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ख़बरों के आगे–पीछे: भाजपा अजित पवार को नहीं छोड़ेगी

अपने साप्ताहिक कॉलम में वरिष्ठ पत्रकार अनिल जैन भाजपा की जम्मू-कश्मीर और महाराष्ट्र  की रणनीति के साथ केरल में कांग्रेस की बढ़ती मुश्किलों समेत कई मुद्दों पर चर्चा कर रहे हैं।
AJIT PAWAR
तस्वीर गूगल से साभार

दो खानदानों के पाप में भाजपा की भागीदारी!

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ यह सुविधा है कि मुख्यधारा का मीडिया कभी भी उनकी किसी बात पर सवाल नहीं उठाता है। वे जो कुछ कहते हैं, मीडिया उसे पूरे भक्ति-भाव से अपने दर्शकों, श्रोताओं और पाठकों के आगे परोस देता है। इसीलिए मोदी जो मन में आता है, वह बोल कर निकल जाते हैं। जैसे अभी वे जम्मू-कश्मीर में अपनी चुनावी सभाओं में तीन पार्टियों- कांग्रेस, नेशनल कॉन्फ्रेस और पीडीपी को तीन खानदान बताते हुए कह रहे हैं कि आम लोगों का मुकाबला इन तीन खानदानों से है। अपने हमले को धार देने के लिए मोदी कह रहे हैं कि इन तीन खानदानों ने कश्मीर के साथ जो किया है वह किसी पाप से कम नहीं है। इन तीन खानदानों में से एक नेहरू–गांधी खानदान यानी कांग्रेस को छोड़ दें तो बाकी दोनों खानदानों यानी अब्दुल्ला और मुफ्ती खानदान के कथित पापों में तो भाजपा भी भागीदार रही है। नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा ने पीडीपी के साथ तीन साल से ज्यादा समय तक सरकार चलाई है। पहले मुफ्ती मोहम्मद सईद के नेतृत्व में और फिर उनके निधन के बाद उनकी बेटी महबूबा मुफ्ती के नेतृत्व में। मोदी से पहले अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी के नेतृत्व वाली भाजपा ने जम्मू कश्मीर में फारूक अब्दुल्ला को मुख्यमंत्री बनाया और उनके बेटे उमर अब्दुल्ला को केंद्र सरकार में मंत्री बनाया। सो, अगर इन दोनों खानदानों ने जम्मू कश्मीर मे जो किया वह पाप से कम नहीं है तो उस पाप में भाजपा भी तो भागीदार है ही।

बंगाल के राज्यपाल ने हद पार की

पिछले कुछ सालों से गैर भाजपा शासित राज्यों के राज्यपालों में इस बात को लेकर होड़ लगी हुई है कि कौन अपने राज्य की सरकार को ज्यादा परेशान और अपमानित कर सकता है। इस होड़ में फिलहाल पश्चिम बंगाल के मौजूदा राज्यपाल सीवी आनंद बोस सबसे आगे हैं। वे ममता बनर्जी की सरकार के खिलाफ विपक्ष की भूमिका निभाने में भाजपा, कांग्रेस और वामपंथी मोर्चा से भी आगे चल रहे हैं। ऐसा करने के चक्कर में वे सारी हदें लांघ रहे हैं। जैसे उन्होंने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को लेकर ऐसी बात कही है, जिसे राजनीतिक व सामाजिक दोनों नजरिए से उचित नहीं कहा जा सकता। 

उन्होंने कहा है कि वे मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का सामाजिक बहिष्कार करेंगे। इसका क्या मतलब है और वे ऐसा क्यों करेंगे? क्या ममता बनर्जी ने इंसानियत को शर्मसार करने वाला कोई भयंकर अपराध कर दिया है? अलबत्ता, राज्यपाल बोस पर जरूर दो महिलाओं ने यौन शोषण का आरोप लगाया है। यह सही है कि उनके शासन में एक जूनियर डॉक्टर के साथ बलात्कार और हत्या की जघन्य घटना हुई है। लेकिन घटना का मुख्य आरोपी गिरफ्तार हो गया है और मामले की जांच सीबीआई कर रही है। राज्य के जूनियर डॉक्टर हड़ताल पर है, जिनसे मिलने के लिए दो दिन सचिवालय में ममता बनर्जी बैठी रहीं लेकिन डॉक्टर मुलाकात के लाइव प्रसारण पर अड़े रहे हैं, जिसकी अनुमति सरकार ने नहीं दी। क्या यह कोई अपराध है, जिसके लिए राज्यपाल मुख्यमंत्री का सामाजिक बहिष्कार करेंगे? 

कांग्रेस को नहीं मिलीं मनचाही स्थायी समितियां 

नई लोकसभा के गठन के बाद से ही संसद की स्थायी समितियों की अध्यक्षता के लिए खींचतान चल रही थी। पिछली लोकसभा में कांग्रेस के पास सिर्फ एक स्थायी समिति की अध्यक्षता थी। लेकिन इस बार उसका दावा चार स्थायी समितियों का था। सरकार पर बनाया गया उसका दबाव काम आया और उसे चार स्थायी समितियों की अध्यक्षता मिल गई। उसे लोकसभा में तीन और राज्यसभा में एक स्थायी समिति की अध्यक्षता मिली है। विपक्षी पार्टियों में समाजवादी पार्टी, डीएमके और तृणमूल कांग्रेस को भी एक-एक स्थायी समिति की अध्यक्षता मिली है। सरकार ने चार स्थायी समितियों की अध्यक्षता देने की कांग्रेस की मांग तो मान ली लेकिन उसकी पसंद के विभागों की स्थायी समितियां नहीं दीं। कांग्रेस ने रक्षा मंत्रालय और गृह मंत्रालय की स्थायी समिति की अध्यक्षता मांगी थी। इसके अलावा वह सामाजिक अधिकारिता मंत्रालय और विधि व न्याय मंत्रालय की स्थायी समिति भी चाहती थी। पर सरकार ने इनमें से कोई भी स्थायी समिति कांग्रेस को नहीं दी है। ऐसा लग रहा है कि जान बूझकर वे सारे मंत्रालय छोड़ दिए गए, जो कांग्रेस ने मांगे थे। कांग्रेस को लोकसभा में विदेश मंत्रालय, कृषि मंत्रालय और ग्रामीण विकास मंत्रालय की स्थायी समिति की अध्यक्षता मिली है। विदेश मंत्रालय की स्थायी समिति के अध्यक्ष शशि थरूर होंगे। उधर राज्यसभा में कांग्रेस को शिक्षा मंत्रालय की स्थायी समिति की अध्यक्षता दी गई है, जिसके अध्यक्ष दिग्विजय सिंह होंगे।

ममता के ज़िद्दी रवैये से फ़ज़ीहत हुई

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने आखिरकार कोलकाता के पुलिस कमिश्नर विनीत गोयल और स्वास्थ्य मंत्रालय के दो बड़े अधिकारियों को हटा दिया है। यह काम वे एक महीने पहले भी कर सकती थीं। नौ अगस्त को आरजी कर अस्पताल में जूनियर डॉक्टर के साथ बलात्कार और जघन्य हत्या की घटना हुई थी। उसी दिन से राज्य के जूनियर डॉक्टरों ने प्रदर्शन और हड़ताल शुरू कर दी थी। उनकी पहली मांग पुलिस कमिश्नर को हटाने की थी। सबको दिख रहा था कि अस्पताल प्रशासन ने इस जघन्य घटना को खुदकुशी ठहराने की कोशिश की है और पुलिस ने भी मामले की जांच भटकाने का प्रयास किया है। ऐसी घटना होने पर राज्य सरकार तत्काल जो कदम उठाती है वह भी ममता ने नहीं उठाया। वे समझती रहीं कि यह घटना भी आई-गई हो जाएगी। इसीलिए उन्होंने मेडिकल कॉलेज के विवादित प्रिंसीपल को निलंबित करने की बजाय उनका तबादला कर दिया। पुलिस की संदिग्ध भूमिका सामने आते ही पुलिस प्रमुख और स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों पर कार्रवाई करनी चाहिए थी। लेकिन हाई कोर्ट ने जब केस की जांच सीबीआई को सौंप दी तब भी ममता ने कोई कार्रवाई नहीं की। डॉक्टरों की हड़ताल जारी रही और ममता कहती रहीं कि दुर्गापूजा में सुरक्षा के लिए उनको अनुभवी पुलिस अधिकारी की जरुरत है। लेकिन जब दुर्गापूजा का समय आ गया और डॉक्टरों की हड़ताल खत्म नहीं हुई तो उन्हें डीजीपी को भी हटाना पड़ा और स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों पर भी कार्रवाई करनी पड़ी। यह काम पहले हुआ होता तो इतनी फजीहत नहीं झेलनी पड़ती।

केरल में कांग्रेस की बढ़ती मुश्किलें

लोकसभा चुनाव में लगातार दूसरी बार केरल में एकतरफा जीत हासिल करने के बाद भी कांग्रेस नेतृत्व वाला गठबंधन यूडीएफ दबाव में है, खासकर कांग्रेस पार्टी। एक तो राहुल गांधी के वायनाड सीट से इस्तीफा देने के बाद कांग्रेस के नेता बैकफुट पर आए हैं और दूसरे कांग्रेस नेताओं के भाजपा के करीब जाने की खबरें आ रही हैं, जिससे हलचल बढ़ी है। कहा जा रहा है कि केरल में कांग्रेस ने जिन दो नेताओं को सबसे ज्यादा महत्व दिया और ऊंचे-ऊंचे पद दिए उनके बेटे अब कांग्रेस से पल्ला झाड़ रहे हैं। पहले पूर्व रक्षा मंत्री एके एंटनी के बेटे अनिल एंटनी ने कांग्रेस छोड़ी और भाजपा में शामिल होकर उसके राष्ट्रीय सचिव बन गए और अब दिवंगत पूर्व मुख्यमंत्री ओमन चांडी के बेटे चांडी ओमन भाजपा से नजदीकी बढ़ा रहे हैं। गौरतलब है कि चांडी ओमन वकील हैं और पिछले दिनों उनका नाम केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय के तहत आने वाली भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण के वकीलों के पैनल में शामिल किया गया था। हालांकि इसे लेकर तत्काल विरोध शुरू हो गया। केरल भाजपा के अनेक नेताओं ने इस पर सवाल उठाया। कांग्रेस नेताओं ने भी आपत्ति की और चांडी ओमन से संपर्क करके पूछा कि क्या उन्होंने अपना नाम पैनल के लिए दिया था। बाद में भाजपा नेताओं के विरोध की वजह से पैनल ही रद्द कर दिया गया। लेकिन कई तरह की राजनीतिक चर्चाएं शुरू हो गई हैं।

फ़र्ज़ी ख़बरों पर कांग्रेस की तैयारी

सोशल मीडिया में अपने खिलाफ फर्जी खबरें रोकने और उनका जवाब देने की कांग्रेस बड़ी तैयारी कर रही है। लोकसभा चुनाव में पहले से बेहतर प्रदर्शन करने से कांग्रेस का हौसला बढ़ा है और उसे लग रहा है कि धारणा की लड़ाई में भाजपा को हराने के लिए जरूरी है कि सोशल मीडिया के जरिए फैलाई जाने वाली फर्जी खबरों का जवाब दिया जाए। दरअसल फर्जी खबरें इलेक्ट्रानिक और प्रिंट मीडिया में पहुंचने से पहले सोशल मीडिया में आती हैं और टीवी चैनल व अखबार वाले भी वहां से खबरें लेते हैं या वहां वायरल हो रहीं खबरों से धारणा बनाते हैं, जिसका असर उनकी खबरों पर दिखता है। इसीलिए कांग्रेस ने तय किया है कि वह फर्जी खबरों को उनकी उत्पत्ति की जगह पर ही रोक देगी, उनकी शिकायत करेगी और उनका जवाब देगी। इसके लिए पार्टी के कानून, मानवाधिकार और आरटीआई विंग का पुनर्गठन किया गया है। पिछले दिनों इसके पदाधिकारियों को वरिष्ठ वकील अभिषेक सिंघवी ने प्रशिक्षण दिया। उन्हें फर्जी खबरें रोकने के लिए बनाए गए कानूनों के बारे में जानकारी दी गई। उन्हें यह भी बताया गया कि कहां शिकायत की जा सकती है और कैसे इन खबरों को रुकवाया या हटवाया जा सकता है। यह भी जानकारी दी गई कि फर्जी खबरों के जरिए नैरेटिव गढ़ने का कैसे जवाब देना है। बताया जा रहा है कि अगले कुछ दिनों इस तरह के और भी शिविर होंगे और इस विंग को मजबूत किया जाएगा।

भाजपा अजित पवार को नहीं छोड़ेगी

यह बड़ी हैरान करने वाली बात है कि एक तरफ एनसीपी के नेता और महाराष्ट्र के उप मुख्यमंत्री अजित पवार को लेकर यह चर्चा है कि वे भाजपा गठबंधन से बाहर हो सकते हैं और फिर अपने चाचा शरद पवार के साथ लौट सकते हैं तो दूसरी ओर यह खबर है कि राज्यपाल की ओर से मनोनीत होने वाले विधान परिषद सदस्यों में अजित पवार को तीन सीटें मिल सकती हैं। अगर ऐसा होता है तो यह बहुत बड़ी बात होगी। फिर कैसे यह माना जाए कि वे महायुति छोड़ कर अलग हो रहे हैं? अगर उनको अलग होना होता तो भाजपा क्यों उनको एमएलसी की तीन सीटें देती? गौरतलब है कि राज्य विधान परिषद में 12 सीटें मनोनीत श्रेणी की हैं। खबर है कि भाजपा, शिव सेना और एनसीपी ने सीटें आपस में बांट ली हैं। उससे पहले गठबंधन की तीनों सहयोगी पार्टियों के बीच विधानसभा की सीटों का बंटवारा भी हो रहा है। इसीलिए ऐसा लग रहा है कि अजित पवार परिवार व पार्टी तोड़ने पर अफसोस जताने या बारामती सीट से चचेरी बहन सुप्रिया सुले के खिलाफ अपनी पत्नी सुनेत्रा पवार को खड़ा करने को गलत फैसला बताने का नाटक शरद पवार के समर्थकों को मैसेज देने के लिए कर रहे हैं। लोकसभा चुनाव से उन्हें अंदाजा हो गया है कि मराठा वोटर शरद पवार के साथ है। इसलिए वे गलती मान कर या अफसोस जता कर उन मतदाताओं को मैसेज दे रहे हैं कि परिवार में सब कुछ पहले जैसा करने की कोशिश हो रही है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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