जज लोया को न्याय नहीं मिला : जस्टिस पाटिल
“ न्यायपालिका को सिर्फ़ फ़ैसला नहीं देना चाहिए, बल्कि फ़ैसले में न्याय हुआ है ये भी दिखना चाहिए। हम तो हमेशा कहते हैं कि न्यायपालिका हमेशा न्याय करती है। ऐसा नहीं होता है। कभी-कभी सिर्फ़ जज़मेंट होता है। और इसमें न्याय नहीं होता है। लोया का मामला इसका उदाहरण है…। "
यह कहना है बॉम्बे हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस बीजी कोलसे पाटिल का। यह बात उन्होंने जज लोया सहित अन्य योग्य मौतों पर आधारित पुस्तक ' सत्ता की सूली ' की भूमिका में कही है। इस पुस्तक को लिखा गया है तीन पाठकों दोस्तों महेंद्र मिश्र, प्रदीप सिंह और उपेंद्र चौधरी ने, जिसका लोकार्पण सोमवार को दिल्ली में और मंगलवार को अहमदाबाद में हुआ।
दिल्ली के प्रेस क्लब में हुए लोकार्पण समारोह में खुद जस्टिस बीजी कोलसे पाटिल मौजूद रहे और उन्होंने सत्ता से डरने की बजाय उससे संघर्ष की सलाह दी। इस मौके पर सुप्रीम कोर्ट की वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह, पूर्व आईपीएस वीएन राय, वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश, भाकपा-माले पोलित ब्यूरो की सदस्या और महिला एक्टिविस्ट कविता कृष्णन और इस मामले को लेकर आज भी संघर्षरत वकील, गवाह और पीड़ित सतीश यूके भी उपस्थित थे। सबने बारी-बारी से इस किताब और जज लोया की संदिग्ध मौत समेत अन्य मौतों पर अपने विचार रखे और इस साहस पूर्ण काम के लिए तीनों लेखकों और प्रकाशक को बधाई दी।
जस्टिस बीजी कोलसे पाटिल ने कहा कि जज लोया को अभी न्याय नहीं मिला है। आज आपका मुंह यह कह कर बंद करने की कोशिश की जाती है कि न्यायपालिका के निर्णयों की आलोचना नहीं कर सकते हैं, लेकिन आप जज की नहीं फैसले की आलोचना कर सकते हैं। ये कोई नई बात नहीं है। सत्ता हमेशा से डराती रही है और डराती रहेगी। इसलिए सत्ता का डर छोड़ कर संघर्ष में उतरो।
जस्टिस पाटिल ने कहा कि सच की लड़ाई हमेशा जारी रहनी चाहिए। सरकार बहुत करेगी आपको कुछ दिन जेल में डाल देगी। लेकिन इससे डरना नहीं है। लोग अपने को अमेरिका और इग्लैंड रिटर्न कहते हैं लेकिन मैं अपने को जेल रिटर्न कहता हूं। जनता के हित में संघर्ष करते रहिए, कभी न कभी सफलता मिलेगी।
इस पूरे प्रकरण में पीड़ित और गवाह नागपुर से आये अधिवक्ता सतीश यूके ने कहा कि जब सुप्रीम कोर्ट में जज लोया की मौत से जुड़े रिकॉर्ड को एक-एक करके जमा कराया जा रहा था। तभी मुझे संदेह हुआ। और हमने जज लोया की मौत से जुड़े ढेर सारे दस्तावेजों को बचा लिया। क्योंकि मुझे पता था कि इस केस का क्या हश्र होने वाला है। अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने कहा कि जज लोया मामले से जुड़े होने के कारण महाराष्ट्र सरकार ने उनको बहुत परेशान किया। उन्होंने सीधा आरोप लगाया कि मुख्यमंत्री देवेंद्र फणनवीस के लोगों ने उन्हें धमकी दी, प्रशासन ने परेशान किया। उन पर जानलेवा हमले हुए।
सुप्रीम कोर्ट की वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह ने कहा कि यह किताब उन तमाम कड़ियों को जोड़ती है जिसमें एक एक मौत के बाद दूसरी मौत होती चली जाती है। उन्होंने लोकतंत्र और उसके ख़तरों का जिक्र करते हुए सुप्रीम कोर्ट के चार जजों का बाहर आकर प्रेस कॉन्फ्रेंस करने को भी याद किया और कहा कि आज उनमें से एक जज हमारे चीफ जस्टिस हैं, जिन्होंने उस समय डेमोक्रेसी को डेंजर बताया था। और इस बात को पूरे देश ने महत्व दिया था। उन्होंने पत्रकारों से कहा कि वे चीफ जस्टिस से ये सवाल ज़रूर पूछें कि आज भी वही डेमोक्रेसी और वही डेंजर है जो जनवरी, 2018 में था लेकिन वे आज इसे बचाने के लिए क्या कर रहे हैं।
वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश ने चिंता जताई कि आज मीडिया में फॉलोअप स्टोरी नहीं हो रही है। जज लोया से जुड़ी स्टोरी को जब कारवां पत्रिका ने प्रकाशित किया तो पूरे देश में हलचल मची। उसके बाद एक बड़े अखबार ने इस स्टोरी को दबाने के लिए स्टोरी की। ये एक बड़ा झटका था कि जो अख़बार साहसी पत्रकारिता का दावा करता है वही एक संदिग्ध मौत के मामले में नये सवाल उठाने की बजाय उस स्टोरी में क्या कमियां हैं इसे उजागर करता है। उन्होंने हिन्दी पत्रकारों से खोजी पत्रकारिता और फॉलोअप स्टोरी पर ध्यान देने की अपील की।
पूर्व आईपीएस विकास नारायण राय ने क्रिमिनल प्रोसीजर में कमियों और राज्य के नजरिये में कमी को फोकस करते हुए बताने की कोशिश की कि कैसे अपराधी छूट जाते हैं। इस मामले में उन्होंने पूरी प्रणाली पर फिर से विचार करने की जरूरत पर बल दिया।
भाकपा-माले नेता कविता कृष्णन ने लोया मामले की शुरुआत का जिक्र करते हुए बताया कि कैसे जब आप किसी पीड़ित को न्याय दिलाने के लिए आवाज उठाते हैं तो सत्ता से जुड़े लोग आपकी आवाज को दबाने के लिए आपको बदनाम करने लगते हैं।
विमोचन-लोकार्पण कार्यक्रम में कई वरिष्ठ पत्रकार, लेखक, छात्र और अन्य लोग मौजूद रहे। कार्यक्रम का संचालन कवि-पत्रकार मुकुल सरल ने किया।
इसी किताब का कल, मंगलवार को अहमदाबाद में भी विमोचन हुआ।
अहमदाबाद के सरदार पटेल स्मृति भवन में विमोचन के मौके पर मशहूर गुजराती लेखक एवं निरीक्षक पत्रिका के संपादक प्रकाश शाह, पूर्व आईपीएस और लेखक राजन प्रियदर्शी, शिक्षा के क्षेत्र में कार्य करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता सुखदेव पटेल, पाटीदार अनामत आंदोलन के अतुल पटेल और मजदूर पंचायत के नेता जयंती पंचाल मौजूद रहे।
आपको बता दें कि जज लोया की संदिग्ध मौत को लेकर सबसे पहले कारवां मैगज़ीन ने खुलासा किया था। किताब के लेखक और ‘जनचौक’ न्यूज़ पोर्टल के संस्थापक संपादक महेंद्र मिश्र ने बताया कि शुरू में हम लोग फॉलोअप स्टोरी कर रहे थे। लेकिन कुछ समय बाद कारवां में भी इस सिलसिले में खबरें छपना कम हो गईं। तब आगे बढ़कर जनचौक ने भी ज़िम्मेदारी संभाली।
लेखकों के मुताबिक इस पुस्तक में उनका अपना कोई विचार नहीं है, सब कुछ तथ्यों, दस्तावेजों तथा प्रकाशित खबरों पर आधारित है।
कुल मिलाकर इन किताबों में वास्तव में एक दस्तावेज़ है। एक केस हिस्ट्री। जो जज लोया सहित अन्य सहज मौतों की पूरी कहानी क्रमबद्ध तरीके से हमारे सामने रखती है। और परत दर परत सच , ख़ौफ़नाक सच हमारे सामने खुलता जाता है , और हम देखते हैं कि ये सच ही है , ये न्याय ही है जो सूली पर चढ़ा दिया गया है।
इस पुस्तक को मज़दूरों के संघर्ष के अगुआ शंकर गुहा नियोगी और जेएनयू के पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष चंद्रशेखर के बलिदान को समर्पित किया गया है।
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