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DUSU चुनाव : इस बार क्या है अलग 

दिल्ली विश्वविद्यालय में आज छात्रसंघ चुनाव के लिए मतदान हो रहा है। मतगणना को लेकर अभी कन्फ़्यूजन है। कहा जा रहा है कि मतों की गिनती आज ही या फिर कल 28 सितंबर को होगी या फिर हरियाणा में 5 अक्टूबर को वोट पड़ने के बाद।
DUSU Elections

दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) जो हमेशा से एनएसयूआई और एबीवीपी जैसे मुख्यधारा के संगठनों का गढ़ माना जाता है, जहां हमेशा छात्रसंघ की चारों सीटों पर इन्हीं दोनों संगठनों का क़ब्ज़ा होता है वहां पहली बार बहुजन और मुस्लिम छात्र भी अपनी क़िस्मत आज़मा रहे हैं। वामपंथी छात्र दल भी पहली बार गठबंधन में चुनाव लड़ रहे हैं। 

बता दें कि एनएसयूआई (नेशनल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ इंडिया) और एबीवीपी (अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद) ने चारों सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं। ये दोनों ही संगठन कोंग्रेस और बीजेपी (आरएसएस) के छात्र संगठन हैं जिनका सीधा जुड़ाव सत्ता की मुख्यधारा से है। जबकि वामपंथी संगठन, ऑल इंडिया स्टूडेंट्स एसोसिएशन (आईसा) और स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (एसएफआई) एक साथ चुनाव लड़ रहे हैं। वहीं एक मुस्लिम और पिछड़े वर्ग से आने वाले छात्रों का प्रतिनिधित्व कर रहा संगठन फ्रेटरनिटी मूवमेंट  डीयूएसयू अध्यक्ष के लिए चुनाव लड़ रहा है। जबकि बहुजन छात्रों का नेतृत्व कर रहे अम्बेडकर स्टूडेंट्स एसोसिएशन ने अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के लिए अपने दो उम्मीदवार मैदान में उतारे हैं। 

ऐसे में इन संगठनों के उम्मीदवारों से बात कर उनके मुद्दे और चुनौतियां जानने का प्रयास किया तो फ्रेटरनिटी मूवमेंट से अध्यक्ष पद के लिए उम्मीदवार बदी उज़ ज़मा ने बताया कि वे पूरे चुनाव में अकेले ऐसे उम्मीदवार हैं जो मुस्लिम समुदाय से आते हैं। बदी ने बताया कि उनका संगठन दिल्ली विश्वविद्यालय छात्रसंघ चुनाव में विशेष रूप मुस्लिम छात्रों का प्रतिनिधित्व कर रहा है। बदी ये भी बताते हैं कि उनके संगठन ने बीते वर्ष भी चुनाव लड़ने का प्रयास किया था और उम्मीदवारों  के सभी दस्तावेज़ मुकम्मल होने के बावजूद विश्वविद्यालय निर्वाचन आयोग ने मनमाने ढंग से उम्मीदवारों का नामांकन रद्द कर दिया था। लेकिन इस दफा वे छात्रों के हित के चुनाव लड़ रहे हैं। फ्रेटरनिटी मूवमेंट से जुड़ी हाना, उपाध्यक्ष पद के लिए चुनाव लड़ रही हैं, बताती हैं कि एक हिजाबी छात्रा के तौर पर अपनी पहचान के साथ छात्रों के बीच जाकर उनकी आवाज़ बनना बहुत मुश्किल होता है और वह भी ऐसे कैंपस में जहां तथाकथित पितृसत्तात्मक मानसिकता का प्रभाव ज़्यादा हो। हाना का कहना है कि वे जब पहली बार कॉलेज आईं तो उन्होंने देखा कि कैंपस शिक्षा संस्थान कम और जंग का मैदान ज़्यादा लग रहा था, उस समय छात्रों के दो ग्रुपों में ख़ासी मुठभेड़ चल रही थी यहां तक कि वे छात्र लाठियों तक का उपयोग कर रहे थे, ऐसे में हाना ने चुनाव लड़ने का फैसला और भी मज़बूत कर लिया। वे आगे बताती हैं कि वे विश्वविद्यालय के माहौल को ठीक करने का संकल्प लिए चुनावी मैदान में हैं ताकि अपने समुदाय और विशेष रूप से छात्राओं का प्रतिनिधित्व कर सकें। हाना, ज़ाकिर हुसैन कॉलेज से बी कॉम प्रथम वर्ष की छात्रा हैं।

आईसा-एसएफआई की संयुक्त उम्मीदवार सावी गुप्ता ने हमसे अपने विचार साझा किए। सावी डीयू से क़ानून की छात्रा हैं और अध्यक्ष पद के लिए उम्मीदवार हैं। सावी बताती हैं कि प्रचार के दौरान उन्होंने काफ़ी कुछ अनुभव किया, छात्रों के बीच जाकर मालूम हुआ कि कई छात्र बहुत बुनियादी समस्याओं से जूझ रहे हैं। कहीं हॉस्टल में अच्छी सुविधाएं उपलब्ध नहीं हैं तो कहीं छात्र हॉस्टल के बजाए पीजी में किराए पर रहने पर मजबूर हैं। 

सावी के अनुसार यूजीसी कहता है विश्वविद्यालय में 60% छात्रों को हॉस्टल मिलने चाहिए लेकिन दिल्ली विश्वविद्यालय में लगभग 3-4% छात्रों को ही हॉस्टल मिल पाता है। और इसी वर्ष विश्वविद्यालय के हंसराज कॉलेज की एक ज़मीन गौशाला को दे गई जिस पर वर्तमान छात्रसंघ ने भी कोई आपत्ति नहीं जताई। 

जब हमने सावी से चुनौतियों के बारे में जानना चाहा तो उन्होंने बताया कि प्रचार के दौरान कई बार ऐसा हुआ, कि वे कक्षाओं में छात्रों को संबोधित करने पहुंचीं तो अन्य संगठनों के छात्रों ने उन्हें प्रताड़ित करने का प्रयास किया उनके संबोधन में बाधा डालने की भी कोशिशें की गईं। लेकिन इन सबसे उन्हें चुनाव लड़ने में और ज़्यादा ऊर्जा मिली। 

दिल्ली विश्वविद्यालय में महिला छात्राओं के साथ छेड़छाड़ और यौन उत्पीड़न के मामलों पर सावी कहती हैं कि उनका संयुक्त पैनल इस मुद्दे को चुनाव के माध्यम से उठा रहा है। वे आगे कहती हैं कि अगर वे उनका पैनल जीत कर आता है तो, आईसीसी (इंटरनल कंप्लेंट्स कमेटी), जो विश्वविद्यालय में छात्राओं के यौन उत्पीड़न और प्रताड़ना के मामलों से डील करती है, को सशक्त करने का प्रयास करेंगे।

आपको यह भी बता दें कि आईसा-एसएफआई संयुक्त पैनल में सावी के अलावा दो अन्य छात्राएं, सचिन पद पर स्नेहा और सह सचिव के लिए अनामिका उम्मीदवार हैं। जबकि उपाध्यक्ष के लिए छात्र आयूश चुनाव लड़ रहे हैं।

बहुजन छात्रों के एक संगठन, अम्बेडकर स्टूडेंट्स एसोसिएशन ने भी दो उम्मीदवारों को इस चुनाव में उतारा है। उनमें से एक पिंकी, जो दिल्ली विश्वविद्यालय से बौद्ध अध्ययन में एमए कर रहीं हैं, ने हमसे बातचीत में कहा कि वे पहली बार डीयू में ऐसा देख पा रही हैं कि बहुजन छात्र चुनाव में हिस्सा ले रहे हैं। पिंकी अध्यक्ष पद के चुनाव लड़ रहीं हैं। आगे बताती हैं कि प्रचार के दौरान छात्रों से उनका अच्छा जुड़ाव रहा, वे जो कहना चाहती थीं छात्रों ने उनकी बातें बहुत सहानुभूति से सुनीं और उनका समर्थन भी किया। 

पिंकी का कहना है कि वे दिल्ली विश्वविद्यालय में विशेष रूप से बहुजन और पिछड़े वर्ग से आने वाले छात्रों की आवाज़ बनना चाहती हैं। वहीं इसी संगठन से जुड़ी एक अन्य छात्रा बनश्री, जो डीयू में अंग्रेजी में एमए कर रहीं हैं, वे उपाध्यक्ष पद के चुनाव लड़ रही हैं। बनश्री दिल्ली विश्वविद्यालय छात्रसंघ चुनाव की अकेली ऐसी उम्मीदवार हैं जो उत्तर पूर्व राज्य से हैं, वे असम की रहने वाली हैं। बनश्री का कहना है कि दिल्ली विश्वविद्यालय में जिस प्रकार से छात्राओं की सुरक्षा हमेशा से एक बड़ा मुद्दा रहा है वे उसे हल करना चाहती हैं। साथ ही उनके संगठन ने घोषणापत्र में चार मुद्दे उठाए हैं जिनमें शुल्क वृद्धि में बढ़ोतरी का विरोध और हॉस्टल की कमी का मुद्दा है। साथ ही कैंपस में लोकतांत्रिक माहौल की बहाली और विकलांग छात्रों के लिए पर्याप्त सुविधाएं आदि शामिल हैं। 

बता दें कि दिल्ली विश्वविद्यालय में ये संगठन प्रत्यक्ष रूप से किसी मज़बूत राजनीतिक दल का हिस्सा नहीं हैं, बावजूद इसके वे पिछड़े वर्ग से आने वाले छात्रों का प्रतिनिधित्व करना चाहते हैं। इस पूरे चुनावी माहौल के दौरान इन छात्रों ने बिना किसी साधन संसाधन के बिना कोई बड़ी गाड़ियों के, सीधे छात्रों के बीच जा कर प्रचार किया है। देखने वाली बात है कि दिल्ली विश्वविद्यालय के आम छात्र किसको अपना नेतृत्व सौंपते हैं।

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

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