हरियाणा सरकार ने संविदा कर्मी को यूनियन की सदस्यता देने को 'अवैध' बताते हुए रोक लगाई
नई दिल्ली: हरियाणा सरकार ने हाल ही में मानेसर स्थित एक ऑटो पार्ट्स निर्माण इकाई में कर्मचारियों के यूनियन में संविदा कर्मचारी (contractual worker ) के शामिल करने को अवैध बताते हुए रोक लगा दी है। संविदा कर्मियों को यूनियन में शामिल करने की मांग लंबे समय से हो रही है।
पिछले साल बेलसोनिका ऑटो कंपोनेंट्स प्राइवेट लिमिटेड के कर्मचारी यूनियन ने गुरुग्राम के वाहन उद्योग क्षेत्र में अपनी पहली तरह की पहल में कंपनी के एक संविदा कर्मचारी को सदस्यता दी थी। यह इस कर्मचारी के अधिकारों की रक्षा के लिए एक स्पष्ट उद्देश्य के साथ किया गया था जो प्रबंधन से अनुशासनात्मक कार्रवाई का सामना कर रहा था।
हरियाणा के श्रम आयुक्त ने 5 सितंबर को बेलसोनिका कर्मचारी यूनियन के नाम लिखे एक पत्र कहा कि ये कार्रवाई "प्रथम दृष्टया अवैध प्रतीत होती है" क्योंकि यह यूनियन के संविधान के "उल्लंघन" के मामला है।
इस पत्र के माध्यम से राज्य के श्रम आयुक्त ने यूनियन से 20 दिनों के भीतर स्पष्टीकरण मांगा। इस पत्र की एक स्कैन कॉपी बुधवार को न्यूज़क्लिक को प्राप्त हुई थी। इस पत्र में कहा गया है कि कोई जवाब नहीं मिलने की स्थिति में यूनियन के ख़िलाफ़ ट्रेड यूनियन एक्ट, 1926 के प्रावधानों के अनुसार उचित कार्रवाई की जाएगी।
बेलसोनिका कर्मचारी यूनियन के महासचिव अजीत सिंह ने गुरुवार को आयुक्त से उक्त पत्र प्राप्त होने की पुष्टि की। उन्होंने फ़ोन पर न्यूज़क्लिक से बात करते हुए कहा, "हम फिलहाल आपस में चर्चा कर रहे हैं और जवाब तैयार कर रहे हैं।"
मामले को स्पष्ट करते हुए सिंह ने बताया कि बेलसोनिका में एक संविदा कर्मचारी केशव राजपूत को पिछले साल नवंबर में यूनियन की सदस्यता दी गई थी। उन्होंने कहा, “यूनियन कई वर्षों से स्थायी और ठेका श्रमिकों के बीच की खाई को पाटने के बारे में सोच रही है। पिछले साल, जब [बेलसोनिका] प्रबंधन ने केशव के ख़िलाफ़ किसी मामले पर अनुशासनात्मक कार्रवाई शुरू की थी तो यूनियन ने उनके अधिकारों की रक्षा के लिए उन्हें यूनियन में एक सदस्य के रूप में शामिल करने का फ़ैसला किया।”
सिंह ने कहा कि एक संविदा कर्मचारी को यूनियन की सदस्यता देने का ये फ़ैसला बेलसोनिका के प्रबंधन के साथ असफल रहा।
इसके बाद, इस साल 23अगस्त को ट्रेड यूनियनों के रजिस्ट्रार को संबोधित एक पत्र में प्रबंधन ने मांग की कि "सभी संविदा कर्मचारियों" की सदस्यता "तुरंत रद्द" की जानी चाहिए। हरियाणा में श्रम आयुक्त को ट्रेड यूनियनों के रजिस्ट्रार के रूप में नियुक्त किया जाता है।
न्यूज़क्लिक को प्राप्त हुए प्रबंधन के पत्र में कहा गया है, "...[यूनियन के] संविधान में उल्लेखित नियम के अनुसार, यह स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि 'कोई भी कर्मचारी जो बेलसोनिका ऑटो कंपोनेंट इंडिया प्राइवेट लिमिटेड में काम कर रहा है वह यूनियन का एक सामान्य सदस्य बन सकता है' लेकिन मौजूदा मामले में यूनियन द्वारा नियम का पालन नहीं किया गया है।” पत्र में इसे लिखते हुए उसने यूनियन के पंजीकरण को रद्द करने की मांग की है।
गुरुवार को उपरोक्त दावे का जवाब देते हुए सिंह ने कहा कि संविदा श्रमिकों को शामिल करने का मामला "किसी भी तरह से" यूनियन के संविधान की शर्तों का उल्लंघन नहीं है। उन्होंने कहा, "यह और कुछ नहीं बल्कि हमारे यूनियन को पंजीकरण रद्द करने के [बेलसोनिका] प्रबंधन का एक अन्य प्रयास है।" उन्होंने कहा कि यूनियन ने इससे मुक़ाबला करने का संकल्प लिया है।
न्यूज़क्लिक ने बेलसोनिका में एचआर सह उपाध्यक्ष मृत्युंजय नाथ साहू से भी संपर्क किया। उन्होंने इस मुद्दे पर कोई भी टिप्पणी करने से इनकार कर दिया। उन्होंने कहा, "यह श्रम विभाग और ट्रेड यूनियन के बीच का मामला है।"
क्या संविदा कर्मियों को यूनियन में शामिल किया जा सकता है?
संविदा श्रमिकों को यूनियन की सदस्यता देने पर हरियाणा सरकार की ताज़ा आपत्ति ने देश में ट्रेड यूनियनों के सामने ज्वलंत प्रश्न की ओर ध्यान आकर्षित किया है कि क्या ठेका श्रमिकों को यूनियन में शामिल किया जा सकता है?
संविदा श्रमिकों के आपूर्तिकर्ता के रूप में नियोक्ता के साथ सूचीबद्ध श्रमिक ठेकेदारों द्वारा नियुक्त किए गए इस तथाकथित अस्थायी कार्यबल की संख्या में हाल के दिनों में विभिन्न क्षेत्रों में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। इसी तरह, देश का प्रमुख ऑटो हब मानेसर जैसे औद्योगिक क्षेत्रों में स्थायी श्रमिकों की तुलना में संविदा श्रमिकों का अनुपात तेज़ी से बढ़ा है।
फ़ैक्ट्री प्रबंधन के पीछे अधिक संविदा श्रमिकों को काम पर रखने का तर्क बिल्कुल सरल है। किसी नियोक्ता के नामावली में न होने के कारण इन कर्मचारियों को आसानी से स्थायी कर्मचारियों की तुलना में नौकरी की सुरक्षा और उनके द्वारा प्राप्त किए जाने वाले अधिक वेतन से वंचित रखा जा सकता है, जबकि दोनों ही समूहों से एक जैसे काम लिए जाते हैं।
लेकिन क्या यही तर्क किसी संविदा श्रमिक को फ़ैक्ट्री यूनियन का सदस्य होने से अयोग्य ठहराने के लिए भी इस्तेमाल किया जा सकता है?
श्रम क़ानूनों से जुड़े मामलों को देखने वाले सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता संजय घोष ऐसा नहीं मानते। न्यूज़क्लिक से बात करते हुए, उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि यूनियन बनाना प्रत्येक नागरिक का मौलिक अधिकार है। यह एक ऐसा अधिकार जो भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 द्वारा दिया गया है।
घोष ने कहा, " यहां तक कि जब यूनियन बनाने की बात आती है तो 1926 का ट्रेड यूनियन अधिनियम भी एक नियमित और संविदा कर्मचारी के बीच कोई अंतर नहीं करता है।" उन्होंने कहा, "किसी कारखाने या किसी प्रतिष्ठान में प्रत्येक कर्मचारी यूनियन का सदस्य बनने के लिए पात्र है। केवल एक चीज यह है कि संविदा श्रमिकों को शामिल करने से किसी भी तरह से उक्त यूनियन के संविधान का उल्लंघन नहीं होना चाहिए।”
किसी ट्रेड यूनियन के पंजीकरण के मामले में 1926 के अधिनियम के तहत एक कार्यकारी के गठन और नियमों के गठन की आवश्यकता होती है जो सदस्यों को शामिल करने के लिए उप-नियम प्रदान करते हैं। घोष ने गुरुवार को कहा कि हाल के वर्षों में, इन उप-नियमों को आकार देने में संलग्न श्रम विभाग कर्मचारियों से ज़्यादा नियोक्ताओं के हितों को तरजीह दिया है।
विशेषज्ञों के अनुसार, इसका मतलब यह है कि संविदा वाले कार्यबल जो स्थायी कर्मचारियों की तुलना में अधिक असुरक्षित हैं, उन्हें भी आमतौर पर सामूहिक सरोकार के उनके अधिकार से वंचित रखा जाता है।
इसके अलावा एक अन्य मामला ये है जैसा कि पहले की कई रिपोर्टों में सामने आया है कि स्वयं यूनियन भी अक्सर संविदा श्रमिकों को सदस्यता और मतदान का अधिकार देने के लिए पक्षपातपूर्ण रहा है। श्रम अर्थशास्त्री और एक्सएलआरआई, जेवियर स्कूल ऑफ मैनेजमेंट, जमशेदपुर के विजिटिंग प्रोफेसर केआर श्याम सुंदर ने कहा, "लंबे समय से स्थायी कर्मचारी भी अस्थायी कर्मचारियों को सदस्यता देने के पक्ष में नहीं थे।"
उनके अनुसार, किसी कारखाने की इकाई में जहां अब अधिकांश लोग अनुबंध के आधार पर काम कर हैं, स्थायी श्रमिकों को हाशिए पर जाने की आशंका बनी हुई है। प्रो. सुंदर ने न्यूज़क्लिक को बताया, "इस तरह के डर का प्रबंधन द्वारा भी फ़ायदा उठाया जाता है जो कुछ मामलों में स्पष्ट रूप से इसके संविदा वाले कार्यबल को यूनियन बनाने के लिए हतोत्साहित करेगा।"
1926 का ट्रेड यूनियन अधिनियम जो कर्मचारियों के संगठनों से संबंधित क़ानूनों को परिभाषित करता है, उसको अब औद्योगिक संबंध संहिता, 2020 के तहत समाहित कर दिया गया है, जिसे अभी अधिसूचित किया जाना बाक़ी है।
लेकिन जब यूनियन की सदस्यता देने के सवाल की बात आती है तो प्रो. सुंदर ने गुरुवार को कहा कि मौजूदा 1926 अधिनियम के तहत "कामगार" की परिभाषा के अनुरूप ये क़ानून कार्यबल के बीच कोई अंतर नहीं करता है।
एटक, सीटू समर्थन में आए
इस बीच, गुरुवार को ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन (एटक) और सेंटर ऑफ इंडियन ट्रेड यूनियन्स (सीट) के नेताओं ने भी संविदा श्रमिकों को यूनियन की सदस्यता देने के लिए अपना समर्थन दिया। उन्होंने कहा कि यह लंबे समय मांग की जा रही है और यदि किसी कारखाना यूनियन का संविधान ऐसा करने की अनुमति देता है तो इसे औद्योगिक क्षेत्रों में लिया जाना चाहिए।
एटक मानेसर के नेता अनिल पंवार ने न्यूज़क्लिक से बात करते हुए पूछा,"यदि यूनियन का संविधान इसकी अनुमति देता है तो संविदा श्रमिकों को फ़ैक्टरी यूनियनों में शामिल क्यों नहीं किया जाना चाहिए?"
सीटू के सतबीर सिंह ने भी पंवार के जैसी ही बात कही। उन्होंने भी कहा कि "ऐसे समय में जब भारतीय मज़दूर वर्ग अपने अधिकारों पर अब तक के सबसे क्रूर हमले का सामना कर रहा है" ऐसे में यह समय की ज़रूरत है। उन्होंने कहा, "यूनियन में संविदा श्रमिकों के साथ, श्रमिकों के बीच एकता मज़बूत होगी।
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‘Illegal’: Haryana Govt Flags Union Membership to Contract Worker at Manesar Factory
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