एक किताब जो फिदेल कास्त्रो की ज़ुबानी उनकी शानदार कहानी बयां करती है
यह निबंध पीपल्स पब्लिशिंग हाउस, दिल्ली से 1987 में प्रकाशित 276 पेज की किताब ‘फिदेल एंड द रिलिजन-कन्वर्सेशन्स विद फ्री बेट्टो’ के पहले संस्करण पर आधारित है।
यह किताब फिदेल कास्त्रो से ब्राजील के डोमिनिकन फ्री बेट्टो की बातचीत है, जो व्यवहारतः कैथोलिक हैं पर समाजवाद में पूरी आस्था रखते हैं। उन दोनों की इस बातचीत को क्यूबा के संस्कृति मंत्री अमांडो हार्ट ने पेश किया है। 'पाथ्स टू ए मीटिंग' किताब में फ्री बेट्टो ने इन वार्ताओं की पृष्ठभूमि का खुलासा किया है, जिसे उन्होंने 1979 में 'फेथ इन सोशियलिज्म' नामक पुस्तक के रूप में प्रकाशित कराया था।
निकारागुआ में सैंडिनिस्टा क्रांति की सफलता में विश्वासयोग्य ईसाइयों का भी योगदान था, उसमें फ्री को एक सलाहकार के रूप में आमंत्रित किया गया था। इन ईसाइयों ने ही फ्री को इस पुस्तक पर काम करने के लिए प्रोत्साहित किया। फादर मिगुएल डी एस्कोटो जैसे कई पादरी, विदेश मंत्री, क्रांतिकारी सरकार के हिस्सा थे। इन सबका आदर्श क्यूबा था।
वे फिदेल कास्त्रो से पहली बार जुलाई 1980 में निकारागुआ के उपराष्ट्रपति सर्जियो रामिरेज़ के घर पर मिले थे। फिदेल ने फ्री को 'परेशान' किए बिना ही उनके साथ बाइबल और ईसाई विचारों पर स्वतंत्र रूप से चर्चा करने के लिए प्रोत्साहित किया और उन्हें बताया कि 'क्यूबा क्रांति किसी भी समय धार्मिक विरोधी भावनाओं से प्रेरित नहीं हुई है'। कास्त्रो ने 1971 में चिली के पादरी को आलेंदे अवधि के दौरान संबोधित किया, और जमैका में, उन्होंने प्रोटेस्टैंट मतावलंबियों को भी 1977 में संबोधित किया था। निकारागुआ में क्रांतिकारी संघर्ष के समय ईसाइयों और मार्क्सवादियों के बीच एकता थी।
फ्री ने 1981 से 1985 तक 12 बार क्यूबा का दौरा किया था और 23 मई से 26 मई तक इन चार दिनों में 23 घंटे के इंटरव्यू को रिकॉर्ड किया था। यानी उन्होंने कास्त्रो से रोजाना औसतन छह घंटे बातचीत की थी। उन्होंने इस इंटरव्यू के 29 मई 1985 को पूरा होने के तुरंत बाद इस नोट को लिखा था।
यह पुस्तक दो भाग में है। 'क्रॉनिकल ऑफ ए विजिट' शीर्षक वाले पहले भाग में फिदेल कास्त्रो की अल्जीरिया के राष्ट्रपति चाडली बेंडजे की यात्रा के दौरान कई लोगों से की हुई उनकी बातचीत का अंश है। इसके साथ ही, ब्राजील के एक समूह के जैसे ही कुछ अन्य मेहमानों के साथ ब्राजील के पत्रकार जोएलमिर बेटिंग से उनकी मुलाकात के दौरान हुई बातचीत का हिस्सा है। फिदेल बेटिंग और ब्रेटो के साथ उनकी समापन बैठक पर एक रात उनके होटल में उनसे मिलने चले आए थे।
पुस्तक के पहले भाग में सात अध्याय हैं और यह 45 पृष्ठों में फैला हुआ है। इसी हिस्से में यह जानकारी दी गई है कि फिदेल खुद एक अच्छे पाकशास्त्री थे। इसके बारे में, वे चे ग्वारा के साथ अपनी तुलना के क्रम में टिप्पणी करते हैं-‘मैं खाना बेहतर बना लेता हूं। मैं यह तो नहीं कहूंगा कि मैं एक बेहतर क्रांतिकारी हूं, लेकिन मैं निश्चित रूप से चे से बेहतर रसोइया हूं।’ यह प्रसंग पुस्तक के दूसरे भाग में पेज नम्बर 268 पर है। फिदेल सूचित करते हैं कि उनके क्यूबा में एक लाख स्वतंत्र किसान हैं, जिनके पास निजी जमीन है, लेकिन सहकारी समितियों में शामिल होने वाले अन्य किसानों के पास जीवन की कहीं बेहतर परिस्थितियां हैं। कास्त्रो बातचीत में मानव श्रम पर भी जोर देते हैं और बताते हैं कि इसके तहत हरेक छात्र प्रति वर्ष एक महीने के श्रमदान के लिए जाता है।
पुस्तक का प्रमुख हिस्सा दूसरा भाग है। इसके चार अध्याय हैं और यह 220 पृष्ठों में फैला हुआ है। प्रत्येक अध्याय एक रात के दौरान लिया साक्षात्कार है। कास्त्रो से अधिकतर इंटरव्यू शाम को या फिर देर शाम को ही लिए गए हैं। इनमें से कुछ तो आधी-आधी रात तक जारी रहे थे। इंटरव्यू के पहले दिन यानी 23 मई1985 को फ्री ने सूचित किया कि ऐसा शायद पहली बार है जबकि एक समाजवादी देश का शासन प्रमुख धर्म के विषय पर विशेष साक्षात्कार दिया है।
निकारागुआ के सैंडिनिस्टा नेशनल लिबरेशन फ्रंट (एफएसएलएन) ने 1980 में धर्म पर एक दस्तावेज भी जारी किया था। साक्षात्कार के पहले भाग में, कास्त्रो अपने परिवार, अपने बचपन और अपने स्कूल में मिले धार्मिक प्रशिक्षण आदि के बारे में बात करते हैं। कास्त्रो का कहना है कि उनकी मां लीना और पिता एंजेल वफादार धार्मिक लोग थे, लेकिन इन सबसे भी अधिक उनकी मां आस्थावान थी। फिदेल बिरन नामक एक फार्म पर पैदा हुए थे, लेकिन वहां कोई चर्च नहीं था। कास्त्रो के पिता गैलिसिया के एक स्पेनिश थे और क्यूबा में जा कर बस गए थे, वहां वे काम करते थे। कास्त्रो के माता-पिता गरीब पृष्ठभूमि से आते थे। हालांकि बाद में उनके पिता ने पर्याप्त जमीन खरीद ली थी।
कास्त्रो 1895 में स्पेन के खिलाफ क्यूबा के पहले स्वतंत्रता संग्राम का उल्लेख करते हैं, जो 1898 में स्पेनिश औपनिवेशिक शासन की हार के साथ समाप्त हो गया था; इस प्रसंग में कास्त्रो क्यूबा को ‘19वीं शताब्दी के वियतनाम’ के रूप में विवेचित करते हैं। क्यूबा क्रांति की जीत से पहले ही कास्त्रो के पिता का 21 अक्टूबर 1956 को निधन हो गया था, और क्रांति के बाद, 6 अगस्त 1963 को उनकी मां का देहांत हो गया था। कास्त्रो ने बताया कि कैसे उनके बचपन में उनके घर में क्रिसमस मनाया जाता था। कास्त्रो का जन्म 13 अगस्त, 1926 को हुआ था, और 26 साल की उम्र में 26 जुलाई, 1952 को उनका सशस्त्र संघर्ष मोनकाडा पर हमले के साथ शुरू हुआ था। इस संघर्ष को ‘26 जुलाई आंदोलन' का नाम दिया गया था। उनके पिता ने 800 सौ हेक्टेयर भूमि खरीदी थी। लेकिन जब नया कानून बना कि कोई किसान 400 सौ हेक्टेयर भूमि तक ही रख सकता है तो उनके पिता ने शेष 400 हेक्टेयर जमीन सरकार को सौंप दी थी। कास्त्रो के गांव में कोई चर्च नहीं था, उन्हें 5 या 6 साल की उम्र में सैंटियागो डि क्यूबा में बपतिस्मा दिया गया था। उसका नाम फिदेल रखा गया, जिसका मानी अपने गॉडफादर के नाम की तरह ही वफादार होना है। कास्त्रो की चाची और दादी का अपने धर्म पर बहुत मजबूत विश्वास था। कास्त्रो अपनी मां की दूसरी शादी से पैदा हुई कुल सात संतानों में तीसरे लड़के थे। वे अपनी मां की पहली शादी से पैदा हुए बच्चों से भी परिचित थे।
कास्त्रो की चार बहनें हैं एवं दो भाई और हैं। उन्हें सैंटियागो डि क्यूबा में एक स्कूल में रखा गया था, यहां वे अपने
गॉडफादर के घर पर रह कर पढ़ाई कर रहे थे। कास्त्रो ने अपने परिवार के तीन बुद्धिमान व्यक्तियों-कैस्पर, मेलचोइर और बलथजार की पौराणिक कहानियां सुन रखी थीं। पर वे अपने घर में खुश नहीं थे। बाद में उन्हें चार सालों के लिए एक ल साल (La Salle) के बोर्डिंग स्कूल में भेज दिया गया। यहां आकर कास्त्रो को मनचाही संतुष्टि मिली। स्कूल में उन्हें धार्मिक प्रशिक्षण दिया गया और अपने घर पर दो सप्ताह की क्रिसमस की छुट्टी का आनंद लिया। वे स्कूल में एक अच्छे एथलीट थे और अपनी पढ़ाई में भी अव्वल थे।
कास्त्रो यहां अपने क्रांतिकारी होने के बारे में दिलचस्प किस्सा बयान करते हैं, “प्रतिबद्धता ने मुझे क्रांतिकारी बनाया। मुझे नहीं लगता कि कोई भी केवल इसलिए क्रांतिकारी हो जाता है क्योंकि वह किसी तरह के इनाम की उम्मीद करता है या किसी सजा से डरता है। मुझे नहीं लगता कि कोई भी इस तरह के कारण वीरतापूर्वक व्यवहार करता है।” कास्त्रो ने हवाना में कोलिजियो डि बेलेन स्कूल से उच्च शिक्षा प्राप्त की। 1945 में उन्होंने 19 साल की उम्र में हाई स्कूल से स्नातक किया। उन्होंने पहली बार स्कूल में ही एक 'भयानक बात' के रूप में साम्यवाद के बारे में सुना। उन्होंने खेलकूद, संगीत और एकेडमिक में बेहतरीन प्रदर्शन किया था। यह बात उनके स्कूल के प्रमाण पत्र में दर्ज है-
“फिदेल कास्त्रो रुज (1942-45) ने सभी विषयों में विशिष्ट अर्हता पाई है। वे एक टॉपर छात्र और मण्डली के सदस्य, के साथ, वे एक उत्कृष्ट एथलीट थे, हमेशा साहसपूर्वक और गर्व से स्कूल कलर्स (स्कूल के यूनिफार्म एवं उसकी पहचान के रंग) की प्रतिष्ठा रखते थे। उन्होंने पढ़ाई के दौरान सभी का प्यार और सम्मान हासिल किया। हमें यकीन है कि वे कानून के अध्ययन के उपरांत, इस क्षेत्र में खुद के लिए एक शानदार नाम एवं मुकाम हासिल करेंगे। फिदेल के पास वह है, जो ठान ले तो वे अपने जीवन को शानदार बना देंगे।"
विश्वविद्यालय में शामिल होने के बाद, फिदेल ने मार्क्सवादी विचारधारा को स्वीकार कर लिया; वह जोस मार्टी का एक दृढ़ अनुयायी थे। बतिस्ता ने 10 मार्च 1952 को क्यूबा में सैन्य तख्तापलट किया, और कास्त्रो ने 26 जुलाई 1952 को सशस्त्र विद्रोह किया, जो विफल रहा था। इस साक्षात्कार का पहला भाग रात नौ बजे से शुरू हुआ था, जो छह घंटे के पहले सुबह 3.00 बजे समाप्त हुआ था।
साक्षात्कार का दूसरा भाग 24 मई 1985 को 4.45 बजे शुरू हुआ। इसमें फ्री ‘26 जुलाई आंदोलन’ में ईसाई प्रतिभागियों का उल्लेख करते हैं, जैसे फ्रैंक पैस और जोस एंटोनियो एचेवरिया के बारे में बातें करते हैं। इस दौरान, कास्त्रो ने बताया कि वे उनके विश्वास का कितना सम्मान करते थे और एक उदाहरण दिया कि कैसे उन्होंने एचेवेरिया के निधन पर अपने साथियों को दंडित किया, जब उनकी परमेश्वर से उनकी प्रार्थना की इच्छा का आदर नहीं किया गया था। इस अध्याय में, मोनकाडा पर हमले के बारे में विस्तार से बताया गया है। इसमें लगभग 120 पुरुषों ने हमला किया था।
इस झड़प में, 1,000 सैनिकों ने हमले का मुकाबला किया, और प्रारंभिक संघर्ष में केवल 2 या 3 कॉमरेड मारे गए थे। लेकिन बतिस्ता सेना ने 70 विद्रोहियों को गिरफ्तार कर लिया और बाद में उनकी निर्मम हत्या कर दी। इसमें कास्त्रो भी मारे जा सकते थे, लेकिन एक अश्वेत लेफ्टिनेंट ने अपने आदमियों को गोली मारने की इजाजत नहीं दी, जिससे वे बच गए थे। वास्तव में, उस अफसर ने यह कहकर कास्त्रो के आदमियों की प्रशंसा भी की-‘आप बहादुर लड़के हैं, बहादुर’। बाद में, उस लेफ्टिनेंट को क्रांतिकारियों की हत्या न करने का दोषी ठहराया गया और सेना से बर्खास्त कर दिया गया। हालांकि क्रांति की सफलता के बाद, उन्हें कप्तान और राष्ट्रपति की सुरक्षा का प्रभारी बना कर सम्मानित किया गया। उनका नाम पडरो सररिया था। 1972 में, कैंसर से उनका निधन हो गया।
कास्त्रो ने 22 महीने आइल ऑफ पाइंस में जेल में बिताए थे, जिसका नाम बदल कर आइल ऑफ यूथ 19 मंथ कर दिया गया है। जेल में कास्त्रो को एक सेल में रखा गया था। चर्च से फादर सरदिनस 1956 में सिएरा मेस्ट्रा गुरिल्ला संघर्ष में शामिल हुए। क्रांति के बाद, एक न्यायाधीश उररुटिया को क्यूबा का अंतरिम राष्ट्रपति बनाया गया था, लेकिन उनका क्रांतिकारियों के साथ झगड़ा हो गया। उस समय कास्त्रो को प्रधानमंत्री नामित किया गया था, पर उन्होंने इस्तीफा दे दिया, और एक सार्वजनिक बहस में, उररुटिया को शर्मिंदगी उठानी पड़ी, और उन्होंने अंतरिम राष्ट्रपति के पद से इस्तीफा दे दिया। बाद में एक प्रतिष्ठित कॉमरेड को राष्ट्रपति नामित किया गया, और फिर कई रेडिकल कानून पारित किए गए। कास्त्रो कहते हैं-'मनुष्य के मूल्य और नैतिकता उसके आध्यात्मिक मूल्य हैं।’
कास्त्रो इस बात का उल्लेख करते हैं कि कैसे अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआइए ने फादरों एवं चर्चों को क्रांति के खिलाफ इस्तेमाल करने की कोशिश की थी और तीन फादर ने 1961 में क्यूबा पर बे ऑफ पिग्स (Bay of Pigs) के आक्रमण में भाग लिया था। बाद में उनकी हत्या कर दी जा सकती थी लेकिन उनके साथ नरमी से व्यवहार किया गया। इसके बाद,1965 में एकीकृत क्रांतिकारी संगठनों की जगह क्यूबा की कम्युनिस्ट पार्टी का गठन किया गया।
बयासी (82) लोगों ने 1956 -57 में संघर्ष छेड़ा था, जनवरी 1957 में 22 कॉमरेड्स ने पहली बड़ी लड़ाई छेड़ी और जीती थी। 1 जनवरी, 1 9 5 9 को फिदेल कास्त्रो ने जब युद्ध जीता था, तो उनके पास महज 3,000 लोग थे, जिन्होंने बतिस्ता की 80,000 की मजबूत सेना को परास्त कर दिया था। पीपुल्स सोशलिस्ट पार्टी (पीएसपी) तब अधिक समानधर्मा थी। 1961 में बे ऑफ पिग्स आक्रमण के समय समाजवाद की घोषणा की गई थी। कास्त्रो ने बताया कि वह समय 'पार्टी और चर्चों के बीच सह-अस्तित्व और आपसी सम्मान का समय' था (पृष्ठ 171)।
गौरतलब है कि कास्त्रो के साथ यह बातचीत छह घंटे से भी अधिक समय तक चली, और रात 10 बजे जाकर समाप्त हुई थी।
तीसरी बातचीत 25 मई को रात 8 बजे शुरू हुई जब कास्त्रो ने कथित तौर पर एक 'धर्मपरायण' व्यक्ति पिनोचेट को के नाम का खुलासा किया, जो चिली में हजारों बेकसूर लोगों की मौतों, उनकी हत्या करने, उन्हें यातना देने या लोगों के लापता होने का जिम्मेदार है। कास्त्रो ने क्रांति में एक लाख शिक्षकों और मिशनरी के तौर पर अन्य देशों में काम करने वाले हजारों डॉक्टरों की गौरवपूर्ण भूमिका का उल्लेख किया। कास्त्रो उन ननों की भी भूरि-भूरि प्रशंसा करते हैं, जो मॉडल कम्युनिस्टों की तरह क्यूबा में पुराने लोगों के घरों की देखभाल बहुत शिद्दत से कर रही हैं।
फिदेल कास्त्रो इस साक्षात्कार में सैंडिनिस्टा कवि और लेखक फादर अर्नेस्टो कार्डनेल को निकारागुआ का एक बहुत सम्मानित व्यक्तित्व बताते हैं और उनके बारे में बात करते हैं। कास्त्रो क्रांति के कार्यों को बेहतर बनाने की आवश्यकता पर जोर देते हैं और उन्हें काम करने की कला के रूप में परिभाषित करते हैं। वे लैटिन अमेरिकी देशों जैसे ग्वाटेमाला, पेरू, ब्राजील, अल सल्वाडोर और अन्य देशों में क्रांतिकारी विचारों को बढ़ावा देने में लिबरेशन थियोलॉजी (लैटिन अमेरिका के रोमन कैथोलिक द्वारा विकसित किया ईसाई धर्मशास्त्र में एक आंदोलन था, जिसका मकसद गरीबी और सामाजिक अन्याय के साथ-साथ आध्यात्मिक मामलों की समस्याओं को दूर करना था।) की सकारात्मक भूमिका पर चर्चा करते हैं जबकि इसे अमेरिकी शासकों ने विध्वंसक बताया था। चर्च को 2000 साल पुरानी संस्था बताया जाता है जबकि बौद्ध धर्म और हिंदू धर्म इससे भी पुराने हो सकते हैं, लेकिन वे संस्थान नहीं हैं।
ऐसा पहली बार हुआ कि यह साक्षात्कार तीन घंटे तक चला और 11 बजे समाप्त हो गया।
साक्षात्कार का चौथा और अंतिम भाग रविवार, 26 मई, 1985 को शाम 7 बजे शुरू हुआ, कास्त्रो ने फ्री को स्मृति चिह्न के रूप में अपने स्कूल प्रमाण पत्र की एक प्रति उपहार में दी। इस इंटरव्यू में वे पोप की प्रस्तावित यात्रा पर चर्चा करते हैं, जिसका कास्त्रो अपने देश में स्वागत करने वाले है। इसी प्रसंग में, फ्री उनसे धर्म को लोगों की ‘अफीम’ के बारे में एक सवाल पूछते हैं। कास्त्रो अपने उत्तर में उस परिदृश्य को विस्तार से समझाते हुए कहते हैं कि ईसाइयों के लिए मार्क्सवादी होना तो संभव है, लेकिन उन्हें मनुष्य द्वारा मनुष्य के शोषण को समाप्त करने और सामाजिक धन के समान वितरण के लिए संघर्ष करने में ईमानदार होना होगा।
यहाँ कास्त्रो तीन शब्दों के स्लोगन-स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के साथ आधुनिक काल-फ्रांसीसी क्रांति की पहली सामाजिक क्रांति को भी संदर्भित करते हैं। लेकिन पूंजीवादी व्यवस्था में इस स्लोगन का मिथ को भी उजागर करते हैं। कास्त्रो की राय है इस नारे की जो मूल भावना है, उसको समाजवादी समाज में ही साकार करना संभव है। कास्त्रो प्राचीन ग्रीक और रोमन लोकतंत्र के मिथक को भी उजागर करते हैं, जो गुलामों की संख्या के बारे में कोई ब्योरा नहीं देते हैं। कास्त्रो का अनुमान है कि यहां के दासों की तादाद ग्रीक/रोमन अपनी आबादी से कहीं अधिक है और बहस में भाग लेने वाले केवल उच्च वर्ग के ही लोग हैं। इसी इंटरव्यू के दौरान ‘रोम जल रहा था जबकि नीरो बांसुरी बजा रहा था और गीत गा रहा था’ का संदर्भ भी सामने आया!1886 में क्यूबा और ब्राजील में दास प्रथा समाप्त कर दी गई थी।
इसके बाद, कास्त्रो अपने इंटरव्यू में नफरत पर अपनी बात रखते हैं। वे समझाते हैं कि मार्क्स या लेनिन, मार्टी या वे कभी भी व्यक्तियों से नफरत नहीं करते। वे केवल सिस्टम से नफरत करते थे। यह भगत सिंह के सुनवाई के दौरान अदालत में दिए गए उनके प्रसिद्ध बयान की याद दिलाता है, जिसमें उन्होंने इस अवधारणा का उल्लेख किया था। अलबत्ता, कास्त्रो यहां रेखांकित करते हैं कि वे फासीवाद और नाजीवाद से नफरत करते हैं। वे इस तथ्य पर भी ध्यान देते हैं कि साम्राज्यवाद की सबसे क्रूर अवधि के दौरान, पहले विश्व युद्ध में, 20 मिलियन लोग और दूसरे विश्व युद्ध में, 50 मिलियन से अधिक लोग अपनी जान गंवा चुके थे। यह कहते हुए कास्त्रो इस तथ्य को रेखांकित करते थे कि साम्राज्यवादी व्यवस्था को इसके लिए दोषी ठहराया जाना चाहिए और उस शासन-प्रणाली को नष्ट करने की आवश्यकता है।
फ्री प्यार के बारे में और क्रांति के 'निर्यात' पर सवाल करते हैं। इसके जवाब में कास्त्रो कहते हैं कि क्रांति का कभी निर्यात नहीं किया जा सकता। ये केवल विचार ही हैं, जो दुनिया भर में फैलते हैं। भौतिक ताकतें कहीं जाकर क्रांति नहीं कर ती हैं। क्रांति केवल उस देश की आंतरिक शक्तियां करती हैं और उनका बनाया हुआ तंत्र करता है। कास्त्रो चे ग्वारा के बारे में भी बात करते हैं। उनके और चे के बीच प्यार भरा रिश्ता था। अपने इसी इंटरव्यू में वे चे के असाधारण गुणों, उनके नेतृत्व की गुणवत्ता, उनकी बौद्धिक विशेषताओं और उनके अदम्य साहस को सामने लाते हैं। उनके मुताबिक चे इतने साहसी थे कि उन्हें कास्त्रो ही रोक सकते थे।
चे की महान नैतिक अखंड थी, वे गहन विचारों वाले व्यक्ति थे, एक अथक कार्यकर्ता थे, जो अपने कर्तव्यों को पूरा करने में कठोर और हद तक व्यवस्थित थे। कास्त्रो कहते हैं कि ‘वे लैटिन अमेरिका में अपनी पीढ़ी के महानतम व्यक्तियों में से एक थे, और यह कोई भी नहीं बता सकता था कि अगर वे बच गए होते कितना काम कर सकते थे।’ यह टिप्पणी भारत के संदर्भ में केवल भगत सिंह के लिए ही सच हो सकती है। चे कांगो, जायरे, तंजानिया और फिर बोलीविया गए थे। कास्त्रो ने चे के अलावा, कैमिलो जैसे अन्य क्रांतिकारी नायकों के बारे में भी बात की, जिनका महज 27 साल की उम्र में ही 1959 में निधन हो गया था।
यह पुस्तक इस तथ्य के साथ समाप्त होती है कि 82 पुरुषों का अभियान दल 2 दिसंबर, 1956 को क्यूबा पहुंचा था। यह ग्रुप पहले मिली करारी शिकस्त के बाद 14 -15 -16 लोगों का एक समूह फिर इक्ट्ठा हुआ, जिनमें फिदेल कास्त्रो, राउल कास्त्रो, चे और कैमिलो भी थे। इन्होंने 1 जनवरी 1959 को क्यूबा में ऐसी ऐतिहासिक क्रांति कर दी की, जो रूस की अक्टूबर क्रांति (1917) और चीनी क्रांति (1949) की तुलना में सबसे अद्भुत परिघटना थी।
यद्यपि यह किताब धर्म के मुद्दे पर केंद्रित है, पर वास्तव में यह कास्त्रो के जीवन की कहानी और क्यूबा क्रांति की कहानी बयान करती है। कास्त्रो के जीवन-पथ और सिद्धांतों का अनुसरण करने के लिए यह एक बहुत अच्छी किताब है।
चमन लाल जेएनयू से सेवानिवृत्त प्रोफेसर हैं और भगत सिंह अभिलेखागार और संसाधन केंद्र, नई दिल्ली के मानद सलाहकार हैं। आलेख में व्यक्त विचार उनके निजी हैं।
अंग्रेजी में मूल रूप से लिखे गए लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें
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