'मौत का हाईवे' बन गया है यमुना एक्सप्रेस-वे, 5 साल में 5 हज़ार हादसे
यमुना एक्सप्रेस-वे एक बार फिर सुर्खियों में है। सुर्खियों की वजह कोई नई नहीं है। सोमवार की सुबह लगभग चार बजे एक यात्री बस आगरा में यमुना एक्सप्रेस-वे से फिसलकर नीचे नाले में गिर गई जिसमें 29 लोगों की मौत हो गई। हादसे की वजह अभी साफ़ नहीं है, लेकिन कहा जा रहा है कि हादसा तेज़ रफ़्तार और ड्राइवर को नींद आने की वजह से हुआ। जांच के लिए एक समिति बना दी गई है। लेकिन असल सवाल ये है कि ये हादसे कब और कैसे रुकेंगे, क्योंकि इस एक्सप्रेस-वे पर ही पांच साल में अलग-अलग वजह से करीब पांच हज़ार हादसे हो चुके हैं।
सोमवार को हुए हादसे में 29 लोगों की मौत के अलावा करीब 18 अन्य घायल भी हुए हैं, जिन्हें आगरा के श्रीकृष्ण हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया है। घायलों में से नौ की हालत गंभीर है। आपको बता दें कि यह बस उत्तर प्रदेश रोडवेज के अवध डिपो की जनरथ बस थी, जो लखनऊ से दिल्ली के आनंद विहार बस अड्डा जा रही थी।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने दुर्घटना पर शोक जताया है। उन्होंने यातायात आयुक्त, मंडलीय आयुक्त और आईजी की एक समिति को 24 घंटे के भीतर इसकी जांच करने का आदेश दिया है। यह समिति दुर्घटना के कारणों के बारे में रिपोर्ट देगी और इस तरह की घटना से भविष्य में बचने के लिए भी उठाए जाने वाले कदमों की सिफारिश करेगी।
5 साल में 5 हजार हादसे
आपको बता दें कि इस एक्सप्रेस-वे पर हादसे आम बात हैं। ट्रैफिक पुलिस निदेशालय के आंकड़ों के मुताबिक यमुना एक्सप्रेस-वे पर जनवरी से जून 2019 तक 95 दुर्घटनाएं हुईं, जिनमें 94 लोगों की मौत हुई वहीं 120 लोग घायल हो चुके हैं।
इसी साल अप्रैल में आरटीआई द्वारा मिली जानकारी से इस बात का खुलासा हुआ कि यमुना एक्सप्रेसवे पर अगस्त, 2012 से 31 मार्च, 2018 के बीच कुल 4,956 दुर्घटनाएं हुईं, जिनमें 718 लोगों की मौत हुई और 7,671 लोग गंभीर रूप से घायल हुए। यह खुलासा आरटीआई कार्यकर्ता व सर्वोच्च न्यायालय के अधिवक्ता केसी जैन द्वारा मांगी गई जानकारी में हुआ।
उस समय समाचार एजेंसी ‘आईएएनएस’ से बात करते हुए जैन ने कहा था, 'हमने तेज ड्राइविंग के खतरों पर लगाम लगाने के लिए सरकारी एजेंसियों को लिखा, लेकिन हमारी याचिकाओं पर कोई सुनवाई नहीं हुई। यमुना एक्सप्रेस-वे की गतिविधियों पर एक स्वतंत्र एजेंसी को निगरानी रखनी चाहिए और गति उल्लंघन के बारे में जेपी इंफोटेक से प्राप्त जानकारी पर फॉलोअप देना चाहिए। हमने इसके बारे में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री को भी पत्र लिखा है।'
हादसों की वजह
जैन ने कहा कि ड्राइवर न केवल गति सीमा का उल्लंघन करते हैं, बल्कि बिना हेलमेट और सीट बेल्ट के गाड़ियां चलाते हैं। उन्होंने दावा किया कि स्वचालित निगरानी गैजेट और नंबर प्लेट रीडर द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों से पता चलता है कि अगस्त 2012 से मार्च 2018 के बीच 2.33 करोड़ वाहनों ने गति सीमा का उल्लंघन किया। उन्होंने कहा, 'लेकिन उल्लंघन करने वालों के खिलाफ मामला दर्ज नहीं किया जाता है और वे मुफ्त में बच निकलते हैं।'
यमुना एक्सप्रेसवे औद्योगिक विकास प्राधिकरण द्वारा उपलब्ध आंकड़ों से पता चला है कि 23.42 प्रतिशत दुर्घटनाएं तेज गति और 12 प्रतिशत दुर्घटनाएं टायर फटने के कारण हुईं। इसके अलावा ओवर टेकिंग (15%), नींद का आना (10) और बीच रास्ते में खड़े वाहन (5%) हादसे की प्रमुख वजह हैं।
एक्सप्रेस-वे पर सड़क हादसों को लेकर सेंट्रल रोड रिसर्च इंस्टिट्यूट ने भी एक रिपोर्ट तैयार की थी जिसके बाद उन्होंने भी कुछ उपाय करने की बात कही थी, लेकिन इन्हें भी आज तक अमल में नहीं लाया जा सका है।
इसमें सीसीटीवी कैमरों की संख्या बढ़ाने, रास्ते में जगह-जगह छोटे स्पीड़ ब्रेकर लगाने की भी बात कही गई थी, जिससे वाहन चलाने वाला चौकन्ना रहे ओर स्पीड़ को अधिक न रख सके।
165 किमी लंबा रास्ता
यमुना एक्सप्रेस वे करीब 165 किमी लंबा है। यह देश का सबसे लंबा छह लेन का एक्सप्रेस वे है। इसके बनने की शुरुआत दिसंबर 2007 में तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती ने की थी। 9 अगस्त 2012 को यूपी के तत्कालीन सीएम अखिलेश यादव ने इसे जनता को बड़ी उम्मीदों के साथ सौंपा था। ग्रेटर नोएडा से शुरू होकर यह एक्सप्रेस वे आगरा तक जाता है।
इस एक्सप्रेस वे की एक खासियत यह भी है कि भारतीय वायुसेना के लड़ाकू विमान इस पर दो बार टचडाउन का परीक्षण भी कर चुके हैं। इनमें से एक परीक्षण तो इसी साल मार्च में हुआ था। इससे पहले 21 मई 2015 को इसी तरह का परीक्षण वायुसेना के लड़ाकू विमानों ने किया था।
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एक्सप्रेस-वे का संचालन अभी जेपी ग्रुप कर रहा है। यमुना प्राधिकरण ने एक्सप्रेसवे दिल्ली आईआईटी से सुरक्षा ऑडिट कराया था। अप्रैल माह में यमुना प्राधिकरण को सौंपी रिपोर्ट में आईआईटी ने कुछ सुझाव दिए थे और उस पर अमल करने के लिए कहा था।
इसमें डिवाइडर हटाकर थ्राई पिलर लगाने, रंबल स्ट्रिप लगाने, बैरियर की ऊंचाई बढ़ाने, स्पीड कैमरों की संख्या दोगुनी करने जैसे प्रमुख सुझाव थे। एक्सप्रेस-वे का संचालन करने वाली कंपनी का आकलन है कि इस पर करीब 224 करोड़ रुपये खर्च होंगे। उसने शासन से इन पैसों का इंतजाम कराने की अपील की थी।
संसद में उठा मामला
सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने बढ़ते सड़क हादसों पर चिंता व्यक्त करते हुये कहा है कि सरकार सड़क दुर्घटनाओं पर नियंत्रण के लिये टायरों के निर्माण में रबड़ के साथ सिलिकॉन मिलाने और टायरों में नाइट्रोजन भरने को अनिवार्य बनाने पर विचार कर रही है। इससे टायर ठंडे रहेंगे और उनके फटने का खतरा कम हो जाएगा।
गडकरी ने सोमवार को राज्यसभा में प्रश्नकाल के दौरान एक सवाल के जवाब में यह जानकारी दी। उन्होंने कहा, ‘सड़क सुरक्षा के बारे में यह बात ध्यान में आयी है कि हमारे यहां टायरों के निर्माण मानकों और अंतरराष्ट्रीय मानकों में क्या समानता या फर्क है, उसकी हमारे पास अभी तक जानकारी नहीं थी।’
गडकरी ने कहा कि अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों में टायर के निर्माण में रबड़ के साथ सिलिकॉन डाला जाता है। इससे अधिक गति पर टायर का तापमान बढ़ने से इसके फटने की शिकायतें कम हो सकती है। साथ ही टायरों में नाइट्रोजन भरना चाहिये। इससे टायर ठंडा रहता है। इन दोनों बातों को अनिवार्य बनाने पर विचार किया जा रहा है।
गडकरी ने यमुना एक्सप्रेस वे पर हुये हादसे पर दुख व्यक्त करते हुए सदन को बताया कि यह राजमार्ग उत्तर प्रदेश सरकार ने बनाया है और इसका संचालन नोएडा प्राधिकरण द्वारा किया जाता है। उन्होंने कहा कि सीमेंट और कंक्रीट से बने इस एक्सप्रेस वे पर 2016 में 1525 सड़क दुर्घटनाओं में 133 लोगों की मौत हुयी थी। जबकि 2017 में 146 और 2018 में 111 लोगों की सड़क हादसों में मौत हुई।
हादसे कब तक?
आपको बता दें कि 165 किमी लंबे इस एक्सप्रेसवे को बनाने में 128.39 अरब रुपये खर्च हुए थे। इसे बनाने का मकसद दिल्ली और आगरा के बीच की दूरी घटाकर कम समय में लोगों को आनंददायक सफर मुहैया कराना था लेकिन जैसे-जैसे समय बीता, यह एक्सप्रेस वे मौत का हाईवे बनता चला गया।
वर्ष 2017 में सर्दियों के दिनों में इसी मार्ग पर करीब 18 गाडि़यां आपस में टकरा गई थीं। इस एक्सप्रेस की शुरुआत से देखा जाए तो यहां पर साल-दर-साल हादसों की संख्या में इजाफा हुआ है। फिलहाल हजारों करोड़ रुपये की लागत से बने इस एक्सप्रेस-वे पर इस तरह के हादसों को रोकने के लिए जो उपाय किए जाने चाहिए थे उनका आज तक भी इंतजार है।
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