अमेरिकी नीतिगत बदलावों के बारे में बोल्टन ने इजराइल को पहले से ही चेताने का काम किया है
पूर्व अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जॉन बोल्टन कुछ मायनों में विरोधाभाषों से भरे पड़े हैं- उनका जीवन श्रमिक वर्ग की पृष्ठभूमि के साथ एक अति-दक्षिणपंथी भूमिका, रिचर्ड निक्सन की तरह एक ऐसे पराये इंसान जिसे ‘सर्वश्रेष्ठ और प्रतिभाशाली’ के साथ कदम मिलाने के लिए दुगुनी रफ्तार से दौड़ लगाने के लिए मजबूर होना पड़ा था। इसके साथ ही जो 2017 के बाद से व्हाइट हाउस में घूमने वाले दरवाजे से अंदर- बाहर करने वाले कई राष्ट्रपति के सहयोगियों के विपरीत, एक तेज दिमाग जो राज्य-कला में पारंगत है।
पिछले सोमवार को इजरायली प्रेस ने बोल्टन द्वारा इजरायल के आर्मी रेडियो को दिए गए एक इन्टरव्यू के हवाले से बताया कि यदि मध्य पूर्व के किसी भी देश को नवम्बर में होने वाले अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव से चिंतित होने की जरूरत है, तो वह इजरायल है। बोल्टन के अनुमान में इस आम धारणा के बावजूद कि इजरायल के प्रति ट्रम्प का व्यवहार बेहद बढ़िया रहा है, वास्तविकता तो यह है कि अगले अमेरिकी राष्ट्रपति के तौर पर इजरायल के पास डोनाल्ड ट्रम्प और जो बिडेन के बीच में से चयन करने के लिए कुछ खास नहीं बचा है।
जैसा कि बोल्टन इसे देखते हैं, जिसमें 2015 के ईरान परमाणु समझौते से पीछे हटने से लेकर मध्य पूर्व में ट्रम्प द्वारा की गई कार्यवाहियां कभी भी उतनी ‘इजरायल-समर्थक’ नहीं थीं, जितना कि ये सब अमेरिकी घरेलू दर्शकों को ध्यान में रखकर लिए गए फैसले थे। बोल्टन के शब्दों में,“[ट्रम्प] काफी हद तक घरेलू अमेरिकी राजनीति से प्रेरित होकर फैसले लेते रहे हैं, और यही वजह है कि यदि वे नवम्बर में दोबारा चुनकर आते हैं तो हमें नहीं पता कि एक बार चुनावी बाधाओं से मुक्त होने के बाद उनका रुख क्या होने जा रहा है। यही वजह है कि जो कोई भी इस बात को लेकर परेशान है कि मध्य पूर्व में क्या होने जा रहा है, तो ऐसे सभी लोगों को इस बात को लेकर चिंतित होने की आवश्यकता है कि दूसरे कार्यकाल में क्या होने वाला है।”
2016 के चुनाव में भी ट्रम्प की विदेश नीति के अजेंडे में मध्य पूर्व वास्तव में कभी भी केन्द्रीय एजेंडा के तौर पर नहीं उभरा था। तब मुख्य जोर अमेरिकी साम्राज्यवादी खींचतान को लेकर था। ट्रम्प ने 2003 के इराकी आक्रमण को ख़ारिज कर दिया था और सारा जोर इस बात को लेकर था कि अमेरिका को विदेशी मामलों में उसी सूरत में हस्तक्षेप करना चाहिए, जब उसके खुद के हित दाँव पर लग जाएँ।
उम्मीदवार ट्रम्प ने मध्य पूर्व के क्षेत्र को ‘मुफ्तखोरों’ के तौर पर माना है। उनके हिसाब से इन “मुफ्तखोरों’ ने हमेशा ही अमेरिका का फायदा उठाया है। आज भी ट्रम्प को लगता है कि ईरानी सुरक्षा चुनौतियों के मद्देनजर सऊदी शासन को चाहिए कि राजमहल में अमेरिकी सैन्य तैनाती पर उसे अपने बैंकों के मुहँ को खोल देना चाहिए। उसने खुलेआम डींग मारी है कि बिना अमेरिकी सुरक्षा कवर के सऊदी शासन को एक पखवाड़े के भीतर ही अपना बोरिया बिस्तर समेटना पड़ सकता है।
लेकिन जब बात इजरायल की आती है तो उसका रुख हमेशा ही नरम रहा है। ट्रम्प कभी जिओनिज्म समर्थक नहीं रहे और यहाँ तक कि यहूदी विरोधी जैसी शोहरत तक उन्हें हासिल है, लेकिन उन्होंने खुद को हमेशा इजरायल के बेहद ख़ास दोस्त के रूप में प्रोजेक्ट करने पर ध्यान रखा है।
अब बोल्टन ने साफ़ घोषित कर दिया है कि यदि ट्रम्प एक बार दुबारा चुनाव जीत जाते हैं तो वे चुनावों और अभियानों और फण्ड जुटाने जैसी तमाम राजनैतिक दबावों से खुद को मुक्त कर लेंगे और इसके बाद उन्हें यहूदी लॉबी को खुश करने की कोई जरूरत नहीं पड़ने जा रही है।
इस बिंदु पर जब साफ़-साफ़ शब्दों में पूछा गया कि ट्रम्प की संभावित वापसी इजरायल के लिए वरदान समझी जाये या यह देश को खतरे में डालने वाला साबित होने जा रहा है, तो इसपर बोल्टन की प्रतिक्रिया थी कि इजरायल के लिए न तो ट्रम्प और ना ही डेमोक्रेटिक प्रतिद्वंदी जो बिडेन ही किसी काम के होने जा रहे हैं।
ये बेहद चौंकाने वाली टिप्पणी थी। सवाल यह है कि यदि यदि ट्रम्प यहूदी लॉबी (जो वैसे भी आमतौर पर डेमोक्रेट्स के समर्थन में है) या ईसाई धर्म प्रचारकों से खुद को ‘जुदा’ करते हैं, तो बिडेन की ईरान नीति, ईरान को नियंत्रित करने के लिए इजरायली क्षेत्रीय रणनीति में कटौती करने के लिए तैयार हो सकते हैं।
बोल्टन की इस बारे में राय ज्यादातर समीक्षकों की राय से मिलती है कि यदि बिडेन नवम्बर चुनाव में सत्ता में चुनकर आते हैं तो वे अमेरिका को एक बार फिर से जॉइंट कॉम्प्रेहेंसिव प्लान ऑफ़ एक्शन (जेसीपीओए) में ले जा सकते हैं। अमेरिका से किसी भी प्रकार की वार्ता के लिए तेहरान की यही पूर्व शर्त भी रही है।
वास्तव में यदि ऐसा होता है तो इसका अर्थ यह हुआ कि ईरान को इस मामले में फायदा मिलने जा रहा है, जिसका वह काफी समय से हकदार था क्योंकि उसकी ओर से जेसीपीओए के तहत की गई प्रतिबद्धताओं को पूरा किया जा रहा था। इसके साथ ही ईरान के लिए विश्व अर्थव्यवस्था से एकीकरण के मार्ग भी खुल जाने वाले हैं।
इस बिंदु पर बोल्टन इजरायल के लिए कुछ व्यावहारिक सुझाव पेश करते हैं ताकि वह आने वाले अनिश्चित भविष्य के लिए खुद को तैयार कर सके। इजरायली आर्मी रेडियो से उन्होंने अपनी बातचीत में कहा “मैं समझता हूँ कि आने वाले कुछ महीने इजरायल के लिए अपने राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर काम करने का सर्वोत्तम समय होने जा रहा है।” इसे थोडा अलग तरीके से रखें तो कहने का अर्थ हुआ कि अभी से इस अंतरिम अवधि के दौरान इजरायल को चाहिए कि वह अपने सुरक्षा हितों को मजबूत करने के लिए आवश्यक उपायों को अपनाए।
इजरायल ने शायद पहले से ही इस तर्ज पर काम करना शुरू भी कर दिया है। ऐसी अटकलें हैं कि हाल के हफ्तों में ईरान के संवेदनशील ठिकानों पर हुए बम धमाकों में इजरायली कनेक्शन हो सकता है। 2 जुलाई को नतांज़ परमाणु संयंत्र पर हुए धमाके, पर्चिन सैन्य स्थल के पास हुए बड़े बम विस्फोट इत्यादि हैं। इसी तरह इजरायल ने सीरिया के भीतर अपने लक्षित हमलों को फिर से शुरू कर दिया है। शुक्रवार को हालिया घटना में इजरायली हेलीकॉप्टरों ने दक्षिण-पश्चिमी सीरिया के कुनेइत्र सीरियाई निरीक्षण चौकियों पर एक के बाद एक कई निशाने दागे हैं।
इजरायली मंशा ईरान और/या हिज़बुल्लाह को किसी अन्य प्रारूप में बदला लेने के लिए उकसाने का हो सकता है, जिससे संघर्ष की स्थिति को एक बार फिर से गति दी जा सके।
हालाँकि इसे क्षेत्रीय अलगाव से बाहर निकलने की इजरायली क्षमता को किसी भी प्रकार से कम आँक कर नहीं चलना चाहिए। इजरायल कई सुन्नी अरब देशों से बातचीत को प्राथमिकता दे रहा है। तेल अवीव और आबू धाबी के बीच होने वाली वार्ता एक बिंदु तक आकर परिपक्व हो चुकी है जिसमें इजरायल में अमीराती दूतावास के खोले जाने की संभावना के बारे में खुलकर बातचीत तक होनी शुरू हो गई है।
यूएई के विदेश राज्य मंत्री अनवर गर्गश ने 16 जून को वेस्ट बैंक पर कब्जे की योजना के बावजूद इजरायल के साथ अधिक सहयोग का आह्वान किया है। अमेरिकी यहूदी समिति के वार्षिक वैश्विक मंच को संबोधित करते हुए, गर्गश ने कहा,“स्पष्ट तौर पर यदि इजरायल के साथ डील करने के सन्दर्भ में अरब इतिहास के विभिन्न प्रकरणों को अगर मुड़कर देखते हैं तो हम पाते हैं कि यदि बातचीत और संचार के तार खुले हों तो वास्तव में हमारे और इजरायल के लिए इसके बेहतर परिणाम देखने को मिल सकते हैं। और यहीं पर यदि महज बयानबाजी की नीति, वार्ता पर अड़ंगे लगाने की नीति, संचार के लिए इन तमाम साधनों को नहीं खोलने की नीति ने केवल इजरायली-फिलिस्तीनी संघर्ष के मुद्दों को तीखा करने का ही काम किया है।”
इसके साथ ही इजरायल जिस प्रकार से यूएई, सऊदी अरब और मिश्र के साथ तुर्की और मुस्लिम ब्रदरहुड के खिलाफ तीखी वैमनस्यता साझा करता है, ऐसे में इजरायल चाहे तो वह पूर्वी लीबियाई सरदार खलीफा हफ्तार के साथ किसी बिंदु पर मदद के लिए हाथ आगे कर सकता है (जिसे रूस का समर्थन भी प्राप्त है।) हमास के साथ तुर्की के घनिष्ठ सम्बन्धों को देखते हुए इजरायल चाहे तो लीबिया में किसी भी तुर्की लामबंदी को ध्वस्त करने के लिए स्वतंत्र है।
और फिर महान मध्य पूर्वी पहेली भी तो अभी भी बाकी ही है: क्या बिडेन सीरिया में असद शासन के साथ हेनरी किसिंजर के जमाने वाले लिंक को एक बार फिर से पुनर्जीवित करने की सोचेंगे? बोल्टन की भविष्यवाणी को गंभीरतापूर्वक लेने की जरूरत है।
इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।
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