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एल्गार मामले में गिरफ़्तार तीन और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने आरोपमुक्त करने को लेकर याचिकाएं दायर की

एल्गार परिषद-माओवादी संबंध मामले में आरोपी सामाजिक कार्यकर्ता गौतम नवलखा, सुधा भारद्वाज और दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर हनी बाबू ने यहां मंगलवार को विशेष राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (एनआईए) अदालत के समक्ष आरोपमुक्त करने की अर्जियां दायर कीं।
elgar parishad

एल्गार परिषद-माओवादी संबंध मामले में आरोपी सामाजिक कार्यकर्ता गौतम नवलखा, सुधा भारद्वाज और दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर हनी बाबू ने यहां मंगलवार को विशेष राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (एनआईए) अदालत के समक्ष आरोपमुक्त करने की अर्जियां दायर कीं।

तीनों ने अपने वकील युग चौधरी के जरिये विशेष न्यायाधीश राजेश जे. कटारिया के समक्ष अलग-अलग याचिकाएं दायर की।

चौधरी ने दावा किया कि उनके मुवक्किलों के खिलाफ मामला ‘‘पूरी तरह फर्जी, अस्वीकार्य साक्ष्यों से गढ़ा और अफवाहों से बना’’ है।

नवलखा और बाबू अभी न्यायिक हिरासत में जेल में हैं जबकि भारद्वाज जमानत पर बाहर हैं।

इस बीच, अदालत ने एक अन्य आरोपी सुधीर धावले को आरोपमुक्त किये जाने संबंधी याचिका पर मंगलवार को सुनवाई की। इस मामले में दलीलें बुधवार को भी पेश की जाएंगी।

आपको बता दें कि एल्गार परिषद मामला 31 दिसंबर, 2017 को पुणे में आयोजित एक सम्मेलन में दिए गए भड़काऊ भाषणों से संबंधित है, जिसके बारे में पुणे पुलिस का दावा था कि इन भाषणों के कारण अगले दिन पुणे के बाहरी इलाके में स्थित कोरेगांव-भीमा युद्ध स्मारक के पास हिंसा हुई।

पुणे पुलिस ने दावा किया था कि सम्मेलन को माओवादियों का समर्थन प्राप्त था। मामले में एक दर्जन से अधिक कार्यकर्ताओं और शिक्षाविदों को आरोपी बनाया गया है. इसकी जांच बाद में एनआईए को सौंप दी गई थी।

एनआईए ने भी आरोप लगाया है कि एल्गार परिषद का आयोजन राज्य भर में दलित और अन्य वर्गों की सांप्रदायिक भावना को भड़काने और उन्हें जाति के नाम पर उकसाकर भीमा-कोरेगांव सहित पुणे जिले के विभिन्न स्थानों और महाराष्ट्र राज्य में हिंसा, अस्थिरता और अराजकता पैदा करने के लिए आयोजित किया गया था।

आपको बता दें कि इस मामले में देश के कई बुद्धजीवियों, पत्रकारों, लेखकों सहित समाजिक कार्यकर्ताओं की गिरफ़्तारी हुई थीं।  हालांकि, किसी भी मामले में पुलिस कोई ठोस सबूत पेश नहीं कर पाई है। इसमें आनन्द तेलतुम्बड़े के अतिरिक्त, सुधा भारद्वाज, सोमा सेन, अरुण फरेरा, वेरनॉन गोंजाल्विस, फादर स्टेन स्वामी, सुधीर धावले वरवरा राव, रोना विल्सन, गौतम नवलखा, जैसे बुद्धिजीवी भी शामिल हैं। यह सभी, आम लोगों के सम्मानपूर्वक जीने के हक के पक्ष में, कोर्ट से लेकर सड़क तक संघर्षशील रहे हैं। ये लोग स्वास्थ्य-शिक्षा मुफ्त मिले, इसके लिए निजीकरण का विरोध करते रहे हैं और उन आदिवासियों के साथ खड़े हुए जिनकी जीविका के संसाधन को छीन कर पूंजीपतियों के हवाले किया जाता रहा है। इसलिए ये लोग शासक वर्ग के आंखों के किरकिरी बने हुए थे।

(समाचार एजेंसी भाषा इनपुट के साथ)

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