बजट 2024-25: क्या सरकार नौकरियों के संकट का समाधान कर पाएगी?
सीएमआईई (सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी) द्वारा किए गए आवधिक सर्वेक्षणों के ज़रिए जुटाए गए नए आंकड़ों के अनुसार, पिछले पांच वर्षों में, 2019 से 2024 के बीच, जबकि काम करने वाले व्यक्तियों की संख्या में लगभग 2.8 करोड़ की वृद्धि हुई है और बेरोजगार व्यक्तियों की संख्या में भी 1.2 करोड़ की वृद्धि हुई है। इसका मतलब है कि रोजगारशुदा लोगों की हिस्सेदारी में 7 फीसदी की वृद्धि हुई है, उसी अवधि के दौरान बेरोजगारों की हिस्सेदारी में 36 फीसदी की चौंका देने वाली वृद्धि हुई है। ध्यान दें कि यह अवधि महामारी से पहले से शुरू होती है और उसके काफी बाद में समाप्त होती है।
इस स्थिति में, उम्मीद की जानी चाहिए कि देश की वित्तमंत्री इस गंभीर वास्तविकता पर विचार करेंगी और 23 जुलाई को पेश किए जाने वाले केंद्रीय बजट 2024-25 में रोजगार पैदा करने वाली नीतियों पर खासा ध्यान देंगी। या शायद नहीं भी दें- क्योंकि सरकार हाल ही में भारतीय रिजर्व बैंक के आंकड़ों की सराहना करती हुई दिखाई दी, जिसमें कहा गया है कि पिछले 3-4 वर्षों में 8 करोड़ से अधिक नौकरियां पैदा हुई हैं।
जैसा कि नीचे दिए गए चार्ट में दिखाया गया है कि, भारत का कार्यबल 2019 में अनुमानित 43.5 करोड़ से बढ़कर 2024 में 47.4 करोड़ हो गया है। कार्यबल में 15 वर्ष से अधिक आयु के वे सभी लोग शामिल हैं, जो या तो काम कर रहे हैं या सक्रिय रूप से काम की तलाश कर रहे हैं। यह वृद्धि स्वाभाविक है क्योंकि इस दौरान जनसंख्या बढ़ रही है।
इस बीच, रोजगार हासिल करने वाले व्यक्तियों की संख्या 40.3 करोड़ से बढ़कर 43.1 करोड़ हो गई है, जो लगभग 7 फीसदी की वृद्धि है। बेरोजगारों (सक्रिय रूप से काम की तलाश करने वाले लोगों के रूप में परिभाषित है) की संख्या 3.2 करोड़ से बढ़कर 4.4 करोड़ हो गई है।
सीएमआईई एक अन्य श्रेणी के व्यक्तियों का डेटा भी इकट्ठा करता है - कामकाजी उम्र के वे लोग जो काम करने के इच्छुक हैं, लेकिन सक्रिय रूप से काम की तलाश करना बंद कर चुके हैं। ऐसा इसलिए हो सकता है क्योंकि वे नौकरी न मिलने से हतोत्साहित हो जाते हैं। ऐसे लोगों को आमतौर पर बेरोजगारों में नहीं गिना जाता है, हालांकि वे काम करने के इच्छुक हैं। सीएमआईई के आंकड़ों के अनुसार, उनकी संख्या लगभग 2.2 करोड़ होने का अनुमान है, जो 2019 से 89 लाख से अधिक है।
बेरोज़गारी दर
सामान्य तौर पर ध्यान बेरोज़गारी दरों पर केंद्रित होता है, जो काम करने की इच्छा रखने वाले और सक्रिय रूप से काम की तलाश करने वाले कामकाजी उम्र के लोगों का अनुपात है। सीएमआईई के अनुसार, यह अनुपात जून 2024 में 9.2 फीसदी के चिंताजनक उच्च स्तर पर था, जो दोहरे अंक के निशान को छूने से बस थोड़ा कम था।
नीचे दिया गया चार्ट, 2019 और 2024 के बीच बेरोजगारी के लिए सीएमआईई के डेटा पर आधारित है, जो दर्शाता है कि इन दिनों बेरोजगारी बेहद चिंतनीय स्तर पर पहुंच गई है, जो ज़्यादातर 6-7 फीसदी से ऊपर है, कुछ महीनों में यह 9 फीसदी के निशान को पार कर गई थी। लॉकडाउन और कोविड का असर अप्रैल 2020 में चरम पर स्पष्ट रूप से दिखाई दिया था, जब बेरोजगारी 23.5 फीसदी दर्ज की गई थी और फिर मई 2021 में, महामारी की दूसरी लहर के दौरान, यह 11.8 फीसदी पर पहुंच गई थी।
उल्लेखनीय बात यह है कि बेरोज़गारी दर महामारी से पहले के समय की तुलना में उच्च स्तर पर आ गई है, और इसमें वृद्धि का रुझान साफ नज़र आता है। यदि हम पिछले दो वर्षों में जून की बेरोज़गारी दरों की तुलना करें, तो हम देख सकते हैं कि जून 2022 में यह 7.8 फीसदी थी, जून 2023 में यह 8.5 फीसदी थी और अब, जून 2024 में यह 9.2 फीसदी तक पहुंच गई है। यह एक ऐसे संकट का चिंताजनक संकेत है जो बस खत्म होता नज़र नहीं आता है।
कम वेतन वाली नौकरियां
अच्छे वेतन और सुरक्षित नौकरियों के अभाव में, रोजगार में वृद्धि मुख्य रूप से कृषि क्षेत्र में हुई है। यह 2020 में लॉकडाउन के दौरान तब शुरू हुआ था, जब प्रवासी श्रमिक गांवों में लौट आए थे। वही काम अब अधिक लोगों द्वारा किया जा रहा है, जिसका मतलब है कम रिटर्न, कम उत्पादकता, महिलाओं का बिना वेतन वाली नौकरियों में विस्थापन। दूसरे शब्दों में, यह छिपी हुई बेरोजगारी है - परेशान लोग बस ज़िंदा रहने के लिए काम कर रहे हैं। इसलिए 80 करोड़ लोगों को सार्वजनिक वितरण प्रणाली के माध्यम से हर महीने मुफ्त खाद्यान्न दिए जाने की जरूरत आन पड़ी है।
हाल ही में जारी की गई राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय या एनएसएसओ की रिपोर्ट में असंगठित क्षेत्र के उद्यमों पर प्रकाश डाला गया है कि भारत में 6.4 करोड़ से अधिक ऐसे छोटे उद्यम हैं जिनमें अनुमानित 11 करोड़ लोग काम कर रहे हैं। इससे इन उद्यमों की छोटी प्रकृति का अंदाजा मिलता है - उनमें से ज़्यादातर खुदरा बिक्री या परिवहन सेवाओं या खाद्य पदार्थों की बिक्री में शामिल सिर्फ़ एक व्यक्ति हैं।
वास्तव में, आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (पीएलएफएस) जैसे अन्य सरकारी सर्वेक्षणों ने बार-बार दर्शाया है कि रोजगार में वृद्धि मुख्य रूप से स्वरोजगार श्रेणी में हो रही है।
कम आय और उच्च मुद्रास्फीति के भयंकर आर्थिक संकट का सामना करते हुए, परिवारों को अपनी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए कुछ कमाने के लिए असंख्य तरीके अपनाने के लिए मजबूर होना पड़ता है। इसमें अस्थायी काम, कई नौकरियां, विभिन्न कम कीमत वाली वस्तुओं और सेवाओं की बिक्री और महिलाओं को उनके सामान्य घरेलू काम के अलावा अवैतनिक काम करने में शामिल होना है। पीएलएफएस ने बताया कि लगभग 37 फीसदी महिलाएं अवैतनिक काम कर रही हैं।
संक्षेप में कहें तो रोज़गार संकट दो किस्म के हैं – एक तो नौकरियों की कमी और फिर जीवनयापन के लिए कम वेतन वाले, अस्थायी काम करने की मजबूरी। निश्चित रूप से, केंद्रीय बजट को देश के सबसे महत्वपूर्ण आर्थिक संकट को संबोधित करना चाहिए।
अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।