेना की गोलियों से मारे जा चुके हैं। इन मौतों पर जुंबिश तक नहीं है।
अगर नगालैंड में भी सेना का कहा सच मान लिया गया होता, तो वहां सेना के झूठ का पर्दाफ़ाश न होता। कश्मीर में सेना के झूठ का पर्दाफ़ाश कैसे होगा?
(लेखक कवि व राजनीतिक विश्लेषक हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)
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