महिलाओं के ख़िलाफ़ अपराधों में फिर बढ़ोत्तरी, क्या सरकार तय करेगी जवाबदेही?
अपराधों का लेखा जोखा रखने वाली संस्था नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो यानी एनसीआरबी ने 'क्राइम इन इंडिया 2021' रिपोर्ट जारी कर दी है। हर साल की तरह इस साल भी महिलाओं के खिलाफ अपराध मामले में बढ़ोत्तरी देखने को मिली है। रिपोर्ट के आंकड़ों के अनुसार 2021 में महिलाओं के ख़िलाफ़ अपराध की दर (प्रति 1 लाख जनसंख्या पर घटनाओं की संख्या) 2020 के 56.5 प्रतिशत से बढ़कर 64.5 प्रतिशत हो गई है। ये बढ़ोत्तरी 15.8 फीसदी की है, जो महिला सुरक्षा के तमाम वादों और इरादों से इतर एक अलग सच्चाई बयान करती है।
इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, साल 2020 में महिलाओं के खिलाफ अपराध के 3,71,503 मामले दर्ज हुए थे, जबकि 2021 में यह आंकड़ा बढ़कर 4,28,278 हो गया। इनमें से अधिकांश मामले पति या उसके रिश्तेदारों द्वारा क्रूरता (31.8 प्रतिशत) के रहे। उसके बाद ‘महिलाओं पर शील भंग करने के इरादे से हमला’ (20.8 प्रतिशत), अपहरण (17.6 प्रतिशत) और बलात्कार (7.4 प्रतिशत) के मामले रहे।
2021 में दर्ज मामलों की वास्तविक संख्या के मामले में रिपोर्ट में उत्तर प्रदेश (यूपी) को शीर्ष पर (56,083) रखा गया है। हालांकि वहां अपराध की दर 50.5 प्रतिशत से कम है। महिलाओं के खिलाफ सबसे अधिक अपराध दर्ज करने वाले अन्य राज्यों में राजस्थान, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल और ओडिशा शामिल हैं। वहीं, पिछले तीन सालों की तरह इस साल भी नगालैंड में महिलाओं के खिलाफ सबसे कम अपराध दर्ज हुए।
महानगरों में दिल्ली सबसे असुरक्षित
एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक देश के सभी 19 महानगरों में महिलाओं के खिलाफ क्राइम की जितनी भी घटनाएं होती हैं, उसकी 32 फीसदी घटनाएं अकेले राजधानी में होती हैं। सभी 19 मेट्रो सिटीज में साल 2021 में महिलाओं के साथ क्राइम के कुल 43,414 मामले दर्ज हुए, जिसमें से 13,982 मामले अकेले दिल्ली में दर्ज हुए। दिल्ली के बाद अगला नंबर है मुंबई और बेंगलुरु का। इन दोनों महानगरों में भी 2020 के मुकाबले 2021 में महिलाओं के साथ होने वाली हिंसा और क्राइम की घटनाओं में आश्चर्यजनक ढंग से बढ़ोतरी हुई है।
देश की आर्थिक राजधानी मुंबई में 2021 में औरतों के साथ क्राइम के कुल 5,500 मामले दर्ज किए गए और बेंगलुरु इस तरह के कुल 3,000 मामले दर्ज हुए। सभी मेट्रो सिटीज में महिलाओं के साथ होने वाले क्राइम का 12.7 फीसदी अकेले मुंबई में हो रहा है और 7.2 फीसदी बेंगलुरु में। इन आंकड़ों से एक बात तो साफ है कि महिलाओं के साथ होने वाले क्राइम में सबसे ज्यादा योगदान देश की राजधानी का ही है।
हर दिन कम से कम 90 नाबालिग लड़कियों के साथ बलात्कार
इसके अलावा रिपोर्ट के अनुसार, पिछले साल देश में हर दिन कम से कम 90 नाबालिग लड़कियों के साथ बलात्कार किया गया। ये मामले भारतीय दंड संहिता की धारा 376 (बलात्कार) और धारा 4 (पेनेट्रेटिव यौन हमले के लिए सजा) और 6 (गंभीर यौन उत्पीड़न के लिए सजा) के तहत यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम के तहत दर्ज किए गए।
टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर में एनसीआरबी के हवाले से कहा गया है कि 2021 में देश भर में 33,186 नाबालिग लड़कियों के साथ बलात्कार किया गया था। 3,522 नाबालिग लड़कियों के यौन शोषण की रिपोर्ट करने में मध्य प्रदेश शीर्ष पर था। उसके बाद महाराष्ट्र में 3,480, तमिलनाडु में 3,435 और उत्तर प्रदेश में 2,749 थे। ऐसी 2,093 घटनाओं के साथ कर्नाटक पांचवें स्थान पर रहा। कर्नाटक में 2021 में हर दिन कम से कम पांच नाबालिग लड़कियों के साथ बलात्कार हुआ था। वहीं आंकड़ों से पता चलता है कि 2021 में दिल्ली में हर दिन औसतन दो बच्चियों से बलात्कार हुआ।
रिपोर्ट के अनुसार, 2021 में बलात्कार की उच्चतम दर 16.4 प्रतिशत राजस्थान में देखी गई, जो जहां पिछले साल दर्ज किए गए 6,337 मामलों के साथ वास्तविक अपराधों की संख्या में सबसे ऊपर रहा। इसके बाद यूपी, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र रहे, जहां पिछले साल 2,000 से अधिक मामले दर्ज किए गए। कुल मिलाकर, पिछले साल देश में बलात्कार के 31,677 मामले दर्ज किए गए, जो पिछले पांच वर्षों में 2018 के 33,977 मामलों की तुलना में मामूली गिरावट को दर्शाता है।
एनसीआरबी साल 2017 से ‘सामूहिक बलात्कार/बलात्कार के साथ हत्या” के मामलों का रिकॉर्ड दर्ज कर रहा है। साल 2021 में ऐसे 284 मामले सामने आए। इतने ही मामले 2019 में भी देखे गए थे। 2020 में ऐसी 218 घटनाएं हुई थीं। इस तरह के सबसे अधिक 48 मामले पिछले साल यूपी में देखने को मिले, इसके बाद असम में 46 ऐसे मामले सामने आए। बिहार, अरुणाचल प्रदेश, गोवा, हिमाचल प्रदेश, मणिपुर, मिजोरम, नगालैंड और उत्तराखंड में पिछले साल इस श्रेणी में कोई मामला दर्ज नहीं किया गया।
एनसीआरबी की रिपोर्ट से पता चलता है कि पिछले साल 28,000 से अधिक महिलाओं का अपहरण कर ‘विवाह के लिए मजबूर’ किया गया, जिसमें 12,000 नाबालिग शामिल थीं। ऐसे मामलों की सर्वाधिक संख्या यूपी (8,599) और उसके बाद बिहार (6,589) में दर्ज की गई। पिछले साल दहेज हत्या के 6,589 मामले दर्ज किए गए थे, जिनमें सबसे अधिक ऐसी मौतें यूपी और बिहार में दर्ज की गई थीं।
हर साल महिलाओं के खिलाफ बढ़ते अपराध पर विलाप
2021 में घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत देश में केवल 507 मामले दर्ज किए गए जो महिलाओं के खिलाफ अपराध के कुल मामलों का 0.1 प्रतिशत है। ऐसे सबसे ज्यादा मामले (270) केरल में दर्ज किए गए। वहीं राष्ट्रीय राजधानी में 2020 में अपहरण के सबसे अधिक 5,475 मामले सामने आए थे जबकि पिछले साल 4,011 मामले सामने आए। आंकड़ों के मुताबिक, पुलिस 5,274 अपहृत लोगों को बचा पाई, जिनमें 3,689 महिलाएं शामिल हैं। अपहृत किए गए 17 लोग मृत पाए गए, जिनमें आठ महिलाएं भी शामिल हैं।
गौरतलब है कि एनसीआरबी की 'क्राइम इन इंडिया' रिपोर्ट हर साल आती है और हर साल हम महिलाओं के खिलाफ बढ़ते अपराध पर विलाप की कहानी दोहराते हैं। महिलाओं के साथ होने वाली हिंसा में पिछले साल के मुकाबले इस साल बढ़ोतरी हुई, हर दिन इतनी महिलाएं और नाबालिग लड़कियां दुष्कर्म का शिकार हुईं, हत्या, घरेलू हिंसा, दहेज हत्या का ग्राफ इन महानगरों में बड़ा, तो कभी ये राज्य महिलाओं के लिए सबसे असुरक्षित हैं इत्यादी। लेकिन इससे महिला सुरक्षा की समस्या का समाधान नहीं होता। नाही विश्व गुरु बनने की चाहत रखने वाले भारत में महिलाओं की स्थिति बदलती है।
बता दें कि भारतीय जनता पार्टी ने नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में 2014 का लोकसभा चुनाव जिन मुद्दों पर लड़ा, उनमें महिला-सुरक्षा एक अहम मुद्दा था। पार्टी ने अपने मैनिफ़ेस्टो में और प्रधानमंत्री ने अपने भाषणों में कई वायदे किए। लेकिन अब सत्ता में लगभग आठ साल गुजारने के बाद भी वो वादे केवल नारों तक ही सिमट कर रह गए और महिलाओं के खिलाफ अपराध धड़ल्ले से बढ़ते चले गए। ये विडंबना ही है कि यूपीए की सरकार में निर्भया के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को चूड़िया भेजने वाली स्मृति ईरानी आज खुद केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री हैं और बिलक़ीस बानो के अपराधियों पर चुप्पी साधे हुए हैं।
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